शनिवार, 9 मार्च 2013

Nagrik Blog 8 March 2013


" कपडा पहनने से नैतिकता नहीं आ जाती | "
[उवाच]

* व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन हो जायगा , वरना मैं कहता - यह चोटी , यह दाढ़ी / यह टीका यह खतना - - ?- - - - ?

* नेतओं की ऐय्याशी जब मँहगी होगी , तब बाज़ार में सामान सस्ते होंगे |

* नियम कानून सबके लिए बराबर है , जब यह स्थैपित होगा तब जाकर जातिप्रथा समाप्त होगी | भाई लोग ब्राह्मणों के पीछे बेकार पड़े हैं | वह तो जनेऊ लटकाए भीख माँग रहा है | असली दबंगई तो कर रहें हैं ठाकुर - यसव - कुर्मी लोग | अभी राज भैया को देख लीजिये | और वैसे भी छोटे शहरों में इनके और इन जैसे नेताओं - धनिकों के मनबढ़ कपूत सारे नियम अपने हाथों में लिए हुए हैं | ये सारे ट्रैफिक कानून तोड़ते हैं , लाइन में लग्न इनके शान के विपरीत होता है | यदि छापेमार - गुरिल्ला जैसी पुलिस इन्हें दुरुस्त कर दे तो जातिवाद की हनक कहाँ रह जायगी ?

नया ईश्वर शब्दों का होगा , वाक्यों - शुभवचनों में पिरोये हुए | O GOD ! , God bless you ! जैसे संबोधनों में वह जीवित रहेगा | इंशाअल्ला हम सफल होंगें , ईश्वर आपकी यात्रा सफल करे, प्रभो आप को शीघ्र स्वस्थ करे जैसी शुभकामनाओं में प्राणवान होगा | और , हँसी की बात है - भगवान आप का भला करे , कहकर ही भीख मांगे जायेंगे | वह मानुषिक करुणा और प्रेम व्यवहार का संवाहक बनकर रहेगा , तभी रह पायेगा | अन्यथा तो वह नीत्शे द्वारा मारा ही जा चुका है | और शंभू नाथ जी तो कह ही रहे हैं की सबसे नया धर्म भी 500 वर्ष पुराना हो चुका है | तो मेरे विचार से नया धर्म पुराने ईश्वरों से विहीन अथवा उपरोक्ततः  शाब्दिक / वाक्यों में संकुलित होगा | उसका उपयोग होगा, किया जायगा मनुष्य के हित में , मनुष्यता के उत्थान में , न कि मनुष्यों के बीच भेद - वैमनस्य फ़ैलाने के | देखिये न , यह उपभोगवाद - उपभोक्तावाद का ज़माना है | फिर इस समय - काल का ईश्वर उससे बाख कैसे सकता है ?
 By God , मैं सच बोल रहा हूँ -  |

* बाँग्ला देश के युद्ध में कूद कर , और फिर तदन्तर उसे खुला छोड़कर भारत ने बहुत बड़ी गलती की |

* इसीलिये मैं और श्रद्धान्शु शेखर कहते हैं Partyless Democracy को बल दो | राजा बाबू लोग जिस भी पार्टी में हों [किसी में हो सकते हैं , आते - जाते रहते हैं ] , वोट मत दो | मानिक सरकार जैसे लोग जिस भी पार्टी में हों या न हों उन्हें वोट दो | लेकिन इसमें एक समस्या दरपेश है | गाँव गिरांव की बात छोडिये , शहर में तो सभासद के लिए खड़े आदमी के बारे में कुछ ज्ञात नहीं होता | तो ऐसे में पहचान का तरीका बदलो | तब जाति देखो | जो दलित [ उसमे भी महिला को वरीयता ] हो , उसे जिताओ | हिन्दुस्तान में और कुछ पता चले न चले , जातॆ तो मालूम ही हो जाती है | और अब दलितों का भारत पर राज्य करने का हक वैसे भी बनता है |

* यह भी तो सोचिये कि कुंडा में पुलिस ने अपने व्यवहार के माध्यम से अपने चारित्रिक वैशिष्ट्य की लाज भी तो रख ली ! उसने दिखा दिया कि वह केवल सामान्य जनता को ही असुरक्षा में नहीं डालती, बल्कि अपने साथी अफसर को भी मौत के मुँह में गुंडों के द्वारा मारे जाने के लिए अकेला छोड़ सकती है |

* यह भला " राजनीतिक कार्यकर्त्ता " क्या चीज होते हैं ? क्या राजनीतिक नेताओं और उनके सिद्धांतों / कार्यक्रमों के गुलाम या मजदूर ? नहीं , मैं तो उनका अर्थ एक  " जाग्र्रूक  नागरिक "  से ही लेता हूँ | फिर तो वे अपनी तरह से राजनीतिक काम करेंगे ही |

[ Slogan]
* " मनु को छोडो , मनुष्य की सोचो "  - - OR
" मनु का चक्कर छोडो , मनुष्य पर ध्यान दो | "  OR
* " मनु का नहीं , मनुष्य का अध्ययन करो | "  OR
" मनु को नहीं , मनुष्य को पढ़ो " |

* जियो तो ऐसे जियो, जैसे मर रहे हो तुम ;
मरो तो ऐसे मरो, जैसे जी रहे हो तुम |

[योजना ]
बाल सखा समूह [ Facebook  Group ]
* बाल साहित्य , बालबुद्धि के मासूम सवाल , पवित्र मुस्कान | Nonsense नहीं , पूर्ण Childlike Sense युक्त समूह | वृद्धावस्था की बदमाशी नहीं , बचपने में झनकते हुए लेखन |

कभी पढ़ी बाल रचनाओं में से कुछ जो याद आयीं =
१ - [ बाल कविता ]
यही देश का हाल रहा तो मुझे राष्ट्रपति बनना होगा |
[रचनाकार - अज्ञात ]
२ - कलम तोड़ दावात उलट स्याही सब तुम्हे पिला दूँगा |"
[रचनाकार - अज्ञात ]
३ - मुझको आता हुआ देखकर चिड़िया क्यों उड़ जाती हैं ? "
[रचनाकार - अज्ञात ]
४ - [ बालिका कवि की रचना ]
ईश्वर ने मनुष्य को बनाया , तो ईश्वर को किसने बनाया ?
[रचनाकार - अज्ञात ]

[ गड़बड़ कविता ]
* जितने भी आशाओं के तारे
भूख प्यास के मारे
लेकिन बेचारे तो नहीं
चमक रहे हैं मनुष्य के
मस्तिष्काकाश में ,
उन्हें तोड़कर फेंक दो
तो मनुष्य का इनके लिए
पागलपन ,
इन्हें पाने की आतुरता
ख़त्म हो जाय ,
और मनुष्य के जीवन में
चैन आ जाय
जिनके लिए यह
मारा मारा फिरता है
सुख - शांति गवांता है |
निराश शून्य के करीब है
यही सत्य है जहाँ
अशांति की हड़बड़ी नहीं है |
# #

[ कविता ? ]
* मैं अपना काम
आपको समझाता हूँ -
मैं सुलझाता नहीं
प्रश्न उलझाता हूँ |
# #

* क्या करे  क्या न करे  ,
आदमी क्या क्या करे ?
कितना जी ले ज़िन्दगी ,
कितनी मौतें रो पड़े ?

* हर दिवस
पर्वतारोहण है
एक प्रोजेक्ट |

* कथन भी हो
कहने का तरीका
भी है साहित्य |

* मँहगी होगी
नेताओं की ऐय्याशी
घटेंगे दाम |

* जान ले लेना
कितना तो आसान
हो गया मित्रो !

* काम न आये
खाए पिए अघाए
लोग किसी के |

* दोस्त बनेंगे
दुश्मन भी बनेंगे
जिंदगी है तो !

* मानव जाति
नकलची बन्दर
यह प्रजाति |

* कुछ भी करो
वादाखिलाफी नहीं
कदापि नहीं |

* कहते तो हैं
जितना कह पाते
ज्यादा क्या कहें !

* अपना सुख
सबका है आदर्श
अपना स्वार्थ |

* अपनी वाली
हाँकते जा रहे हैं
नागरिक जी |

* अब हमने
पाला बदल दिया
पार्टी में गया |

* उम्र के साथ
फर्क तो आएगा ही
हर चीज़ में |

* डूबा ले गया
जलियाँवाला बाग़
ब्रितानियों को |

* ज्यादा तो दोष
बोलने में निहित
कम बोलो न !

* चाहती तो हैं
चिड़ियाँ पिंजरे से
निकल जाना  |

* चल रे यार
उनकी गलियों में
ज़रा घूम लें |

* कुछ बदले
वही बदलाव है
परिवर्तन |

* ले गया मुझे
अज्ञात आकर्षण
खींचता चला |

* बात ज़रा सी
बाक़ी लन्तरानियाँ
उपन्यासों में |

* [ मजबूरी का नाम मार्क्सवादी ]
परेशान होने से कोई फायदा नहीं है | कोई विकल्प है नहीं | जो कुछ थोडा बहुत है वह कम्युनिस्ट पार्टी ही है | बाकी सब बेकार हैं | वाद विवाद पर न जाइये | समाजवाद क्या कोई बुरा शब्द था , पर नहीं चला | मार्क्सवाद मेरे लिए सबसे अधिक जटिल / अपठनीय विषय है | इसलिए मेरे देश में यही चलेगा | यह इस देश की प्राचीन नीति है कि जनता को जो समझ न आये वही यहाँ का शासक | चलिए इसी पार्टी की दरी चादर बिछाई जाय | [ कम्युनिस्ट जन पार्टी = कजपा ]

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