मंगलवार, 16 नवंबर 2010

sudarshan , arundhati, taslima

बूढ़े सुदर्शन
               * कभी कभी मै गज़ब का दकियानूस हो जाता हूँ |मैंने इनके बयान को इन्हें बूढ़ा जानकर बिलकुल क्षमा कर दिया | कांग्रेस को भी भारतीय सांस्कृतिक मानस कि इस कमजोरी का लाभ उठाना चाहिए था | इससे कांग्रेस
का कोई नुकसान न होता | बल्कि संघ इमारतों पर हमले से हुआ | भले पार्टी के  नहीं ,देश के एक बुज़ुर्ग के प्रति
आदर कांग्रेस को कुछ देकर जाता |
वैसे भी उनकी बातें मैं  नहीं सुनता जो मेरी नज़रों से गिर चुके होते हैं | जैसे अरुंधती | जब गिलानी ,यासीन
वगैरह इतने दिनों से कह रहे हैं , तो अब एक कथा लेखिका ने कह दी तो क्या हो गया ! और भाई , यह मैग्सेसे -वैग्सैसे , बुकर वुकर पुरस्कार उरस्कार का धौंस तो आप दिखाईये नहीं | हम इससे डर,या प्रभावित हो तो जायेंगे नहीं | हम तो आप की बात देखेंगे दो एक बार , फिर आप को दो कौड़ी का करार देंगे | इनका महत्व दो तो ये और भाव दिखने लगते हैं |

समर्थन चाहूँ  क्या  ?
पर कुछ हिंदीवादी नपुंसक लोग  बड़े गदगद होते भये हैं | वाह, क्या साहसी महिला का क्रांतिकारी लेखन है ! मै उनसे एक प्रश्न पूछता हूँ  :- यदि कल को ,[ और कल को क्या , बहुत दिनों से हो रहा है , अब भी हो रहा है ,] हिन्दू आतंकवादी संगठन इसी प्रकार शेष भारत में हिन्दू राज्य के लिए सशस्त्र उत्पात करना शुरू कर दें जो उनके हिसाब से  वाजिब है ,तो क्या उनकी महान आज़ादी वादी अरुंधती राय उस स्वतंत्रता आन्दोलन को भी इसी प्रकार अपना लिखित समर्थन देंगी जैसा वह कश्मीर के इस्लामी राज्य वादी गिलानी - युद्ध को दे रही हैं ? कायदे से तो देना चाहिए |
लेकिन वह कहाँ देती हैं ? उन्हें तो भगवा आतंकवादी कहकर दुत्कारती हैं | यही उनका और उन जैसे अब तो तमाम
मानवाधिकारवादियों का छद्म है , फरेब है ,कपटपूर्ण आचरण है | उनका पक्ष संकुचित है | वरना वे देख सकते थे कि धर्म के नाम पर पाकिस्तान बन जाने के बाद हिन्दुओं के हक में पर्याप्त तर्कयुक्त कारण है कि वे भारत में हिन्दू राज्य के लिए संग्राम छेड़ते  और ये बुद्धिजीवी उनका समर्थन करते | खासकर तब , जब जगह जगह से धार्मिक राज्य या नियम कानून , शरिया आदि का दबाव मुल्क पर ही नहीं ,पूरे विश्व पर बढ़ता जा रहा है | ऐसे में हिदू से ही दूध का धुला होने की अपेक्षा क्यों की  जा रही है ? वे ऐसा न करें , यह तो ठीक है ,और इन्होंने अपने संविधान में सेकुलरवाद स्वीकार किया तो यह एक अच्छा पक्ष है | लेकिन इसके लिए बजाय इनका मनोबल बढ़ाने के , अन्य  अलगाववादी धार्मिक गुटों को उछालकर देश की  आत्मा को लगातार चिढ़ाने , मजाक उड़ाने का काम इन लोगों द्वारा किया जा रहा है जो न्यायसंगत नहीं है | इन्हें चाहिए था कि अलगाव वादियों को भी ये लोकतंत्र का मार्ग दिखाते .क्योंकि उनका आन्दोलन स्वयं उनके भी हित में नहीं है | वह कट्टर प्रजातंत्र विरोधी है , और हिंदुस्तान कितना भी गया गुज़रा है , लेकिन लोकतंत्र को चला रहा है , बल्कि इसी के कारण भी वह परेशानी में आ रहा है  | ऐसा तो कतई  नहीं है कि ये विद्वान नक्सलवादियों - घाटी वादियों कि असल मंशा न समझते हों ,तिस पर भी झूठी आज़ादी के परदे के पीछे पूरे देश को एक गलत पाठ पढाने को आतुर हैं | और  तुर्रा यह कि समूचा देश इनका आदर करे , इन्हें सर पर बिठा कर नाचे |
इतना कुछ स्पष्ट होने के बावजूद कुछ न कुछ लोग इनके झांसे में आ ही जाते हैं | वे ज़्यादातर हिंदी के सहृदय कवि -लेखक हैं , अभिव्यक्ति की आज़ादी के मुखौटे के नाम पर | अरे भाई , तो यह आज़ादी हमें भी तो है ! उसी का तो प्रयोग हम भी कर रहे हैं | हमारे हित -अधिकार की भी रक्षा करो महराज जी |
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* एक मलाल हमें हिन्दू गुटों से समझ में आती है | इस्लामी गुट कोई बम कांड होने से पहले ही उसकी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले लेते हैं | लेकिन ये भाई लोग इनके खिलाफ सबूत होते हुए भी उसके दायित्त्व से मुकरते रहते हैं
 इसका क्या कारण हो सकता है ? या तो ये डरपोक हैं , तो डरपोक तो क्रांतिकारी नहीं हो सकता | या तो ये शस्त्र का इस्तेमाल भले कर लेते हों क्षणिक उत्साह -उत्तेजना वश ,पर इन्हें सशस्त्र विद्रोह में रूचि और  विश्वास नहीं है , युद्ध में इनकी दक्षता -पटुता नहीं है , इस कार्य के लिए वे पर्याप्त प्रशिक्षित -संगठित -संस्कारित नहीं है, या उनमे सजा भुगतने का साहस नहीं है  | अर्थात, कैसे भी हो कुल मिलाकर  ये मन से कोई समर्थ हिंसक - आतंकवादी नहीं हैं,और अहिंसा कहीं न कहीं गहराई से इनके अंदर  छिपी है | ये केवल राजनीतिक परिस्थिति की पीड़ा से संचालित हैं  | तो भी क्या इनकी छिपी मनोभावना को समझना हम विचारकों के लिए समय रहते उचित न होगा | क्या अरुंधती की नज़र इन पर तभी जाए जब ये कुछ सैकड़े जनजंतुओं को हताहत कर दें , और इनके बहाने भारतीय सेना कुछ इनकी, कुछ और निरपराध जनता की मरम्मत कर दे ? क्या इस  में भारत की बौद्धिक मनीषा का बड़प्पन होगा ? या इस सुलगती आग को पहचान कर उसका  जड़ से निदान कर देना , न कि दूसरी अग्नियों को हवा देकर इन्हें भी उसी मार्ग को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना |  ये प्रश्न हैं जिनके उत्तर ज़िम्मेदार लोगों से अपेक्षित  हैं | और हाँ मित्र , ताली दोनों हाथों  से बजती है | एक हाथ की ताली कोई आवाज़ नहीं करती | केवल मुसलमान मुसलमान , हिन्दू हिन्दू चिल्लाने से धर्मनिरपेक्षता नहीं आएगी | और यदि यह नहीं आई तो कोई नहीं बचेगा | आप में भी कोई सुरखाव  के पर नहीं लगे हैं |

देशद्रोह
* इधर एक बात और दिमाग में आई  | राष्ट्रद्रोही होना क्या कोई बुरी बात  ,या अपमान की बात है ? कम से कम अरुंधती और वरवर राव तो ऐसा नहीं सोचते | यह तो हम बाहरी लोग हैं जो उन पर देशद्रोह का आरोप लगने मात्र से विचलित हो जाते हैं | उनके लेखे तो , बल्कि , राष्ट्रवाद ही एक गाली के समान है | तभी तो देखिये कैसा ताल ठोंक कर कह रही है - सरकार [राष्ट्र ] को जो करना हो कर ले , गोया ये किसी भी राज्य -व्यवस्था से ऊपर हैं [ मोहतरमा ,
इतना घमंड कहाँ से आ गया ? मानिए की यह आपको इसी लंगड़े हिंदुस्तान की देन है जिसका आप मान -मर्दन
कर रही हैं ]| यद्यपि सरकार देश के कानून के मुताबिक कोई कदम उठाती तो वह कुछ भी गलत न होता , पर हमारी पूरी कोशिश यह थी और सरकार ने अच्छा ही किया कि इन्हें यह सम्मान हासिल करने का मौका नहीं दिया | उन्होंने कहा था  कश्मीर कभी भारत का हिस्सा नहीं रहा  , हमें याद आ गया -ये लोग स्वयं भी भारत का हिस्सा कहाँ हैं , जो हम इन पर मुक़दमा चलायें और इन्हें भारतीय होने का सम्मान दें |

तसलीमा
तसलीमा भी कुछ कारणों से इधर याद आयीं | उनकी अभिव्यक्ति  और जीने की आज़ादी किसी के अजेंडे में नहीं है | न इस्लामी गिलानी के न नक्सली [समर्थिका ] अरुंधती के | पर मेरे जसे लघु मानव को इस महिला का इस्लामी देशों[भारत सहित ] से बहिष्कृत होकर  दरबदर भटकना और सेकुलर  भारत द्वारा इसे शरण न दिया जाना खटकता है | इसके विरोध में मेरे पास बेलागलपेट विरोध - कार्यक्रम है |
जिन वोटों का डर भारत की सभी पार्टियों को है उसे हम समझते है | यह उनकी परेशानी है | हमारे लिए कोई भ्रम की स्थिति नहीं है | हमारी स्पष्ट मांग है कि यदि  तसलीमा को भारत में जगह नहीं मिली [भारत में नहीं तो और कहाँ मिलेगी , हुसैन तो कतर में जा बसे ], तो हिन्दुस्तान में सच्चर रिपोर्ट कि मांग तो क्या , बात ही करना छोड़ दिया जाय | हमारा लोकवादी दिल उसे कतई लागू होने देना नहीं चाहेगा | यह तो अच्छा है कि सेकुलरवाद की मलाई तो खूब और घूम फिर कर हर बहाने से  खाओ और फिर  सेकुलरवाद के मूल्यों की जड़ों को मट्ठा पिलाओ | जी नहीं ,यह नहीं चलेगा | जातिप्रथा हिन्दुओं की बपौती है ,इसे हथियाने की कुचेष्टा न करो | जिन्हें आरक्षण लेना हो वे पहले अपने इस्लाम //ईसाई धर्म को उसी तरह गालियाँ दें जैसे हिन्दू दलित राम ,तुलसी,रामायण ,वेद पुराण -मनुस्मृति  को पानी पी पी कर देते हैं , और तब  लीजिये आरक्षण  | नहीं तो उन महान  समतावादी धर्मों में रहकर बराबरी का मज़ा क्यों नहीं चखते | नहीं आनंद आ रहा है तो वापस हिन्दू नर्क में आ जाएँ जिसे इसके दलित भाइयों ने झेला और झेल रहे हैं | दोनों हाथों लड्डू न बटोरिये भाई , यह गरीब मुल्क है और इस पर अधिकांश हक हिन्दू दलितों का है | मुस्लिम दलितों को पाकिस्तान और ईसाई दलितों को ब्रिटेन -अमरीका आरक्षण देता है /होगा  |यहाँ  हिन्दू दलितों के घर में सेंध लगाने की न सोचिये | लेकिन  हिंदुस्तान में हर हाल में मजा मारने की  मुसलमानों की सायास कोशिश रहती  है, यह तुरुप कार्ड दिखा कर कि देखो पाकिस्तान न जाकर हमने तुम्हारे ऊपर कितनी कृपा की है ,तो उसकी भरपाई हमें पूरी दो  | यदि इस दूषित मनोवृत्ति पर अंकुश न लगाया गया तो इसी को तुष्टीकरण समझते  समझते एक दिन खुद हिन्दू  भी धर्मनिरपेक्षता क्या, पंथ निरपेक्षता को भी संविधान से हटाने पर जुट जायेगा |   अतः यह नारा वाजिब है कि तसलीमा यदि भारत में नहीं तो भारत में मुस्लिमों को आरक्षण लाभ नहीं |

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