[ कविता ?]
* मैंने सड़क पर
झाड़ू लगा दिया है ,
पानी का छिडकाव कर दिया है ;
अपना काम पूरा कर दिया है |
अब उस पर चाहे राष्ट्रपति आयें
चाहे प्रधान मंत्री , मुख्य मंत्री ,
या चाहे कुत्ते दौड़ें
मुझसे क्या मतलब ?
[ कर्मनिष्ठा ]
# #
* कुछ छोड़ दें
तो पा भी लें ज़रूर
कुछ न कुछ |
* प्रेम संबंध
नाजायज़ संबंध
माना क्यों जाए ?
* सोचता नहीं
अपने बारे में मैं
स्वस्थ रहता |
* चलिए सही
जबानी जमा खर्च
कहा तो सही !
[ Haiku]
* सेक्स कहते हुए ज़रा अच्छा नहीं लगता | प्यार इसके लिए शालीन शब्द है | इसलिए ऐसा बोलते हैं |
* कहा करता हूँ , लिखा करता हूँ ;
फ़र्ज़ अपना है अदा करता हूँ |
* वर्तमान लोकतान्त्रिक व्यवस्था में एक तो परिवर्तन फ़ौरन अपेक्षित है | वह यह कि चुनाव के ज़रिये स्थापित हो जाने के बाद नुमाइंदों को शासक बन जाना चाहिए , न कि विभिन्न समुदायों , वोट बैंकों के समक्ष रिरियाते भिखारी | क्योंकि जनता वाकई शासन , अच्छा शासन चाहती है | उसे इस बात से ज्यादा मतलब नहीं होता कि आप कितने लोकतंत्र का दिखावा करते हैं | और मानना होगा कि इस प्रणाली में governance का बहुत नुक्सान हुआ है जो अंततः लोगों का विश्वाश लोकतंत्र पर से ही उठा देगी | तब तो बहुत बड़ा नुक्सान हो जायगा | इसलिए समय रहते लिजलिजे लोकतंत्र को , कम से कम भारत के सन्दर्भ में , बदल कर रीढ़ की मजबूत हड्डी में तब्दील हो जाना चाहिए | अतः एक तो अन्य लोगों का सुझाव है कि राष्ट्रपति प्रणाली लागू हो | दूसरे मेरी बात को किसी प्रकार व्यावहारिक बनाया जाय कि जिस तरह शंटिंग करने के बाद रेल का इंजन अलग हो जाता है और गाडी को दूसरा इंजन ले जाता है , उसी प्रकार चुनी हुई सरकार को एक तरह से कहें तो , तानाशाह हो जाना चाहिए | यह कोई बुरी बात तो नहीं | सर्वहारा की तानाशाही तो बाबा मार्क्स भी कह गए हैं ?
* कल मैंने स्नान किया था ,
और तुम्हारा ध्यान किया था ;
फिर जो भला बुरा था अपना
सभी तुम्हारे नाम क्या था |
[#]
* हिंसा यदि व्यक्ति का क़त्ल करती तो शायद हमें इतनी तकलीफ नहीं होती | वह सत्य का क़त्ल करती है |"
[ उवाच ]
[ मानव प्रेमी ]
* हमने लिखा था - धर्म के स्थान पर मानव लिखो और उसके आगे धर्म भी लिखो | यानी - " मानव धर्म " | पर क्या अब समय नहीं आ गया है, या नहीं तो कब आएगा कि धर्म का नाम ही न लिया जाय ? तो अभी से क्यों न लिखा जाय - धर्म = " मानव प्रेमी " ? प्रेम , आखिर तो हमारा धर्म है ?
* आप मुझे ब्राह्मण - सम ही त्याज्य समझें , हमें कोई परेशानी नहीं है | लेकिन हम जन्म से जो कुछ भी, जिस भी जाति के थे, उसका परित्याग कर चुके हैं |
Universal Knowledge :
* ब्रह्मज्ञान, जिसकी बड़ी महिमा गई गयी है, उसे हम सृष्टि - प्रकृति - अंतरिक्ष और ब्रह्माण्ड के ज्ञान के रूप में क्यों परिभाषित नहीं कर सकते ? आज के समय - आधुनिक युग के अनुरूप ? विज्ञानं ही ब्रह्म है, ऐसा क्यों नहीं हो सकता ?
* यदि आपने आदमी को मारने का कोई औचित्य मन में बना लिया तो फिर आप आदमी को अनुचित भी मारेंगे ही | "
[ उवाच ]
* आप लोगों के वश का काम नहीं है यह ! जातिवाद को तो मैं ख़त्म करूँगा !
* ब्राह्मणवाद का एक दोष तो मैं स्पष्ट पकड़ पा रहा हूँ - कि इसने अच्छे दलित नहीं बनाये |
* असमर्थ :=
मैं यह नहीं समझ पाता कि औरतें बंद बाथ रूम में भी पूरे कपडे - साड़ी ब्लाउज पेटीकोट और वगैरह सहित , पूरी वस्त्रावृता होकर क्यों नहाती , स्नान करती हैं ? कहीं वही कृष्ण - गोपिकाओं वाला पुराना किस्सा, वरुण देवता का भय तो नहीं काम कर रहा है ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें