* पूर्ण अथवा उन्नत विचारक वह है जो अपने 'आमद ' विचारों के खिलाफ भी सोच सकता हो |
* " बहन की शादी करनी है " कहते तो हैं लोग | लेकिन वास्तव में उन्हें बहन के हिस्से की संपत्ति खरीदने के लिए पैसा चाहिए होता है |
* [ संदेह ]
एक इतिहास परक लेख पढ़ रहा था | उसमे था दो विचारकों का जीवन काल | रूसो Roussau [ 1712 - 1778 ] , और वाल्टेयर Voltaire [ 1694 - 1712 ] | अर्थात 1712 में जब वाल्तेयर का निधन हो गया तब रूसो का जन्म हुआ | फिर उनके बीच वह विश्व प्रसिद्द संवाद कब , कैसे हुआ जिनके नाते मूलतः बहुत से लोग इन दोनों विचारकों को जानते हैं - " I do not agree with what you say , but I can lay down my life for your right to say [ मैं आप से सहमत नहीं हूँ, लेकिन मैं आपके ऐसा कहने के अधिकार की रक्षा के लिए अपनी जान भी दे सकता हूँ ] " ? ? ?
* Democracy has been defined as - " Of the people , for the people and by the people ". इसमें कहीं " On the people " का कोई Clause नहीं है | और यही सारी गड़बड़ियों की जड़ है | इसी से लोकतंत्र , कम से कम अपने देश मे तो , सफल होने का नाम ही नहीं ले रहा है | अतः , जैसे लोकतंत्र के चार पाए माने जाते हैं उसी प्रकार इसकी परिभाषा में भी एक पाया जुड़ना चाहिए | जिसका अर्थ हो कि इस व्यवस्था में जनता '' पर " भी एक दबाव हो इसे चलाने का | ठीक है वह BY the people तो बना लेकिन बनने के बाद वह जनता का राजा [शासक ] हो जाय | इस पर चिंतन की आवश्यकता नहीं है क्या ?
* उनका आदेश भी क्या गज़ब का उल्टा पुल्टा होता | एक तरफ कहते हैं - " काम " से दूर रहो, तो कभी हमारे लिए एक पूरा विभाग ही खोल देते हैं - " आय 'कर' " | हम क्या करें ?
* हमरे गाँव का हाल चाल ]
ई बात 11 मार्च के रात कै है , हम्मै 12 की सुबह पता चला, जब हम बढ़या में रहेन | गाँव के राम जियावन अउर पप्पू गए रहे नाच देखे कठौतिया | रातिम मोटर सायकिल से लौटत रहे | तीन जने बैठा रहे | सामने एक ठू कूकुर आई गा | तीनो जने गिरे धड़ाम | सुना है टूट फूट तो नाहीं भा , लेकिन चोट ज्यादा खाइ गए है लोग | हम्मे बस्ती आवेक रहा, भाई के बर्थडे में | तब तक वनके मरहम पट्टी नाहीं भै रहा | बाक़ी तो सब ठीकै है |
[ असली फेसबुक ]
* मित्रता को मित्रता की तरह रहना चाहिए और विचारकर्ता / वक्तृता को उनकी तरह | हमारे तमाम मित्र हैं जो मुझे जान गए हैं और हम उन्हें | हम कुछ भी लिखते रहते हैं, उनसे विचार तो जो भी लेते देते हैं उससे ज्यादा विचारों का, बातचीत का मज़ा लेते हैं | परस्पर नोक झोंक के बावजूद एक विश्वास, एक प्रेम सम्बन्ध बना रहता है | हम उसे जर - जोरू - ज़मीन का झगड़ा नहीं बनाते | हमारा फेसबुक चलता रहता है | हम असली फेसबुक हैं | दूसरी और कुछ हाउसेज़ में मित्र वाद विवाद में जीत हार को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लेते हैं | मानो उन्हें उसके आधार पर 2014 का चुनाव लड़ना है | और इस आशय से वे सदन की कार्यवाही रजिस्टर के पन्ने पर पन्ने रँगते जाते हैं |
* तुम्हे पता हो या तुमको न हो कुछ भी मालूम ,
तुम्हारे चाहने वाले बहुत सारे हैं दुनिया में |
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* हिंसा नहीं है
थोडा वाद - विवाद
या हाथापायी |
* शुभ नहीं है
महिला आन्दोलन
में सारा कुछ |
* उसी ने लिखीं
किताबें, पोथी - पत्री
तो वही पढ़े |
[हाइकु]
[ कहानी बन सकती है ]
* एक कन्या का पिता वर पक्ष के घर गया | घंटी दबाई | एक व्यक्ति निकला |
-- किससे मिलना है ?
- - मुझे सुरेश से मिलना है | उससे उसकी शादी के बारे में बात करनी है |
--जी बोलिए, मैं सुरेश का पिता हूँ |
-- शादी सुरेश की होनी है और बात आप से , उसके बाप से क्यों करूँ ?
- - तो सुरेश से शादी आप करेंगे क्या ?
- - नहीं , अपनी बेटी के लिए बात करनी है |
- - शादी बेटी की होनी है, तो बात आप क्यों करने आयें है ? जाइये, बेटी को भेजिए |
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* असली पहनावा वही जिसे व्यक्ति अपनी शादी में पहनता है | वही उसके संस्कार का द्योतक होता है | लडकियाँ अपनी शादी में कहाँ जींस टॉप पहनकर दुल्हन बनती हैं ? सवाल पलट कर आधुनिकता वादियों से यह बन सकता है - ऐसा वे क्यों नहीं करतीं कि काम के कपडे पहने पहने ही वे मंडप में आ जायँ ?
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[ यह तो कविता ]
* जब तक नहीं जानता
बोलता जाता हूँ ,
जब जानता हूँ
तब चुप रहता हूँ |
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* [ ATM और सिक्कों का ढेर ]=
* बाल पाठ्य पुस्तक की एक प्रसिद्द कथा है जिसने मुझे बिगाड़ने में कोई कसार नहीं छोड़ी - कि कोई किसान अपने खेत में श्रम कार्य कर रहा था | थोड़ी ही दूरी पर सिक्कों का ढेर लगा था | एक राहगीर ने किसान से पूछा - वहाँ इतना धन पड़ा है उठा क्यों नहीं लेते ? श्रम करके क्यों पसीना बहते हो ? किसान ने उत्तर दिया - मैं बिना श्रम से प्राप्त धन का उपभोग नहीं करता |
इसी तर्ज़ पर मुझे एक कहानी बनाने की सूझ रही हैं | मजदूर म्हणत कर रहा है और बगल में ATM लगा है | राहगीर पूछता है - ATM से निकाल क्यों नहीं लेते ? मजदूर अपना म्हणत रोकता नहीं | उसके पास ATM card नहीं होता |
* फिर जीव वादी , फिर वनस्पतिवदि , फिर जलचर - थलचर - नभचरवादी , फिर चराचर वादी , फिर ? फिर , फिर हिंदूवादी ? जी नहीं, मानववाद की आपकी या किसी की भी समझ इसलिए अपूर्ण है क्योंकि इसे कभी बताया ही नहीं गया / न बताया जाता है | घूम फिर कर बात वहीँ आ जाती है जहाँ आप इसे ले आये हैं | मानववाद के तहत ही आप ' आप ' हैं , जो यह सब सोच रहे हैं, [सोच सकते हैं], जीव - जगत की बात कर रहे हैं | इसे समझने में किसी ईश्वर की ज़रुरत नहीं है | यही मानव वाद है | धर्मों के ईश्वर केन्द्रित होने के बार खिलाफ मानव वाद मनुष्य केन्द्रित है | इसका अर्थ यह नहीं है कि ईश्वर की भाँति मनुष्य पूरी सृष्टि का सर्वे सर्व होने का दावा करता है | कभी कभी धार्मिक विचारकों की यही - किसी अन्य दर्शन को झुठलाने की जिद, कोफ़्त पैदा करती है और तब कहना पड़ता है कि तुम्हारी गीता में ही जो लिखा है - " न हि मानुषात श्रेष्ठतरं हि किंचित " का अर्थ क्या है ?
* यदि आप मुझे अपना गुरू बना लें तब तो मैं आप को कुछ बताऊँ, वरना वैसे बोलने से क्या फायदा ?
* हाँ , हमें नास्तिकता का प्रचार शालीनता से करना चाहिए | तभी यह ग्राह्य और प्रभावी भी होगी | और यह भी कोई हमारी बपौती नहीं है | थोड़ी विवेक बुद्धि , थोड़ी वैज्ञानिकता ! और है क्या नास्तिकता ? उस आस्तिकता के बरक्स जो आँखे बंद करने को कहती है |
* संघियों की बड़ी आलोचना हो रही है, और फूहड़ भी हो रही है | लेकिन खुदा न ख्वास्ता यदि इनके कुप्रयासों से कहीं भारत में हिन्दू राज्य की स्थापना हो गयी, तो यही लोग कटोरा लेकर सबसे आगे खड़े होंगे - कि 'सबसे बड़का हिन्दू तो हमहीं हन ' |
[ गलत आरोप ]
* महोदय ! मेरे ऊपर यह आरोप गलत है कि मैं उस औरत के साथ सोया | वस्तुतः, मैं पूरे समय जागृत अवस्था में था |
-- उग्रनाथ [उर्वर दिमाग]
* भारत के मुसलमान वाकयी देशद्रोही नहीं हैं| लेकिन पाकिस्तान के हिन्दू तो अवश्य ही देशद्रोही रहे होंगे | तभी तो पाकिस्तान से भाग जाने के लिए मजबूर किये गए ? बंगला देश में भी ऐसा हुआ होगा, और ऐसा ही हुआ होगा कश्मीर में | शायद इसी से सबक लेकर भारत सरकार आदिवासी क्षेत्रों से देशभक्त नक्सलवादियों को बाहर नहीं खदेड़ रही है !
* दुनिया को बनाने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है | हाँ , वाक्य बनाना ज़रूर अच्छा लगता है |
* बेशक प्रिय संपादक बिलकुल खुला मंच है किन्तु मैं इस विवाद में शामिल नहीं हूँ, जान बूझकर | लेकिन यह मानने का कारण साफ़ है की सत्येन्द्र यादव जी अशिष्ट भाषा का इस्तेमाल करते हैं | जिस स्टेज पर उन्होंने उज्जवल जी को " पशु " कहा वह निहायत आपत्तिजनक है | " यूरोप में चरने वाले पशु / यूरोपियन नस्ल के पशु " निश्चय ही असभ्यता के शब्द थे | उज्जवल जी यही के हैं | क्या कोई कहीं बाहर न जाए ? या किसी विदेशी को क्या आप जानवर कहेंगे ? केवल आप ही एक मनुष्य हैं | लेकिन इसमें गलती मैं निजी तौर पर उज्जवल समूह की भी देता हूँ कि वे जातिप्रथा अउर उसके प्रभाव को अब भी स्वीकार नहीं करेंगे , नहीं मानेंगे जब की सब कुछ अपनी आँखों के सामने देख रहे हैं | हिन्दुस्तान में थोडा इस पुराणी स्थापना को मान लेना चाहिए न की केवल " आप की शिक्षा और आप का परिवेश " भर | Ranjay त्रिपाठी का भी कुछ ऐसा ही अनुभव है | बहरहाल मेरा परिवेश इसे सहन नहीं करता यदि बोलने वाला तमीज से बात न करे, भले वह कितनी ही असहमति का हो | यादव जी न आयु का लिहाज़ करते हैं, न जुबान का, न सम्मान का | तथापि प्रिय संपादक किसी को समूह से बाहर नहीं निकालता | लेकिन व्यक्तिगत रूप से तो मैं [एडमिन] अपने आप को एकमात्र तर्कसम्मत, सही और ज्ञानी समझने वाले महान सत्येन्द्र यादव जी को unfriend करने के बारे में तो सोच ही सकता हूँ ?
* * मेरे विचार में एक दिमाग आया है "
फिर लिखूँगा | कि इस नाम से एक विचार संकलन छपवाऊं तो कैसा रहेगा ?
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