* देखते रहियेगा, सच्ची बात ज़रा अप्रिय होते होते कुछ अश्लील भी हो जाती है | लेकिन विवाह चाहे प्रेम विवाह हो चाहे व्यवस्थित विवाह, वह मनुष्य के ऊपर एक अस्वीकार्य बोझ / बंधन ही रहेगा | मनुष्य उससे आज़ाद होना ही चाहेगा | कोई भी स्त्री पुरुष एकनिष्ठ - एक पत्नीव्रत / एक पतिव्रत रह ही नहीं सकता | बुरी लग गयी न बात ? मानो मैं अनैतिकता फैला रहा हूँ ?
Balance can not be maintained :=
महिला सेमिनारों में एक शब्द बहुत प्रयोग में आता है - पुरुषवादी वर्चस्व / पुरुषवादी समाज आदि | अब उस पर वैचारिक बहस तो मेरे वश का नहीं , लेकिन मैं यह कहना चाहता हूँ कि किसी न किसी , और किसी एक का ही वर्चस्व होगा | चाहे वह पुरुष का हो या नारी का | एक म्यान में दो तलवार तो नहीं रह सकते ? विद्वान लोग बताते भी हैं कि कभी महिला प्रधान भी इतिहास में रह चुका है, और तब महिलायें कोई उन्हें गोद में बिठा कर प्यार नहीं करती थीं | इसलिए कुछ तो स्वीकार पड़ेगा | चलिए मैं महिला शासन कि मानसिकता तैयार करता हूँ | हैं भी तमाम पुरुष महिलावादी , तो कुछ महिलायें पुरुषवादी भी होंगी ! और पलड़ा किसी तरफ तो पासंग रहेगा ही , हमेशा |
* मजबूर था इस्लाम | और करता भी क्या , यदि जोर ज़बरदस्ती या तलवार के बल पर बुरे मनुष्यों को मुसलमान न बनाता ? समझाने बुझाने या सहमति से तो कोई इसे स्वीकार करने से रहा | वहां कोई आसाराम , रामदेव, निर्मल बाबा भी तो नहीं हैं जो इस्लाम को रोचक /मनोरंजक बनाते !
* धर्मों का नाश होना चाहिए , यह तो सभी कहते हैं | सच बात है और ज़रूरी भी | लेकिन इन्हें एक एक करके हो समाप्त किया जा सकता हैं , वरना सब लकड़ियों की गट्ठर की तरह एक होकर अधर्मियों की ही कमर तोड़ डालेंगे | सबसे पहले इस्लाम को मिटाना चाहिए | वैसे यह इ रहा है | कौन है जो इसे स्वेच्छा से प्रेम करता है ?
* हिंदुस्तानी किताबों [ हिन्दू धर्म ? ] में तो इस्लाम निहित ही है | बस हिंसा और अरब की राष्ट्रीयता बराय अर्थात -छोड़कर | वरना मूर्ति विरोध , निराकार ब्रह्म , एकनिष्ठा सब तो है यहाँ | और दाढ़ी के साथ चोटी भी अतिरिक्त |
* लोग कहते हैं हिंदुस्तान एक है | लेकिन वे कोई प्रमाण नहीं देते | मैं देता हूँ सबूत | इस नाम का कोई और मुल्क दुनिया के नक़्शे में नहीं है |
* हिन्दू धर्म बिना फैलाये ही फैलेगा [विकसित और सर्वमान्य हो रहा है] | एक तो हनुमान के मुँह की तरह और दूसरे, शायद - आश्चर्यचकित होकर |
* [ बाल गीत ]
भूख नहीं लगती है मुझको , खाना खा लेने के बाद ;
नींद नहीं आती है मम्मी , रात को सो लेने के बाद |
[ पूरी करो ]
* मेरी सोच प्रणाली की मूल दिशा यह है , और यही उसका लक्ष्य भी , कि मनुष्य को कही नीचा न देखना पड़े , अपमानित न होना पड़े और उसकी गरिमा बरक़रार रहे | कोई भी विचार मनुष्य के सम्मान को धूल धूसरित न करने पाए , यह प्रयास होता है मेरा | इसलिए जब कोई धर्म- दर्शन - सिद्धांत - संस्कृति मनुष्य को उसकी यौनिकता को लेकर जानवर बताने लगता है, या खान पान आदि को लेकर कीड़ा मकोड़ा की संज्ञा देने लगता है , नैतिकता के सन्दर्भ में भेंड बकरियों की तरह हाँकने की चेष्टा करता है , तो मैं उसके ऊपर अपनी जान हथेली पर लेकर सींकिया पहलवान की तरह पिल पड़ता हूँ | हारता हूँ या जीतता , इसे मन में लाता ही नहीं |
* हमारी मुसलमानों से खटपट क्यों रहती है ? वे नास्तिक नहीं बनते और क्या ? और उनसे हमारा कोई जर जोरू का झगडा थोड़े न है ?
* सोचता हूँ हम लोग एक " बाल सखा " जैसा समूह बनायें | कुछ अपने अन्दर के बालपन को जियें यारो ! यह क्या कि हरदम बूढ़ों की तरह मुंह बनाये बैठे हैं ? क्यों मिसिर जी ? आप क्या कहते हो ? और उसका मूल मन्त्र हो - खेलत में को काको गुसैयाँ ? खूब झगड़ा करें , लड़ें झगड़ें | फिर साथ हो लें |
शुरू तो हो ही गया है मैम , लेकिन सवाल यह है कि म्याऊँ का ठौर कौन पकडे ? मैं तो वह बदमाश बालक हूँ जो रास्ता तो बताता है पर आगे चलने में इसकी नानी मरती हैं | आप आगे आइये | रति जी धर्मेन्द्र जी अनिल जी से भी पूछ लीजिये | अभी तो सबके नाम के आगे ' जी ' लिख दिया पर कुछ अच्छा नहीं लगा | आगे से ' रे / री ' कह कर लिखूँगा | अरे नहीं , लेकिन लिख तो सकूँगा , जी चाहा तो ?
हमारे सिद्दहार्थ नगर में उग्र नाथ जैसे महान विचारक कवी लेखक ओर बड़े बड़े ओहदों पर काम करने वाले हजारो महान इंसान रहते हैं...लेकिन सिर्फ गोंडा या लखनऊ जाने में कितनी तकलीफ होती है,इस पर कोई नहीं लिखता सिर्फ जात ओर धर्म की राजनीत होती है.यतायात का साधन बहुत ही ज़रोरी इस पर कोई क्यों ध्यान देता .....[ at fb group Siddharthnagar]
* लोग बताते हैं हम एक हज़ार साल गुलामी में रहते इसके आदी, अभ्यस्त हो चुके हैं | ज़ाहिर है, अब हम आज़ाद होना चाहेंगे |
* If politics is all about knowing the names of our Home Minister, Finance Minister, Prime Minister and The President or the names of our Nation and singing National Anthem, No sir , I don't know Politics.
* कवाँरे लोगों की अपेक्षा अधिक बेहतर इंसान होते हैं पेंट, पेट्टीकोट के ढीले इंसान |
* राहुल संकृत्यायन जी भी तो अंतिम समय में सशंकित / भयभीत थे कि अचेतन / कोम में कहीं मुँह से ईश्वर का नाम न निकल जाय ! मेरी राय में इसके लिए मनुष्य को बहुत ज्यादा लांछित करना उचित न होगा | उसका अपना संकल्प तो ठीक , लेकिन अवचेतन भी तो अपना काम करता है | यह भी तो देखिये कि हिन्दू नास्तिक यदि ईश्वर का नाम उचारेगा तो मुस्लिम/ ईसाई नास्तिक खुदा-अल्लाह/ गॉड का नाम लेगा | यह अंतर तो उसके सांस्कारिक बनावट के कारण हुआ ? इसी प्रकार एक दो पीढ़ियों के नास्तिक संस्कार में ढलकर वह बेहोशी में भगवान् को गाली भी तो दे सकता है ?
[HAIKU]
* कभी सिद्धांत
तो कभी व्यवहार
जीतता रहा |
* अभी हँसिए
हरदम हँसिए
और हँसिए |
* आपके हम
आजीवन आभारी
अंग्रेज़ लोगो !
* रास्ते तो सभी
रहने ही चाहिए
भले या बुरे |
* नग्न हो बैठो
थोड़ी देर के लिए
तब तो जानो !
* वे कहते हैं
तो कहने दीजिये
सुनिए मत |
* मेरे काम का
बड़ा सा हिस्सा तो है -
मनोरंजन |
* मूल कारण
ज्ञान का अभाव है
अंधा है स्वार्थ |
* कितनी प्यास
तन की चाहनाएँ
पूरी करोगे ?
* हम कपडे
यूँ नहीं पहनते
तन ढकते |
* ज़मीन पर
लिखा पढ़ा रखा है
सब कुछ तो !
* नाक कटाई
कर रहे मौलाना
हिंदुस्तान के |
* ज्ञान तो है ही
पालन नहीं करें
और बात है |
* आँखों से पानी
यूँ ही गिर रहा है
रोता नहीं मैं |
* काम करेगा
विज्ञान तो अपना
आप जो कहें |
* आएँगे लोग
आवश्यकतावश
जायेंगे लोग |
* पढ़ता कौन
अब इस कक्षा में ?
पढ़ाता कौन ?
* लाईफ में तो
यह भी है वह भी ,
किसको देखें ?
* कैसे मान लें
सब बराबर हैं
जब हैं नहीं ?
* पर्दा करना
बुरी बात नहीं है
तन ढकना |
* जीवित रहे
कुछ तो सच्चाई भी
झूठ के साथ |
* बुरा ज़रूर
थोड़ा तो लगता है
पर क्या कहें !
* तोता मैना की
कहानी पुरानी है
अनुपलब्ध |
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