ना मानूँ, ना मानूँ, ना मानूँ रे !
विचार आता है कि नास्तिकता के स्थान पर यदि "ना मानूँ समूह" बनाया जाय तो वह ज़्यादा चले । खूब चले और कई मायनों में चले । केवल ईश्वर और देववाणी की ही बात नहीं है । हम किसी की कोई बात नहीं मानेंगे तो क्या कर लोगे ? हम अपने मन की करेंगे । तुम कहते रहो । ☺
करते रहो पोस्ट पर टिप्पणियाँ । हम सुनेंगे ही नहीं । जवाब भी नहीं देंगे ।😊
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