शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

विकास की प्रक्रिया 11

,
११  -  जब  तक  यह  समझ  में  आता  है  कि  पम्पराओं  के   आन्दोलन  करना  निरर्थक  है  , तब  तक  हम  कई  आन्दोलनों   को  अंजाम  दे  चुके   होते    हैं    |  
================================

१०  *      मेरे निर्माण  , मेरे विकास  की प्रक्रिया में  है मेरी कवितायेँ  | वे मेरे उत्थान - पतन  की 
      साक्षी , चश्म दीद  गवाह और गाथाएं  हैं | 
====================================


९  *      मैं  कवि नहीं बनना चाहता , पत्रकार नहीं बनना चाहता | मै  लेखक नहीं बनना  
      चाहता | मैं केवल लिखना चाहता हूँ  |        [ confession ]
=============================================


८  *      पहले हम कुछ बातें कहते हैं | कोई स्तर बनाते हैं | तो बातें भी कुछ असर करती हैं लोगों पर |
    वरना बातें ,बातें ही रह जाती हैं , भले ही कितनी भी उच्च स्तर की हों |      [ experience ]

=======================================================================

७ - "काजू भरी है प्लेट में , व्हिस्की गिलास में , आया समाजवाद विधायक निवास में "[अदम गोंडवी ]
जैसे शेर , ग़ज़ल और कवितायेँ हमारी वाहवाही और तालियों द्वारा सम्मान पाते हैं | जब कि इन पर हमें दुखी होना चाहिए | हमें शर्म आनी चाहिए ऐसी स्थिति पर |
====================================

६ - लोग , खासकर नारी संगठन , पता नहीं कैसे कहते हैं कि यह पुरुषवादी समाज है | मुझे तो लगता है , और मुझे कहने दीजिये कि हम नपुंसक समाज हैं | पुरुषवादी होता  तो इसका पौरुष बलात्कारों में प्रकट न होता , बल्कि कमजोर , दबे -कुचलों की रक्षा और उनके उत्थान में प्रयुक्त होता |
==============================================================

*  ५ -    सोचना पड़ता है , हम जो जगे हैं वह सुबह का उजाला है या शाम  का धुंधलका |
===================

   
४ --    ताज [crown,राजगद्दी] को इतना चिकना - चुपड़ा,आकर्षक नहीं , काँटों का ताज होना चाहिए था |
          जिस कि ओर नज़र उठाते ही बुरी नीयत वाले शासक या राजकुमार का कलेजा सहम जाये |  [example]

======================

३ - *[यह जिससे भी सम्बंधित हो ]
      :  जानी - मानी फ़िल्मी हस्तियों के चेहरे टीवी के परदे पर आते हैं तो लगता है किसी फिल्म का हिस्सा होगा |
          लेकिन वह विज्ञापन होता है | कोफ़्त होती है| कितना गिर गए हैं ये लोग ! यूँ ही इतना पैसा कमाते हैं तब
          भी छोटी -छोटी वस्तुओं के विज्ञापन करते हैं | कभी दिलीप कुमार ,देवानंद ,नर्गिस ,राजकपूर को ऐसा करते नहीं
          देखा | कोई व्यक्ति जब किसी भी क्षेत्र में राष्ट्र का प्रतीक ,एक आइकन बन जाये तो उसे अपनी गरिमा का ध्यान
          रखना चाहिए | क्या सोचेंगे लोग हमारे बारे में ?

=======================
  
२ - कहीं अवसर मिल जाय तो टीवी पर मैं आहट , सी.आई .डी.जैसे सीरिअल देखता हूँ | उनकी निराशाजनक चर्चा
         तो निरर्थक है | पर मैंने जो चूहा सूंघा वह यह कि कार्यक्रमों के बीच -बीच में जो विज्ञापन आते है वे अत्यधिक
          होते हैं , संभवतः निर्धारित मात्र से ज्यादा | सम्बंधित जाँच -संस्था को इसे देखना चाहिए | यूँ ,हो सकता है मेरा
         मेरा अनुमान गलत हो क्योंकि मैं प्रसारण नियम को नहीं जानता, लेकिन कार्यक्रम तो बहुत बोरिंग हो जाते हैं |
         इस लालची प्रवृत्ति पर अंकुश लगना ही चाहिए |
=============


१ *      उत्सवों के मुबारकबाद :   मोबाईल फोन के चलते शुभकामनाओं का आदान बहुत बढ़ गया है | हालत यह
        हो जाती है कि प्रदान में केवल सूखा सा धन्यवाद लिखकर काम समाप्त करना है | अच्चा तो नहीं लगता
        पर करें क्या ? दीपावली कि शुभकामनायें , शुभकामना के लिए शुक्रिया |  # #

================page starts from bottom goes to top
       [kavita]

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें