बुधवार, 26 जून 2013

नागरिक लेखन 24 - 26 June 2013

* चलो मेरे देवता शिव जी महाराज , कहीं और चलें इस दुनिया को छोड़ | यहाँ तो भांग - धतूरा कौन कहे, सार्वजानिक स्थलों पर सिगरेट तक नहीं पीने दिया जाता | और हमारे पास कोई व्यक्तिगत स्थान है नहीं !

* नारी मुक्ति आन्दोलन का मतलब है - औरतों और मर्दों के बीच झगडा फ़ैलाने का कार्यक्रम ?

* कपडे यदि साफ़ सुथरे और बेदाग़ हों, तो भी उन्हें बिना प्रेस [इस्तरी ] कराये पहनने से इज्ज़त पर कुछ दाग लग जाता है ? ?

* Lesbian Marriage -
Gay शादियाँ तो समाचारों में आ गयी हैं |कुछ देशों में यह वैध भी हो गया है | लेकिन Lesbian शादियों का समाचार अभी कहीं से नहीं आया | संभव है मेरे ही संज्ञान में न आया हो !

* अल्पसंख्यकों के [वोट खिसकने के ] डर से रूह कांपती है इनकी | चले हैं सेक्युलर बनने !  

* सेक्युलर का मतलब होता है -
" देवता ज़मीन पर  "
वरना इतनी महानता साधारण मनुष्यों में तो आने से रही !

1 - बिना पार्टी ( राजनीति )
[ Without Party]
2 - निंदक दल
[ Reprover Party ]

* If you have anything about Atheism anywhere, anyway , please enlighten us must .

* शारीरिक अस्वस्थता के प्रति मैं अधिक चिंतित नहीं हूँ | चिंता इस बात की है कि यह कहीं मानसिक अस्वस्थता में न तब्दील हो जाये ?

* हिन्दू हो , चलेगा |
मोदी से भी कट्टर हो , चलेगा |
लेकिन मोदी ?
नहीं चलेंगे  |
इनकी तो आज़माइश हो चुकी है |

* केदारनाथ मंदिर को इस त्रासदी के आरोप में स्थाई रूप से बंद ही क्यों न कर दिया जाय ? ठीक है यह कहर उन्होंने नहीं ढाया , लेकिन उन्होंने इस दुर्घटना  को बचाया या रोका भी तो नहीं ?

some notes -
* पास ही तो था तुम्हारा दर [ घर ] , तुम्हारा वास ,
फेकू कभी काबा गया , कभी अमरनाथ |
[ काबा तो कभी अमरनाथ जाते तुम्हारे दास ]

* जिसको देखना है वह तरोई की एक बेल, छुई मुई के एक पौधे से ईश्वर को जान सकते हैं | नहीं देखना , तो क्या काबा क्या अमरनाथ ?

* आस्था - विश्वास के मामले में आत्मनिर्भर बने तो कई समस्याएं हल हो जाती हैं | मुल्ला पंडित पर भरोसा करो तो वे हमारी बुद्धि को बिगाड़ देते हैं , मन को बरगला लेते हैं | हमारे विचार   एवं विश्वास तब हमारे नहीं रह जाते |

* न वे ईश्वर का कुछ बिगाड़ पाएंगे उसे गाली देकर | न हम ईश्वर का कुछ बना पाएंगे उनसे लड़ -झगड़ कर , यदि ईश्वर को सर्व नहीं , कुछ भी शक्तिमान मानते हो तो |
ईश्वर को लेकर कोई कैसा भी मज़ाक करे या चुटकुला बनाये , उनका बिल्कुल बुरा न मानें | ईश्वर यदि है तो वह आपका ही नहीं उनका भी है | या हमारी तरह यह समझिये कि उसका कोई वास्तविक अस्तित्व नहीं है |

* मान लीजिये हम ईश्वर की प्रार्थना भी करें अपने कुछ काम बनाने के लिए , तो हम इतने छोटे आदमी हैं कि वह हमारी बात सुनेगा ही नहीं / सुन ही नहीं पायेगा | करोडपतियों के चढ़ावे के बदले उनका काम करते करते ही उसका इतना समय और शक्ति लग जाता है कि हमारा नम्बर आते आते वह थक कर चूर हो जाता है या तब तक उसका फरियादी काउन्टर बंद हो जाता है | ऐसा रोज़ ही होता है , ऐसा रोज़ ही होगा | यह पक्का जानिए | इसलिए कोई फायदा नहीं है हमारे आप के लिए उसका पूजा पाठ करने से | वैसे मन का भ्रम मिटाने के लिए चाहें तो करके देख लें | कुछ होगा नहीं | होगा तो कुछ अपने ही प्रयासों से दोस्तों और सभा समाजों की मदद से या कुछ संयोग से | अब संयोग को कहीं ईश्वर की कृपा न समझ लीजियेगा |

* [ कविता ]
मुझसे
प्रार्थना करने के लिए
कहा गया था ,
लेकिन मैं तो
प्रयास करने लगा !
#  #
[ थक गया | अभी बस इतना ]    

* अपने आस्थागत रिवाज़ पर सब टिकें | टीका न लगवाने से सेक्युलरिज्म की कोई हानि नहीं है | मैं मुसलमान नहीं, नास्तिक हूँ और मुझे खुद पसंद नहीं यह | साम्बंधिक अवसरों पर कहीं साली - सरहज को खुश करने के लिए लगवा भी लिया तो मैं उसे रुमाल से फ़ौरन पोंछ लेता हूँ | उमर के लिए ऐसा दिखावा करना कोई मजबूरी नहीं है | तो इसमें सेकुलरवाद कहाँ से आ गया | आप दुम हिलाते पगड़ी, तलवार, सरोपा, तो कभी इफ्तार पार्टी करते हैं तो टोपी क्यों नही पह्नेनेगे ? और अपनी इस कमजोरी को अपना सेकुलर होना मान लें तो यह आपकी गलतफहमी है | इसमें किसी का क्या दोष | यद्यपि टोपी सांस्कृतिक मसला था , टीका धार्मिक है | अब कल को आप खतना करा लें , फिर कहें की उमर ने जनेऊ क्यों नहीं पहनी ?  ? ? - - -
 उलटे भाजपा के सारे नेता खुले आम सार्वजानिक रूप से बड़ा बड़ा टीका { अरे नहीं तिलक }लगाये घुमते हैं | तो विलोम्तः क्यों न मान लिया जाय कि वे सेकुलर नहीं हैं | टीका हिन्दू का सांस्कृतिक वेश नहीं है, धार्मिकता के दिखावे का प्रतीक है | यह ब्राह्मणों का टोटका है , जिसने पुरे देश को तबाह कर रखा है अपने अन्धविश्वासी व्यापर से | किसी दलित - किसान - मजदूर को कभी टीका लगाये देखा क्या ?

* यह भला मानववाद क्या होता है ? मनमानो वाद कहते तो हम भी समझते !

* मानव को मानो | यही है मानववाद |

* भारत में दलित आन्दोलन ही " मनु ,- मार्क्स और मोहम्मद " की खबर लेने में समर्थ है |"

* सच पूछिए तो मुसलमान होना ही आस्तिक होना है | - मुसल्लम [पूर्ण ] ईमान [ ईश्वर पर विश्वास ] हो जिसका | और कोई क्या खाकर आस्तिक होगा ? कभी इधर , कभी उधर | जिस लोटे का कोई पेंदी न हो वह हिन्दू धर्म है | निश्चय ही वह बर्तनों का भण्डार है | पर यह t आस्तिकता नहीं ? इसीलिये नेता लोग भी कहते हैं हिन्दू कोई धर्म नहीं, मज़हब नहीं, जीवन शैली है | इसके तमाम दर्शन नास्तिक हैं | फिर भी यह आस्तिक होने का छद्म करता है जो इससे करते नहीं बनता और बार बार इस्लाम से मात कहता है | नास्तिकता, जो इसकी अनमोल पूंजी है और जिसके बल पर बहरह विश्व विजेता  हो सकता था, उसकी यह खिल्ली उडाता है | तो इसे कमज़ोर तो होना ही है क्योंकि आस्था के मामले में यह इस्लाम का मुकाबला नहीं कर सकता |  

* प्रबुद्ध साथियों ! मुझे नहीं पता किसने लाशों पर ठिठोली की, लेकिन यह भी जानिए कि उन पर आंसू बहाना भी बस तात्कालिक ही है | उससे कुछ हासिल नही होता | सेवा कार्य हर इन्दिविदुअल्स के लिए संभव नहीं होता, सीमा पर लड़ने जाने की तरह | यह जवानों और सरकारी / गैरसरकारी संस्थाओं के ही वश का होता है | व्यक्ति के वश का जो होता है वह तो उन्होंने १००० रु प्रति बोतल पानी बेच कर कर दिखाया |क्या आप समझते हैं हमें शर्म नहीं आयी / आणि चाहिए अपने देशभक्ति के नारों और दिखावे पर ? तो ऐसे मौको पर शोक के साथ क्रोध भी आता है कई कारणों से | और यही अवसर होता हिया जब दीर्घकालिक उपाय सोचे सुझाये जाते हैं | उसमे पर्यावरण की रक्षा भी शामिल है, और धर्म तथा ईश्वर के प्रति अंधविश्वास निर्मूलन भी | क्या इसे भी कोई लाशों पर ठिठोली कहेगा ?

* कराहता हूँ
मगर अकेले में
कोई न सुने |

* अध्यात्म है
तो वह आप  का है
पराया नहीं |

* अपनी  मिट्टी
प्यारी पर बर्तन
चीनी मिट्टी के |

* वह गुज़रा
इतने करीब से
तूफ़ान आया |

* अब  पाता  हूँ
कितना छोटा था मैं
अभी कल ही !

* एक दुःख हो
तो आपको बताऊँ
क्या क्या बताऊँ ?

* अवसर की
ताक में तो रहिये
कूद जाइये |

* नया नौ दिन
पुराना सब दिन
कहावत है |

* हम सब तो
कीड़े हैं, मकोड़े हैं
जी सर आप ?

* कुछ तो कमी
रक्त के प्रवाह में
ज़रूर रही |

* जिद की जाये
क्यों टोपी लगाने की ?
टीका देने की ?

* अभी तो और  
बुरे दिन आयेंगे
अभी क्या देखा !

* जैसे वे  वाद
वैसे, उसी तरह
है राष्ट्रवाद |

* तमाम वाद !
उसी तरह एक
है  राष्ट्रवाद |

* सारी किताबें
किस्से कहानियाँ हैं
असरदार |

* कुछ बदलो
ज़माने के हिसाब
दुनिया देखो |

* मुझे आज़ादी
तुझे गुलामी मिले
सब चाहते |

* सारी दुनिया
लेफ्ट के गिरफ्त में
यदि आ जाये ?

* भरा पड़ा है
हिंसा का इतिहास
हमारे हाथ |

* दुःख ही दुःख
चारो और समाया
पीड़ा ही पीड़ा |

* अब क्या कहूँ
आप की बात पर
सुन तो लिया |

* न ज्यादा दूरी
किसी से भी हमारी
न नजदीकी |

[ All posted by Divya Ranjan Pathak]
सांस्कृतिक संध्या आयोजित
लखनऊ से पधारे साहित्यकार उग्रनाथ नागरिक के सम्मान में हुआ आयोजन
शाहजहाँपुर। बाल विहार खलीलशर्की में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन लखनऊ से
पधारे साहित्यिक क्षेत्र के पत्रकारिता से जुड़े उग्रनाथ नागरिक के
सम्मान में किया गया।
        श्री नागरिक 2004 में सिंचाई विभाग के सहायक अभियन्ता पद से रिटायर होने
के बाद साहित्य क्षेत्र में हैं। वह बस्ती के निवासी हैं। उनकी मूल विधा
डायरी लेखन,लघु कवितास चिंतन, सरल व्यवहार है। उनके विचार समतावादी
मानवतावादी हैं। 1984 से मासिक पत्रिका का प्रकाशन चल रहा है। फ़ेसबुक पर
उनके चाहने वाले काफ़ी संख्या में हैं। उग्रनाथ ने अपनी रचनाएं सुना कर
उपस्थित लोगों को भावविभोर कर दिया। ओम् प्रकाश अडिग, चन्द्र प्रकाश
वाजपेयी, प्रशान्त अग्निहोत्री, सत्य प्रकाश मिश्र, बृजेश सिंह, सुशील
चन्द्र श्रीवास्तव, कीर्ति सिंह, अखिलेश साहनी, शशि भूषण जौहरी,
राजेन्द्र यादव, राम मोहन सक्सेना आदि मौजूद रहे। आभार रीता जौहरी  ने
जताया। (स्वतन्त्र भारत मंगलवार 18 जून 2013, पृ0 4.)

काव्य गोष्ठी में पढ़ी रचनाएं
शाहजहाँपुर। बाल विहार में काव्य गोष्ठी और सम्मान समारोह का आयोजन किया
गया। कार्यक्रम में लखनऊ से आए साहित्यकार उग्रनाथ नागरिक का सम्मान किया
गया।  प्रकाश जनकल्याण समिति के अध्यक्ष चन्द्र प्रकाश वाजपेयी ने
साहित्यकार का परिचय प्रस्तुत किया।
उन्होने बताया कि उग्रनाथ 2004 में सरकारी नौकरी से सेवा निवृत्त होने के
बाद से पूर्णकालिक रूपसे साहित्य सेवा कर रहे हैं। मूल रूप से बस्ती के
रहने वाले उग्रनाथ की मूल विधा डायरी लेखन, लघु कविता आदि रही हैं। इस
मौके पर उग्रनाथ ने अपनी चुनिन्दा रचनाएं सुनाईं। इसके साथ ही वरिष्ठ कवि
ओम् प्रकाश अडिग, बृजेश सिंह, डॉ0 प्रशान्त अग्निहोत्री, सुशील चन्द्र
आदि ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। आभार शशि भूषण जौहरी ने व्यक्त
किया। (हिन्दुस्तान बरेली बुधवार 19 जून 2013, पृ0 7)।

साहित्यकार उग्रनाथ को किया सम्मानित
शाहजहाँपुर। नगर के साहित्यकार  ने लखनऊ के साहित्यकार उग्रनाथ नागरिक के
सम्मान में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस मौके पर अतिथि कवि की
रचनाओं का पाठ भी किया गया। मोहल्ला खलीलशर्की में हुई साहित्यिक संध्या
में कार्यक्रम में चन्द्र प्रकाश वाजपेयी ने उग्रनाथ नागरिक का परिचय
दिया। इसके पश्चात् वरिष्ठ कवि ओम् प्रकाश अडिग, डॉ0 प्रशान्त
अग्निहोत्री, डॉ0 सत्य प्रकाश मिश्र, बृजेश सिंह,  सुशील चन्द्र
श्रीवास्तव, कीर्ति सिंह, अखिलेश साहनी, राजन यादव, शशि भूषण जौहरी, राम
मोहन सक्सेना आदि ने उग्रनाथ के अभिनन्दन  पर हर्ष जताया। (अमर उजाला,
बरेली मंगलवार 18 जून जून 2013, पृ0 7)।

सांस्कृतिक संध्या का आयोजन
शाहजहाँपुर। बाल विहार खलीलशर्की में लखनऊ से पधारे उग्रनाथ के सम्मान
में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। बस्ती जिले के मूल निवासी व
सिंचाई विभाग के रिटायर्ड सहायक अभियन्ता उग्रनाथ की मूल विधा डायरी लेखन
व चुटकुली लघु कविता आदि के लिए प्रसिद्ध हैं। ओम् प्रकाश अडिग, चन्द्र
प्रकाश वाजपेयी, डॉ0 प्रशान्त अग्निहोत्री, डॉ0 सत्य प्रकाश मिश्र,
ब्रजेश सिंह व सुशील चन्द्र ने कविता पाठ किया। (दैनिक जागरण, बरेली
बुधवार 19 जून 2013, पृ0 6)।
[ All posted by Divya Ranjan Pathak]

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें