उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
ज़िंदगी का इतना सारा वक़्त तो अपना शरीर, इसका रख रखाव ही खा जाता है । दूसरों की सेवा के लिए क्या और कितना समय और अवसर बचता ही है ?
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