सोमवार, 3 जून 2013

Nagrik Posts 3 June 2013

Prathak Batohi
गांधीवाद और मार्क्सवाद के समर्थको की बाते
गांधीजी और मार्क्स दोनों शिखर पुरुष रहे है, गांधीजी ने जमीनी लड़ाई लड़ी तो मार्क्स ने वैचारिक। गांधीजी के अनुयायी आज भी जमीनी लड़ाई लड़ते है तो मार्क्स के अनुयायी वैचारिक स्तर पर सक्रिय है। गांधी जी ने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ी तो उन्होंने अंग्रेजी हुकुमत की सरकारी नौकरी और सरकार के सहयोग को छोड़ने के लिए असहयोग आन्दोलन छेड़ा जिसको उनके अनुयायियों ने सफल कर दिया।
मार्क्स से अनुयायी सरकार को कोसते है उसे पूंजीवादी बताते है पर मजाल है की वे सरकारी अनुदान, शोध या सरकारी नौकरी छोड़ दें। यही गांधीवादियों की ताकत है गांधी का सत्य उन्हें जोड़ता है आंतरिक बल देता है। #
* आप ने मेरे मुँह की बात छीन ली | जानता, सोचता तो मैं भी ऐसा हूँ पर बहस - विवाद की ताकत के अभाव में ऐसे प्रसंग नहीं छेड़ता | मैं इनके समर्थन में कोई किताबी विश्लेष्ण या उद्धरण भी नहीं दे सकता | पर अनुभव से इसे सत्य मानता हूँ | लेकिन थोडा अनुभव अब पलट रहा है | वामपंथी वैचारिक ही सही, थोड़ी ईमानदारी में हैं, गांधीवादी छद्म हो रहे हैं | कुछ कुछ - -
मैं गांधीवादियों से तब से नाराज़ हूँ | इन्होने बाबरी मस्जिद बचने में कोई प्रभावी काम नही किया | लाठी डंडा खायी न धरना दिया | ये हिन्दू बने रहे | दुसरे इनका जोर अधिकतर शुद्धतावादी कामों - शराब बंदी वगैरह पर ज्यादा है | ये आम आदमी कम संत ज्यादा बनते हैं |
उन्होंने गांधी को विचार की तरह नहीं, वस्त्र के रूप में लिया | संभव है मेरा आरोप इसलिए कठोर हो क्योंकि इनसे उम्मीदें ज्यादा थीं | इतना सुविधा भोग तो गांधी ने नहीं सिखाया था जितना आज़ादी और सत्ता प्राप्ति के बाद इसमें ये लिप्त हो गए ? और मुझे तो लगता है इन्ही का प्रभाव कम्युनिस्टों पर भी पड़ा | वरना वे ऐसे तो न थे ! या फिर 180 डिग्री रिबाउंड होकर हिंसक गांधीवादी हो गए | सुना नहीं आपने - विनायक सेन को गांधीवादी कहा जाता है ?  

* लिखते रहिये , याद दिलाया कीजिये , स्मरण किया कीजिये | आपके भी काम आएगा | क्या हुआ जो हमें यह पहले से मालूम था | श्रीमन, आपातकाल में यह सब जायज़ होता है अपनी जान बचाने के लिए आप को मालूम होना चाहिए | इसे लाइक और इस पर टिपण्णी करने वालों को भी विदित होगा वाल्टेयर ने ब्रिटेन में कुद्ध युवकों से घिर जाने पर क्या कहा था और उसे उचित भी ठहराया था जान बचाने के लिए | उन्होंने कहा था - क्या यह मेरे लिए कम सजा है कि मैं फ़्रांस में पैदा हुआ | और युवकों ने उनकी जान बख्श दी थी | इसलिए ऐसे शगूफों से बचिए | इससे कुछ नहीं होता सिवा स्वयं आप कि नीयत पर सवालिया निशान लगने के |     [ Nazeer Malik]

* यह ठीक है कि पंडित जी छोटी जातियों पर शेर बने फिरते हैं | लेकिन आप, जो भले दलित हैं पर पढ़े लिखे ज्ञानी समझदार हैं, ऊँचे ऊँचे ओहदों पर हैं | आप तो उसकी असली हैसियत समझते हैं, कि बस हाथी के दाँत हैं ! वह आपके सामने तो भीगी बिल्ली है ? फिर तुम उस पर दया क्यों नहीं करते ? उसकी सांस्कारिक बेचारगी, जन्मना विवशता पर आप तो रहम करो ! उससे उस कदर घृणा तो मत करो जैसा अशिक्षित दलित करते हैं | वरना तुम्हारी शिक्षा और उनकी अशिक्षा में क्या अंतर ?    

* ब्राह्मणवाद पर निष्पक्ष अध्ययन और शोध की आवश्यकता है | यह तभी हो सकेगा जब भारत जातिवाद से  मुक्त हो | या फिर मैक्समुलर के नाती पोते करें |

* Rationalist , Atheist Societies में मुसलमानों का शत प्रतिशत आरक्षण है | एक भी सीट नहीं भरती |

* [ पिसा  लाल मिर्चा ]
- औरतों को यह सलाह दी गयी है कि अपनी आबरू की रक्षा के लिए अपने साथ पिसा लाल मिर्चे का पाउडर रखें |
= कमाल है , इतने महत्वपूर्ण और कीमती सामानों की हिफाज़त का लिए इतना सस्ता औज़ार ?

* सच तो जो है सो है | वह कहीं भागा नहीं जा रहा है | उसके पीछे हम क्यों पड़े हैं ? इस "जगन्मिथ्या" के बारे में क्यों न सोचें, अपना माथा लगायें, जीवन खपायें जो छिन पल खिसकता जा रहा है, हमारे हाथ से फिसलता ? कुछ तो झूठ के बारे में गौर करें !    

* जम्बूरियत में आस्था किसे है ?

* वहाँ से उजड़े, यहाँ बसे हम ,
यहाँ से उजड़े कहाँ बसेंगे ?

* [ कविता ]
एक ही किताब है
पढ़कर बन लो विद्वान
अट्ठारह होतीं तो
हम भी देखते !

* आखिर जंगल में पड़े हैं
करें तो क्या करें
बैठे बैठे ?
तो कुछ शिकार की
योजनायें, कुछ
शिकारी अभियान
आयोजित कर लेते हैं
मनोरंजन के लिए |
कौन हैं ये ?
कितने सिद्धांतवादी
कितने रक्त, लहू, शोणित,
खून - वादी ?

* कोई शक्ति है | और आप जानते हैं कि वह भगवान् है ? हास्यास्पद !
कोई हँस देगा तो बुरा मत मानियेगा |

* हमारी राजनीति बिल्कुल स्पष्ट है | न कोई वाद न कोई विवाद | न कोई पार्टी न कोई सिद्धांत | न धार्मिक साम्प्रदायिकता न धर्म निरपेक्षता | बस विशुद्ध भारतीयता | हम केवल समाज के जन्मना सबसे निचला तबका - - दलित वर्ग [SC / ST ] को वोट देते हैं | और उसमें भी महिलाओं को वरीयता देते हैं | हम राजनीति को लेकर किसी ऊहापोह या Tension में नहीं हैं |
[ सत्ता के अब वे ही अधिकारी, सच्चे पात्र हैं | वरना काबिलों की कहाँ कमी है ? वही तो अब तक राज कर रहे हैं !--niranjan sharma ]

* जब अल्लाह का नियम लागू ही है और लागू ही होना है तो फिर मानव निर्मित Blasphemy Law की ज़रुरत क्या है ? जब इंसान के बनाये कानून मानने ही नहीं हैं तो इंसान , फिर, ईशनिंदा कानून बनाये ही क्यों, संविधान संशोधन वगैरह करने की ज़हमत क्यों उठाये | कैसी उलटबासी है - आसमानी क़ानून को लागू करने, चलाने और बचाने के लिए इंसानी निजाम चाहिए ?

* [ तू तू मैं मैं ]
लड़ना है तो बराबरी से लड़ो | बराबर की हकदारी के साथ दबंगई से लड़ो | यह क्या हिन्न हिन्न, मिन्न मिन्न, मेंऊँ मेंऊँ करते हो ? कोई कहे यह मेरा तो तुम कहो - नहीं यह मेरा है, तुम्हारा नहीं है | झगडा कायदे से ऐसे ही होता है | वे कहें तुम पैर से पैदा हुए तो तुम पलटवार करो - तुम पैर तो क्या पैर की कानी उँगली से पैदा हुए | वे बोलें हम मुख से पैदा हुए तो तुम जवाब दो - हम ब्रह्मा के मुख के अन्दर के जीभ से पैदा हुए | इसमें विज्ञान का क्या हवाला देना ? वे अवैज्ञानिक बात करें तो तुम भी अज्ञानी बन्ने का ढोंग करो | तू तू मैं मैं इसी को कहते हैं, ऐसे ही किया जाता है |
[ Sandeep] हाँ , कुछ भी धड़ल्ले से कहिये | यह क्या कि हाय हाय , देखो इन्होने मेरे लिए क्या क्या लिख रखा है ? मेरी बड़ी बेईज्ज़ती है | नहीं , तुम्हारा लिखना तुम्हारे लिए सही है | तुम पैर / गुदा से पैदा हुए | हम तो प्रकृति कि सर्वश्रेष्ठ संरचना हैं | यदि श्रेष्ठ होना ब्राह्मणत्व है तो हैं न हम ब्राह्मण ! तुम हो नीच , जिसे वेड पढ़ने , ज्ञान प्राप्त का कोई हक नहीं है | तुमने पढ़ा ही नहीं है कुछ | तुम ज्ञानी नहीं हो | तुम्हारा छुआ पानी हम नहीं पियेंगे | etc . . etc .
Band kijiye rona dhona | yh kamzoron ka kaam hai |

* जाके पैर न फटी बिवाई |
बिलकुल ठीक बात है यह | लेकिन देखा यह जाता है कि अपनी फटी बिवाई वाले उपचार के लिए किसी फटी बिवाई वाले के पास नहीं, बल्कि डाक्टर के पास जाते हैं जो आम तौर पर जूते पहने होता है | उसकी बिवाई फटी नहीं होती |          

* मैं सचमुच बड़े कोफ़्त में हूँ | अपनी असफलता, अपनी नाकामी पर | प्रिय संपादक अखबार, सेक्युलर सेंटर , नागरिक धर्म समाज नहीं चले, उसकी बात नहीं है | बिलकुल पारिवारिक असंतुष्टि है | एक भाई को पढ़ाया - M Sc .MA .LLB  . सब सोलह दूनी आठ हो गया | वह ' श्री राम चन्द्र कृपाल भजमन ' करता सारे तीरथ भ्रमण कर रहा है | बेटी ने भले Ph D किया लेकिन वह भी एक औरत ही होकर रह गयी | बेटा है तो ठीक ठाक काम पर लगा लेकिन उसके अन्दर पता नहीं कैसी हवस आ गयी है जिसके कारण टेंसन रहता है | अब बचीं बेगम पत्नी जी महारानी, कुछ मत पूछिए | मैं सबसे विलग ही सुकून पा सकता हूँ | बस यही फेसबुक, ब्लॉग पर उल्टी सीधी कविता कहानियाँ लिखकर मन को रमाये रहता हूँ |  

* समता और स्वतंत्रता के सन्दर्भ में हर किसी के बारे में बात होनी चाहिए, बहस होनी चाहिए, आन्दोलन होने चाहिए, कानून बन्ने चाहिए, संविधान संशिधं होने चाहिए | दलितों, पिछड़ों,आदिवासियों, नक्सालियों, मुसलमानों, कश्मीरियों सब के सम्बन्ध में | बांगला देश, फिलिस्तीन, इस्राईल, जमाईका, श्रीलंका के बारे में भी | लेकिन हिन्दू कि कोई बात नहीं होनी चाहिए | यह साम्प्रदायिकता हो जायगी | क्योंकि हिन्दू एक अज्ञानी अन्धविश्वासी, जाहिल, सदैव से गुलाम कौम है | इसे न आज़ादी चाहिए, न स्वतंत्रता, न इसका कोई देश | इसे नागरिक जी भी गरियाते हैं कि यह नास्तिक क्यों नहीं है, मुसलमान भी लतियाते हैं कि यह काफिर क्यों है ? इसके इसके दलित बुद्धिजीवी अपमानित करते हैं तो उच्च मार्कंडेय काटजू भी अज्ञानी बताते हैं | ज़ाहिर है, इसी योग्य है यह | लेकिन क्या सचमुच इसे ऐसा ही माँ लिया जाय ? ये सारे तमाम समता और लोकतंत्र की बातें करने वाले लोग तो मूलतः इसी की उपज हैं | इस हिन्दू कौम के बारे में विख्यात है कि यह दूसरों के लिए कोमल और दयालु है लेकिन अपने स्वयं के लिए अत्यंत कठोर और निर्मम | इसलिए यही लोग हैं जो रात दिन समता - स्वतंत्रता कि चिंता में कालेजों विश्वविद्यालयों में चटक रंग की किताबें पढ़ते पढ़ाते हैं, भाषण देते, सेमीनार करते, किताबें लिखते हैं | और फिर बोतल बोतल पानी पी पी कर हिन्दू वांग्मय  को गालियाँ फरमाते हैं | जी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए विश्व में क्या अपने भारत में ही हिन्दू अधिकार की कोई बात, कोई समीक्षा |
लेकिन कठिनाई यह है कि इसे हिन्द महासागर में भी तो नहीं धकेल जा सकता, क्योंकि वह भी कुछ हिन्दू नाम लिए हुए है | और अरब महासागर इसे स्वीकार नहीं करेगा, बल्कि इसे डुबो नहीं पायेगा, ऐसा इतिहास ने सिद्ध कर दिया कर दिया है | हाँ , प्रशांत महासागर में यह अवश्य स्थान ग्रहण कर सकता है, शान्तिपूर्वक ! तो यही तो कर रहा है वह ? उसी स्थिति में है वह |          

* जब कोई मूर्ख पिता भी अपना वश चलते अपने पुत्रों को लड़ने नहीं देता, तो यदि वास्तव में कोई खुदा होता  - और सर्वशक्तिमान खुदा होता - तो वह अपनी संतान को कदाचित अपने नाम पर कुत्तों कि तरह न लड़ाता | यदि खुदा शक्ति और बुद्धि वाला होता तो भी वह एक ही धर्म सारे संसार के लिए बनाता - सारे संसार कि एक ही बोली एक ही संस्कृति होती - जिससे इन झगड़ों का बीज ही न पड़ता | जो खुदा  झगड़ों के बीज बोता हो, वह वास्तव में कुछ भी हो तो विषवत त्याज्य ही है |
[ राधा मोहन गोकुल जी ]
प्रचंड जी, प्रचंड टीकाकार होना अच्छी बात हैं, लेकिन इसे कोई आप का कुतर्क ही कह सकता है , Because you  speak without a second thought . यह अंश राधा मोहन गोकुल जी के लेख से उद्धृत है, उन्होंने जैसा लिखा, जो शब्द इस्तेमाल किये | शायद उनके लेखे खुदा और ईश्वर में भेद न था | लेकिन जब आपको इतनी आपत्ति हो गयी तो मुसलमानों को तो और नागवार गुज़रना चाहिए | ऐसी रुकावटों से मिशन को बाधा पहुँचती है | I am very sorry for your attitude |

* 6 लाख का मुआवजा तो मिलना ही चाहिए | खालिद मुजाहिद पर आखिर कोई मामूली नहीं, आतंक का आरोप था ! आतंक अंजाम देकर अगर आत्म घात में मरता तब तो उसे और ज्यादा भरपाई देनी पड़ती |

* दलितों पिछड़ों मुसलमानों के चक्कर में कोई किन्नरों कि बात नहीं करता | कोई NRI को धन्यवाद नहीं देता जो भारत का भार कुछ कम करने के लिए भारत से भाग गए |

* हिंसा से केवल " हक " ही नहीं,  " ना- हक " भी प्राप्त किया जा सकता है | इसीलिए इसे अमूमन लोग न्याय संगत नहीं मानते | इसमें तर्क - विचार, उचित अनुचित का नहीं लाठी का जोर होता है |

* भारत को साधारण जीवन जीने वाले सामान्य मनुष्यों की आवश्यकता है | जो जनता के बीच के हों, जनता के बीच में हों | हमें गाँधी- मार्क्स की ज़रुरत नहीं जो अति पर चले गए - अतिमानव बन गए | सभी ऐसा करें यह ज़रूरी नहीं | भले परिवर्तन धीमी गति से हो, पर वह स्थायी होगी | क्योंकि बनावटी नहीं होगी |

* वह साहित्यकार ही क्या जिसके अन्दर अहंकार न हो ?

* चिन्तक वह जो अपने खिलाफ भी सोचने का माद्दा रखे |
वही बड़ा विचारक होगा, जो सबकी ही नहीं अपनी भी बातों की काट छाँट, शल्य क्रिया कर सकेगा |

* अपनी बेटी के विवाह के लिए दस बीस रूपये घूस पात लेकर बचने वाला घूसखोर, भ्रष्ट और बेईमान | इधर ये नेता देश के नियामक ? फिर इनके पुत्र - पुत्री जोड़े भी कैसे होते हैं जो अपने लिए ऐसी धूम धड़ाके वाली शादियाँ स्वीकार कर लेते हैं ? क्या इन युवाओं से कोई उम्मीद है ? सबको कटघरे में खड़ा करना चाहिए | उन बारातियों और शादी में सम्मिलित होने वालों मेहमानों को भी | वे भी अपराधी हैं | अन्ना अरविन्द आन्दोलन का ध्यान इस सामाजिक पहलु पर बिल्कुल नहीं है | इसलिए वह असफल हो रहा है |

* राधा मोहन गोकुल जी लिखते हैं :--
जहाँ शारीरिक हानि पहुँचाने के लिए अनेक नशेबाजी और दुराचार के अड्डे होते हैं, वहाँ महुष्य को मानसिक हानि पहुँचाने और निकम्मा बनाने के लिए धार्मिक अड्डे - गिरजे, मंदिर और मस्जिदें भी हैं | यह सब काम बाकायदा शासन और शासक मंडल के हित के लिए उनके दलालों अर्थात पुरोहितों द्वारा, सरकार की छत्र छाया में बसने वाले गरीबों को लूटने वाले अमीरों की मदद से हुआ करते हैं | मूर्ख ग्रामीणों  के दिमाग में जहाँ एक बार कोई बेवकूफी घर कर गयी फिर मुश्किल से निकलती है | इन बेचारों में ज्ञान नहीं, विवेक नहीं, समझ नहीं, विद्या नहीं, खाने को अन्न और पहनने को वस्त्र तक इनके पास नहीं | जो चाहे इन्हें पंडित, मौलवी, पादरी बनकर ठग सकता है | पीढ़ियों से इन बेचारों का यही हाल है | सिखाने वाले धनिक, पुरोहित और राज कर्मचारियों में से कोई भी ईश्वर को नहीं मानता, पर हर एक ईश्वर को मानने का ढोंग रचता है | मैं पूछता हूँ कौन पंडित, मौलवी, पादरी, राजा, रईस और सेठ - साहूकार ऐसा है जो झूठ नहीं बोलता, फरेब नहीं करता और तमाम दुनिया की बदमाशियों से पाक- साफ़ है ? इस हालत में कोई चतुर मनुष्य यह कैसे मान सकता है कि लोग ईश्वर की हस्ती के कायल हैं, परमात्मा की सत्ता को स्वीकार करते हैं ? इसलिए ईश्वर कोई चीज़ नहीं, सिवा इसके कि गरीबों को झागने के लिए ठगों का एक जाल है | यह जाल जितनी जल्दी तोड़ दिया जाय उतना ही अच्छा |
Frnds , यह मेरी फितरत है, मेरा अध्यात्म, मेरा पूजा पाठ | मैं नास्तिकता का प्रचार हर विधि से करता हूँ | इसी में मानव कल्याण समझता हूँ | गलत हो सकता हूँ | लेकिन जिन्हें यह उचित लगे वे अपने ही तरीकों से सहयोग करें | जिन्हें न अच्छा लगे, वे रहने दें | लेकिन विवाद न करें | तर्क वैज्ञानिक प्रक्रिया में होता है | आस्था जैसे अविज्ञान में यह लागू नहीं होता |          

* If you people don't mind I, personally, have made up my mind to reject the concept of martyrdom for the theoretical - utopian causes of Marx or Islam or anyone. { May be I am exaggerating }, but I go to the extent of well known luminaries and icons like Bhagat Singh etc . Because the negative outcome of their sacrifice is visible . Why to give up life, except for saving lives from dangers or in cases of accidents ? Saving life is foremost philosophy. No wonder if subaltern historians denounce the 1857 struggle and rebels like Jhansi ki Rani and Maharana Pratap their fight for personal states . The thought of martyrdom entails the idea to finish others lives . As Batohi put examples, they are also, enough and more than, martyres who dedicate there lives honestly, tirelessly to serve the humanity, while saving their own lives as well .                  

* गांधी की अहिंसा को सफल बनाने के लिए अंग्रेजों जैसा राज्य भी चाहिए | भारतीय लोकतंत्र में वह सफल नहीं होते |

* प्रेम विवाह करने में मुझे एक दोष का अनुमान हो रहा है | प्रेम विवाह कर लो तो फिर कोई अन्य पुरुष या स्त्री " नज़र भर कर " देखती भी नहीं | शायद हिम्मत नहीं पड़ती | एक खूंटे से बंध कर रहना कुछ कुछ मजबूरी जैसी हो जाती है |          

* जनसँख्या में बेतहाशा वृद्धि का एक बड़ा कारण मेरे संज्ञान में आया है | बहुत सारे पति -पत्नियों के बीच गहरे अवैध सम्बन्ध हैं |    

[ कविता ]  " तो हम क्या करें ? "
देखो ईश्वर अल्लाह भगवान् गॉड ने
यह सृष्टि बनायीं, दुनिया रची,
सूरज चाँद सितारे नदियाँ और पहाड़ बनाये |

-- तो हम क्या करें ?

उसने सुंदर सुंदर घाटियाँ, मनोरम जंगलात,

पेड़ पौधे, खुशबूदार फूल उगाये |
-- तो हम क्या करें ?

उसने मनुष्य, आदमी औरतें और बच्चे दिए
बादल, हवा, पानी बख्शा |

-- तो हम क्या करें ?      

" तुम भी कुछ तो करो |"

-- तो हम यह करें कि जो सुंदर, खुशबूदार फूल
उसने उगाये, उन्हें तोड़कर
ईश्वर के चरणों में अर्पित कर बर्बाद कर दें |
और तमाम कमरे बना कर
ताज़ा हवा, सुबह की सबा आने से रोक दें |
आदमी का दम घित जाए |      [ कविता ]  " तो हम क्या करें ? "
देखो ईश्वर अल्लाह भगवान् गॉड ने
यह सृष्टि बनायीं, दुनिया रची,
सूरज चाँद सितारे नदियाँ और पहाड़ बनाये |
-- तो हम क्या करें ?
उसने सुंदर सुंदर घाटियाँ, मनोरम जंगलात,
पेड़ पौधे, खुशबूदार फूल उगाये |
-- तो हम क्या करें ?
उसने मनुष्य, आदमी औरतें और बच्चे दिए
बादल, हवा, पानी बख्शा |
-- तो हम क्या करें ?      
" तुम भी कुछ तो करो |"
-- तो हम यह करें कि जो सुंदर, खुशबूदार फूल
उसने उगाये, उन्हें तोड़कर
ईश्वर के चरणों में अर्पित कर बर्बाद कर दें |
और तमाम कमरे बना कर
ताज़ा हवा, सुबह की सबा आने से रोक दें |
आदमी का दम घुट जाए |
और शांत - प्रशांत वादियों को अजानों,
भजन कीर्तन, घंटा मजीरा की आवाजों से  
झनझना दें |
कहीं कोई शान्ति न रहने पाए
हम यह करें |
#  #  

[ कविता ]  कृपण ( कंजूस )  अथवा - तुम्हारे बिना
* धौंस मत दिखाओ मुझे
चुनौती मत दो
मेरी सहनशक्ति को ,
रह सकता हूँ भली भाँति
मैं तुम्हारे बिना, और
तुम्हारे लिए एक बूँद भी
आँसू खर्च नहीं करूँगा |
क्या समझते हो मुझे ?
देखो मैंने रेडियो, टीवी, फ्रिज
एसी, कूलर, पंखा, फोन, मोबाईल
के बगैर जीवन गुजारी या नहीं ?
ज़रा भी जेब ढीली नहीं की
मैंने इनके लिए ,      
यहाँ तक कि गैस और बिजली का
कनेक्शन भी नहीं है मेरे पास
लिया ही नहीं मैंने |
और तो और, एक रूपये की कंघी
दो रूपये का शीशा
मैं कभी शीशा नहीं देखता
बालों में कंघी नहीं करता |
अब मैं यह नहीं कहूँगा कि
तुम्हारे बिना ये सब मुझे
बिल्कुल अच्छे नहीं लगे,
भाते ही नहीं, सुहाते नहीं हैं |
बल्कि तुम यह जानो कि
यह मेरी फितरत है ,
बहुत कंजूस हूँ मैं दरअसल
मै कलकुलेटर के बिना ही
दुकान चला रहा हूँ
और ज़िन्दगी के
गुणा-भाग के लिए तो
कोई तराजू ही नहीं रखी मैंने    
फिर कोई दार्शनिक अर्थ
मत लगाना इसका
मेरी आदत ही ऐसी है
बहुत कृपण हूँ मैं, तभी तो
तुम्हारे बगैर ही ज़िन्दगी काटना
संभव हुआ मेरे लिए
और मैंने कोई आँसू अपना
खर्च नहीं होने दिया ! !
#  #


* [ गीत प्रयास ]
1 - उन्ही से उन पर राज कराओ ,
वीर कहाओ ,
पंचायती राज बनाओ
अ - राज चलाओ |

2 - मैं भी बहुत ' लोग ' होते हैं ,
हम भी एक वचन होता है |

3 - [ जीवन गीत ]
हरदम भयाक्रांत रहना भी कमजोरी है ,
मैं रहता हूँ |
- - - - - - - - --
- - - - - |

[ कविता ]
जो बहुत " पूस पूस " करता है ,
वह तो माँ होती है या चापलूस होता है |
(पूस पूस = मनुहार करना )    

* छोटे छोटे रोल ही निभाने हैं हमें | बड़ी भूमिका निभाने की स्थिति में नहीं हैं हम |


[ Haiku + Taanka ]

1 - पैसा उद्देश्य
न हो तो श्रीमान हैं
आप महान |

2 - आप के पास
डिग्री के अतिरिक्त
कुछ और क्या ?

3 - रम गए न
इस जग में तुम ?
मैंने कहा था |

4 - छोड़ा प्रयास
कोई आशा नहीं है
बदलाव की |

5 - अब ठीक है
लखनौ का मौसम
अब आ जाओ |

6 - ठीक नहीं है
मेरे स्वास्थ्य का हाल
तुम आ जाओ |

7 - इस समय
मैं पूरे फार्म में हूँ
कुछ भी लिखूँ |

8 - पैसा मिलेगा
तो नाच बुलबुल
सैय्याद धुन |

9 - असहमति
कोई हो या नहीं हो  
दर्ज कराओ |

* I am no great man
Neither I am so a little man
I am just a man .

* पता है कुछ
कितना पानी बहा
सतलुज में ?

* हम ठहरे
साधारण आदमी ( मनई )
जब कि आप - - ?

* पैसा जो हो तो
गर्मियों में मैं आम
रोजाना खाऊँ |

* मोहन होना
दास करम चंद
गांधी हो जाना
मजाक नहीं होता
आसान काम नहीं |

* आंबेडकर
होना ही कहाँ कोई
आसान काम ?

* तेरे प्रश्न का
कोई जवाब नहीं
मैं निरुत्तर |

* क्या तो खाकर
मुकाबला करोगे
कुछ पी आओ |

* बहुत अच्छा    
बहुत अच्छा गाया
और सुनाओ |

* देखता रहा
जग की कार्रवाई
आँखें फटीं सी |

* हया बचाना
बिना बेहयाई के
भारी था भाई |

* चलिए अब
संबंध तो हो गया
निभा ले जाएँ |

* सामंत न हों
तो क्या शिष्ट भी न हों
धनी न हों तो ?

* चलिए करें
सबसे प्रेम - प्यार
तो फिर घृणा ?

* भाषा सरल
न होती कोई, बोली
कोई कठिन |

* रखना होगा
सीमित प्रतिबन्ध
बस सीमित |

* पोल माफिया
कह सकते हैं क्या
नेता जनों को ?

* अभी जारी है
प्यार का सिलसिला
जारी रहेगा |

* अरे ओ सांभा
कितने आदमी थे
तीन के तीनों ?

* सारे मनुष्य
मनुष्य ही मनुष्य
कैसे मनुष्य ?

* सारे तो धर्म
मनुष्य बनाते हैं
राक्षस कौन ?

* हाथ बढ़ाना
पर उससे आगे
मत बढ़ना |

* रोज़ निर्माण
लगातार निर्माण
होता हमारा |

* बहुत झेला
कितना झेल पाता
मैं टूट गया |

* तजुर्बे होते
सफ़र के दौरान
प्रिय अप्रिय |

* पैसा मिले तो
बंदरों की तरह
नाचा करेंगे |

* औरतें बस
औरतें रह गयीं
कैसे बढ़ेंगी ?

* मैं हूँ विरल
सच कहता हूँ मैं
झूठ नहीं है ,
तुम भी तो अनूठे हो
तो मिलन कैसे हो ?

* एक किताब
पढ़कर विद्वान
अट्ठारह हो
तब पढ़ो तो जानें
हम ज्ञानी तुमको !

* होती हैं होतीं
सरकारें भी व्यक्ति,
व्यक्तिवाचक
और फिर व्यक्ति भी
होता है सर्वनाम  

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