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११ - जब तक यह समझ में आता है कि पम्पराओं के आन्दोलन करना निरर्थक है , तब तक हम कई आन्दोलनों को अंजाम दे चुके होते हैं |
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१० * मेरे निर्माण , मेरे विकास की प्रक्रिया में है मेरी कवितायेँ | वे मेरे उत्थान - पतन की
साक्षी , चश्म दीद गवाह और गाथाएं हैं |
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९ * मैं कवि नहीं बनना चाहता , पत्रकार नहीं बनना चाहता | मै लेखक नहीं बनना
चाहता | मैं केवल लिखना चाहता हूँ | [ confession ]
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८ * पहले हम कुछ बातें कहते हैं | कोई स्तर बनाते हैं | तो बातें भी कुछ असर करती हैं लोगों पर |
वरना बातें ,बातें ही रह जाती हैं , भले ही कितनी भी उच्च स्तर की हों | [ experience ]
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७ - "काजू भरी है प्लेट में , व्हिस्की गिलास में , आया समाजवाद विधायक निवास में "[अदम गोंडवी ]
जैसे शेर , ग़ज़ल और कवितायेँ हमारी वाहवाही और तालियों द्वारा सम्मान पाते हैं | जब कि इन पर हमें दुखी होना चाहिए | हमें शर्म आनी चाहिए ऐसी स्थिति पर |
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६ - लोग , खासकर नारी संगठन , पता नहीं कैसे कहते हैं कि यह पुरुषवादी समाज है | मुझे तो लगता है , और मुझे कहने दीजिये कि हम नपुंसक समाज हैं | पुरुषवादी होता तो इसका पौरुष बलात्कारों में प्रकट न होता , बल्कि कमजोर , दबे -कुचलों की रक्षा और उनके उत्थान में प्रयुक्त होता |
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* ५ - सोचना पड़ता है , हम जो जगे हैं वह सुबह का उजाला है या शाम का धुंधलका |
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४ -- ताज [crown,राजगद्दी] को इतना चिकना - चुपड़ा,आकर्षक नहीं , काँटों का ताज होना चाहिए था |
जिस कि ओर नज़र उठाते ही बुरी नीयत वाले शासक या राजकुमार का कलेजा सहम जाये | [example]
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३ - *[यह जिससे भी सम्बंधित हो ]
: जानी - मानी फ़िल्मी हस्तियों के चेहरे टीवी के परदे पर आते हैं तो लगता है किसी फिल्म का हिस्सा होगा |
लेकिन वह विज्ञापन होता है | कोफ़्त होती है| कितना गिर गए हैं ये लोग ! यूँ ही इतना पैसा कमाते हैं तब
भी छोटी -छोटी वस्तुओं के विज्ञापन करते हैं | कभी दिलीप कुमार ,देवानंद ,नर्गिस ,राजकपूर को ऐसा करते नहीं
देखा | कोई व्यक्ति जब किसी भी क्षेत्र में राष्ट्र का प्रतीक ,एक आइकन बन जाये तो उसे अपनी गरिमा का ध्यान
रखना चाहिए | क्या सोचेंगे लोग हमारे बारे में ?
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२ - कहीं अवसर मिल जाय तो टीवी पर मैं आहट , सी.आई .डी.जैसे सीरिअल देखता हूँ | उनकी निराशाजनक चर्चा
तो निरर्थक है | पर मैंने जो चूहा सूंघा वह यह कि कार्यक्रमों के बीच -बीच में जो विज्ञापन आते है वे अत्यधिक
होते हैं , संभवतः निर्धारित मात्र से ज्यादा | सम्बंधित जाँच -संस्था को इसे देखना चाहिए | यूँ ,हो सकता है मेरा
मेरा अनुमान गलत हो क्योंकि मैं प्रसारण नियम को नहीं जानता, लेकिन कार्यक्रम तो बहुत बोरिंग हो जाते हैं |
इस लालची प्रवृत्ति पर अंकुश लगना ही चाहिए |
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१ * उत्सवों के मुबारकबाद : मोबाईल फोन के चलते शुभकामनाओं का आदान बहुत बढ़ गया है | हालत यह
हो जाती है कि प्रदान में केवल सूखा सा धन्यवाद लिखकर काम समाप्त करना है | अच्चा तो नहीं लगता
पर करें क्या ? दीपावली कि शुभकामनायें , शुभकामना के लिए शुक्रिया | # #
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