गुरुवार, 30 जून 2011

जश्न-ए-हमारा गंज

* गुंडाराज तक तो हम पहुँच ही चुके थे | क्या बुरा है जो बाबाराज की ओर जा रहे हैं ?
[टीका]

* नक्सलियों  ने राष्ट्रपति के वार्ता -प्रस्ताव को ठुकराया |  [समाचार] 
  - वे कर्मशील समूह हैं , बातों में समय व्यर्थ नहीं करते |  [टीप]

* जश्न-ए-हमारा गंज २५/६/११
आयोजकों को मुबारक | मुबारक तो हमें भी होना चाहिए था लेकिन कैसे हो ? हम हज़रतगंज तक कैसे पहुंचें ? अलीगंज से हम विक्रम टेम्पो पर सवार होते हैं | चालक कहता है - बहन जी थोड़ा आप आगे  खिसकिये , भाई साहब आप पीछे होकर बैठिये | और इस तरह वह एक का जंघा दुसरे के पुट्ठे से सटाकर तीन की सीट पर चार सवारियाँ फिट कर देता है | जो कुछ कमी रह जाती है वह टेम्पो के झटके से पूरी हो जाती है | 
तो यह है लखनऊ  की तहजीब जिसे हम रोज़-ब-रोज़ झेलते हैं ,और इसी पर गर्व करने के कसीदे गाये जाते हैं | क्या कोई बताएगा ऐसा कैसे हो रहा है ? किसकी मिली भगत से यह चल रहा है ? जब कि ऐसा पहले न था | निश्चय ही तेल के दाम बढ़े , तो उसी हिसाब से किराया भी तो बढ़ता रहा | और भरती रहीं जेबें किसकी किसकी | क्या इसके लिए भी कोई जन - यातायात -प्रबंध पाल बिल  की ज़रुरत है ?  ##
        
0 कृष्णावतार
होगा क्या लोकपाल
भ्रष्ट नाशक ? (हाइकु)
0 कुछ चाहिए
मुद्दे नेता बनने
को युवाओं को
जयप्रकाश
हों बाबा रामदे या
अन्ना हजारे । (हाइकु)
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शनिवार, 25 जून 2011

मै एक छोटा आदमी

0 अभी उस दिन दो लड़के सीवर साफ करते समय ज़हरीले गैस के कारण दम घुटने से मर गये । मैं सोचता हूँ कि मैला मुक्ति भला कहाँ संभव हुआ ?   (समय)

0 मुझे गलत समझा जा सकता है , पर मै एक छोटा आदमी विवशतः यह मानता हूँ कि मैं व्यक्तिगत तौर पर ही ईमानदार हो सकता हूँ , किसी अन्य को ईमानदार होने के लिए विवश नहीं कर सकता । हाँ,यह काम नैतिक संत, समर्थ शिक्षक, सक्षम अधिकारी अवश्य कर सकते हैं । जैसे मैं अपने वकील से नहीं कह सकता कि मेरी फीस को ईमानदारी से इनकम टैक्स रिटर्न मे दिखाओ । मेरे पास इतना नैतिक साहस नहीं है कि डॉक्टर से कह दूँ मेरे बच्चे को कुछ भी हो जाय मैं तुम्हे कोई पैसा नहीं दूँगा । मैं तो  पोस्टमैन तक को होती-दीवाली की त्योहारी माँगने से मना नही कर सकता । इत्यादि- इत्यादि- इत्यादि । इसे दैनिक जीवन के अनुभव से समझ सकते हैं ।इसे कृपया केवल दिमाग से नहीं, उसमें अपना दिल भी जोड़कर सोचें । नैतिकता नितांत निजी मामला है , और ईमानदारी नैतिकता से संबंधित है। इसलिए ईमानदारी निजी नैतिकता है ।

0 इनके आन्दोलन बीजेपी , आरएसएस से क्यों न जोड़े जाँय , आखिर हैं तो ये  (Human) Rightist , दक्षिणपंथी ही ।   (व्यंग्य)
0 जनता ? कौन सी जनता है जिसे आप लोकतंत्र के पक्ष में लाने का दम भरते हैं ?    (उवाच)
0 भुक्खड़ देश में ईमानदारी ¿ पहले भूख का इलाज करो      (उवाच)
0 अपने प्रायवेट बाथरूम में भी कोई बाल साफ करने का क्रीम खुले में नहीं रखता । (उवाच)  
0 अपनी पत्नी की
मुझे लाज रखनी है ,
इसलिए नज़रें
पराई ओर रखता हूँ ।  (बदमाशी)
0 परिवर्तन
बहुत तीब्र न हो
धीरे धीरे हो     (हाइकु)

*तुम्हारा ही पत्थर है
तुम्हारी ही छेनी हथौड़ी
तुम्हारी ही मूर्ति है ।  (कविता)
0 बड़ी मुश्किल से
भीगने का
मौका मिला था
उसने
छाता उढ़ा दिया ।  (कविता)
0 साँप , कोई ज़रूरी नहीं
कि काटे ,
उसके काटने का भय भी
आदमी को
मार सकता है ।0   (कविता) 
0 इसीलिए
कमाई खूब है ,
क्योंकि मँहगाई
बहुत है ।   (सं-पीपली लाइव)
0 भेड़ियाधसान है
सरकार बनाने के लिए
मतपत्रों का डाला जाना ,
भेड़ियाधसान ही है
सरकार के खिलाफ़
आन्दोलन किया जाना ।  (कविता)
 

बुधवार, 22 जून 2011

हिजाब और नक़ाब


* लड़कियाँ खूब हिजाब कर रही हैं । बलात्कार की बढ़ती घटनाओं पर एक मित्र ने फेसबुक पर लिखा कि समाधान शरीयत पालन करने में है। हो सकता है इसमें सच्चाई हो , अन्यथा यदि नारी मुक्ति हर हाल में  उन्मुक्तता ही  चाहती है और कोई बंधन उसे मंजूर नहीं ,तो फिर वह उसका खमियाज़ा भी भुगते, कीमत अदा करे या फिर उनसे निपटे  ।
इसी प्रकार राज का काज भी गुप्तचर सेवाओं के बल पर चलता है , यानी नक़ाब से । सब छिन्न भिन्न कर दिया अँग्रेज़ी डिमॉक्रेसी ने पारदर्शिता के नाम पर । फिर आर.टी.आई ने तो प्रशासन की एब्सट्रैक्ट कला को मूर्तिकला में तब्दील कर दिया , चाहे चिड़ियाँ बीट करें या बच्चे पेशाब से तर ।
सोने की चिड़िया
भला कोई बताए, नब्बे किलो लोने में कितनी सोने की चिड़िया बनेंगी और तीन सौ किलो चाँदी में कितनी चाँदी की चिड़िया । अब कोई क्यों नहीं कहता कि देश की सोने-चाँदी की चिड़िया तो बाबाओं के शयन कक्ष में क़ैद है । और यह कि यदि मठों-मंदिरों की संपत्ति यदि सार्वजनिक हो जाय तो भारत का एक रूपया अमरोका के पचास डॉलर के बराबर हो जाय ।

हम ईश्वर की मूर्तियाँ

* उसने (ईश्वर ने) तो खूब मूर्तियाँ बनाईं , हम लोगों की , पशु-पक्षियों, जंगल पहाड़ नदी समुद्र चाँद सूरज सितारों और तमाम चीज़ों की , अपनी इच्छानुसार । अब हमसे कहता है कि मेरी (ईश्वर की) मूर्ति मत बनाओ । खबरदार जो बनाया । बताइए कितना बड़ा अन्याय है उसके राज में ?

संतों की वाणियाँ

0--- याद है , कुछ ही दिन पहले तक लड़कियाँ टाइप व शार्ट हैन्ड सीखने जाया करती थीं । अब भी जाती हैं । बात वही है  | केवल मशीन का नाम बदलकर कम्प्यूटर हो गया है ।
0---- आखिर क्या कारण हो सकता है कि संतों की सभी वाणियाँ धनिकों के हित में चली जाती हैं ?

आतंकवाद के खिलाफ

*आतंकवाद के खिलाफ सख्त कानून ।बिल। पर हमारा जोर क्यों नहीं है ?

शांतिपूर्ण नक्सलवादी

छल-छद्म-झूठ-फरेब के विरुद्ध                                                     " सत्यनिष्ठा "
CITIZENS  AGAINST  HYPOCRICY                       L-V-L/185, Aliganj,Lucknow-24
इं०  उग्रनाथ नागरिक [कवि-लेखक-नास्तिक पत्रकार ]            Mob  : o9415160913
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 Email-priyasampadak@gmail.com   Blog-nagriknavneet.blogspot.com  Dated :-22 /6 /11
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* 1 = Blackmoney की बात तो ठीक , Blackmailing की बात नहीं ठीक |

* 2 =  कुछ सुना आपने ? [IE 22/6/11] . अरविन्द बाबू लोकपाल के लिए देश के सकल राजस्व का एक चौथाई रक़म माँग रहे हैं | ज़ाहिर है , सरकार इतना ही राजस्व  वसूली पर खर्च कर देगी | फिर सरकार क्या करेगी ? भ्रष्टाचार मिटाने के बहाने यह तो महा -भ्रष्टाचार की तैयारी है| हर्रे लगे न फिटकिरी ,रंग चोखा | चुनाव जीतने  का झंझट नहीं , PM ,CJ अपने  कब्ज़े  में और पराया माल अपना |
अच्छी रणनीति है | दिमाग वाला आदमी है यह IAS return | जब पैसा ही नहीं बचेगा तो नरेगा मनरेगा , विधायक -सांसद निधि , निर्माण कार्य भी नहीं होगा | भ्रष्टाचार अपने आप तिरोहित हो जायगा | चलो १६ अगस्त से अनशन में हम भी शामिल हों | अनशनकारी बुडढा तो कुछ समझता नहीं | गाँधी के चौथे बन्दर की तरह दिमाग बंद करके इनका मोहरा बना हुआ है , और भ्रम इतना बड़ा पाले हुए कि मानो इनके अनशन से मर जाने पर देश में हाहाकार हो जायगा , जबकि कुछ होने वाला नहीं है | उसके कुछ अनन्य साथी ही उनका साथ नहीं देने वाले  हैं | अरविन्द - प्रशांत क्यों नहीं अनशन करते ? #

* 3 = मैंने अरविन्द केजरीवाल का नाम क्यों लिया ? क्योंकि यह सब उसी का किया कराया है | यह ड्राफ्ट  भी उसी का है | वह पहले श्री श्री से मिला ,फिर दोनों अन्ना से मिले और उन्हें बलिदान के राजी किया [I.E. 22/6/11]  आप  जानते  ही  हैं , ऐसे कामों में गाँधी वादियों को बड़ा  मज़ा [आनंद ]आता है |आगे आपको सब पता ही है |##

* 4 =  यह भी सर्व विदित है कि R.T.I. कानून के पीछे भी इसी व्यक्ति की मशक्कत थी | और वह कानून कुछ बड़े - बड़े लोगों की दुकानदारी बनकर अपना कितना उपयोग /दुरूपयोग करा रही है , देखने की बात है | वह भी विधायकों , सांसदों , पत्रकारों के अधिकारों का अनावश्यक फैलाव  था , जिस से अराजकता के अतिरिक्त कुछ हासिल नहीं हुआ | आगे लोकपाल बिल है | यही लोग नक्सलवाद  के समर्थक हैं , अब यही लोग शांतिपूर्ण नक्सलवादी हैं  #

* 5 =  यह बालक बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर का नाती बनना चाहता है |  अब आंबेडकर की पीड़ा ,वह समर्पण ,वह ज्ञान , वह अपने देश की समझ तो इसके  पास है नहीं , यह केवल  अंग्रेजी -किताबी शिक्षित भर है | तो यह अकारण नहीं कि यह  आंबेडकर की तरह गाँधी के खिलाफ नहीं है , बल्कि एक गाँधी को ही पटाकर मरने के लिए बिठा दिया | बताइए आंबेडकर से बुद्धिमान है या नहीं | और बचपना तुनक मिजाजी तो देखिये - सब हमारी बातें मानो , ऐसा कानून बनाकर अभी दो ,  पर्लिअमेंट  में बहस कि हमें फुर्सत नहीं | आंबेडकर ऐसा कर पाए थे क्या ?
  इन लोगों की कार्यवाहियों की वजह से यदि देश को कुछ हो गया तो ये लोग कम , हम लोग ज्यादा ज़िम्मेदार होंगे , जो सब देख रहे हैं | इसलिए मै भी टर्र -टर्र कर रहा हूँ क्योंकि मैं जानता हूँ कि इनका मुद्दा भ्रष्टाचार समाप्त करना है ही नहीं , इसके बहाने शासन को लतियाना और सत्ता हथियाना है | और इनकी सत्ता कतई किसी भी मायने में बेहतर नहीं होगी | अच्छा या बुरा ,वर्तमान सत्ता का केवल विकल्प दलित + महिला शासन है | किमाश्चर्यम कि महिला आरक्षण  पर इनकी बोलती पूरी तरह बंद है, जिसे भी इसी सत्र में पेश होने की तैयारी है | अपनी drafting committee में पांच में से एक भी महिला को स्थान नहीं दिया , यह यूँ ही तो नहीं हुआ ? ## 

* 6 = Lucknow 22,june |आज एक बुरी खबर और है |ICSE class IV की किसी किताब  में फिर मोहम्मद साहेब की तस्वीर छप गयी | मौलानाओं ने ऐतराज़ किया है और धमकी दी है | इस पर मैं  अपनी राय फिर बता दूँ | बच्चों की किताबों में तो चित्र और पाठों के  Illustrations  होंगे ही, होने ही चाहिए  | ऐसा बाल शिक्षण का मनोविज्ञान बताता है | तो जिस पाठ में अभिचित्रण संभव नहीं है उसे किताबों  में लगाते ही क्यों हैं | अतः केवल  चित्र ही नहीं , वह पूरा पाठ ही कोर्स से क्यों नहीं निकाल देते ? सेकुलर देश में  धार्मिक शिक्षण के अभाव में छात्रों का कोई नुकसान नहीं होने वाला | इस्लाम की शिक्षा के लिए तमाम मदरसे हैं | हाँ , गणेश , हनुमान , राम ,रावण के खूब चित्र छापो ,जिस से बच्चों का मनोरंजन हो | उनका ,इस प्रकार ,पढ़ने में मन  लगे , और इसपर किसी को कोई आपत्ति भी नहीं है |   ##      
    

सोमवार, 20 जून 2011

सबका अलग-अलग भगवान

*Other God ! अन्य ईश्वर
मैं  सच  कहूँगा  , मैं  असफल  नहीं  होना  चाहता  | कोई  नहीं  चाहता  ,भले  ही  अंत  में  वह  असफल  ही  हो  | मैं  अच्छी  तरह  जानता 
हूँ  कि  मैं  ईश्वर को  कितना   भी  ना  मानूँ  , ईश्वर  इस  संसार  से  , मनुष्य  के  मन  से  जाने  वाला  नहीं  | क्योंकि  उसके  वजूद  के  ठोस  कारण  हैं  | विज्ञानं  भी   छवियों  की हकीक़त  को  इन्कार  नहीं  कर  सकता  , जैसे  कलाओं  में  एब्सट्रेक्ट  का  स्थान  स्वीकृत  और  सर्वमान्य  है  |
     फिर  भी  इस  बात  से  मुँह  मोड़ना  भी  संभव  नहीं  है  और  घातक भी  है  कि   उसका  वैसा  अस्तित्व  जैसा  कि  कुप्रचार  में  है  , हमें  स्वीकार  नहीं  हो  सकता  | या  यूँ  कहें  कि  वैसा  ईश्वर  , ईश्वर  का  वैसा  स्वरुप  हमारे  मन  को  नहीं  भाता  | तो   रास्ता  यही  बनता  है  कि  हम  सब  अपना  –अपना  अलग  – अलग  ईश्वर  बनायें  | तब  हम  उसके  प्रति  ज्यादा  ईमानदार हो  सकेंगे  , उसके  प्रेमी  और  रसिक  | और  जिंदगी  तब  ज्यादा  आनंदपूर्ण  हो  सकेगी  जो  अभी  साम्प्रदायिकता  के  जंजाल  में  फँसी  मनुष्य  को  परेशान  किये  हुए  है  |
     इसे  मैं  अभी   “ OTHER GOD MOVEMENT “  अन्य ईश्वर आन्दोलन" की   संज्ञा  देना  चाहूँगा  | जो सबका अपना -अपना अलग -अलग होगा ,नया -नया विलक्षण | कहा था न बाबा ने ? जाकी रही भावना जैसी , प्रभु मूरत देखी तिन तैसी |अर्थात मैं कोई नयी बात कह भी नहीं  रहा हूँ  ##

ज्योतिष के खिलाफ

  •  ज्योतिष के खिलाफ मेरे पास एक दमदार तर्क है | किसी भी व्यक्ति का जन्म समय ठीक अंकित नहीं हो सकता | सर से लेकर पाँव तक निकलते-निकलते ग्रह -नक्षत्र बदल जाते होंगे  | कौन सा समय उसके जन्म की घड़ी माना  जाता होगा  ? 
  • अरविन्द केजरीवाल [ने मानो बड़ी कृपा की जो ] आई ए एस छोड़कर सभ्य नागरिक सक्रियता में आये | लेकिन इसी नाते तो उन्हें शासन - प्रशासन का कोई अनुभव नहीं हो पाया , जो कि उनके उल -जलूल कामों और माँगों से स्पष्ट है | पहले आर टी आई,और अब लोकपाल के भीतर प्रधान मंत्री |
  • बाबाओं और गुरुओं की सूचना के लिए बताना है कि योग का एक महत्वपूर्ण  आसन है  जिसे , ऐसा लगता है कि वे जानते ही नहीं और इसीलिये केवल शारीरिक कसरत [physical exercise] कराकर नाम व धन कमाते एवं अपने कर्तव्य से मुक्त हो जाना चाहते हैं | जब कि यह अभी भी ओशो ध्यान शिविरों में कराया जाता है | वह है शवासन -शरीर को मृतप्राय छोड़ देना | मेरा सुझाव है कि यही आसन अब उनके लिए समुचित है | अब वे यही करें , और अन्य कुछ न करें | तो हम उनसे मुक्ति पायें |

शुक्रवार, 17 जून 2011

भाषा विवाद

*  मैं भारत में भाषा विवाद  समाप्त करने के लिए संस्कृत को प्रतीक के तौर  पर राष्ट्रभाषा बनाने का पक्षधर हूँ | अब भी वह संकल्प डस्टबिन में नहीं फेंक रहा हूँ | पर कल के  में छपे एक समाचार से मुझे पर्याप्त धक्का लगा | खबर है :-
    " उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान में इस समय ज्योतिष एवं वास्तु प्रशिक्षण शिविर का संचालन किया जा रहा है --|--  संस्थान की निदेशक  सुनीता चतुर्वेदी ने बताया  कि इसमें सैकड़ों लोगों का भाग  लेना अच्छी खबर है | संस्कृत भाषा का मर्मज्ञ ही ज्योतिष एवं वास्तु का अच्छा जानकार हो डाकता है | --- "  जन सन्देश [लखनऊ]
           अब हम क्या मुँह लेकर  संस्कृत की वकालत करें ? कोई भी समझदार , तार्किक , सत्यान्वेषक , वैज्ञानिक बुद्धि का व्यक्ति , ऐसी दशा में संस्कृत क्यों पढना चाहेगा , जो उसे ज्योतिष और वास्तु में पारंगत बनाये , जिसकी कोई प्रासंगिकता न हो ? और यदि अपने इसी  दकियानूसी  अवगुण के नाते यह भाषा अधोगति को प्राप्त होते -होते  समाप्त हो जाने की कगार पर आ गयी है तो इसमें किसी का क्या दोष ? भाषा तो वही आगे बढ़ेगी जो उसके  पढ़ने - लिखने -बोलने वाले व्यक्ति को आधुनिक ज्ञान -विज्ञानं से लैस बनाये , न कि वह जो जनता को अंध विश्वास के कुएँ में डाले || 
           फिर भी इसे  केवल प्रतीक ,केवल नाम के लिए भारत  का हाथी का दाँत बनाने की समझदारी से  मैं अभी डिगा नहीं हूँ | ##           

अन्ना पानी की टंकी पर

  • अन्ना हजारे और बाबा रामदेव एक काम बेहतर तरीके से कर सकते थे | करना चाहिए था , और है | लेकिन शायद ऐसा वे चाहते ही नहीं थे , इसकी नीयत ही नहीं थी या उतना नैतिक साहस नहीं था | जब कि ये उलटे सरकार  की नीयत पर प्रश्न चिन्ह उठा रहे हैं | जिस प्रकार जय प्रकाश नारायण  ने डाकुओं से आत्म समर्पण कराया था , ये अपनी संतई के बल पर जंतर मंतर या राम लीला मैदान में भ्रष्टाचारियों से भविष्य में कोई भ्रष्टाचार न करने का संकल्प दिला सकते थे | यह कार्य उनके स्टार [stature]  के सर्वथा अनुकूल होता और सरकार एवं राष्ट्र उन्हें भरपूर सम्मान देता , यद्यपि यह भी अंततः एक नाटक ,एक पाखण्ड ही साबित होता | लेकिन इससे संतों की नीयत और उनकी देश भक्ति का खुलासा तो होता | ऐसा नहीं हुआ ,क्योंकि ऐसा होना ही नहीं था |  ##
  • आज लखनऊ में फिर कोई अपनी मांगें मनवाने के लिए ऐशबाग की पानी की टंकी पर चढ़ गया | इस से यह विकल्प सूझा कि यदि सरकार [ रामदेव का तो अब एक दशक तक अनशन पर बैठने का सवाल ही नहीं उठता ]  अन्ना को दिल्ली में अनशन करने का कोई स्थान स्वीकृत न करे तो वह और वे किसी   पानी की टंकी पर चढ़ जायं , और माँग करें कि सरकार अभी-अभी , फ़ौरन  जन -लोकपाल कानून बना कर हमें दिखाए वरना हम पाँच के पाँचो इस टंकी से कूदकर जान दे देंगें | तब उनकी बात मान भी ली जायगी और कुछ अच्छा तमाशा भी हो जायगा | हैं भी इसी प्रकार की हवाई और उतनी ही हल्की और छिछली माँगें इन लोगों की | ##    

देश शर्मसार

  • देश शर्मसार सनातन युग के योगियों की बात छोड़ दीजिये , अभी अधिक दिन नहीं हुए , इस देश में योगिराज अरविन्द हुए , गोपीनाथ हुए , विवेकानंद हुए ,स्वामी  दयानंद हुए और हुए बाबा देवराहा | जिन्हें लोग किस सम्मान , विश्वास और आदर के भाव से याद करते हैं ! कितने  स्वनाम धन्य नाम उचारे जाएँ कोई न कोई शुभनाम छूट ही जायगा | इधर शिर्डी के साईं बाबा को ही ले लीजिये | कितना तो श्रद्धा और सम्मान प्राप्त है उन्हें | और ये सब अपने श्रद्धालुओं की कसौटी पर खरे सिद्ध हुए | 
  • लेकिन अब देखिये ! नए एक साईं बाबा तो अभी जल्दी ही ईश्वर को प्यारे हुए |  एक महेश योगी , फिर चंद्रास्वामी जी महराज का नाम ले लीजिये | फिर न भूलिए आज प्रसिद्धि के टॉप पर खड़े योग गुरु और राजनेता बाबा रामदेव को | उन्हें बचने का रास्ता हम निकाल सकते हैं कि वह योगी नहीं , योग शिक्षक /टीचर हैं | पर क्या सचमुच आपको नहीं लगता कि कहाँ तो इस विद्या को बढ़ते विज्ञानं के साथ उच्चता के शिखरों को छूना चाहिए था ,इन लोगो के कारनामों के कारण योग विद्या , योग शास्त्र , हमारा देश , इसका धर्म और संस्कृति , जिस पर हम फूले नहीं समाते , शर्मसार हुआ है | या अब भी कुछ बचा है हमारे सर उठाने के लिए ? क्या यह उचित न होगा कि इन्ही से पूछा जाय कि उनके इस महा अपराध के लिए उनके लिए क्या सजा मुक़र्रर की जाय ? या ईश्वर पर ही छोड़ दिया जाय , इनके पापों का फल इन्हें देने के लिए ?  ##   

Dead Honest

  • प्रजातंत्र के साथ खराबी यह  है कि इसमें हर कोई अपने को राजा समझने लगता है | कोई प्रजा बनकर तो रहना चाहता ही नहीं ! ##
  •  बूढ़े अन्ना हजारे को क्यों मारने पर तुले हो भाई ? ड्राफ्ट तुम्हारा , जिद तुम्हारी और जान ले रहे हो अन्ना की ? यह तो जान ही लो  कि अब इतनी भीड़ नहीं जुटेगी उनके अनशन में | बहुत समर्पित हो अपने उद्देश्य के प्रति तो आप अन्य लोग जान देने  के लिए अनशन पर बैठो और अन्ना को आशीर्वाद देने के लिए सुरक्षित रखो | वरना उनकी हत्या का पाप तुम पर लगेगा ,और यदि कहीं रामदेव सरीखा सख्त लोकपाल हुआ ,तो तुम लोगों को फांसी की  सजा देगा |#
  • राजनीति क्यों  न रक्तबीज या भस्मासुर का रूप धारण करे ? एक सन्यासी की  मौत पर , तथा एक बाबा की  मौत की धमकी पर सारे नेता पहुँच गए सहानुभूति की टोकरियाँ लेकर | पर आज दो लड़कों की मौत वी आई पी इलाके में सीवर साफ़ करते समय हो गयी और कहीं कोई आवाज़ नहीं खड़ी हुयी, क्यों ? क्योंकि ये मरने वाले  राजनीतिक मुखड़े नहीं थे अन्ना , रामदेव , निगमानंद की  भाँति | सभ्य समाज भी कहीं नहीं दिखा | मैं नहीं सनझ पाता ,इन्हें सिविल सोसायटी कहा ही क्यों जाता  है  ? क्योंकि ये कुछ बड़े और पढ़े -लिखे लोग हैं ? यह तो विद्रूप स्थिति  है | कर तो मैं भी कुछ नहीं पा रहा हूँ , लेकिन मैं विचलित हूँ और स्थितियों को इस रूप में सामान्य जनता की ओर से देख रहा हूँ | पाता हूँ  कि , यही कारण   कि लोग अराजक राजनीति में उछल -कूद कर भाग लेने को प्रेरित होते हैं और राजनीति खरदूषण हो जाती  है|  ##
  • बड़ी गलतफहमियां हैं लोगो को भ्रष्टाचार को लेकर | यद्यपि अनावश्यक  है ,पर कहना चाहता हूँ  कि कानून कायदों का पूरी तरह पालन करते हुए भी आदमी महा - भ्रष्टाचार संपन्न कर सकता  है ,और बिना कोई कागज़ -पत्तर पूरा किये भी कोई व्यक्ति महा सत्यनिष्ठ [Dead honest] हो सकता  है | सत्यनिष्ठा नितांत निजी नैतिकता  है | और हाँ , याद आया जब  आप  किसी  को dead honest  कहते  हो  तो  कभी सोचते हो  कि honest आदमी  dead  क्यों  है, या क्यों  होता  है  ?  # 

मंगलवार, 14 जून 2011

स्वाधीनता के दो पुजारी

* बुरा न मानिये तो अन्ना टीम भी एक नौटंकी में तब्दील हो चुकी है | ८ जून को वह बाबा रामदेव के समर्थन में धरने/अनशन  पर बैठे | सोचने की बात है , यदि उन्हें बाबा से बड़ी सहानुभूति थी तो उन्होंने बाबा को अपनी टीम में क्यों नहीं शामिल किया ? बाबा तो जंतर मंतर गए भी थे | यदि उनकी मांग वाजिब थी तो उसे भी अपनी मांगों में शामिल कर लेते ,तो बाबा को सामानांतर आन्दोलन रामलीला मैदान में न करना पड़ता , न ४ जून की अनावश्यक घटना होती |##

* एक बुज़ुर्ग दिवंगत दार्शनिक शायर की कविता है कि :
" जहाँ स्वाधीनता के दो पुजारी युद्ध करते हों , वहां समझो अभी बाक़ी ग़ुलामी की निशानी है |" 
वहां कवि का आशय गाँधी - सुभाष के बीच मतभेद , तनातनी से था , जब कि दोनों ही भारत की आज़ादी के लिए कृत संकल्प थे | अब वही बात इन दोनों योद्धाओं पर लागू नहीं होती क्या ? ###
  
* सब व्यवसाय है , व्यापार | सरकार खादी वस्त्रों पर सब्सिडी देती है , उसी प्रकार उसने अन्ना को सरकारी  कार्य में नियुक्त कर लिया , भले अब वह सरकार के गले की हड्डी बन गयी | रामदेव , चूंकि स्वयं सफल -समृद्ध उद्योगपति हैं ,इसलिए उसने इनसे कोई पी.पी.पी. नहीं किया | ये सब व्यापार के लक्षण हैं या नहीं ?##

* मनोरंजन के लिए एक बदमाशी की बात यूँ ही दिमाग में सूझ  रही है | अपनी कुछ ऐसी ही हवाई मांगों को लेकर  बाबा के तर्ज़ पर ,आगे के समय में कोई टाटा या बाटा कहीं अनशन पर बैठ जाएँ , मसलन इसलिए कि उन्हें उद्योग के लिए ज़मीनें दी जाएँ , निर्यात का शुल्क माफ़ हो , या कानून बनाकर हर सरकारी कर्मचारी को बाटा के जूते पहनना अनिवार्य किया जाय , तो कल्पना करने  में क्या हर्ज़ है कि तब कैसी स्थिति होगी ? ####    

बहस ज़रूर होनी चाहिए

बहस होनी चाहिए
बहस ज़रूर होनी चाहिए कि
* जनता को क्यों ईमानदार होना चाहिए ? जब किसी के पास अरबों की संपत्ति हो और उसके पास कुछ भी न हो |उसे अरबपति साधुओं -नेताओं पर क्यों विश्वास करना चाहिए ?

* क्या लोकपाल की जाँच के अधीन गाँव का प्रधान और ग्राम पंचायत  अधिकारी भी जिसका जुल्म और शोषण जनता रोज़-ब-रोज़ झेलती है ?

 बहस ज़रूर होनी चाहिए |

असभ्य सिविल सोसायटी

  •  
    • यह सब इस्लाम के आने की पूर्व सूचना है | वहां बाबा दाई , आंत्रिक -तांत्रिक के लिए कोई जगह नहीं होती , सिर्फ एक अल्लाह के अलावा , और उसका एकमात्र, अंतिम सन्देश वाहक |
    • जब दो पक्ष एक साथ बात चीत  के लिए बैठते हैं तो कोई पक्ष यह नहीं कह सकता कि  उसकी हर बात दूसरे पक्ष को अनिवार्य रूप से मान ली जाय | लेकिन हमारा असभ्य सिविल सोसायटी लोक पाल बिल का मसौदा करने में यही कर रहा है  | वह जिद पर अड़ा है कि प्रधान मंत्री और मुख्य न्याया धीश को लोकपाल के अधीन लाओ | इसके खतरों से तमाम अन्य बुद्धिजीवी  आगाह कर रहे हैं कि लोकपाल को कोई महा शक्ति मत बनाओ | लेकिन यह अन्ना कम्पनी को समझ नहीं आता | इस से सिद्ध होता है कि ये लोकतान्त्रिक सोच के लोग नहीं हैं | इन्हें लगता है मानो कल को ये ही कल को लोकपाल बनने वाले हैं | कमेटी के बाहर का एक नागरिक , मैं स्वयं इनकी मांग और हठ धर्मी से सहमत नहीं हूँ , तो क्या मैं सभ्य नहीं हूँ ? इनकी यह हालत तब है जब कि इनका कमिटी में लिया जाना ही गलत है [जैसा कि , इनसे कम नहीं पढ़े लिखे विशेषज्ञ  बताते हैं ] , और इनके पास कोई कानूनी ताक़त नहीं है | सोचने की बात है कि कल को यदि सचमुच यही लोकपाल हो गए तो सारी विधायिका , न्याय पालिका , कार्यपालिका की नाक में दम कर देंगे | सचमुच ये तानाशाह लोग हैं , जो बिना चुनाव लड़े बैक डोर से सत्ता हथियाना चाहते हैं | इसीलिये ये लोकपाल के लिए असीम शक्तियों की मांग कर रहे हैं | यह एक तरह से सिविलियन कूप [coup] होगा फौजी कब्ज़े का प्रशांत स्वरुप |भ्रष्टाचार शब्द तो इनके लिए बस आंड  है,जैसे वी  .पी. सिंह ने राजीव गाँधी से सत्ता हथियाने के लिए बोफोर्स का  बहाना लिया था  और बाद में कन्नी काट कर मंडल लागु करने में देश को उलझा दिया |  इसलिए ज़रूर ही   इनकी मंशा को पहले ही भाँप कर विनष्ट किया जाना चाहिए | मैं माँग करता हूँ कि इन्हें कमेटी से निकाल बाहर किया जाय | इनकी जगह पर या तो दूसरे सभ्य नागरिक  रखे जाँय , या फिर सभी राजनीतिक दलों के एतराज़ को देखते हुए सरकार स्वयं बिल तैयार करे | इनके अहंकार की हास्यास्पद हालत यह है  कि इन्हें  अपने अलावा किसी और का देश भक्त होना स्वीकार ही नहीं है | इसलिए ये चाहते हैं कि देश के मालिक यह अकेले बनें , चाहे वह अन्ना हों या बाबा रामदेव |कोई साधारण नागरिक भी ज़रा इनकी हैसियत को चुनी हुयी केन्द्रीय सरकार के मुकाबले रखकर आँक सकता है और इनके दुराग्रह  को  भी  तब ठीक से समझ सकता है | पर दिक्कत यह है कि इस पेंच को तमाम लोग समझते नहीं और लोकतंत्र की हवाई उड़ान में हैं , जिसकी उन्हें कोई समझ नहीं है | 
    • अब इनका यह कुप्रचार जारी है कि ४ जून  को जलियाँ वाला बाग़ हो गया  और हालत इमरजेंसी की है | पहले तो मैं यह गलत बात ही कह दूं कि यदि इसके लायक व्यवहार करोगे तो ऐसा शासन पाओगे ही   | लेकिन यह तो देखो कि जनमत के दबाव का सम्मान करते हुए ही कानून से परे जाकर गैर सरकारी सदस्यों को कमेटी में लिया | अन्धविश्वासी भक्तों का भी आदर करते हुए चार मंत्रियों  ने बाबा रामदेव से बात की , जिसके लिए सरकार ने भीतर -बाहर लांछित भी हुयी | और क्या चाहते हैं ? आप चाहते हैं कि सरकार कुछ काम न करे , पर तमाम लोग सरकार को सुपुष्ट और सक्रिय देखना चाहते हैं , क्योंकि यह उनकी सरकार है , जिसकी कमजोरी का अर्थ है - गुलामी | आप को दिख नहीं रहा है कि आप देश को किस तरह गुलामी में ढकेलते जा रहे हैं |##


    • एक साम्य दिख रहा है नक्सलवादियों और गाँधी वादी कार्य शैली में | माओवादी भोले - भाले जंगल वासियों को अपने काम के लिए तैयार करते , उनका इस्तेमाल करते हैं | सभ्य आन्दोलनकारी किसी सीधे -साधे  गाँधी वादी को पकड़ कर उन्हें आने काम के लिए तैयार करते , उन्हें भूखो मारने का जतन करके उनका इस्तेमाल करते हैं | नतीजा - मरना तो है जंगल वासी को , या गांधीवादी  को | गौर करें , गैर गाँधीवादी बाबा तो मंच से कूद कर भाग जायेंगे | ##
    • ऐसा ही साम्य एक दिशा में और भी है | जैसे N .G .O . लोग काम तो पिद्दी भर करेंगे , पर रिपोर्ट लिखेंगे लम्बी चौड़ी ,खूबसूरत फोटुओं -चार्टों - डिजाइनों के साथ , वैसे ही सिविल सोसायटी [हैं तो एन जी ओ ही] सरकार से अपने वाक् -कर्म को भी वीडिओ ग्राफी  द्वारा अपना प्रचार करना चाहती है | ऐसे में , चाहे फिर मुझे कोई गाली ही दे , मुझे इस्लाम की याद आती है , जहाँ इस तरह फोटोग्राफी , नाच -गाना - बजाना सख्त मन है | मैं विवश हूँ सोचने पर कि क्या कोई समाज बिना किन्ही प्रतिबंधों के चल सकता है ? वह प्रतिबन्ध चाहे धर्म और ईश्वर का हो [जो कि अब रहा नहीं], या फिर राज्य की तरफ से हो [ जिसे तो हम हलुवा -पूड़ी बनाने पर तुले हैं]  |  ###          

सोमवार, 13 जून 2011

योग गुरु के नौ दिन

बाबा रामदेव पर दिमाग , अक्षर और शब्द बरबाद करना बेकार ही है , मेरे लिए तो वे हमेशा निरर्थक रहे , पर ज़रूरी है कि उनके बहाने हम कुछ राजनीतिक प्रशिक्षण लें | यथा -
१ -उन्हें सरकार द्वारा सचमुच कोई महत्त्व दिए जाने से इन्कार किया जाना चाहिए था क्योंकि वे एक संविधान विरोधी क्रिया कलाप में संलग्न थे | नीति के अनुसार सरकार का कर्तव्य है जनता में वैज्ञानिक सोच का विकास करे और समाज की संस्थाओं को भी उसमे सहयोग करना चाहिए | लेकिन रामदेव शुरू से अवैज्ञानिक आस्था जनता में फैलाते रहे | कायदे से तो सरकार को ऐसे लोगों को चिन्हित करके उन पर नज़र रखना , उन्हें हतोत्साहित करना और ज़रुरत पड़ने पर इन पर मुक़दमा चलाकर इन्हें जेल भेजना चाहिए | इसी खामी का खामियाजा अब सरकार को भुगतना पड़ रहा है | और देश को यह विडम्बना सहनी पड़ रही है कि जो देशद्रोही है वह देश भक्ति का नाटक कर सक रहा है |#

       २ - ख्याल आता है कि कहीं यदि अंग्रेजी डाक्टर उनका इलाज़ करने से इन्कार कर देते तो ? कारण यह कि वह अपने योग शिविरों में इन डाक्टरों की छुट्टी ही किये दे रहे थे | सारा काम उनका योग करता | तो अब क्यों आये हो बाबा इस अस्पताल में ?अपने योग से अपना इलाज करो , हम तो नहीं चढ़ाते तुम्हे ग्लूकोज़ | इस बार तो कर दिया , भविष्य में इन्हें एलोपैथिक चिकित्सा प्रदान नहीं की जानी चाहिए | हंसी की बात है , यदि मुसम्मी का यही जूस दो दिन पहले अपने भव्य आश्रम में ही पी लिए होते तो अस्पताल क्यों आना पड़ता ? आखिर उन्हें अनशन करना तो था नहीं ! केवल उन्हें अपनी अहमियत जतानी थी , सो टी वी पर बने रहे |##


  • हमारे घरों की साधारण अ -योगिनी , केवल घर के काम करने वाली औरतें पूरी नवरात्रि व्रत रह जाती हैं | योग गुरु के  नौ  दिन उन पर भारी पड़ गए  | इस पर उनके भक्तों  को ही उन पर धोखा धड़ी  ,जालसाजी का मुकदमा करना चाहिए |###
  • फिर ,गुरु तो गुरु ,यह बालकृष्ण क्या नारद  मुनि बना हुआ है और मीडिया में प्रतिष्ठा पा रहा है ? अन्ना हजारे तो अपना वक्तव्य स्वयं देते हैं , जबकि उनके पृष्ठ सहयोगी किसी से भी ज्यादा काबिल हैं ? ####
  • किसी भी एमबीए, सी ए ,के क्षात्र को रश्क हो सकता है कि क्या वह कभी उतनी कम्पनियों का डाइरेक्टर हो सकता है जितने के बाल कृष्ण है ? संभव नहीं बच्चू , तुमने जो अंग्रेजी में मैनेजमेंट  पढ़ी  है | बालकृष्ण प्रबंधन महाविद्यालय में प्रवेश हेतु धन का प्रबंध करो | ####          

सुन्दरता

* केवल सुन्दरता से काम चल जाता तो क्या था ? ##

छोटे अक्षर

* [कविता ]

छोटे अक्षर ही
काम आते हैं
इलेक्ट्रोनिक पतों में
गूगुल सर्च में |
मुझे छोटे अक्षरों में तलाश करो 
छोटे अक्षर बनकर |
### 

रविवार, 12 जून 2011

भद - भद - भद

अजीब दुनिया का वक्तव्य
                                                भद - भद - भद

* एक बिंदु पर सरकार की बड़ी भद पिट रही है की वह रामदेव  से मिलने हवाई अड्डे क्यों गयी ? इस पर हम अपनी बुद्धि से उत्तर दे  रहे हैं | कि, अव्वल तो  यह कि मंत्री जन रामदेव का स्वागत [उन्हें रिसीव] करने  नहीं गए थे , न किया  | इसे बार -बार स्पष्ट किया गया है ,तब भी आश्चर्य है कि यह कांग्रेस के महासचिव को ही नहीं पच रहा है,और किसी को क्या कहें | रणनीति यह थी कि बाबा से बातचीत करके उन्हें वहीँ से वापस कर दिया जाय ,लेकिन बात नहीं बनी |
      दूसरे  "साम -दाम -दंड- नीति" से काम लेना तो राजनीति का धर्म  है | तमाम मूढ़ जनता के ही सही , अगुवा छद्म संत- योगी रामदेव को महत्व देकर , उनको आदर देकर सरकार ने कुछ भी गलत नहीं किया ,कोई पाप नहीं किया | अब इस से बाबा का दिमाग खराब हो गया ,उनका अहंकार बढ़ गया तो क्या किया जाय |लेकिन वह उनकी हठधर्मिता के आगे झुकी तो नहीं , और उसके आगे का उसका व्यवहार प्रशंसा योग्य है | जो लोग ४ जून के प्रति बहुत भावुक हैं और उसकी हास्यास्पद तुलना इमरजेंसी व जलियाँवाला बाग से कर रहे हैं , उन्हें पता होना चाहिए कि इससे कहीं  ज्यादा दुर्घटना  सामान्य से सरकारी  यूनियनों के आंदोलनों में हो जाया करती  है |
   फिर ,आखिर एक पागल आदमी से और कितने लोकतांत्रिक ढंग से निपटा जा सकता है ?  अन्ना के साथ तो ऐसा नहीं हुआ | अब , अलबत्ता अन्ना भी बाबा की भाषा बोलने लगे हैं | उन्हें अपनी गाँधी वादी प्रकृति  पर आ जाना चाहिए , और अजरी  - खजरी  वालों के झाँसे में नहीं आना चाहिए | उन्हें समझना चाहिए कि केवल वही पाँच देश के सभ्य नागरिक नहीं हैं ,और जो बाहर के लोग हैं वे उनसे उन मुद्दों पर सहमत नहीं हैं जिन पर उनको उकसाने वाले लोग जिद कर रहे हैं | जिस तरह वे तर्क देते हैं कि सरकार को सभ्य जनता की बात सुननी चाहिए, उसी तर्क पर उनके लिए भी यह वाजिब है कि वह अन्य सभ्य नागरिकों की भी बात सुनें , जिनके प्रतिनिधि होने का दावा वे कर रहे हैं ,वरना वे भी बाबा की तरह ही छद्म  हो जायेंगे और अंततः बाबा की तरह ही अपनी भी भद पिटायेंगे |

           लेकिन एक बात हमारी समझ में नहीं आई | वह सरकार की भी है और अन्ना जी की भी |  अन्ना सफाई देते हैं की वह भाजपाई नहीं हैं  | न हों, लेकिन वह हो क्यों नहीं सकते ? वह कोई भी 'आई' हों इस से क्या फर्क पड़ता है ? यदि उनकी माँग सही है तो सरकार को उस पर ध्यान देना चाहिए |  सरकार भी वही गलती कर रही है बाबा या अन्ना को हिन्दूवादी संगठनों से पोषित उनका मुखौटा बताकर | उनको कहाँ से साथ -समर्थन मिल रहा है , इससे क्या ? वे संगठन देश के बाहर के तो नहीं हैं ,न देशद्रोही  ही  करार दिए गए हैं |
     यह अच्छी राजनीति नहीं है | जिस तरह उन्होंने बाबा का सब कुछ जानते हुए एअर पोर्ट पर उनसे मिलना तय किया था , उसी प्रकार अन्ना से  उनकी किसी के साथ संलग्नता जानते हुए भी उनके साथ सुयोग्य व्यवहार करना चाहिए  | वरना वह भी जनता के बीच अपनी  भद पिटाएगी |


        * बाबा रामदेव के भक्तों  -सेवकों  -संगियों  को अभी  बाबा का विशेष  ख्याल  रखना  होगा  | बाबा बहुत कमज़ोर  जीव  हैं और इस समय   हताशा   के अत्यंत  शिकार  | कहीं डिप्रेशन  के चलते  वह कहीं आत्म हत्या न कर लें !   

गुरुवार, 9 जून 2011

नौ दो ग्यारह

* इतने बड़े देश का  गुरु , और आमदनी सिर्फ ग्यारह सौ  करोड़ ? तभी तो बिचारे को भूखा रहना पड़ रहा है |# |

* अभी तो रामदेव का भारतीय जन मानस से पटाक्षेप हुआ है | उनके साथ अभी और तमाम जायेंगे | आर एस एस , वि हि प , फिर भाजपा भी अंतर्धान होगी और देश कुछ चैन की साँस लेगा | हमें ख़ुशी है कि यह सब संभव होगा | धन्यवाद बाबा को ,कि वे इस देश सफाई के कारण और कारक बने | और यदि कहीं इनके साथ ही भारत से अंधविश्वास , अंधी आस्था का भी अंत अथवा शमन हो जाय तो भारत सचमुच रामदेव के ही सपनों का  सोने की  चिड़िया हो जाए |
 कैसी विसंगति की बात है  कि जो सपने देखते हैं , वही उन सपनों को तोड़ने के मूल में हो जाते हैं , अपने निजी स्वार्थ और अहंकार के कारण ! ##

* उनके शिष्य तो ज़्यादातर बूढ़े , रिटायर और बीमार लोग हैं | बाबा कहाँ से ग्यारह हज़ार युवकों की सेना इकट्ठा करेंगे ? फिर भी यदि वे इस हेतु समर्थ ही हैं , और ऊपर से राष्ट्रवादी भी ,तो इतने जवानों को भारतीय सेना में क्यों नहीं भेज देते ? लेकिन नहीं उन्हें देश से कहाँ मतलब , उन्हें तो अपनी और अपने मठ की  सुरक्षा की चिंता है | है भी तो इतना बड़ा साम्राज्य ? लेकिन वे भूलते हैं कि वह ओशो से ज्यादा ज्ञानी -विज्ञानी नहीं हैं | जब उनका यह हश्र हुआ ,तो ये  किस खेत के मूली हैं | फिर उन्हें याद दिला दूँ कि यह देश सचमुच ऋषियों -मुनियों का है जो अदृश्य हैं ,और उनके आगे रामदेव कुछ भी नहीं हैं | वह अपनी सीमा में आ जाएँ ,वर्ना उनका विनाश तो सुनिश्चित है ,उनके साथ देश का भी कुछ नुकसान हो जायगा |    ###

*     एक चैनल पर यह  प्रश्न पूछा जा रहा है कि भारत में कितने पीठ हैं | श्रोता अगर पतंजलि योग पीठ को जोड़ लेंगे ,तो उनका उत्तर गलत हो जायगा ? #### 

बुधवार, 8 जून 2011

पवित्र वस्त्र वाले लोग

* [कविता ]
                    समुद्र में ही
                    घर बना है ,
                    समुद्र से
                    कैसे लड़ेंगे ?
                      #
* [अनुभव ] 
                    भारत माता की जब हड्डी चूसनी हो , तब 'भारत माता की जय 'से अच्छा कोई नारा नहीं हो सकता | सुरक्षित और सम्मान जनक | जो इसे जितना जोर से बोलता है,समझिये वह उतना ही देश सेवा के नाम पर स्वयं सेवा के मार्ग पर अग्रसर है | साफ़ कहूँ कि रामदेव,सेवक संघ , विहिप ,भाजपा , शिवसेना आदि के कार्य राष्ट्र हित के प्रतिकूल हैं , किंवा वे राष्ट्र के कारकुन हैं ही नहीं, और केवल कुछ व्यक्तियों , बासी , सड़े- गले विचारों के अहंकार के पोषक है | स्पष्टतः, देश के लिए घातक , विभाजक और प्रतिगामी हैं | और मज़े की  ऐतराज़ की  बात यह कि वे स्वयं अपने उदघोषणाओं का पालन नहीं करते | यथा कहेंगे -हिन्दू संस्कृति , फैलायेंगे असहिष्णुता, घृणा ,हिंसा , बैर ,किंवा अधर्म के मन्त्र | नाम लेंगे  सादे   , नैतिकता पूर्ण जीवन का , रहेंगे रंगमहलों में , बटोरेगे धन येन - केन- प्रकारेण | चिल्लायेंगे हिंदी -हिन्दू -हिंदुस्तान , भेजेंगे अपने बच्चों को अमरीका -ब्रिटेन अंग्रेजी पढ़ने - बड़ी नौकरियां करने के लिए | हिंदुस्तान को अपनी चेरी समझेंगे और दलितों ,कृषक- मजदूरों -मेहनतकशों को , जो कि असली हिन्दू हैं , भारत का राज्य नहीं देंगें | सब छद्म , दोमुहाँ आचरण | और बुद्धि से ? कुछ न कहिये | बिलकुल पैदल [हाँ , यह उनके  सामूहिक पार्टी / दल के लिए एक अच्छा नाम  हो सकता है, पुनः झूठा  ही सही ] | अब ऐसे लोग देश की  क्या सेवा, उसका  क्या भला करेंगे ? कहावत है न ! नादान दोस्त से दानादार दुश्मन अच्छा | अतः ,समझदारी इसी में है कि इन दोस्तों से दूर रहा जाय | ##

* [ टीका  ]
                सुषमा स्वराज के नृत्य पर भला हमें क्या ऐतराज़ ? हम संगीत -नृत्य -कला कौशल के पक्षधर हैं ,और चाहते हैं कि पूरा देश नाचे - गाये | पर वही छद्म आचरण वाली  बात ! अभी रामदेव के लिए रो रही थीं , अभी नाचने लगीं , और वह भी जैसा ऊपर हमने कहा -देश भक्ति के गीत पर, अपनी पार्टी को देशभक्त सिद्ध करने के लिए | क्या इसे नारी चरित्र कहा जाए ? नहीं , सुषमा मामूली नारी नहीं हैं | फिर यह तो हमारी नहीं उनकी 'नैतिकता ' की  व्याख्या के विपरीत है - सार्वजनिक स्थल पर नारी का नाच ! बाल /राज ठाकरे उन्हें क्षमा कर दें तो हमें क्या ऐतराज़ ? हमें तो अच्छा लगा | ###       

* [टिप्पणी ]
                    आजकल एकाएक पता नहीं कहाँ से मेंढक की तरह भारत माता पर जान देने वाले इतने सारे लोग निकल आये ! यहाँ तक कि बालकृष्ण भी गोबर्धन उठाकर नेपाल से भागकर भारत को बचाने आ गए हैं | अब भला हमारे मुल्क का कौन बाल बाँका कर सकता है ? पर यक्ष प्रश्न  तो यह है कि अब तक कौन लोग देश को दीमक की तरह खा रहे थे ? कौन थे जो भ्रष्टाचारी थे ? एक शायरा का शेर याद आ रहा है :-
" मैं अपने खून के धब्बे कहाँ तलाश करूँ, तमाम[सभी] लोग मुक़द्दस लिबास [पवित्र वस्त्र ]वाले हैं | " 
है कोई आश्वस्ति देने वाला जवाब किसी के पास ?    
        ऊपर से  हास्यास्पद  तो यह है  कि जब जान देने का अवसर आता है तब सभी खिसक लेतें हैं | रामदेव कूद कर नारी वेश में भाग खड़े हुए , सुषमा जी जान देते देते नाचने लगीं, बालकृष्ण कुछ दिन गायब रहे ,अब  रो - रोकर जान दिए दे रहे हैं  | और अन्ना जी पर तो तरस खाना  पड़ेगा | अच्छे - भले अपने दुग्ध विहार में पड़े थे , अब ऐसे सभ्य गिरोह के हत्थे चढ़ गए हैं जो उनसे अब जब - तब भूख हड़ताल कराकर मार डालेंगे | लेकिन रुकिए , तब भी अन्ना कहाँ मरेंगे 'नया गाँधी' मरेगा | कितनी बार गाँधी को मारोगे भाई ! मरना हो तो कोई अपनी जान दो ,यदि तुम्हारे पास हो तो,| वह भी अपने मन से ,किसी के उकसाने पर नहीं , न किसी गाँधी पुरस्कार की लालच में |सचमुच आजकल अनेक  गाँधी और शहीद भगत सिंह मैदान में हैं | अपमानित करते हैं वे विभूतियों को स्वयं को उनके समकक्ष रखकर | शर्म हमें आनी  चाहिए  जो हम इनके साथ हो लेते हैं |
  देखिये  अन्ना कहते क्या हैं ? "लाठी से डरना क्या ? " मानो सरकार का यह शौक है कि वह इनको मार गिराए |बुजुर्गवार ,कुछ तो विश्वास भी दो सरकार को और बचपना न दिखाओ | उधर   रामदेव भी अपनी हत्या की साजिश बताकर जन सहानुभूति अर्जित करना  चाहते हैं , जो उन्हें नहीं मिलेगी क्योंकि उनकी  जान की कीमत इतनी है ही  नहीं  उनका अपने बारे में अनुमान  गलत है | क्षणिक उत्साह -उत्तेजना में एक बार लोग इकठ्ठा तो हो गए , अब वे अपने घरों में तुम्हारा सिखाया योग स्वयं कर लेंगे , आसन लगायेंगे | वे अपनी बीमारी का इलाज करेंगे , न कि तुम्हारे पीछे हर बार अपने हाथ होम करेंगे |
           सोचनीय बात है कि  कोई आन्दोलनकारी  यह तो सोचता ही नहीं कि वह अपने को राज्य के रूप में रखकर देखे | उन्हें भी कभी शासन चलाना  पड़ सकता  है | तब पता चलेगा आटे-दाल का भाव | चिंता का विषय है कि गैर जिम्मेदाराना बातों और अतिशयोक्तियों से अखबार और चैनेल भरे पड़े हैं | बातों में हिमाकतों की भी कोई सीमा नहीं | 
    नवाचारी बालकृष्ण  मानहानि के अपराध में जेल में होते यदि सरकार सचमुच सरकार होती , और न्यायपालिका सख्त | रामदेव तो थे ही , यह कामदेव सरीखा चेहरे वाला बोलता है कि सरकार भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए हमारे ऊपर इलज़ाम लगा रही है |सचमुच यदि सरकार बचाती न होती तो वह और उसके गुरु कहाँ होते , यह हम भी जानते हैं | आखिर लोग इस तरफ ध्यान क्यों नहीं देते कि भ्रष्टाचार सरकार  नहीं करती " लोग " करते हैं ,उनमे वे भी शामिल हैं जो योग करते हैं , और वे भी जो एनजीओ चलते हैं  | पर  सरकार कानून के दायरे में सीमित अधिकार के वश में होती है , और उसे बाँधने वाले , रोकने वाले , पीछे खींचने वाले बहुत हैं , साथ देने वाले बहुत कम  | वह कोई जादू की छड़ी नहीं ,न नृशंस शासक | यही वजह है की आतंकवाद बढ़ा और भ्रष्टाचार भी | यह भारत की आत्मिक - आंतरिक नियंत्रण- अनुशासन के लोप  का भी प्रश्न है | यह तो योग की मूल परिभाषा के अन्दर का विषय था ! तुमने क्या किया ? मंच से तो भाग आये , ज़िम्मेदारी से भाग कर कहाँ जाओगे ? केवल तुम्ही योग नहीं जानते हो | तुम तो खैर जानते ही नहीं , तुम केवल कुछ आसन जानते हो | और हम कोई सरकार नहीं है जो तुम्हारी बन्दर घुड़की से सहम जाएँ | हम वे जोगी हैं जो बीस रूपये रोज़ पर गुज़ारा करते हैं , चार्टर विमान से दिल्ली नहीं जाते | हमें पता है कि  गुरुओं का काम व्यक्तियों को सही रास्ते पर लाना होता है | इस कर्तव्य को तुमने  कुछ पूरा किया क्या ? तुम्हारे खिलाफ क्या कार्यवाही की जाय, जो उल्टा चोर कोतवाल को डांट रहे हो ? लेकिन छोडो , वह पुराने संतों का काम था | आज के बने  साधु अपने गुलाम शिष्यों के कंधों पर चढ़कर [सीकरी के] मंच पर चढ़ना चाहते  हैं , और मृत्यु के  भय की कल्पना मात्र से काँप , शिष्यों के कंधों पर पाँव रखकर नीचे कूद जाते हैं |"  भारत कब मर्दों   की भाषा बोलेगा " का नारा गढ़ने वाला स्वयं शिखंडी का रूप धारण करके अपनी जान बचाता है ,और अनुयायियों को त्रास सहने के लिए पंडाल में छोड़ देता है | फिर अनर्गल प्रलाप करता है | क्योंकि वह जानता है कि जनतांत्रिक सरकार किन्ही कारणों से कमज़ोर होती है , कमज़ोर है |  तभी प्रायवेट सेना बनाने का हौसला पाला जाता है |आत्मरक्षा  के नाम पर | नक्सालियों से जनता की रक्षा या आत्मरक्षा की दुहाई लेकर क्या रामलीला मैदान या जंतर -मंतर पर धरने पर नहीं बैठा जा सकता था ? लेकिन नहीं , न इनको नक्सालियों से खतरा है, न नक्सलियों को इनसे | ये एक दूसरे के प्रतिपूरक हैं | क्योंकि इनके शुभ कार्यों से सरकार  कमज़ोर होती हैं , जो कि ये चाहते हैं  | पर निरीह जनता की तो उसकी चुनी हुयी सरकार ही हमवार -मददगार होनी है | वरना ये तेंदुए उसे खा जाने के लिए हैं |              
                एक और भद्र शोषा-यती है जो अपना कुछ न होते हुए , असंवैधानिक होते हुए सरकार को नाकों चना चबवाये हुए है | एक मसौदा कमिटी में रखे गए थे तो सरकारी सदस्यों के साथ ड्राफ्ट बनाते | लेकिन वे तो सरकार के बाप हैं और अपनी ही बात मनवाएंगे , कैमरों के सामने अपनी वक्तृता से देश का मन मोहेंगे  | भले तमाम अन्य बाहर   के लोग चेताते  रहें कि यह गलत है | पर वे तो अब तानाशाह , राजा बाबू ,"साला मैं तो साहब हो गया " | 
   मैं एक लघुतर साहित्यिक कार्य कर्ता अनेकानेक उग आये कथित क्रांतिकारियों को आगाह करता हूँ कि शुक्र मनाओ कि  तुम लोकतान्त्रिक  शासन में हो , इसलिए ऐसा सब कर ले  जा रहे हो | ख्याल रखो , यदि देश कमज़ोर हुआ या गुलामी की गिरफ्त में आया तो इसके तुम  ज़िम्मेदार होंगे, जो बहुत अपने आप को काबिल समझ   रहे हो  [जी हाँ , अन्ना भी सुनें ] |
 चारो तरफ तमाम दुश्मन ताकतें हैं , और वे बड़ी शातिर और सशक्त हैं | उनकी बड़ी टेढ़ी नज़र हिंदुस्तान पर है , जिसकी भक्ति के नाम पर तुम राजनीति की रोटी सेंक रहे हो |  #### 

मंगलवार, 7 जून 2011

देश के लिए

*  सुषमा स्वराज achchha naach  लेती हैं | मलाल है कि मैंने अपने लड़के की शादी पहले क्यूँ कर दी ?
  
* मुश्किल   सवाल है कि बाबा रामदेव जिस महिला का सलवार  , कमीज़  पहन कर छिप भागे , वह महिला आखिर क्या पहन कर निकली होगी ? वह रामदेव का गेरुआ वस्त्र तो पहन नहीं सकती थी वरना लोग राह रोक कर उस से योगिक क्रिया और आसन सीखने लगते ,जो उस पर भरी पड़ जाता |##

* गज़ब के योगी निकले baal krishn bhi | itne दिन पंडाल में ही पड़े रहे , ज़ाहिर है , कोई सूक्ष्म रूप धारण कर कि पुलिस उन्हें देख नहीं पाई , और वे अपने शिष्यों कि देखभाल करते रहे | फिर वहां से चले आये क्योंकि यदि कोई उन्हें देख लेता तो उनकी क्या दशा होती ? फिर सोचा ,चाहे उनके प्राण चले जाएँ देश के लिए वे वहीँ आस -पास बने रहे | है न विसंगत -दर विसंगत बात ? बाबा के सहयोगी हैं न !  कितना कष्ट उठाते हैं लोग देश के लिए ,और एक हम हैं नालायक कि उनका मजाक उड़ाते हैं !###

  

भ्रष्टाचार से परेशान

* अरविन्द केजरीवाल  ६२ सालों से भ्रष्टाचार से परेशान हैं | उनकी आयु को देखते हुए मानना पड़ेगा की अपने जन्म के  पहले से | च --च -- cha --  

सोमवार, 6 जून 2011

केंचुआ

* केंचुए  की तरह यदि आप शरीर को ऐंठना जानते हैं , तो क्या समझते हैं आप सरकार को भी ऐंठ लेंगे ? #


* गलतियाँ तो सरकार ने की ,पर अब उसका स्टैंड सही हुआ है | जैसे मनमोहन का बयान कि इसके अलावा और कोई चारा नहीं था , निर्णय कि ३० जून तक लोकपाल विधेयक लायेंगे चाहे कोई आये या न आये | अब सबको अपनी हैसियत पता लग जायगी , यदि सरकार इस पर दृढ़ रह पाई तो | ##


* सुप्रीम कोर्ट के सवाल पर क्या विचलित होना | उसे हक है जवाब मांगने का ,स्थितियों को समझने का | उन्हें बताया जायगा और वे मान जांयगे | ###


* रामदेव को अपनी भीड़ पर नाज़ होगा | तो क्या कांग्रेस के पास नहीं है ? बिना किसी ताक़त के वह सत्ता में है क्या ? वामपंथी सरकार होती तो अपना काडर इनसे भिड़ा देती | तब क्या होता ? ####


 * जूता प्रकरण एक संस्कृति का प्रश्न है , राष्ट्रीय व्यवहार का | इसकी सख्त निंदा की जानी चाहिए | रामदेव की की बचकानी मांग के तर्ज़ पर कहें तो उसे मृत्यु दंड अथवा आजीवन कारावास दिया जाना चाहिए , जिस से फिर किसी की हिम्मत न हो | सवाल किसी नेता के अपमान का नहीं है राष्ट्र की इज्ज़त  का प्रश्न है | आखिर हम क्या दिखा रहे हैं विश्व को | अब संस्कृति -निष्ठ भाजपा देखिये क्या कहती है ? उनका एक मूर्ख मुस्लिम नामधारी सदस्य इसे जनता का स्वाभाविक गुस्सा बता रहा है ,मानो जैसा नरेंद्र मोदी ने गुजरात में होने  दिया था | सारे के सारे भारत के गैर ज़िम्मेदार पार्टियों को आगाह करना कर्तव्य समझता हूँ की समझदार सांस्कृतिक राजनीति करें | आज उनके ऊपर जूता पड़ा है तो कल तुम्हारे ऊपर निश्चित पड़ेगा , क्या औचित्य सिद्ध करोगे | और यदि ऐसी गिरी हुयी राजनीती करोगे तो देश शीघ्र ही गुलाम होगा और उसका ज़िम्मेदार कोई यवन -अँगरेज़ नहीं ,तुम होगे | इसलिए कहो की हिंसा का रास्ता गलत है , जूता मरने वाला भी और जंतर मंतर ,रामलीला मैदान पर निजी दुराग्रह करने वाले भी | कोई देश का तानाशाह बन ने की कोशिश न करे तो देश बचेगा | #####


* सत्ता और सरकार भी हमारी सामाजिक सांस्कृतिक - आध्यात्मिक कृतियाँ हैं जैसे की ईश्वर | इसका भी एक निश्चित आदर करना हमें अवश्य सीखना चाहिए | अराजकता में मज़ा लेते लेते धीरे -धीरे यह पर - राज्य में तब्दील हो जाता है | ######


* अंत में -
             कोई कांग्रेस , भाजपा , समाज -मार्क्स वादी , कोई संघ , लीग - तबलीग माने न माने , मैं , भारत का एक अदना सा नागरिक  स्वीकार करता हूँ कि सारी गलती मेरी है जो अपने सहवासियों में वैज्ञानिक -तार्किक -मानव वादी चेतना नहीं भर पाया | उनका मानसिक -सांस्कृतिक विकास नहीं कर पाया | जिसका नतीजा यह हुआ कि कि एक ताईक्वांडो जैसा योग शिक्षक [ संत तो वह , खैर , कतई नहीं है | इसी समय इस गंदे  माहौल में भी  तमाम संत आस -पास हैं , जिनका वह धूल भी नहीं है ] इतने सारे लोगों की अविवेकी बुद्धि में घुस कर उसे खोखला बना देता है और उसका चिंतन शक्ति ' चूस ' लेता है | और राम लीला मैदान में उन्हें रावण सरीखा निर्देश देता है और इतने सारे लोग हिप्नोटाइज - मेसमराइज होकर उसके नारे लगते हैं | हमने देश को वज्ज्ञानिक विकास तो दिया , पर उन्हें वैज्ञानिक मानस से लैस नहीं कर पाए | मैं मानता हूँ की हम इस दोष के लिए सजा के पात्र हैं | कोई तो मुझे दंड देने के लिए आगे आये , कोई तो म्याऊँ का ठौर पकड़े ! #######   ,        

रविवार, 5 जून 2011

Dilli Aap Ki Hai

* दिल्ली किसी के बाप की नहीं -[रामदेव]
    $- नहीं -नहीं , ऐसा न कहिये | वह भारत के बाबा - दाईयों की तो है ही | तो यह आप की तो है  | आप लोग आराम से उसका अमन -चैन मिटा सकते हैं , नींद हराम कर सकते हैं, दिन -रात के धरना -प्रदर्शनों से  |  #

* विधेयक बनाना ,लाना सरकार का काम है, या जन -प्रतिनिधियों का |लोकपाल कमेटी से अन्ना पंचारे को निकाल बाहर किया जाय |इनकी जिद है की इन्ही की सारी बातें मानी जाएँ , जब की हठधर्मिता लोकतंत्र में स्वीकार्य नहीं है | ##

* देश की सिविल सोसायटी को इस काम में मज़ा आने लगा है की कैसे सरकार की नाक में हमेशा दम किये रहा जाये | इसके लिए उनके पास पूरी फुरसत है,और क्षमता तथा संसाधन | लेकिन उनका यह मनोरंजन देश के लिए बहुत मँहगा पड़ने जा रहा है |###

*दरअसल ,अब सबके, ज़्यादातर पेट भरे हैं और जेब भी खाली नहीं |इसलिए अब उनका ध्यान राजनीति के ज़रिये नाम कमाने पर ज्यादा लग रहा है | इसमें कुछ ख़ास लगता भी नहीं है | तो ,यह काम शुरू होता है धरना -प्रदर्शन -जुलूस - नारेबाजी -अनशन - भूख हड़ताल से | फिर समस्याओं का हल कुछ हो न हो नेता के नाम का तो ध्यानाकर्षण तो हो ही जाता है | और क्या चाहिए ?####

* अन्ना हजारे जी ! अब आप धरने पर नहीं , अपने घर में ही बैठिये , प्लीज़ ! #####

* लोकतंत्र को इतना परेशान तो नहीं ही कीजिये, की वह देश छोड़ कर भाग जाय | वैसे ही ये आवाजें अभी चुकी नहीं हैं कि , हम लोकतंत्र के लायक नहीं हैं , यह हमारे खून में ही नहीं है | हम गुलाम ही रहने के योग्य हैं - डंडों से हाँके जाने के उपयुक्त | हमारा कोई लौकिक अनुशासन नहीं है ,न कर्तव्य निष्ठ | भारत वर्ष गुलाम रहने के लिए अभिशापित है | क्या सचमुच ऐसा ही है ? ######

* सबकी अपनी -अपनी सीमा है , सबको उसी में रहना चाहिए | उसे तोड़ने से बही घुसपैठियों को अपना रास्ता बनाने का मौका मिल जाता है | जी हाँ , सत्य और न्याय कि भी एक अवश्य सीमा है | पूर्ण निरपेक्ष कुछ भी नहीं | #######7        

आन्दोलनकारियों की योग्यता

* बहुत दिनों से यह माँग चल रही है की जन प्रतिनिधियों का कई न्यूनतम qualification होना चाहिए | फिर ऐसी क्या मजबूरी और यह क्यों ज़रूरी हो कि विरोधकर्ता आन्दोलनकारियों की योग्यता हाई स्कूल से आगे न बढ़ने पाए ? चाहे वह अन्ना हजारे हों या बाबा रामदेव |##

* मैया मैं तो चन्द्र खिलोना लैहों |
 यही हाल है बाबा रामदेव का | बचकाना आन्दोलन , बचपने की माँग | वरना माँग करने वाले को कम से कम यह तो पता होना चाहिए कि इसे पूरा की हैसियत सरकार में है भी या नहीं | राजनीति करने से पहले कुछ राजनीति की समझ भी तो पैदा करनी चाहिए , या केवल भक्तो के सामने जोर -जोर से चिल्ला कर बोलना और उनसे नारे लगवाना ही पर्याप्त है | गाँधी जी की समाधि पर फूल चढ़ाते हो तो यह भी जानो कि गाँधी जी कितना पढ़े थे , कितने योग्य थे , उनके प्रशंसक  किस श्रेणी के लोग थे ? गुरुता कुछ नहीं और चल दिए गुरु बन ने ! अब जो लोग गठिया ,सुगर ,साइटिका, रक्त चाप से पीड़ित हैं और आप से इलाज करने आये हैं वे पुलिस से भिड़ने में कितना समर्थ होंगे ,यह भी तो सोचना चाहिए था | 
      सीधे प्रधान मंत्री का चुनाव , तकनीकी डाक्टरी की लोक भाषा में शिक्षा , मृत्यु दंड पर विचार , विदेशी बैंक में पैसा क्या कोई नया विषय है ? इस पर बहस चल रही है , पर क्या किसी सरकार के पास लोकतंत्र में इतनी ताक़त है कि वह एक लाइन के आदेश से इसे लागू कर दे ? और आप इसके लिए बचकाना जिद लिए अनशन पर बैठे हैं | इन विषयों पर आप जनता के बीच जाइये , वैदेशिक नियम -प्रोटोकोल समझिये और बताइए कि कैसे हो सकता है यह सब ? पर आपने तो अपने और केवल  अपने को पूरा देश समझ लिया और अपने दिमाग कि खब्त को पूरे देश की मांग , तो यह कैसे संभव है ? इतनी सारी मांगों की सूची के साथ आप यह कहना तो बिल्कुल गलत है कि आप भ्रष्टाचार से लड़ रहे हैं | ऐसा होता तो आप अन्ना के ही साथ होते | उसी समूह को अपनी मांगों की प्रासंगिकता  समझा लेते तो हम भी समझते कि आप कुछ गंभीर हैं, आप की बातों में दम है | पर आप तो उन्ही की हवा निकलने लगे , उनका सहयोग क्या करते |कारण , आप तो व्यक्तिगत महत्वाकांछा लेकर केवल अपना क़द बढ़ाना चाहते थे | ऐसा संभव नहीं होता लोकतंत्र में , लोक -आन्दोलन इस तरह नहीं होते न सफल होते हैं | आप गंभीर गफलत और भ्रम में हैं |
           हम न भी कहें  कि धर्म गलत है या योग का कोई महत्त्व नहीं , पर जिस तरह आपने योग के बहाने लोगों को अपने दिमागी कब्ज़े में लिया ,उन्हें अपना अन्धविश्वासी भक्त बनाया , फिर उनसे धन कमाया और फिर उन्हें सत्ता के प्रति अपने व्यक्तिगत मोह के राजनीतिक कुएँ में ढकेल दिया, उस से योग भी बदनाम हुआ और धर्म भी | अब भला कौन सच्चा व्यक्ति योग और योगगुरु पर विश्वास करेगा | हर नया गुरु अब गंभीर शंका की दृष्टि से देखा जायगा | यह सब आप के कारण हुआ | यह अतिरिक्त आरोप आपके ऊपर बनता है | हम लोकतंत्र में जनता के अंधविश्वास में बढ़ोतरी के नहीं , उनमे वैज्ञानिक सोच में अभिवृद्धि के कायल और कार्यकर्ता हैं | हम आपके कृत्य की भर्त्सना करते हैं , समर्थन का तो सवाल ही नहीं उठता , जैसा आप अपने मन में शायद सोचे बैठे हों | ##