सोमवार, 15 नवंबर 2010

Common civil religion

* सेकुलर देश के लिए एक सामान्य नागरिक धर्म की अति आवश्यकता है  | सरकार के लिए नहीं , व्यक्तिगत  नागरिकों के लिए जो पुराने धर्मों से ऊब चुके हैं और उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं , भले ही वे
उनमें पैदा हुए हों | ज़ाहिर है आज का यह धर्म संगठित धर्म नहीं होगा , न उसके धर्म गुरु होंगे ,
बल्कि यह प्रत्येक  नागरिक का व्यक्तिगत मामला होगा | वर्तमान धर्मों में तो वह निजी मामला होने से रहा जैसा कि सेकुलरिज्म  में अपेक्षित है | पुराने धर्मों में बंधन उसका अनिवार्य अवगुण है ,जब कि नागरिक धर्म तो केवल नाम का धर्म होगा पुराने के विकल्प में पहचान स्वरुप | क्योंकि पहचान के 
लिए आदमी  के धर्म का स्तम्भ {column ] एक वैश्विक मजबूरी हो गयी है | उसे हटाने का प्रयास करें और उसमे सफल हों ,यह आगे की बात है , लेकिन तब तक के लिए ही सही , एक धर्म का लेबल तो होना ही पड़ेगा | फिर यदि  व्यक्ति चाहे तो इसमें गुणात्मक मूल्य भी भर सकता है मानव वाद के ,तर्क बुद्धिवाद के , वैज्ञानिकता के , न्याय और मुक्ति के ,समता और कर्त्तव्य बोध के , किंवा 
लोकतंत्र के | ऐसे में यह कैसे सोचा जा सकता है कि यह भी अन्य धर्मों की तरह जड़ हो जायेगा ,
जब कि हम देख रहे हैं कि कोई भी दो लोकतंत्रवादी आपस में हर बात पर एकमत नहीं होते , यहाँ 
तक कि ईश्वर के होने ,न होने पर भी उनकी राय एक नहीं होती ,जो कि ईश्वरवादी धार्मिकों में सर्वसामान्य बात है | फिर जब इसकी कोई किताब नहीं ,कोई संस्थापक नहीं तो यह पारंपरिक धर्म कैसे बन सकता है ? वैसे तो  इसकी स्थापना  तबसे हो चुकी है जब से लोकतंत्र की भावना का उदय हुआ और लोकतान्त्रिक संस्थाएं वजूद में आयीं , जिसकी छत्र -छाया में आज हम साँस ले रहे हैं , पल बढ़ रहे है | इस लोकतंत्र की कितनी आलोचना हम करते है , इसी से यह सिद्ध होता है कि लोकतंत्र में सामान्य  नागरिक धर्म कभी दकियानूस नहीं हो सकेगा और यह निरंतर परिवर्तित -परिवर्द्धित  होता हुआ अपने को नितनवीन करता रहेगा | यह हर पीढ़ी के हर व्यक्ति की स्वाभाविक ज़िम्मेदारी का धर्म होगा | होगा क्या ,यह वस्तुतः अभी भी है | केवल हम इसे मानने ,स्वीकार करने की जगह पर कह देते हैं कि हम हिन्दू -मुसलमान हैं | और कहते -कहते हम हिन्दू -मुसलमान हो जाते हैं | अब हमारा निर्णय यह है कि हम कहते ही कहते आदमी, इंसान ,
सामान्य  नागरिक हो जायेंगे |      #


* [विचारणीय ] : सुनते रहिये धर्मों की पाखंडी शुभ -शुभ बातें , पर यथार्थ यह है कि होते -होते
सारे धर्म दाढ़ी ,टोपी और चोले में सिकुड़ कर रह जाते हैं |  #


*विनम्र निवेदन है कि कृपया मुसलमानों के नेता न बनिए , मुल्क  के नेता बनिए | #


* पाकिस्तान के बंटवारे पर भारत के मुसलमान जिन्ना से तो हाथ झाड़ लेते हैं , लेकिन वे अल्लामा इकबाल से कैसे छुटकारा
पा सकते हैं ? वह तो बहुत ही दानिशवर व्यक्ति  थे और अपने विश्वासों में भी मुसलमान और उन्होंने  देश के बंटवारे में पूरी
शिद्दत से काम किया ,जो दुखद था | मौलाना आज़ाद जैसी कुछ हस्तियों की आंड में इतनी बड़ी शर्मिंदगी छिपाई नहीं जा सकती |  #   
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