औरतो !
जुबानें रोक कर तुम
चाल तेज़ कर पाओगी
या चाल तेज़ करके
जुबानें रोकना चाहोगी ?
--------------
उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
सोमवार, 17 जनवरी 2011
रविवार, 16 जनवरी 2011
झूठै-मूठे गायित है
नागरिक उवाच
* ठीक है आप न कीजिये स्वान्तःसुखाय और जो कुछ भी कीजिये महान सामाजिक क्रांति के लिए कीजिये |
लेकिन इसका क्या कीजियेगा यदि जो कुछ आप कर रहे हैं वह अंततः आपका स्वान्तःसुखाय ही होकर रह जाय ?
इसीलिये हम अपने कामों को पहले ही स्वान्तःसुखाय कह दिए रहते हैं , जिससे हमें कोई तकलीफ न हो , यदि
जनता हमारे कर्मों को अस्वीकार कर दे | और यदि स्वीकार कर ले तो हमारी ख़ुशी तो सुनिश्चित है | बाबा तुलसीदास
जीवन भर लताड़े गए पर उन्हें कोई चिंता न थी क्योंकि उन्होंने सब स्वान्तःसुखाय लिखा था | और अब वे स्वर्ग में कितना खुश हो रहे होंगे , सोचिये !
* भ्रष्टाचार भारत के लिए नवीन नहीं है | वैदिक काल को छोड़ दिया जाय , गुरु दक्षिणा को फीस मान लिया जाय ,
भगवानों को भी बक्श दिया जाय जो वे बिना पूजा - अर्चना , फूल माला बताशा लिए प्रसन्न नहीं होते , जी हुजूरी -
चापलूसी अर्पित करने - ग्रहण करने को भी भ्रष्टाचार न मना जाय , तो भी दहेज़ लिप्सा और कन्या पक्ष द्वारा ऊपरी कमाई वाले वार की तलाश बताती है कि यह समाज में गहराई से व्याप्त है | यद्यपि सरकार को इस ज़िम्मेदारी से तनिक भी मुक्त नहीं किया जा सकता कि वह अपने और अपने कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से सख्ती से निपटे तथापि यह समाज का भी काम है कि वह लालच के खिलाफ ज़मीन व भाव भूमि तैयार करे क्योंकि सरकार कि मशीनरी
समाज के व्यक्तियों से ही निर्मित होती है | इस ओर समाज सुधारकों का भी ध्यान जाना चाहिए बजाय इसके कि वे
केवल सरकार के खिलाफ अपनी रोटी सेंकें |
---------------------------
* [ कविता ]
हम झूठै-मूठे गायित है
बहुत अच्छे गीत सुने हैं हमने
उनसे अच्छे गीत
तुम गा सकते हो
तो हम सुनेंगे |
लेकिन सत्य और यथार्थ का
झांसा मत दो हमें ,
कुछ झूठ और काल्पनिक सुनाओ
आपन जियरा बहलायित है | "
विपरीत , सत्य तो यह है कि हमें
सपनों का सब्जबाग दिखाकर
ठगा जा रहा है ,
अब हमें झूठ की ताक़त का
अहसास कराओ ,
कुछ "झूठै-मूठे " गाकर सुनाओ
ऐसे अच्छे गीत सुनाओ |
----------------
* ठीक है आप न कीजिये स्वान्तःसुखाय और जो कुछ भी कीजिये महान सामाजिक क्रांति के लिए कीजिये |
लेकिन इसका क्या कीजियेगा यदि जो कुछ आप कर रहे हैं वह अंततः आपका स्वान्तःसुखाय ही होकर रह जाय ?
इसीलिये हम अपने कामों को पहले ही स्वान्तःसुखाय कह दिए रहते हैं , जिससे हमें कोई तकलीफ न हो , यदि
जनता हमारे कर्मों को अस्वीकार कर दे | और यदि स्वीकार कर ले तो हमारी ख़ुशी तो सुनिश्चित है | बाबा तुलसीदास
जीवन भर लताड़े गए पर उन्हें कोई चिंता न थी क्योंकि उन्होंने सब स्वान्तःसुखाय लिखा था | और अब वे स्वर्ग में कितना खुश हो रहे होंगे , सोचिये !
* भ्रष्टाचार भारत के लिए नवीन नहीं है | वैदिक काल को छोड़ दिया जाय , गुरु दक्षिणा को फीस मान लिया जाय ,
भगवानों को भी बक्श दिया जाय जो वे बिना पूजा - अर्चना , फूल माला बताशा लिए प्रसन्न नहीं होते , जी हुजूरी -
चापलूसी अर्पित करने - ग्रहण करने को भी भ्रष्टाचार न मना जाय , तो भी दहेज़ लिप्सा और कन्या पक्ष द्वारा ऊपरी कमाई वाले वार की तलाश बताती है कि यह समाज में गहराई से व्याप्त है | यद्यपि सरकार को इस ज़िम्मेदारी से तनिक भी मुक्त नहीं किया जा सकता कि वह अपने और अपने कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से सख्ती से निपटे तथापि यह समाज का भी काम है कि वह लालच के खिलाफ ज़मीन व भाव भूमि तैयार करे क्योंकि सरकार कि मशीनरी
समाज के व्यक्तियों से ही निर्मित होती है | इस ओर समाज सुधारकों का भी ध्यान जाना चाहिए बजाय इसके कि वे
केवल सरकार के खिलाफ अपनी रोटी सेंकें |
---------------------------
* [ कविता ]
हम झूठै-मूठे गायित है
बहुत अच्छे गीत सुने हैं हमने
उनसे अच्छे गीत
तुम गा सकते हो
तो हम सुनेंगे |
लेकिन सत्य और यथार्थ का
झांसा मत दो हमें ,
कुछ झूठ और काल्पनिक सुनाओ
बलरामपुर के पं०जगदीश मणि त्रिपाठी की भाँति-
-- " हम झूठै-मूठे गायित है,आपन जियरा बहलायित है | "
विपरीत , सत्य तो यह है कि हमें
सपनों का सब्जबाग दिखाकर
ठगा जा रहा है ,
अब हमें झूठ की ताक़त का
अहसास कराओ ,
कुछ "झूठै-मूठे " गाकर सुनाओ
ऐसे अच्छे गीत सुनाओ |
----------------
लघु वार्ता
बेरहम [ Unpity ]
" दया धर्म का मूल है "
इसलिए हम नास्तिक अधार्मिकों को दया नहीं करनी चाहिए ,
बेरहम होना चाहिए | जानवरों या मनुष्यों के प्रति नहीं
विचारों , सिद्धांतों ,उसूलों , परम्पराओं , संस्कारों और
अंधविश्वासों के प्रति | अपनी लालच , अपने अहंकार ,अपनी महत्वाकांक्षाओं के प्रति |
- भारतीय मनीषा [ Indian wisdom ]
समय सहचर --
ज़िम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी भूल स्वीकार की और ज़िम्मेदारी ली , कि
इमरजेंसी के दौरान मानवाधिकारों का हनन हुआ था और उस
समय का उसका निर्णय गलत था | ज़ाहिर है ये वे न्यायाधीश नहीं
हैं जिन्होंने वह निर्णय दिया था , फिर भी एक संस्था के तौर पर अपने
तत्कालीन जजों के निर्णय की गलती मानी | ऐसा ही सरकारों को भी
करना चाहिए तभी उनकी विश्वसनीयता और ताक़त बढ़ेगी | अभी
तो हर नई सरकार पुरानी सरकार की बखिया ही उधेड़ती है | किसी भी
सत्तासीन सरकार को पिछली हर सरकारों की भली – बुरी सब स्वीकार
करनी चाहिए , अपने सर पर उसका ज़िम्मा लेना चाहिए | e.g .
परमाणु परीक्षण हमने किया , बाबरी - गुजरात की असफलता हमारी
असफलता थी , etc|
= = = = = = = = = =
नागरिक उवाच
* १ - डिमोक्रेसी को यदि आप अच्छा समझते हैं , तो आप तो जानते ही हैं
कि वह हमारा धर्म ही है | किन्तु यदि लोकतंत्र को आप बुरा समझते
हैं तो इसे हम नास्तिकों की नालायकियत समझ लीजिये और क्या !
* २ - " बड़ा उनको कहिये जो बड़ा कहे जाने पर फूल कर कुप्पा न होते हों | "
शनिवार, 15 जनवरी 2011
लड़कियों को मोबाइल
५ - उवाच
और यदि लीक तोड़ना ही परिपाटी बन जाय तो लीक पर चलना भी परिपाटी को तोड़ना हो जाता है |
--------------------------------
१ - प्रश्न वाचक
क्या कारण है कि १९८४ के दंगों की बरसी पर [ जिसमे कुछ लोग मरे भी थे और तमाम लोग पीढ़ियों के लिए अपाहिज ] , मुसलमानों में कोई हलचल नहीं दिखाई पड़ती , जब कि ६ दिस . बाबरी बरसी पर वे पूरे देश को पुलिस की तैनाती से लबरेज़ कर देते हैं ? क्या बाबरी मस्जिद कोई हिन्दुओं का सोमनाथ मंदिर जैसा हो गया ? हिन्दू तो चलिए मूर्तिपूजा के लिए चिर –कुख्यात और अपमानित हैं , लेकिन मुसलमान कब से
मूर्तिपूजक हो गए ? क्या उन पर भी हिन्दुओं का भूत सवार हो गया और वे मुसलमान नहीं रह गए ?
---------------------
२ - [ बदमाशी ]
परधानों की एक पचायत ने लड़कियों को मोबाइल रखने पर रोक लगा दी है | उनका आदेश सही है या गलत ,यह मैं नहीं जानता | मैं कुछ कर भी नहीं सकता | उनका सहयोग मैं इस प्रस्ताव के साथ कर सकता हूँ कि उन्हें जब भी बात करनी हो , मेरी मोबाइल से कर लिया करें | उनका कोई पैसा भी खर्च नहीं होगा और चुपके से काम भी चल जाएगा |
----------------------
३ – यथाकथा
एक दोस्त बड़ा उदास दिख रहा था |
दूसरे ने पूछा –क्या बात है भाई ?
--क्या बताऊँ बहुत दिनों से मुझे हँसी आ ही नहीं रही है |
दूसरे ने तजवीज़ बतायी – किसी अख़बार में या वेब पर जाकर किसी उलूम का कोई फतवा क्यों नहीं पढ़ लेते !
तीसरे ने हंसकर कहा - मुझे कभी रुलाई नहीं आती |
तुम्हारे लिए भी तरीका है - खाप पंचायतों के निर्णय सुन लो |
----------
४ - शेर
शमा की तीरगी को देखा है
मुझे मत ले चलो उसके नीचे |
-------
५ - उवाच
"और यदि लीक तोड़ना ही परिपाटी बन जाय तो लीक पर चलना भी परिपाटी को तोड़ना हो जाता है | "
===========================================10-12-2010
और यदि लीक तोड़ना ही परिपाटी बन जाय तो लीक पर चलना भी परिपाटी को तोड़ना हो जाता है |
--------------------------------
१ - प्रश्न वाचक
क्या कारण है कि १९८४ के दंगों की बरसी पर [ जिसमे कुछ लोग मरे भी थे और तमाम लोग पीढ़ियों के लिए अपाहिज ] , मुसलमानों में कोई हलचल नहीं दिखाई पड़ती , जब कि ६ दिस . बाबरी बरसी पर वे पूरे देश को पुलिस की तैनाती से लबरेज़ कर देते हैं ? क्या बाबरी मस्जिद कोई हिन्दुओं का सोमनाथ मंदिर जैसा हो गया ? हिन्दू तो चलिए मूर्तिपूजा के लिए चिर –कुख्यात और अपमानित हैं , लेकिन मुसलमान कब से
मूर्तिपूजक हो गए ? क्या उन पर भी हिन्दुओं का भूत सवार हो गया और वे मुसलमान नहीं रह गए ?
---------------------
२ - [ बदमाशी ]
परधानों की एक पचायत ने लड़कियों को मोबाइल रखने पर रोक लगा दी है | उनका आदेश सही है या गलत ,यह मैं नहीं जानता | मैं कुछ कर भी नहीं सकता | उनका सहयोग मैं इस प्रस्ताव के साथ कर सकता हूँ कि उन्हें जब भी बात करनी हो , मेरी मोबाइल से कर लिया करें | उनका कोई पैसा भी खर्च नहीं होगा और चुपके से काम भी चल जाएगा |
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३ – यथाकथा
एक दोस्त बड़ा उदास दिख रहा था |
दूसरे ने पूछा –क्या बात है भाई ?
--क्या बताऊँ बहुत दिनों से मुझे हँसी आ ही नहीं रही है |
दूसरे ने तजवीज़ बतायी – किसी अख़बार में या वेब पर जाकर किसी उलूम का कोई फतवा क्यों नहीं पढ़ लेते !
तीसरे ने हंसकर कहा - मुझे कभी रुलाई नहीं आती |
तुम्हारे लिए भी तरीका है - खाप पंचायतों के निर्णय सुन लो |
----------
४ - शेर
शमा की तीरगी को देखा है
मुझे मत ले चलो उसके नीचे |
-------
५ - उवाच
"और यदि लीक तोड़ना ही परिपाटी बन जाय तो लीक पर चलना भी परिपाटी को तोड़ना हो जाता है | "
===========================================10-12-2010
गुरुवार, 13 जनवरी 2011
No Killing and some poems
१ - मेरी राजनीतिक नीति में प्रथम है - हत्या -क़त्ल नहीं , अनहिंसा ( UNVIOLENCE - no killing at any cost , in any case , by the individual , or by the state - There shall be no capitol punishment [ मृत्यु दंड ] in our regime ).
-----------------
२ - I have a programme of full expression , saying - तथाकथित or कथन [ सब कुछ कह देना / कुछ कहने से रह न जाए }. तो डेमोक्रेसी का कुछ काम हल हो जाए |
------------------
३ - व्यवहार उन्ही कथनों से आकार लेगा | [लेकिन व्यवहार का मतलब व्यावहारिक होने , poltically correct होने से नहीं है ] , और ज़ाहिर है कि कथन कहीं हवा से नहीं , संवेदना और वैचारिक ऊर्जा से निकलते हैं | अर्थात हम मूलतः चिंतन करते हैं पर व्यवहार को ज्यादा महत्व देते हैं | और हाँ , कहने - बोलने - लिखने में न कहना - न बोलना -न लिखना भी तो शामिल है ! इसी को तो राजनीति ,politics कहते हैं न !
----------------
४ - भारत के किसी राजनीतिक संगठन का नाम ' चाणक्य " हो सकता है |
------------------
५ - हम अपनी योग्यता लिखते हैं
कविता तो हर कवि लिखता है
अपनी संवेदना
या विचार , लेकिन
मैं कहना चाहता हूँ कि
मैं अपनी भरसक
योग्यता भी लिखता हूँ
सम्पूर्ण कौशल के साथ
मैं जितना
जिस प्रकार लिखता हूँ
उससे बढ़िया,
बेहतर तरीके से
मैं नहीं लिख सकता |
--------------------
६ -" राजनीति में तो तब जाऊं जब नेता का जन्म दिन मनाऊँ "|
-------------------
७ - * रोज़ लगता है
आज मर जाऊंगा
रोज़ जिंदा
रह जाता हूँ |
-----------------
८ - * सफ़र करते करते
कहाँ पूरा हुआ
रुक गया
तब हुआ |
--------------
९ - तथाकथित [ school of expression ] / कथन [ Akademy of Expression ]
-----------------------end
-----------------
२ - I have a programme of full expression , saying - तथाकथित or कथन [ सब कुछ कह देना / कुछ कहने से रह न जाए }. तो डेमोक्रेसी का कुछ काम हल हो जाए |
------------------
३ - व्यवहार उन्ही कथनों से आकार लेगा | [लेकिन व्यवहार का मतलब व्यावहारिक होने , poltically correct होने से नहीं है ] , और ज़ाहिर है कि कथन कहीं हवा से नहीं , संवेदना और वैचारिक ऊर्जा से निकलते हैं | अर्थात हम मूलतः चिंतन करते हैं पर व्यवहार को ज्यादा महत्व देते हैं | और हाँ , कहने - बोलने - लिखने में न कहना - न बोलना -न लिखना भी तो शामिल है ! इसी को तो राजनीति ,politics कहते हैं न !
----------------
४ - भारत के किसी राजनीतिक संगठन का नाम ' चाणक्य " हो सकता है |
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५ - हम अपनी योग्यता लिखते हैं
कविता तो हर कवि लिखता है
अपनी संवेदना
या विचार , लेकिन
मैं कहना चाहता हूँ कि
मैं अपनी भरसक
योग्यता भी लिखता हूँ
सम्पूर्ण कौशल के साथ
मैं जितना
जिस प्रकार लिखता हूँ
उससे बढ़िया,
बेहतर तरीके से
मैं नहीं लिख सकता |
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६ -" राजनीति में तो तब जाऊं जब नेता का जन्म दिन मनाऊँ "|
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७ - * रोज़ लगता है
आज मर जाऊंगा
रोज़ जिंदा
रह जाता हूँ |
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८ - * सफ़र करते करते
कहाँ पूरा हुआ
रुक गया
तब हुआ |
--------------
९ - तथाकथित [ school of expression ] / कथन [ Akademy of Expression ]
-----------------------end
मंगलवार, 11 जनवरी 2011
गवर्नर की हत्या
* ज़रा फिर से तो कहिये कि आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता | पाकिस्तान के गवर्नर की हत्या करने वाला हिन्दू / मुसलमान नही था !
गाँधी से नाराज़ स्त्रियाँ
* भारत की नारीवादी स्त्रियाँ गाँधी जी से नाराज़ दिख रही हैं | क्योंकि उन्होने कस्तूरबा से मैला साफ़ करने के सम्बन्ध में कुछ जबरदस्ती की थी |
[ गाँधी से नाराज़ स्त्रियाँ ]
[ गाँधी से नाराज़ स्त्रियाँ ]
सोमवार, 10 जनवरी 2011
गल्प
* चिढ़
दो सहेलियां थीं | साथ रहती थीं | एक दिन दो बलात्कारी आये | दोनों अपने कमरे में थीं | लेकिन दोनों ने केवल एक के साथ सामूहिक बलात्कार किया , और दूसरी को छुआ तक नहीं क्या वह इतनी कुरूप या अनाकर्षक है ? फिर उसने न शादी की , न उसका ब्याह हुआ | अब वह नारी सुरक्षा कार्यकर्त्ता है | और जहाँ भी कोई बलात्कार की घटना होती है वह बलात्कारी को सजा दिलवाकर ही दम लेती है | ###
-----------------------------------------------
आदमी में कमियां हैं [ कविताएँ ]
१ - रोना ,
रोज़ - रोज़ का फेनामेना |
२ - नक्सलवादी
वहां हैं ,
क्योंकि हम
वहां नहीं हैं |
३ - गालियाँ वही हैं
अब भी वही हैं
हूबहू वही ,
सिर्फ भाषा बदली है
गँवारु से हटकर
सम्भ्रांत दिखती
अंग्रेजी में हो गयीं हैं
अंगों के अंग्रेजी नाम
अब सभ्य हो गए है
बस और कुछ नहीं
गालियाँ अब भी हैं
और बिल्कुल वही हैं |
४ - आदमी में कमियां हैं
वही जो आदमी
इन कमियों से
ऊपर उठ जाता है ,
सम्मान्य हो जाता है ,
अब मेरा कहना यह है कि
जो आदमी
इनसे बाहर न निकल पाए ,
अपनी कमियों को
छोड़ न पाए
उसे असम्मानित
न किया जाए |
५ - वह पैदा क्यों हुयी
मेरी समझ में नहीं आता
की आखिर वह
पैदा ही क्यों हुयी ,
और पैदा भी हुयी
तो गरीब के घर क्यों जन्मी ?
और फिर उसने
छोटी जात , गाँव -देहात
क्यों चुना ?
-चलो वह भी सही
पर वह पैदा होते ही
मर क्यों नहीं गयी ?
नहीं मरी तो नहीं मरी
पर वह दस वर्ष की क्यों हुयी ?
वह जवान क्यों हुयी ?
वह लडकी ,जो घरों में
बर्तन मांजते पिटी
और कुछ दिन पूर्व
एक चकलाघर को
बेंच दी गयी ?
वह जिंदा क्यों है
हर क्षण मरने वाली
सुन्दर , गुडिया सी
मेरे मन में बसी
लडकी ?
###
६ - [ शेर ]
* ऊब जाता हूँ काम कर - कर के ,
काम से फिर भी जी नहीं भरता |
##
शनिवार, 8 जनवरी 2011
भिक्षां देहि
* भगवान की ही नहीं , भारत के संतों - कवियों की भी महिमा अनंत है | कभी - कभी तो वे पाठक को ऐसा भंवर में डालते हैं कि उससे निकलते नहीं बनता | जैसे रहीम दादा कहते हैं कि जो किसी से कुछ मांगता है [ भिक्षा ] , उस नर [ मनुष्य ] को मरा हुआ समझो | लेकिन तुरत कहते हैं कि " उनसे पहले वे मुए , जिन मुख निकसा नांहि " | अब बताईये हम क्या करें ? भीख तो न मांगें पर यदि भिक्षा न दें तो भी वह हमें मार डालते हैं | और यदि कोई मांगेगा नहीं तो हम कैसे उसे देंगे या नहीं देंगे ?
[ भिक्षां देहि ]
================================
* बधाई ही बधाई [ नेतागिरी के लिए बैनर ]
समस्त मोहल्ला / वार्ड / ब्लोक / तहसील / जिला / विधानसभा क्षेत्र / लोकसभा क्षेत्र / प्रदेश / देश के निम्न शुभ अवसरों पर बधाई :
होली , दीवाली , दशहरा , मकर संक्रांति , ईद , बकरीद , क्रिसमस , नव वर्ष , कार्तिक पूर्णिमा , छठ पूजन , महावीर जयंती , आंबेडकर जयंती , १५ अगस्त , २६ जनवरी , गाँधी जयंती , शहीद दिवस , वसंत पंचमी ,माघमेला , कुम्भ स्नान , महाशिवरात्रि , दुर्गापूजा , राम विवाह , भैया दूज , कलम पूजा , विश्वकर्मा पूजा , काली पूजा , शरद पूर्णिमा , नवरात्रि , गुरु पूर्णिमा , गंगा महोत्सव , करवा चौथ , ----, -----, --------, शुभ तिलकोत्सव , बाल विवाह , सती दिवस , भ्रूण हत्या आदि
के उपलक्ष में हार्दिक बधाईयाँ |
निवेदक - खब्बू भैया , सामाजिक कार्यकर्ता | आपके सुख - दुःख का हमेशा साथी |
======================================
* मेरे अपने पास मोटर कार नहीं है | पुरानी एक खरीदी थी उसे कबाड़ में बेंच दी | लेकिन मै अपने मित्रों - रिश्तेदारों को , जिनकी नौकरी अभी जल्दी लगी होती है , और वे सेटिल करना शुरू करते हैं , उन्हें कार खरीदने के लिए उकसाता ज़रूर हूँ | यहाँ वह कहावत न याद करने लगिए कि जब किसी से दुश्मनी निभानी हो , उसे हलकान करना , परेशानी में डालना हो तो उसे नया घर बनवाने की सलाह दे दो |
दरअसल यह उनकी भी इच्छा होती है और मेरी नज़र इस बात पर होती है कि रर रिश्तेदारी में शादी - व्याह , मरनी -करनी में जहाँ वे जायेंगे , उनके साथ हम बूढ़े - बुढ़िया भी लटक लेंगे |
=========================================================सम्प्रति समाप्त
[ भिक्षां देहि ]
================================
* बधाई ही बधाई [ नेतागिरी के लिए बैनर ]
समस्त मोहल्ला / वार्ड / ब्लोक / तहसील / जिला / विधानसभा क्षेत्र / लोकसभा क्षेत्र / प्रदेश / देश के निम्न शुभ अवसरों पर बधाई :
होली , दीवाली , दशहरा , मकर संक्रांति , ईद , बकरीद , क्रिसमस , नव वर्ष , कार्तिक पूर्णिमा , छठ पूजन , महावीर जयंती , आंबेडकर जयंती , १५ अगस्त , २६ जनवरी , गाँधी जयंती , शहीद दिवस , वसंत पंचमी ,माघमेला , कुम्भ स्नान , महाशिवरात्रि , दुर्गापूजा , राम विवाह , भैया दूज , कलम पूजा , विश्वकर्मा पूजा , काली पूजा , शरद पूर्णिमा , नवरात्रि , गुरु पूर्णिमा , गंगा महोत्सव , करवा चौथ , ----, -----, --------, शुभ तिलकोत्सव , बाल विवाह , सती दिवस , भ्रूण हत्या आदि
के उपलक्ष में हार्दिक बधाईयाँ |
निवेदक - खब्बू भैया , सामाजिक कार्यकर्ता | आपके सुख - दुःख का हमेशा साथी |
======================================
* मेरे अपने पास मोटर कार नहीं है | पुरानी एक खरीदी थी उसे कबाड़ में बेंच दी | लेकिन मै अपने मित्रों - रिश्तेदारों को , जिनकी नौकरी अभी जल्दी लगी होती है , और वे सेटिल करना शुरू करते हैं , उन्हें कार खरीदने के लिए उकसाता ज़रूर हूँ | यहाँ वह कहावत न याद करने लगिए कि जब किसी से दुश्मनी निभानी हो , उसे हलकान करना , परेशानी में डालना हो तो उसे नया घर बनवाने की सलाह दे दो |
दरअसल यह उनकी भी इच्छा होती है और मेरी नज़र इस बात पर होती है कि रर रिश्तेदारी में शादी - व्याह , मरनी -करनी में जहाँ वे जायेंगे , उनके साथ हम बूढ़े - बुढ़िया भी लटक लेंगे |
=========================================================सम्प्रति समाप्त
शुक्रवार, 7 जनवरी 2011
उछलना / संस्कृति
* संस्कृति = जीवन जीने की सामूहिक जिद |
* बहुत उछल कर गिरने में चोट ज्यादा लगती है |
* बहुत उछल कर गिरने में चोट ज्यादा लगती है |
*यूँ पैर छूने की प्रथा में मुझे कोई सैद्धांतिक बुराई नहीं दिखती , लेकिन व्यव्हार में यह न ही रहे तो ठीक | ##
ऐसा होगा क्या !
* लोग कहते हैं
समय बदलेगा
और मैं हूँगा मंच पर |
===========
* एक कविता
ख़त्म होते ही
दूसरी कविता
चली आती है दिमाग में |
जीवन के साथ भी
ऐसा होगा क्या !
===================
* भय या भलाई
दोनों कारण हैं
ईश्वर के होने के
मानव जीवन में |
=================== end
समय बदलेगा
और मैं हूँगा मंच पर |
===========
* एक कविता
ख़त्म होते ही
दूसरी कविता
चली आती है दिमाग में |
जीवन के साथ भी
ऐसा होगा क्या !
===================
* भय या भलाई
दोनों कारण हैं
ईश्वर के होने के
मानव जीवन में |
=================== end
बचपना
* मुझमे बचपना बहुत है |
जानना चाहता हूँ की मैं बूढ़ा कैसे बनूँ |
============
* मैं कहीं तो नही फिट बैठ पाया | न जाति में न सम्प्रदाय में , न कुल न परिवार में , न गाँव में न देहात में ,
न बोली में न भाषा में , न आयु में न लिंग में , न शिक्षा - अशिक्षा में , न हिन्दू - मुसलमान में ,
न धर्म में न राजनीति में , न अमीरी में न गरीबी में , न पठन में न लेखन में , न साहित्य की किसी विधा में ,
न हस्तलेखन में न ब्लॉग में , और कहाँ तक गिनाऊँ , कहीं भी तो नहीं मैं एडजस्ट हो पाया |
=============================end
जानना चाहता हूँ की मैं बूढ़ा कैसे बनूँ |
============
* मैं कहीं तो नही फिट बैठ पाया | न जाति में न सम्प्रदाय में , न कुल न परिवार में , न गाँव में न देहात में ,
न बोली में न भाषा में , न आयु में न लिंग में , न शिक्षा - अशिक्षा में , न हिन्दू - मुसलमान में ,
न धर्म में न राजनीति में , न अमीरी में न गरीबी में , न पठन में न लेखन में , न साहित्य की किसी विधा में ,
न हस्तलेखन में न ब्लॉग में , और कहाँ तक गिनाऊँ , कहीं भी तो नहीं मैं एडजस्ट हो पाया |
=============================end
मुक्त विचारक / संस्कृति संरक्षण / जन भागीदारी
१ - मुक्त विचारक और वामपंथी जन जो राष्ट्रवाद की अवधारणा पर मुंह सिकोड़ते हैं , उन्हें ज्ञात होना चाहिए की उदाहरनार्थ , भारत एक राष्ट्र है , और इसी नाते तसलीमा नसरीन को यहाँ की नागरिकता नहीं मिल रही है , जैसा कि वे अपने मुस्लिम वोटरों के दबाव में चाहते हैं | यह राष्ट्र न होता तो उन्हें भारत भ्रमण अथवा निवास से कौन रोक सकता था | तब न उनकी इच्छा पूरी होती ,न दकियानूसी मुसलमानों कि | अतः आप कि इच्छा पूर्ति के लिए भी एक राष्ट्र आवश्यक है |
२ - मूल नागरिक संस्कृति संरक्षण
-------------------------
कोई बुरा माना करे , लेकिन राष्ट्रों की तमाम समस्याएं आब्रजन जनित हैं , और इसका उपाय है प्रत्येक राष्ट्र के मूल नागरिकों के अधिकारों का संरक्षण , या कह लें उनके विशेष अधिकारों का संरक्षण | मुझे इसमें कोई बुराई या इससे लोकतंत्र का कोई हनन होता दिखाई नहीं देता | सब अपने -अपने देश में विशेष अधिकार रखें |
ऐसा न हुआ तो सब में सबका घालमेल हो जायगा और कहीं शांति और सामंजस्य स्थापित न होने पायेगा | आब्रजन के मार्फ़त सभी जातियां सभी देशों में उत्पात करेंगी | ये अपने प्रसार के लिए प्रत्येक राष्ट्र की मूल संस्कृति पर अपनी धर्म - संस्कृति लादने और फ़ैलाने के प्रयास क्रम में प्रदूषित / मटियामेट करती रहेंगी | उदहारण किसी भी देश का लिया जा सकता है | लेकिन भारत - ब्रिटेन जैसे उदार पंथी देशों में इनके उत्पात ज्यादा स्पष्ट दिख सकते हैं | कट्टर मुस्लिम राष्ट्र अपने देशों में अपनी धर्म - संस्कृति की हिफाज़त का पूरा इंतजाम करके अपनी प्रभुता तो कायम रखते हैं , पर दूसरे देशों में उनकी लोकतान्त्रिक व्यवस्था व संस्थाओं का इस्तेमाल कर , उनकी सदाशयता का लाभ उठा कर घुसपैठ करने में सफल हो जाते हैं|
अतः अब लोकतान्त्रिक देशों को अपने मूल्यों की ही रक्षा के लिए आब्रजन की नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए |
[ जैसा देश वैसा भेष / Live in Rome as Romans do ]
३ - जनता की भागीदारी
------------------------
जनता की भागीदारी के नाम पर भी जनता का शोषण होता है , इसकी ओर ध्यान खींचना है | वामपंथियों का सब काम ' जन ' शब्द से आद्यांत होता है और उससे अंततः जन का शोषण होता है , यही कहने का मेरा आशय नहीं है | हर टी वी सीरियल ,यथा बिग बोंस, हास्य -संगीत की प्रतियोगिता कार्यक्रमों में एस एम एस के द्वारा जनता की भागीदारी कराकर कम्पनियाँ करोड़ों की कमाई करती है , जो जनता की ही जेब से जाता है |
४ - राजस का विरोध
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मेरे विचारों / लेखों से कोई यह अर्थ निकाल सकता है की मैं मार्क्स व मुसलमान विरोधी हूँ | मुझे स्वयं कभी-कभी ऐसा आभास होता है | लेकिन जब शांत चित्त , धैर्य पूर्वक इसका विश्लेषण व अन्वेषण करता हूँ , तो पता हूँ कि ऐसा वास्तव में है नहीं | वस्तुतः मैं राजाओं , नवाबों और तानाशाहों का विरोध करता हूँ | मैं पाता हूँ कि ये दोनों लोग राजा खानदान के हैं , बिगड़े हुए राजकुमार हैं , इसलिए निश्चय ही इनकी मुखालफत करता हूँ |
कम्युनिस्टों को देखिये तो उनकी नज़र में केवल सत्ता और राज्य ही दिखाई पड़ता है | मनुष्य या व्यक्ति वहां नहीं है | है तो वह सामाजिक परिस्थितियों अथवा राज्य का दास है | उनका सर्वहारा ,प्रोलीटेरिएट भी तानाशाही ,डिक्टेटरशिप की मुद्रा में है , सामान्य जनता की स्थिति में नहीं |
लगभग यही हाल मुसलमानों की है | बिना सत्ता के वे चुपचाप रह ही नहीं सकते | उन्हें निजाम - ए -मुस्तफा चाहिए ही चाहिए | हिंदुस्तान पर हज़ार साल शाशन कर चुकने के दंभ ने उनका दिमाग और खराब किया हुआ है | यहाँ वे अल्पसंख्यक होने का रोना रोकर विशेषाधिकार की स्थिति में हैं और उसे मज़बूत बनाने के प्रयास में लगे रहते है | उनका अलग ही तंत्र है , न्याय और सामाजिक व्यवस्था है | वे धर्म निरपेक्ष लोकतंत्र में अपना अनुकूलन करने के बजाय , लोकतंत्र का दुरूपयोग इस्लामी राज्य के लिए करने के फिराक में हमेशा रहते हैं |
इसीलिये मैं इन राजसी प्रवृत्तियों का विरोध करता हूँ | वरना मार्क्सवादी या मुसलमान ही क्यों हम मानववादियों के लिए तो सभी मनुष्य समान और सम्मान्य है |
५ - मेरी नागरिकता
मैं थोडा अपनी परेशानी की जड़ में जाता हूँ | और वह है लोकतंत्र | यह मुझे अपने नागरिक कर्मों की की चेतना जगाती है| जो कुछ घट रहाहै राजनीति के क्षेत्र , उस पर सोचो , प्रतिक्रिया करो और क्रियात्मक बनो |
तो इसमें परेशानी तो होगी ही!
अब अपने को समझाना चाहता हूँ - यार नागरिक , लोकतंत्र में अपनी जान न गंवाओ , उसमे जाने से अपने क़दम पीछे खींचो | सोच लो कि यह सब राजाओं का खेल है जैसा पुराने ज़माने में होता था | तुम हो जनता , रियाया | तुम्हारा काम नहीं है राजा के कामों में दखल देना , टांगें अड़ाना | तभी मैं सुखी रह सकता हूँ | बस यह समझ लो कि जैसे मैं व्यापार व मनोरंजन जगत , शेयर ,स्पोर्ट्स , फिल्म , रेडियो टी वी , फैशन , पेज ३, आदि यह सोचकर पलट देता हूँ कि यह मेरी दुनिया नहीं है |
लेकिन यार , तुम्हारे कहने पर छोड़ तो दूँ राजनीतिक टिप्पणियां करना [ इसके अलावा मैं और करता ही क्या हूँ ],लेकिन यह तो हमारा इलाका ,क्षेत्र था , जिसमे मेरा हिस्सा ,मेरा योगदान होना ही चाहिए था , और उसका प्रभाव भी प्रत्यक्ष -प्रकट दिखना भी चाहिए था |##
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२ - मूल नागरिक संस्कृति संरक्षण
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कोई बुरा माना करे , लेकिन राष्ट्रों की तमाम समस्याएं आब्रजन जनित हैं , और इसका उपाय है प्रत्येक राष्ट्र के मूल नागरिकों के अधिकारों का संरक्षण , या कह लें उनके विशेष अधिकारों का संरक्षण | मुझे इसमें कोई बुराई या इससे लोकतंत्र का कोई हनन होता दिखाई नहीं देता | सब अपने -अपने देश में विशेष अधिकार रखें |
ऐसा न हुआ तो सब में सबका घालमेल हो जायगा और कहीं शांति और सामंजस्य स्थापित न होने पायेगा | आब्रजन के मार्फ़त सभी जातियां सभी देशों में उत्पात करेंगी | ये अपने प्रसार के लिए प्रत्येक राष्ट्र की मूल संस्कृति पर अपनी धर्म - संस्कृति लादने और फ़ैलाने के प्रयास क्रम में प्रदूषित / मटियामेट करती रहेंगी | उदहारण किसी भी देश का लिया जा सकता है | लेकिन भारत - ब्रिटेन जैसे उदार पंथी देशों में इनके उत्पात ज्यादा स्पष्ट दिख सकते हैं | कट्टर मुस्लिम राष्ट्र अपने देशों में अपनी धर्म - संस्कृति की हिफाज़त का पूरा इंतजाम करके अपनी प्रभुता तो कायम रखते हैं , पर दूसरे देशों में उनकी लोकतान्त्रिक व्यवस्था व संस्थाओं का इस्तेमाल कर , उनकी सदाशयता का लाभ उठा कर घुसपैठ करने में सफल हो जाते हैं|
अतः अब लोकतान्त्रिक देशों को अपने मूल्यों की ही रक्षा के लिए आब्रजन की नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए |
[ जैसा देश वैसा भेष / Live in Rome as Romans do ]
३ - जनता की भागीदारी
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जनता की भागीदारी के नाम पर भी जनता का शोषण होता है , इसकी ओर ध्यान खींचना है | वामपंथियों का सब काम ' जन ' शब्द से आद्यांत होता है और उससे अंततः जन का शोषण होता है , यही कहने का मेरा आशय नहीं है | हर टी वी सीरियल ,यथा बिग बोंस, हास्य -संगीत की प्रतियोगिता कार्यक्रमों में एस एम एस के द्वारा जनता की भागीदारी कराकर कम्पनियाँ करोड़ों की कमाई करती है , जो जनता की ही जेब से जाता है |
४ - राजस का विरोध
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मेरे विचारों / लेखों से कोई यह अर्थ निकाल सकता है की मैं मार्क्स व मुसलमान विरोधी हूँ | मुझे स्वयं कभी-कभी ऐसा आभास होता है | लेकिन जब शांत चित्त , धैर्य पूर्वक इसका विश्लेषण व अन्वेषण करता हूँ , तो पता हूँ कि ऐसा वास्तव में है नहीं | वस्तुतः मैं राजाओं , नवाबों और तानाशाहों का विरोध करता हूँ | मैं पाता हूँ कि ये दोनों लोग राजा खानदान के हैं , बिगड़े हुए राजकुमार हैं , इसलिए निश्चय ही इनकी मुखालफत करता हूँ |
कम्युनिस्टों को देखिये तो उनकी नज़र में केवल सत्ता और राज्य ही दिखाई पड़ता है | मनुष्य या व्यक्ति वहां नहीं है | है तो वह सामाजिक परिस्थितियों अथवा राज्य का दास है | उनका सर्वहारा ,प्रोलीटेरिएट भी तानाशाही ,डिक्टेटरशिप की मुद्रा में है , सामान्य जनता की स्थिति में नहीं |
लगभग यही हाल मुसलमानों की है | बिना सत्ता के वे चुपचाप रह ही नहीं सकते | उन्हें निजाम - ए -मुस्तफा चाहिए ही चाहिए | हिंदुस्तान पर हज़ार साल शाशन कर चुकने के दंभ ने उनका दिमाग और खराब किया हुआ है | यहाँ वे अल्पसंख्यक होने का रोना रोकर विशेषाधिकार की स्थिति में हैं और उसे मज़बूत बनाने के प्रयास में लगे रहते है | उनका अलग ही तंत्र है , न्याय और सामाजिक व्यवस्था है | वे धर्म निरपेक्ष लोकतंत्र में अपना अनुकूलन करने के बजाय , लोकतंत्र का दुरूपयोग इस्लामी राज्य के लिए करने के फिराक में हमेशा रहते हैं |
इसीलिये मैं इन राजसी प्रवृत्तियों का विरोध करता हूँ | वरना मार्क्सवादी या मुसलमान ही क्यों हम मानववादियों के लिए तो सभी मनुष्य समान और सम्मान्य है |
५ - मेरी नागरिकता
मैं थोडा अपनी परेशानी की जड़ में जाता हूँ | और वह है लोकतंत्र | यह मुझे अपने नागरिक कर्मों की की चेतना जगाती है| जो कुछ घट रहाहै राजनीति के क्षेत्र , उस पर सोचो , प्रतिक्रिया करो और क्रियात्मक बनो |
तो इसमें परेशानी तो होगी ही!
अब अपने को समझाना चाहता हूँ - यार नागरिक , लोकतंत्र में अपनी जान न गंवाओ , उसमे जाने से अपने क़दम पीछे खींचो | सोच लो कि यह सब राजाओं का खेल है जैसा पुराने ज़माने में होता था | तुम हो जनता , रियाया | तुम्हारा काम नहीं है राजा के कामों में दखल देना , टांगें अड़ाना | तभी मैं सुखी रह सकता हूँ | बस यह समझ लो कि जैसे मैं व्यापार व मनोरंजन जगत , शेयर ,स्पोर्ट्स , फिल्म , रेडियो टी वी , फैशन , पेज ३, आदि यह सोचकर पलट देता हूँ कि यह मेरी दुनिया नहीं है |
लेकिन यार , तुम्हारे कहने पर छोड़ तो दूँ राजनीतिक टिप्पणियां करना [ इसके अलावा मैं और करता ही क्या हूँ ],लेकिन यह तो हमारा इलाका ,क्षेत्र था , जिसमे मेरा हिस्सा ,मेरा योगदान होना ही चाहिए था , और उसका प्रभाव भी प्रत्यक्ष -प्रकट दिखना भी चाहिए था |##
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मुक्त विचारक / संस्कृति संरक्षण / जन भागीदारी / राजस का विरोध/ नागरिकता
गुरुवार, 6 जनवरी 2011
विचारधारा का अंत
जब समाजवादी यह मानने को तैयार नहीं कि मार्क्स की विचारधारा का अंत हो चुका है ,
तो हम ही यह क्यों मान लें कि गांधीवाद मरने जा रहा है ?
तो हम ही यह क्यों मान लें कि गांधीवाद मरने जा रहा है ?
बुधवार, 5 जनवरी 2011
कृतघ्न भारत
क्या कीजियेगा जुग सुरैया बाबू ! [ TOI 5/1/2011] , यह हिंदुस्तान देश ही ऐसा है | यह इसकी भलाई करने वालों का भी
अहसान नहीं मानता | याद कीजिये किस्सा जो संत बार -बार बिच्छू को पानी से बाहर निकलता बिच्छू बार -बार साधू को डंक मारता | अब यह देश एक बहुत बड़े डाक्टर , समाजसेवी , त्यागी - तपस्वी ,मानवाधिकार - कार्यकर्त्ता विनायक सेन के
लिए राज्य के खिलाफ खड़ा होकर देश में आग नहीं लगा रहा है , आप और तमामों की कोशिशों के बावजूद तो क्या किया जाय ? ऐसे में सब्र ही किया जा सकता है , या फिर उनकी रिहाई नक्सलियों के ऊपर छोड़ दी जाय |
ऐसा ही तो इस कमबख्त देश ने अयोध्या निर्णय के समय भी किया था | तब भी इसने कोई अराजकता नहीं फैलाई
और हम आप लोग कितना निराश हुए थे ! क्या किया जाय ? हमको तो इसी देश में रहना है | अब आप कहते हो कि न्यायपालिका ही गलत है | तब तो आप विनायक सेन का केस ऊपर के अदालतों में भी नहीं ले जांयगे , वरना आप लोगों के पास सच्चर जैसे एक से एक बड़े वकील और उनके समर्थक हैं , तो हो सकता था , बल्कि निश्चित था , कि वह छूट जाते | लेकिन अब क्या करें ? इसके लिए दुःख ही मना सकते हैं कि डॉ सेन एक निचली अदालत के फैसले के कारण उम्र क़ैद बिताएंगे |
याद कीजिये , संजय दत्त का मामला भी कुछ ऐसा ही था | उसके जानने वालों ने उसके घर में कुछ हथियार रखे थे ,
जिसके बारे में वह अनजान था | उसके पक्ष में तो आप लोग बिल्कुल नहीं बोले थे | चलिए , अब बोले तो बोले | पर अब देश आप के पक्ष में नहीं खड़ा हो रहा है तो क्या करें ? - यह कृतघ्न देश !
अहसान नहीं मानता | याद कीजिये किस्सा जो संत बार -बार बिच्छू को पानी से बाहर निकलता बिच्छू बार -बार साधू को डंक मारता | अब यह देश एक बहुत बड़े डाक्टर , समाजसेवी , त्यागी - तपस्वी ,मानवाधिकार - कार्यकर्त्ता विनायक सेन के
लिए राज्य के खिलाफ खड़ा होकर देश में आग नहीं लगा रहा है , आप और तमामों की कोशिशों के बावजूद तो क्या किया जाय ? ऐसे में सब्र ही किया जा सकता है , या फिर उनकी रिहाई नक्सलियों के ऊपर छोड़ दी जाय |
ऐसा ही तो इस कमबख्त देश ने अयोध्या निर्णय के समय भी किया था | तब भी इसने कोई अराजकता नहीं फैलाई
और हम आप लोग कितना निराश हुए थे ! क्या किया जाय ? हमको तो इसी देश में रहना है | अब आप कहते हो कि न्यायपालिका ही गलत है | तब तो आप विनायक सेन का केस ऊपर के अदालतों में भी नहीं ले जांयगे , वरना आप लोगों के पास सच्चर जैसे एक से एक बड़े वकील और उनके समर्थक हैं , तो हो सकता था , बल्कि निश्चित था , कि वह छूट जाते | लेकिन अब क्या करें ? इसके लिए दुःख ही मना सकते हैं कि डॉ सेन एक निचली अदालत के फैसले के कारण उम्र क़ैद बिताएंगे |
याद कीजिये , संजय दत्त का मामला भी कुछ ऐसा ही था | उसके जानने वालों ने उसके घर में कुछ हथियार रखे थे ,
जिसके बारे में वह अनजान था | उसके पक्ष में तो आप लोग बिल्कुल नहीं बोले थे | चलिए , अब बोले तो बोले | पर अब देश आप के पक्ष में नहीं खड़ा हो रहा है तो क्या करें ? - यह कृतघ्न देश !
बच्चे नक़ल करते [ कवितायेँ ]
१ - बच्चे नक़ल करते हैं
बच्चे नक़ल करके
सीखते , बड़े होते हैं |
अब ऐसी स्थिति में ,
ऐसे समय में ,
उनके पास सीखने ,
पढ़ने , बड़े होने के
कौन से साधन
उपलब्ध हैं भला !
किसकी तो नक़ल करें वे ?
===========
२ - कमाता कोई नही है
मेहनत की कमाई में
भला क्या बरक्कत !
ईमानदारी से कोई
लखपति - करोड़पति
नहीं बनता |
सब लूटते हैं , चोरी करते ,
डाका डालते हैं ;
घूस लेते , भ्रष्टाचार -
स्कैम करते
अपने ही तरीके से
छद्म या प्रकट
सूक्ष्म या स्थूल
हर कोई , छोटा बड़ा
कर्मचारी - व्यापारी - अधिकारी
तभी वह धनाढ्य बनता |
हराम की कमाई तो बस
दो जून नमक - रोटी ही दे सकती है
किसे संतोष इतने पर !
==================== [ कवितायेँ ]
बच्चे नक़ल करके
सीखते , बड़े होते हैं |
अब ऐसी स्थिति में ,
ऐसे समय में ,
उनके पास सीखने ,
पढ़ने , बड़े होने के
कौन से साधन
उपलब्ध हैं भला !
किसकी तो नक़ल करें वे ?
===========
२ - कमाता कोई नही है
मेहनत की कमाई में
भला क्या बरक्कत !
ईमानदारी से कोई
लखपति - करोड़पति
नहीं बनता |
सब लूटते हैं , चोरी करते ,
डाका डालते हैं ;
घूस लेते , भ्रष्टाचार -
स्कैम करते
अपने ही तरीके से
छद्म या प्रकट
सूक्ष्म या स्थूल
हर कोई , छोटा बड़ा
कर्मचारी - व्यापारी - अधिकारी
तभी वह धनाढ्य बनता |
हराम की कमाई तो बस
दो जून नमक - रोटी ही दे सकती है
किसे संतोष इतने पर !
==================== [ कवितायेँ ]
समतावादी [ कथन ]
* आप समतावादी हैं इसलिए आप उनके बराबर होंगे ,
मैं विषमतावादी हूँ इसलिए मैं उनके बराबर नहीं हूँ |#
[ कथन ]
मैं विषमतावादी हूँ इसलिए मैं उनके बराबर नहीं हूँ |#
[ कथन ]
सुनने वाला नहीं [ कविता ]
* यदि कोई सुने ही नहीं
कोई सुनने वाला ही न हो
तो चिल्लाने से कोई
फायदा नहीं होता |
[ कविता ]
कोई सुनने वाला ही न हो
तो चिल्लाने से कोई
फायदा नहीं होता |
[ कविता ]
रामायण मेला
* लोहिया जी ने रामायण मेला क्या लगवा दिया कि उनकी धर्म निरपेक्षता की साख पर रामायण भी
धर्म निरपेक्षता हो गया |
* सिर्फ धार्मिक सीरिअल ही जनता में अंधविश्वास नहीं भरते , सामान्य टी वी के सीरिअल और सिनेमा
भी यह शुभकाम पर्याप्त करते हैं |
धर्म निरपेक्षता हो गया |
* सिर्फ धार्मिक सीरिअल ही जनता में अंधविश्वास नहीं भरते , सामान्य टी वी के सीरिअल और सिनेमा
भी यह शुभकाम पर्याप्त करते हैं |
टोका - टाकी
* मेरे पिता मुझे बात - बात पर टोकते थे , तब बुरा लगता था |
अब पुत्र मेरी किसी बात से मतलब नहीं रखता तो बुरा लगता है |
[ व्यक्तिगत ]
अब पुत्र मेरी किसी बात से मतलब नहीं रखता तो बुरा लगता है |
[ व्यक्तिगत ]
मंगलवार, 4 जनवरी 2011
मुस्लिम राजनीति
निजाम की मुखालफत
इस्लाम की आलोचना करो तो वह ईश निंदा , blasphemy , हो जाती है , और हम मुसलमान की आलोचना करना नहीं चाहते | इसलिए , ऐसी दशा में , हम मुस्लिम राजनीति का ही विरोध करना उचित और सुरक्षित समझते हैं |
वैज्ञानिक हिन्दू परिषद् ?
[ बेहतर इंसानी भविष्य के लिए ]
इस्लाम की आलोचना करो तो वह ईश निंदा , blasphemy , हो जाती है , और हम मुसलमान की आलोचना करना नहीं चाहते | इसलिए , ऐसी दशा में , हम मुस्लिम राजनीति का ही विरोध करना उचित और सुरक्षित समझते हैं |
वैज्ञानिक हिन्दू परिषद् ?
[ बेहतर इंसानी भविष्य के लिए ]
मूर्खता का प्रदर्शन
१ - आप बदलाव की चिंता करें , यह तो अच्छी बात है | लेकिन यह भी तो देखें , इसकी भी तो समीक्षा करें कि चीज़ें बदल क्यों नहीं रही हैं , हमारे - आपके तमाम प्रयासों के बावजूद !
२ - अपनी मूर्खता का बुद्धिमत्ता पूर्वक प्रदर्शन ही संस्कृति है |
२ - अपनी मूर्खता का बुद्धिमत्ता पूर्वक प्रदर्शन ही संस्कृति है |
इंतजार [ कविता ]
१ - बिस्तर बिछाता हूँ
इंतजार कर
थक हार कर , फिर
समेट ले जाता हूँ |
****
२ - ईश्वर की बातें
इसलिए सच हैं , क्योंकि
वह स्वयं झूठ है
और कुछ नहीं |
कुछ नहीं की ,
कुछ नहीं होने की ,
शून्यता की स्थिति में
कोई भी आएगा
वह सच ही कहेगा
तुम भी , मैं भी , वह भी |
===========
३ - मैं कह नहीं रहा हूँ
इसका मतलब यह नहीं है
की मुझे कुछ
कहना नहीं है
कहना तो है
पर कह नहीं रहा हूँ |
==============
४ - दरअसल होता यह है
की हम या तो
किसी के होते हैं ,
या फिर , उसके नहीं होते |
मीन - मेख निकलना
संभव नहीं होता , उसमें
जिसके हम होते हैं ,
और सहमति होते हुए भी
मुश्किल होता है खड़ा होना
साथ उसके
जिसके हम नहीं होते |
==========
इंतजार कर
थक हार कर , फिर
समेट ले जाता हूँ |
****
२ - ईश्वर की बातें
इसलिए सच हैं , क्योंकि
वह स्वयं झूठ है
और कुछ नहीं |
कुछ नहीं की ,
कुछ नहीं होने की ,
शून्यता की स्थिति में
कोई भी आएगा
वह सच ही कहेगा
तुम भी , मैं भी , वह भी |
===========
३ - मैं कह नहीं रहा हूँ
इसका मतलब यह नहीं है
की मुझे कुछ
कहना नहीं है
कहना तो है
पर कह नहीं रहा हूँ |
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४ - दरअसल होता यह है
की हम या तो
किसी के होते हैं ,
या फिर , उसके नहीं होते |
मीन - मेख निकलना
संभव नहीं होता , उसमें
जिसके हम होते हैं ,
और सहमति होते हुए भी
मुश्किल होता है खड़ा होना
साथ उसके
जिसके हम नहीं होते |
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शनिवार, 1 जनवरी 2011
new year 2011 nonstop nonsense
१ - चाहे ३१ दिसंबर हो चाहे पहली जनवरी , ख़ुशी मनाने की बात क्या है ?
२ - चलो एक पाखंड निभाएं / नया साल , नव वर्ष मनाएं /
२ - चलो एक पाखंड निभाएं / नया साल , नव वर्ष मनाएं /
३ - ६ महीने तक नया , फिर ६ महीने पुराना आने वाला वर्ष २०११ आपको शुभ हो
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अब आगे मानुषेर मुंशी के स्थान पर लिखूंगा = नॉनस्टॉप नोंसेंसे
बुद्धि विहीना nonstop nonsense [कोई समझदारी हो जाय तो क्षमा करें ]
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