मानव धर्म
मानव धर्म के संस्थापक बाबा कार्ल मार्क्स थे ।
ऐसा मैं कह रहा हूँ । आप आज़ाद हैं कुछ और कहने के लिए । आप कहिये - मानव धर्म के संस्थापक गाँधी/ विवेकानंद/ फुले आम्बेडकर/ बुद्ध ईसा / थे । लेकिन अपने धर्म को एक स्वर से मानव, और सिर्फ मानव बोलिये, बताइये । भाषा और शब्द अलग हो सकते हैं - इंसान, आदमी, Human, मनुष्य ! लेकिन शब्दार्थ एक होना चाहिए । धार्मिक स्वतंत्रता हो पर मनुष्यता बंटने न पाए ।
-- -- एक और विकल्प हो सकता है । यदि आपको हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई होने पर ही गर्व हो , तो कोई बात नहीं । पलने दीजिये उस गर्भ को । बस उसके संस्थापक का नाम कार्ल मार्क्स जानिए । वह हर जगह चलेगा, उसे हर जगह इस्तेमाल कीजिये । वैज्ञानिक युग का वह प्रतिनिधि दार्शनिक राजनेता है ।
-- और आगे चलिए । यदि आपको अपनी जाति में भी पड़ा रहना है, तब भी है न यह कल्लू मरकवा ! इसी को अपनी जाति का Icon आइकॉन पुरुष मान लीजिए । किस्सा खत्म, झगड़ा खत्म । इसी को वर्ग संघर्ष के अंतिम चरण में वाया समाजवाद, साम्यवाद की स्थापना कहते हैं । न रहेगा राज्य, न धर्म, न जाति, न देश और न फटहे बाँस की बाँसुरी !
उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
बुधवार, 31 जनवरी 2018
कार्ल मार्क्स
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