कम्युनिस्टों ने अपने लिए ऐसा कोटर, एक दड़बा बना लिया है कि उन्हें कोई तवज्जो नहीं देता । वह कहाँ हैं, क्या कर रहे हैं कोई पूछता ही नहीं । इनका नाम दो दिशाओं से कभी कभी समाचारों में आ जाता है । एक तो जब माओवादी कोई लाश गिराते हैं । दूसरे प्रगतिशील वामपंथी जब किताबें लिखते हैं, सहित्यचर्चा करते हैं । और इन दोनों कामों से कुछ हासिल नहीं होता, सिवा "रोना धोना" के ।
(निराला कोपदृष्टि)
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