मैं अब इस चिंता में नहीं हूँ कि हम कैसे एक हों ? मैं नास्तिक हूँ या आस्तिक, संगठित होने की चेष्टा में नहीं हूँ । नास्तिक संगठन की सोचूँगा तो आस्तिक संगठनों के बारे में सोचना पड़ेगा । उन पर नज़र डालूँ तो पाता हूँ कि वे एकताबद्ध होने में बहुत आगे निकल चुके हैं, कोई कम कोई ज़्यादा मजबूत । हम उनसे अपनी तुलना इस तराजू पर न कर पाएँगे । कर पाएँगे तो अकेले अकेले । अकेला आत्मविश्वासी नास्तिक किसी भी अकेले आध्यात्मिक आस्तिक से निपट सकता है।
इसलिए मेरा तो एजेंडा है नास्तिकों को ही नहीं, धार्मिकों को भी अकेला Individual human being, एक इकाई आदमी बनाने का । प्रत्येक नास्तिक प्रत्येक नास्तिक से/ हर आस्तिक हर आस्तिक से कैसे अलग हो, विशिष्ट और विलक्षण मनुष्य, स्वतंत्रता पूर्वक अपने जीवन का जिम्मेदार ! तभी नास्तिक सही नास्तिक हो सकेगा । तब नास्तिक आस्तिक में सामूहिक कोई भेद न होगा । क्योंकि तब तो आस्तिक भी सही आस्तिक होगा ? और हमारी कोई लड़ाई नहीं है सिवा इस उद्देश्य के कि आदमी नेक और नैतिक हो । ज़रूरी है कि हम यह काम उसी पर छोड़ दें । हम गुरुडम के शिकार न हों, यही बेहतर, कारगर रणनीति होगी ।
उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
मंगलवार, 31 मार्च 2020
आदमी अलग हो
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