बुरी आशंका
पाकिस्तान तो बंट ही गया था , लगता है कश्मीर भी छिटक जायेगा भारत से दूर -अलग !
पाकिस्तान के बंटवारे का कारण आज लोग बाग बताते हैं कि वह सब राजनीति ने कराया | तो क्या वे यह नहीं
देख रहें हैं कि वही राजनीति तो आज कश्मीर में हो रही है ? फिर उसे समय रहते क्यों हैं बचाते ,आवाज़ उठाते ?
मैं फिर भारत के मुसलमानों से यह बात कह रहा हूँ | जब देश बंट जायेगा तब चिल्लायेंगे - हाय , हमारा कोई दोष न था | जब कि अभी कश्मीर में अलागावपरस्त गन्दी इस्लामी राजनीति चल रही है , जैसी कि पाकिस्तान बंटने
से पूर्व हिंदुस्तान में चल रही थी | और वे उसी तरह चुप हैं | चुप रहें 'कोई बात नहीं , पर कृपया फिर न कहेंगे कि
उनका कोई दोष नहीं था | सब राजनीति ने कराया | वाकई क्या यह आश्चर्य जनक नहीं है कि इतने इस्लामी
आतंकवादी संगठनों में से कोई ऐसा नहीं है जो देश कि अखंडता और स्वतंत्रता के लिए कश्मीरी अलगाव वादी गुटों से
लड़ने को कों कौन कहे , बमक [bmac ],personal law बोर्ड जैसी संस्थाएं भी कुछ एक -दो शब्द बोल भी नहीं रही हैं
उवाच
१-सरकार वह जो सरकार का काम करे | थोरो की परिभाषा नहीं चलेगी कि सरकार वह जो काम से कम शासन करे
२ - बोलते जा रहे हैं
बोलते जा रहे हैं
बोलते जा रहे हैं
की हमें बोलने की आज़ादी नहीं है |
३ - मसअले हिंदी के साहित्यकार के अजेंडे पर नहीं हैं |
४ --अभिव्यक्ति की आज़ादी है तो खुलकर व्यक्त करना कर्तव्य भी होना चाहिए | लेकिन इसका पालन नहीं हो रहा है |
लोग स्त्रियों के , दलितों के , अपने मित्रों - रिश्तेदारों के बारे में बोलने में , शिष्टाचार की आंड में , संकोच करते हैं |
जिससे बहुत सारे महत्वपूर्ण सत्य और तथ्य छुपे रह जाते हैं | इससे लोक तंत्र को सुधारने , बनाने - सँवारने में दिक्कत होती है |
५ -Not " survival of the fittest " , " survival of the unfit " should be our motto of democracy . May this not be a
scientific philosophy , it must be a cultural logic of the world .
६ - यह तो हमने पाया कि हमें हर हाल में हिन्दू -मुस्लिम , दलित -स्त्री आदि के सन्दर्भ में बंट - बाँट कर ही सोचना
है | भले मिल - जुल कर बैठकर |
=========
7 |[हाइकु कविता ]
१ - या झंडू बाम
तेरा ही सहारा है
तू तो मुन्नी है |
२ --मुन्नी अब तो
तेरा ही सहारा है
झंडू बाम का |
३ - न कोई चाह
न कोई अरमान
फिर भी कर्म |
8 -कथा -संवाद
- देखो , वह जो जा रहे हैं , वह नेता जी हैं |
= अच्छा , ये किस जाति के नेता हैं ?
9 - कथा सूत्र
* नेताजन रेल ,बस ,राशन ,अस्पताल की लाइन में सबसे आगे | लेकिन मरने की लाइन में सबसे पीछे |
10 -साहित्य मठ
11 -यह क्या हो गया है मेरे कानों को
*सच कहता हूँ ,अभी कुछ दिन पहले तक शांत -सन्नाटे में मेरे कानों में बचपन में सूनी हुयी मुहर्रम के ढोल -ताशा-झांझ की आवाज़ गूंजती थी | इधर दशहरे में कोलकाता में था , तो अब वहां की ख़ास ढोलक की धुन मेरे कानों में गूंजती है |
इसी तरह अक्सर ऊपर कमरे में बैठे हुए मुझे लगता है , अपने ससुराल -घर से आकर बेटी या कोलकाता से आकर बेटा मुझे पुकार रहे हैं - "पा--पा --" | मैं उन्हें पुकारता हूँ -" रजनी --- नीतू --" | पत्नी कहती हैं -कहाँ हैं रजनी -नीतू ? कोई तो नहीं है |
12 -अख़बार के अन्दर प्रचार की पर्चियां
13 -अस्पताल की बात
14 -*नागरिक नंबर दो
हिन्दू मुसलमान को समझते हैं , या मुसलमान स्वयं ऐसा समझते हैं किवे हिंदुस्तान में नंबर दो के नागरिक हैं , तो यह सर्वथा गलत हो सकता है , लेकिन नंबर दो के श्रेणी कि नागरिकता की अवधारणा में तो कोई बुराई नहीं है ! जैसे अपने नेताओं को हम आखिर किस श्रेणी का नागरिक बताएं ?
15 -*भारत संत :-
अब यह प्रश्न बेमानी है कि आर्य कौन हैं | वे बाहर से आये या भीतर के हैं | मान लिया जाय कि दलित वर्ग ही
आर्य वर्ग है | या यदि सवर्ण आर्य बाहर से आये तो भी बहुत पहले आये | लेकिन मुसलमान तो बाद के मेहमान हैं |
और वे तो वृहद आक्रमण करके आये | उन्हें आर्यों की तरह आया हुआ नहीं माना जा सकता | यदि ऐसा मानने का
आग्रह हो तो अँगरेज़ ही क्यों विदेशी हो गए और उन्हें देश से बाहर करने का श्रेय लेकर हम खुश क्यों होते हैं ?
फिर भी ठीक है कि अँगरेज़ व मुसलमान भी भारत में रहे , पर यहाँ किसी पोप या अरबी मौलाना की नहीं , हिन्दू
अथवा दलित संत की ही चलेगी |
========
16 - * क्या आप न्याय के पक्ष में खड़े हो सकते हैं ? या आपका अपना कोई इतर पक्ष भी है ?
यह महत्वपूर्ण है आपको और आपकी बात को समझने के लिए | क्योंकि सचमुच शुद्ध
न्याय का पक्ष जैसा कुछ नहीं होता | आप क्या सोचते हैं कश्मीर के बारे में , अयोध्या
के बारे में ?
17 - * देश कि आज़ादी से क्या हासिल हुआ कश्मीर को ! मुस्लिम -बहुल आबादी पहले
हिन्दू राजा के साथ सहर्ष रहती थी | तब भारत गुलाम था | अब आज़ाद है तो
मुस्लिम मुख्य मंत्री के साथ नहीं रह सकती |
आज़ादी की उपलब्धियों का ऐसा हश्र भी ध्यान में रखना चाहिए , आज़ादी
की नयी लड़ाईयां लड़ने वालों को |
18 - * कम्युनिस्ट जन कैसा तो समझाते हैं एक रु० की दियासलाई के बनने से ग्राहक
के हाथ में पहुँचने तक मजदूरों का शोषण और बाज़ार के व्यवहार के बारे में !
ज़रा लाखों के खर्च पर बंगवासियों को दुर्गापूजा का अर्थशास्त्र समझाएं तो हम
भी सुनते |
19 - * कश्मीर समस्या को हल थोड़ा अतिरिक्त साहस मांगता है | साहस से मेरा अर्थ युद्ध नहीं है | दरअसल उस पर उचित निर्णय बहुत कटु हो सकता है और नुकसानदेह भी |
पाकिस्तान तो बंट ही गया था , लगता है कश्मीर भी छिटक जायेगा भारत से दूर -अलग !
पाकिस्तान के बंटवारे का कारण आज लोग बाग बताते हैं कि वह सब राजनीति ने कराया | तो क्या वे यह नहीं
देख रहें हैं कि वही राजनीति तो आज कश्मीर में हो रही है ? फिर उसे समय रहते क्यों हैं बचाते ,आवाज़ उठाते ?
मैं फिर भारत के मुसलमानों से यह बात कह रहा हूँ | जब देश बंट जायेगा तब चिल्लायेंगे - हाय , हमारा कोई दोष न था | जब कि अभी कश्मीर में अलागावपरस्त गन्दी इस्लामी राजनीति चल रही है , जैसी कि पाकिस्तान बंटने
से पूर्व हिंदुस्तान में चल रही थी | और वे उसी तरह चुप हैं | चुप रहें 'कोई बात नहीं , पर कृपया फिर न कहेंगे कि
उनका कोई दोष नहीं था | सब राजनीति ने कराया | वाकई क्या यह आश्चर्य जनक नहीं है कि इतने इस्लामी
आतंकवादी संगठनों में से कोई ऐसा नहीं है जो देश कि अखंडता और स्वतंत्रता के लिए कश्मीरी अलगाव वादी गुटों से
लड़ने को कों कौन कहे , बमक [bmac ],personal law बोर्ड जैसी संस्थाएं भी कुछ एक -दो शब्द बोल भी नहीं रही हैं
उवाच
१-सरकार वह जो सरकार का काम करे | थोरो की परिभाषा नहीं चलेगी कि सरकार वह जो काम से कम शासन करे
२ - बोलते जा रहे हैं
बोलते जा रहे हैं
बोलते जा रहे हैं
की हमें बोलने की आज़ादी नहीं है |
३ - मसअले हिंदी के साहित्यकार के अजेंडे पर नहीं हैं |
४ --अभिव्यक्ति की आज़ादी है तो खुलकर व्यक्त करना कर्तव्य भी होना चाहिए | लेकिन इसका पालन नहीं हो रहा है |
लोग स्त्रियों के , दलितों के , अपने मित्रों - रिश्तेदारों के बारे में बोलने में , शिष्टाचार की आंड में , संकोच करते हैं |
जिससे बहुत सारे महत्वपूर्ण सत्य और तथ्य छुपे रह जाते हैं | इससे लोक तंत्र को सुधारने , बनाने - सँवारने में दिक्कत होती है |
५ -Not " survival of the fittest " , " survival of the unfit " should be our motto of democracy . May this not be a
scientific philosophy , it must be a cultural logic of the world .
६ - यह तो हमने पाया कि हमें हर हाल में हिन्दू -मुस्लिम , दलित -स्त्री आदि के सन्दर्भ में बंट - बाँट कर ही सोचना
है | भले मिल - जुल कर बैठकर |
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7 |[हाइकु कविता ]
१ - या झंडू बाम
तेरा ही सहारा है
तू तो मुन्नी है |
२ --मुन्नी अब तो
तेरा ही सहारा है
झंडू बाम का |
३ - न कोई चाह
न कोई अरमान
फिर भी कर्म |
8 -कथा -संवाद
- देखो , वह जो जा रहे हैं , वह नेता जी हैं |
= अच्छा , ये किस जाति के नेता हैं ?
9 - कथा सूत्र
* नेताजन रेल ,बस ,राशन ,अस्पताल की लाइन में सबसे आगे | लेकिन मरने की लाइन में सबसे पीछे |
10 -साहित्य मठ
11 -यह क्या हो गया है मेरे कानों को
*सच कहता हूँ ,अभी कुछ दिन पहले तक शांत -सन्नाटे में मेरे कानों में बचपन में सूनी हुयी मुहर्रम के ढोल -ताशा-झांझ की आवाज़ गूंजती थी | इधर दशहरे में कोलकाता में था , तो अब वहां की ख़ास ढोलक की धुन मेरे कानों में गूंजती है |
इसी तरह अक्सर ऊपर कमरे में बैठे हुए मुझे लगता है , अपने ससुराल -घर से आकर बेटी या कोलकाता से आकर बेटा मुझे पुकार रहे हैं - "पा--पा --" | मैं उन्हें पुकारता हूँ -" रजनी --- नीतू --" | पत्नी कहती हैं -कहाँ हैं रजनी -नीतू ? कोई तो नहीं है |
12 -अख़बार के अन्दर प्रचार की पर्चियां
13 -अस्पताल की बात
14 -*नागरिक नंबर दो
हिन्दू मुसलमान को समझते हैं , या मुसलमान स्वयं ऐसा समझते हैं किवे हिंदुस्तान में नंबर दो के नागरिक हैं , तो यह सर्वथा गलत हो सकता है , लेकिन नंबर दो के श्रेणी कि नागरिकता की अवधारणा में तो कोई बुराई नहीं है ! जैसे अपने नेताओं को हम आखिर किस श्रेणी का नागरिक बताएं ?
15 -*भारत संत :-
अब यह प्रश्न बेमानी है कि आर्य कौन हैं | वे बाहर से आये या भीतर के हैं | मान लिया जाय कि दलित वर्ग ही
आर्य वर्ग है | या यदि सवर्ण आर्य बाहर से आये तो भी बहुत पहले आये | लेकिन मुसलमान तो बाद के मेहमान हैं |
और वे तो वृहद आक्रमण करके आये | उन्हें आर्यों की तरह आया हुआ नहीं माना जा सकता | यदि ऐसा मानने का
आग्रह हो तो अँगरेज़ ही क्यों विदेशी हो गए और उन्हें देश से बाहर करने का श्रेय लेकर हम खुश क्यों होते हैं ?
फिर भी ठीक है कि अँगरेज़ व मुसलमान भी भारत में रहे , पर यहाँ किसी पोप या अरबी मौलाना की नहीं , हिन्दू
अथवा दलित संत की ही चलेगी |
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16 - * क्या आप न्याय के पक्ष में खड़े हो सकते हैं ? या आपका अपना कोई इतर पक्ष भी है ?
यह महत्वपूर्ण है आपको और आपकी बात को समझने के लिए | क्योंकि सचमुच शुद्ध
न्याय का पक्ष जैसा कुछ नहीं होता | आप क्या सोचते हैं कश्मीर के बारे में , अयोध्या
के बारे में ?
17 - * देश कि आज़ादी से क्या हासिल हुआ कश्मीर को ! मुस्लिम -बहुल आबादी पहले
हिन्दू राजा के साथ सहर्ष रहती थी | तब भारत गुलाम था | अब आज़ाद है तो
मुस्लिम मुख्य मंत्री के साथ नहीं रह सकती |
आज़ादी की उपलब्धियों का ऐसा हश्र भी ध्यान में रखना चाहिए , आज़ादी
की नयी लड़ाईयां लड़ने वालों को |
18 - * कम्युनिस्ट जन कैसा तो समझाते हैं एक रु० की दियासलाई के बनने से ग्राहक
के हाथ में पहुँचने तक मजदूरों का शोषण और बाज़ार के व्यवहार के बारे में !
ज़रा लाखों के खर्च पर बंगवासियों को दुर्गापूजा का अर्थशास्त्र समझाएं तो हम
भी सुनते |
19 - * कश्मीर समस्या को हल थोड़ा अतिरिक्त साहस मांगता है | साहस से मेरा अर्थ युद्ध नहीं है | दरअसल उस पर उचित निर्णय बहुत कटु हो सकता है और नुकसानदेह भी |
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