सोमवार, 1 जनवरी 2018

नास्तिक को मज़ा

नास्तिकों को मज़ा क्यों आता है अपने को नास्तिक, Atheist कहने में ? जबकि इसके और भी लगभग समानार्थी तमाम आयाम हैं । Secular तो है ही, Non-theist, Anti-theist, Agnostic, Rationalism, Freethought, Radical Humanism, etc.और इनमें से भी बारीक अंतर वाली कई विचारधाराएँ ? सबसे प्रमुख sect Humanism तो Atheists के इस ईश्वर विरोधी रुख पर कुछ खफ़ा भी होता है । जानने की बात है कि humanism, मानववाद (कुछ इसे मानवतावाद कहना prefer करते हैं फिर भी यह Humanitarianism को छूता हुआ भी उससे अलग है) तो इन सारी विचारधाराओं का माई बाप, स्रोत संरक्षक और उत्स, initiative है । मतलब, मनुष्य (Human being) जिसके चिंतन और व्यवहार का केंद्र हो, कोई Supernatural God वगैरह नहीं । वह मानववाद है । और यही सभी सिद्धांतों के मूल में है । फर्क तो आगे चलकर होता है विशेष बातों पर । मानववाद आस्तिकता और धर्म का सकल विरोध न करके अंधविश्वास, जड़ता-कठमुल्लापन और परलोकआश्रिता को मना करता है, मनुष्यों में प्रेम सौहार्द्र का विशेष पक्षधर होता है। नास्तिक सारे पराविचार, पराशक्तियों को समूल, सिरे से नकारते हैं, इसलिए वह तिरछी नज़रों के ज़्यादा शिकार होते हैं ।

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