नागरिक उवाच
* ठीक है आप न कीजिये स्वान्तःसुखाय और जो कुछ भी कीजिये महान सामाजिक क्रांति के लिए कीजिये |
लेकिन इसका क्या कीजियेगा यदि जो कुछ आप कर रहे हैं वह अंततः आपका स्वान्तःसुखाय ही होकर रह जाय ?
इसीलिये हम अपने कामों को पहले ही स्वान्तःसुखाय कह दिए रहते हैं , जिससे हमें कोई तकलीफ न हो , यदि
जनता हमारे कर्मों को अस्वीकार कर दे | और यदि स्वीकार कर ले तो हमारी ख़ुशी तो सुनिश्चित है | बाबा तुलसीदास
जीवन भर लताड़े गए पर उन्हें कोई चिंता न थी क्योंकि उन्होंने सब स्वान्तःसुखाय लिखा था | और अब वे स्वर्ग में कितना खुश हो रहे होंगे , सोचिये !
* भ्रष्टाचार भारत के लिए नवीन नहीं है | वैदिक काल को छोड़ दिया जाय , गुरु दक्षिणा को फीस मान लिया जाय ,
भगवानों को भी बक्श दिया जाय जो वे बिना पूजा - अर्चना , फूल माला बताशा लिए प्रसन्न नहीं होते , जी हुजूरी -
चापलूसी अर्पित करने - ग्रहण करने को भी भ्रष्टाचार न मना जाय , तो भी दहेज़ लिप्सा और कन्या पक्ष द्वारा ऊपरी कमाई वाले वार की तलाश बताती है कि यह समाज में गहराई से व्याप्त है | यद्यपि सरकार को इस ज़िम्मेदारी से तनिक भी मुक्त नहीं किया जा सकता कि वह अपने और अपने कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से सख्ती से निपटे तथापि यह समाज का भी काम है कि वह लालच के खिलाफ ज़मीन व भाव भूमि तैयार करे क्योंकि सरकार कि मशीनरी
समाज के व्यक्तियों से ही निर्मित होती है | इस ओर समाज सुधारकों का भी ध्यान जाना चाहिए बजाय इसके कि वे
केवल सरकार के खिलाफ अपनी रोटी सेंकें |
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* [ कविता ]
हम झूठै-मूठे गायित है
बहुत अच्छे गीत सुने हैं हमने
उनसे अच्छे गीत
तुम गा सकते हो
तो हम सुनेंगे |
लेकिन सत्य और यथार्थ का
झांसा मत दो हमें ,
कुछ झूठ और काल्पनिक सुनाओ
आपन जियरा बहलायित है | "
विपरीत , सत्य तो यह है कि हमें
सपनों का सब्जबाग दिखाकर
ठगा जा रहा है ,
अब हमें झूठ की ताक़त का
अहसास कराओ ,
कुछ "झूठै-मूठे " गाकर सुनाओ
ऐसे अच्छे गीत सुनाओ |
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* ठीक है आप न कीजिये स्वान्तःसुखाय और जो कुछ भी कीजिये महान सामाजिक क्रांति के लिए कीजिये |
लेकिन इसका क्या कीजियेगा यदि जो कुछ आप कर रहे हैं वह अंततः आपका स्वान्तःसुखाय ही होकर रह जाय ?
इसीलिये हम अपने कामों को पहले ही स्वान्तःसुखाय कह दिए रहते हैं , जिससे हमें कोई तकलीफ न हो , यदि
जनता हमारे कर्मों को अस्वीकार कर दे | और यदि स्वीकार कर ले तो हमारी ख़ुशी तो सुनिश्चित है | बाबा तुलसीदास
जीवन भर लताड़े गए पर उन्हें कोई चिंता न थी क्योंकि उन्होंने सब स्वान्तःसुखाय लिखा था | और अब वे स्वर्ग में कितना खुश हो रहे होंगे , सोचिये !
* भ्रष्टाचार भारत के लिए नवीन नहीं है | वैदिक काल को छोड़ दिया जाय , गुरु दक्षिणा को फीस मान लिया जाय ,
भगवानों को भी बक्श दिया जाय जो वे बिना पूजा - अर्चना , फूल माला बताशा लिए प्रसन्न नहीं होते , जी हुजूरी -
चापलूसी अर्पित करने - ग्रहण करने को भी भ्रष्टाचार न मना जाय , तो भी दहेज़ लिप्सा और कन्या पक्ष द्वारा ऊपरी कमाई वाले वार की तलाश बताती है कि यह समाज में गहराई से व्याप्त है | यद्यपि सरकार को इस ज़िम्मेदारी से तनिक भी मुक्त नहीं किया जा सकता कि वह अपने और अपने कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से सख्ती से निपटे तथापि यह समाज का भी काम है कि वह लालच के खिलाफ ज़मीन व भाव भूमि तैयार करे क्योंकि सरकार कि मशीनरी
समाज के व्यक्तियों से ही निर्मित होती है | इस ओर समाज सुधारकों का भी ध्यान जाना चाहिए बजाय इसके कि वे
केवल सरकार के खिलाफ अपनी रोटी सेंकें |
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* [ कविता ]
हम झूठै-मूठे गायित है
बहुत अच्छे गीत सुने हैं हमने
उनसे अच्छे गीत
तुम गा सकते हो
तो हम सुनेंगे |
लेकिन सत्य और यथार्थ का
झांसा मत दो हमें ,
कुछ झूठ और काल्पनिक सुनाओ
बलरामपुर के पं०जगदीश मणि त्रिपाठी की भाँति-
-- " हम झूठै-मूठे गायित है,आपन जियरा बहलायित है | "
विपरीत , सत्य तो यह है कि हमें
सपनों का सब्जबाग दिखाकर
ठगा जा रहा है ,
अब हमें झूठ की ताक़त का
अहसास कराओ ,
कुछ "झूठै-मूठे " गाकर सुनाओ
ऐसे अच्छे गीत सुनाओ |
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