शनिवार, 6 नवंबर 2010

अनुप्रास अलंकार 18

१८ - [१२/१२/१०]
         अभी -अभी यह ख्याल आया कि अयोध्या की समूची ज़मीन बाटा को तो खैर नहीं दिया जा सकता
क्योंकि रामभक्त इसमें राम का अपमान समझेंगे , लेकिन टाटा को दिया जा सकता है | यह विकास की ओर एक बड़ा क़दम होगा | सरकार टाटा से उसकी कीमत लेकर तीनों फरीकों को कुछ कुछ दे दे , और यह निर्देश दे कि टाटा जो उद्योग वहां लगाएं उसमे तमाम गृह निष्काषित , विस्थापित ,अनाथ साधू वेश धारियों ,रांड औरतों ,विकलांगों , भिखारियों को रोज़गार देंगे , जिससे अयोध्या में धर्म के व्यापार में कुछ कमी आये | इसमें किसी भारतीय को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए | नितीश कुमार जैसा नेता शायद यही करना उचित समझता |
१७ - भारत को एक वृहद और भीषण धर्म परिवर्तन की आवश्यकता है | हिन्दू हिन्दू क्यों 
रहे , मुस्लिम मुस्लिम क्यों रहे ?
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१६ - मुस्लिम - विरोध में हिंदुत्व का बड़ा नुकसान हो रहा है | वह अधिक ईर्ष्यालु और आक्रामक हो रहा है |
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१५ -*    अनुप्रास अलंकार बहुत पसंद है मुझे =
     " तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये "  |

१४ -*      Literary & professional  Languages
       अब तो यह पूछना ही बेकार है कि किसी की मातृभाषा   क्या है |रहते  हैं   मातृभूमि  से दूर 
       कनाडा में , बोलते हैं भोजपुरी हिंदी | तो हिंदी उनकी मातृभाषा कैसे हो गयी ? इसलिए
       अब यह पूछना उचित होगा कि उसकी साहित्यिक भाषा क्या है ? [हिंदी ] , और उसकी 
       व्यावसायिक भाषा क्या है ? [अंग्रेजी ]

१३ -* चिकित्सा की जो व्यवस्था चल रही है उसके चलते भला झाड़-फूंक पर से विश्वास किसी का क्यों उठेगा और कैसे उठेगा ?   

१२ -*अभी राजनीति अच्छी नहीं लगती न ! कोई बात नहीं , जब युद्ध आ जायेगा - अकाल पड़ जाएगा ,तब समझ में आएगा राजनीति क्या होती है !   

११ -*भ्रष्टाचार का बड़ा रोना रोया जा रहा है | दूसरी तरफ सशस्त्र स्वतंत्रता संग्राम का बड़ा गुन भी गाया जा रहा है | दोनों का कोई अंतर्संबंध किसी को नहीं दिखता |मैं यदि मान लूं की आज़ादी गाँधी
के रास्ते नहीं आई | तो मानिए काकोरी के रास्ते आई | और काकोरी का मतलब लूटपाट ही
है | पूजा पाठ में न पड़िए | बस थोड़ा ही फर्क है , वरना सारी उत्तेजना ,प्रेरणा और कार्यशैली
वही है | अर्थात काकोरी =लूटपाट =भ्रष्टाचार | आज़ादी जसे मिली है ,उसी रंग पर देश चलेगा |

१० -* गुड़ दिखाओगे (धन संपत्ति का प्रदर्शन कर -रूपये को सड़क -बाज़ार में फैलाकर )तो चींटियाँ तो चढ़ेंगी ही तुम्हारे ऊपर (चोर -डाकू -नक्सलवादी तो लूटें -मारेंगे ही )

९ -*All the conditioning : कोई नीम का दातुन कर ले तब भी उसे संतोष नहीं होता जब तक वह ब्रश न
कर ले |कोई जब तक भात न खा ले उसका पेट ही नहीं भरता चाहे उसे कैसा भी पौष्टिक इंजेक्शन
दे दीजिये |शौच के बाद कोई मिटटी से हाथ साफ़ करता है पैर -हाथ -मुंह सब धो डालता है |उसे
साबुन से सफाई समझ में नहीं आती |सब मन के अनुकूलन का खेल है |इसमें विज्ञानं -अविज्ञान
का कोई प्रश्न नहीं है | आदतें धीरे -धीरे बदलती हैं , वह भी अनुकूलन के माध्यम से ,कोरे उपदेशों
से नहीं |

८ -*(कविता )     * न औरत औरत की दुश्मन है
                        न मर्द औरत का  दुश्मन है ,
                        न मर्द मर्द  का  दुश्मन है
                        न औरत  मर्द  की दुश्मन है,
                         सच तो यह है कि हर व्यक्ति
                       अपने स्वार्थ में
                         किसी का भी दोस्त है
                              किसी का भी दुश्मन है |  #

७ -*[ हाइकु ]         १- कुछ बदलो
                           कुछ तो बदलो ही 
                             थोड़ा बहुत |
 २- मैं जानता हूँ 
      मैं जान सकता हूँ 
       मैं तो जानूंगा   |
                            ३-   लिखता हूँ मैं 
                                   आकाश में उड़ाता 
                                    ब्लॉग  लिखता   |

*[विचार ] 
६ -* हर व्यक्ति को एक फंतासी [fantasy ] जीनी चाहिए | बड़ा मज़ा है इसमें , जीवन का
यथार्थ आनंद  !
५ -*  मुझे कहना चाहिए कि  मिश्रित कुछ नहीं होता | मिश्रण का अपना नाम अपनी पहचान होती है |
पानी -चीनी मिलकर पानी -चीनी नहीं , शरबत हो जाता है | तो इसे शरबत ही कहें | वैसे ही समाजवादी 
व्यवस्था एक है ,एक है पूंजीवादी व्यवस्था | दोनों को मिलाकर मिश्रित अर्थव्यवस्था नहीं होनी चाहिए 
था | भारत में इसीलिये गुड़ - गोबर हो गया | इसे हिन्दुस्तानी ,सामयिक ,उपयुक्त जैसा होना चाहिए था |
   
४ -*सोचना मेरे लिए साहित्यिक कर्म जैसा है , कविता लिखने के समान | मैं दिमाग से नहीं 
दिल से सोचता हूँ | उसे खुली छूट देकर  |

३ -* अपना घर  हो  तो हर घर पराया लगने लगता है  |

२ -*[नागरिक उवाच ]         * पात्रों की समझ लेखकों को वैसे ही थोड़े प्राप्त हो जाती है | उसे स्वयं वह
                                           पात्र होना पड़ता है ,कथा - उपन्यास में |
                               * वेश्यावृत्ति में एक ईमानदारी तो है | लेन -देन बराबर | और जगह तो बड़ी ठगी है ,
                                   बड़ी बेईमानी |
१ -* [कथा - संवाद ]  * --- वह आपकी बड़ी तारीफ़ कर रहे थे |
                                 == लेकिन वह आपसे मिले कब ?
                                  --- हाँ , कभी मिले तो नहीं  |  #
!@#$%^&*()_+

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