मैंने कहा था
मत बनाओ विजय स्तम्भ
मीनारें और बुर्ज
ये तुम्हें सालेंगी,
या उन्हें चिढ़ाएँगी
उकसायेंगी बदला लेने को
या पुनः करने को अपमानित
उन्हें जो भूलना चाहते हैं घाव
अपना दम्भ मत याद करो
तुम चुनौतियों से घिर जाओगे
जीत नहीं पाओगे
हार जाओगे
अब हारना हराना छोड़ो
दो रोटी दो धोती का जीवन जियो ।
मत रखो तस्वीरें पुरखों की घर में
बीत चुके गुरुओं, भगवानों की
अब कोई ज़रूरत नहीं इनकी
इतिहास से अब मुक्ति लो
देखो, बाहर चिड़िया बैठी है
चोंच फैलाये और तुम्हारे बच्चे ।
उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
रविवार, 7 जनवरी 2018
स्मारक
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