गुरुवार, 25 नवंबर 2010

एक औरत

*क्लासिक कहानी -   वह समय 
        वह समय था | यही धरती  थी | तमाम लोग , युवा और युवती | खड़े , बैठे ,चलते , स्कूटर -कार चलाते ,खाते-पीते , सोते -जागते  | अपने सर दायें या बाएँ कंधे पर टिकाये रहते | ऐसी आदत ही पड़ गयी थी उनकी | जो उनके जीन्स में आ गयी थी | जैसे सभ्यता के प्रवाह में मनुष्यों के पूँछ समाप्त  हो गए थे | वैसे ही मोबाईल कान और कंधों के बीच दबाते -दबाते उनकी यह दशा हो गयी थी | भले तब उसे संवाद के लिए मोबाईल जैसे संयंत्र की ज़रुरत नहीं रह गयी थी |  संवाद के नए सूक्ष्म तरीके ईजाद हो चुके थे , और इस्तेमाल होने लगे थे |  
* -   एक औरत
            एक औरत ने अपने पति से किसी बात पर झगड़ कर उसे बिस्तर से अलग कर दिया | पुरुष ने
कोई प्रतिवाद नहीं किया | उसने बीवी से कोई लडाई नहीं की न कोई मारपीट किया | वह कहीं और सोने जाने लगा | सोचनार्थ बात यह है की यदि वह कुछ लड़ - झगड़ कर औरत के पास सोता , तो यह पत्नी के हक में अधिक अच्छा होता , या यह जो हुवा ?
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* -  पागल
               वह व्यक्ति बहुत व्यथित था | पूरे देश में देशद्रोह और राष्ट्रप्रेम के बीच चचाएँ चल रही थीं , और उसे कोई तरीका नज़र नहीं आ रहा था अपनी राष्ट्रभक्ति  प्रकट करने का |
          बड़े उधेड़बुन के बाद उसे एक रास्ता सूझा | उसने भारत माता की एक मिट्टी की मूर्ति बड़े मनोयोग से तैयार की और उसे अपने घर के सामने प्रतिष्ठित कर दिया |  फिर रोज़ प्रातःकाल वह एक लोटा जल उस पर चढ़ाता और फूल - पत्ती छिड़क कर उसकी आराधना करने लगा |
          उसके देशभक्ति की पुष्टि हो गयी | लेकिन उधर भारत माता की मूर्ति पानी की धार से गलने लगीं |
पहले चेहरा विकृत हुआ , फिर सर , फिर धड़---| लेकिन उसे इसकी कोई चिंता न थी | उसे तो बस अपनी देशभक्ति दिखने से मतलब थी |
        अब ऐसे दुर्बुद्धि देशभक्तों के चलते भला भारत माता कब तक जीवित रह पातीं !   

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