* मैं भारत में भाषा विवाद समाप्त करने के लिए संस्कृत को प्रतीक के तौर पर राष्ट्रभाषा बनाने का पक्षधर हूँ | अब भी वह संकल्प डस्टबिन में नहीं फेंक रहा हूँ | पर कल के में छपे एक समाचार से मुझे पर्याप्त धक्का लगा | खबर है :-
" उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान में इस समय ज्योतिष एवं वास्तु प्रशिक्षण शिविर का संचालन किया जा रहा है --|-- संस्थान की निदेशक सुनीता चतुर्वेदी ने बताया कि इसमें सैकड़ों लोगों का भाग लेना अच्छी खबर है | संस्कृत भाषा का मर्मज्ञ ही ज्योतिष एवं वास्तु का अच्छा जानकार हो डाकता है | --- " जन सन्देश [लखनऊ]
अब हम क्या मुँह लेकर संस्कृत की वकालत करें ? कोई भी समझदार , तार्किक , सत्यान्वेषक , वैज्ञानिक बुद्धि का व्यक्ति , ऐसी दशा में संस्कृत क्यों पढना चाहेगा , जो उसे ज्योतिष और वास्तु में पारंगत बनाये , जिसकी कोई प्रासंगिकता न हो ? और यदि अपने इसी दकियानूसी अवगुण के नाते यह भाषा अधोगति को प्राप्त होते -होते समाप्त हो जाने की कगार पर आ गयी है तो इसमें किसी का क्या दोष ? भाषा तो वही आगे बढ़ेगी जो उसके पढ़ने - लिखने -बोलने वाले व्यक्ति को आधुनिक ज्ञान -विज्ञानं से लैस बनाये , न कि वह जो जनता को अंध विश्वास के कुएँ में डाले ||
फिर भी इसे केवल प्रतीक ,केवल नाम के लिए भारत का हाथी का दाँत बनाने की समझदारी से मैं अभी डिगा नहीं हूँ | ##
सर,मैं आपके कहे से पूरी तरह सहमत हूँ और इस अनोखी जानकारी के लिए शुक्रिया.
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