रविवार, 16 जनवरी 2011

लघु वार्ता

बेरहम  [ Unpity ]
 " दया  धर्म  का  मूल  है " 
इसलिए  हम  नास्तिक  अधार्मिकों  को  दया   नहीं  करनी  चाहिए  ,
बेरहम  होना  चाहिए  | जानवरों  या  मनुष्यों  के  प्रति  नहीं
विचारों  , सिद्धांतों ,उसूलों  , परम्पराओं  , संस्कारों  और  
अंधविश्वासों  के  प्रति  | अपनी  लालच  , अपने  अहंकार  ,अपनी  महत्वाकांक्षाओं   के  प्रति  |
-          भारतीय   मनीषा     [ Indian wisdom ]

समय  सहचर --
                          ज़िम्मेदारी
सुप्रीम   कोर्ट  ने  अपनी  भूल  स्वीकार  की  और  ज़िम्मेदारी  ली , कि  
इमरजेंसी   के  दौरान  मानवाधिकारों  का  हनन  हुआ  था  और  उस  
समय  का  उसका  निर्णय  गलत  था  | ज़ाहिर  है  ये  वे  न्यायाधीश  नहीं  
हैं  जिन्होंने  वह  निर्णय  दिया  था  , फिर भी  एक  संस्था   के  तौर  पर  अपने  
तत्कालीन  जजों  के  निर्णय  की  गलती  मानी  | ऐसा  ही  सरकारों  को  भी
 करना   चाहिए  तभी  उनकी  विश्वसनीयता  और  ताक़त  बढ़ेगी  | अभी  
तो  हर  नई  सरकार  पुरानी  सरकार  की  बखिया  ही उधेड़ती  है  | किसी  भी  
सत्तासीन  सरकार  को  पिछली  हर  सरकारों  की  भली  – बुरी  सब  स्वीकार
 करनी  चाहिए , अपने  सर  पर  उसका  ज़िम्मा  लेना  चाहिए  | e.g .
परमाणु  परीक्षण  हमने  किया  , बाबरी - गुजरात  की  असफलता  हमारी  
असफलता  थी  , etc|
= = = = = = = = = =   
नागरिक  उवाच
* १ - डिमोक्रेसी  को  यदि  आप  अच्छा  समझते  हैं  , तो  आप  तो  जानते  ही  हैं  
कि  वह  हमारा  धर्म  ही  है  | किन्तु  यदि  लोकतंत्र  को  आप  बुरा  समझते  
हैं  तो  इसे  हम  नास्तिकों   की  नालायकियत  समझ  लीजिये  और  क्या  !

* २ - " बड़ा   उनको  कहिये  जो  बड़ा  कहे  जाने  पर फूल कर कुप्पा   न  होते  हों | "

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