शुक्रवार, 28 जून 2013

नागरिक लेखन 27 - 28 जून 2013

* दलितों के लिए मैं चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में भी आरक्षण का पूर्ण समर्थन करता हूँ | बशर्ते उन्हें उनकी खुद की पत्नी और बच्चों एवं परिवार के सदस्यों का इलाज न करने दिया जाय |

* अरे  वह सब मैंने कहा था
की तुम्हारे बिना जी नहीं पाउँगा ,
तुम्हारे बगैर मर जाऊंगा ,
लकिन वह मानी ही नहीं |
तभी तो वह सुखी है
और मै भी आनंद से !

* लेकिन यदि वह "राज्य" है [राज धर्म की धरना के साथ] तो वह धर्म या पंथों से निरपेक्ष रह ही नहीं सकता | वह [यहाँ नामशः] या तो हिन्दू की और झुकेगा या मुसलमान की तरफ | इसलिए यहाँ राज्य सेक्युलर नहीं है | जो दल मुस्लिम वोटों के मुन्तजिर हैं वे अपने को सेक्युलर [ इसीलिये छद्म ] कहते हुए भी साम्प्रदायिक हैं | और जो हिन्दू के पक्ष में खड़े हैं वे तो साम्प्रदायिक कहे ही जा रहे हैं | विषय थोडा विषद है और मेरा विमर्श किंचित भिन्न, इसलिए भारत में इस या यूँ कहें विस्तृत न्याय की व्यावहारिकता पर कुछ आगे लिखूंगा | शायद आज ही कहीं |
वह लेख ज़रा लम्बा है | इसलिए एक पंक्ति में सारांशतः उसका उपसंहार बता देना अपन फ़र्ज़ समझता हूँ |                                                          दुनिया में secularism वैसी चलेगी कि अमेरिका ब्रिटेन में हिन्दू मुस्लिम सिख अपनी दादागिरी न करें, अरब देशों में हिन्दू ईसाई अपना धर्म न फैलाएं और हिंदुस्तान को कोई ईसाई - दारुल इस्लाम बनाने की कोशिश न करे | इस अनुशासन से कुछ लोग निबद्ध नहीं होना चाहते इसलिए विश्व में अशांति है और secularism का क्षरण | यूरोप का secularism वहां के Church [ ध्यान दें - केवल ईसाई धर्म ] v/s State के तनाव का उपचार था | भारत तमाम धर्मों, मजहबों,पंथों का आगार है | यहाँ वह नहीं चलेगा | मानना होगा हर मुल्क का एक मूल होता है - मूल प्रकृति और प्रवृत्ति | अमेरिका के सिक्के पर In God we trust चलेगा | ब्रिटेन में ईसाई महारानी से किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए | पाकिस्तान / बंगला देश में इस्लाम कायम है, उचित ही है | तो फिर भारत में हिन्दू राज्य का औचित्य स्वयंसिद्ध है | हिन्दू राष्ट्र तो यह है ही | सुराज कुराज का प्रश्न है ही नहीं | हो सकता है यह अफगानिस्तान की नक़ल करे, संभव है रामराज की, तो असंभव नहीं हिन्दू राज्य किसी कमाल पाशा के हाथ आ जाय !        

* सरकार क्यों पूछती है अवयस्क बच्चों से उनका धर्म ? सेक्युलर राज्य से क्या मतलब नागरिक के धर्म से ? उसे क्या लेना देना ? इंतजाम के मकसद से वह यह पूछे कि किसे क्या कितना खाना अच्छा लगता है ? उन्हें क्या बीमारियाँ हैं ? तो फिर बाप भी नहीं लिखायेगा धर्म का कालम स्कूल एडमिशन के फार्म में |

* बरबाद गुलिस्ताँ करने  को बस एक किताब ही काफी है | कुछ ज्ञान प्राप्त करने के लिए अट्ठारह किताबें कुछ भी नहीं |

* कविता पाठ - शाहजहांपुर , दिनांक - 16 जून 2013
आधे घंटे में 25 कविताएँ सुनायीं | ज्यादा पसंद नहीं की गयीं |
11 कवि श्रोता उपस्थित | तथापि , समाचार चार अख़बारों - स्वतंत्र भारत / अमर उजाला / दैनिक जागरण और हिंदुस्तान (दैनिक) में प्रकाशित | मेज़बान - श्री शशि भूषण जोहरी + श्रीमती (डा) रीता जौहरी | धन्यवाद !

* स्टेशन पर जब दो गाड़ियों की क्रासिंग होती है , तो पहले आई हुई ट्रेन रुकी रहती है और बाद में आने वाली गाडी पहले चली जाती है | क्या इस अनुभव और तर्क के आधार पर यह निष्कर्ष जा सकता है कि बाद के धर्म पहले चले जायेंगे और प्राचीन हिन्दू या सनातन धर्म सबसे बाद तक टिका रहेगा ? Remember = " हर ट्रेन को शहर से गुज़रना है, हर गीदड़ की मौत आनी है| "
मैं स्टेशन पर खड़ा हूँ |

* भारत में एक धर्म है हिन्दू | बहुत पुराना, सडा गला, दकियानूसी, प्रगति विरोधी, अवैज्ञानिक | उसकी सभी लोग फजीहत करते हैं | बहुत अच्छा करते हैं | है ही वह इसी योग्य | लेकिन सवाल यह है कि इस्लाम क्या अति आधुनिक, नया, तारो ताज़ा, प्रगतिशील, और वैज्ञानिक धर्म है जिसकी प्रशंसा और तरफदारी करते लोग थकते नहींहैं ?

कविता         - -  [ रहिमन निज मन की व्यथा ]

* जानता हूँ लोग हँसेंगे
सुनकर मेरी पीड़ा ,
उसका मज़ाक बनायेंगे ,
तिस पर भी मैं अपना दुःख
अपने दोस्तों को
तार तार करके सुनाता हूँ ,
आखर दोस्त हैं मेरे
थोडा हंस लें ,
इसी बहाने
कुछ प्रसन्न हो लें
वरना उन्हें ही ज़िन्दगी में
कहाँ ख़ुशी नसीब ?
#  #

* सरिता [ हिंदी मासिक ] के संपादक विश्वनाथ जी पर यह खब्त स्वर थी कि अस्पताल को हस्पताल लिखते थे | जनसत्ता [ हिंदी दैनिक ] के संपादक प्रभाष जोशी जी की जिद थी - वह अहमदाबाद को अमदाबाद छापते थे |

* जो भगवान् का श्रेय है उसे उसको दो , यदि उसे मानते समझते हो | लेकिन फ़ौरन बाद जहाँ से विज्ञानं का क्षेत्र शुरू होता है , विज्ञानं का हक विज्ञानं को दो |
[संकेत - आप का फ़र्ज़ क्या है यह आपका आध्यात्मिक विषय  है | दुनिया कैसे बनी, यह विज्ञानं का विषय है  ]

* विश्वास करो ईश्वर पर यदि करना ही चाहते हो | आप की मर्ज़ी है | हम कर ही क्या सकते हैं ?लेकिन कह तो सकते हैं कि दख लेना - यह तुम्हे तोड़कर , खंड खंड टुकड़ों में बाँट कर रख देगा और तब तुम्हारे पास हाथ मलने तक की ताक़त नहीं रह जायगी | वह तुम्हारे ह्रदय का प्रेम, तुम्हारे बुद्धि की तार्किकता को तार तार करके रख देगा तुम्हारी समग्र मनुष्यता को | तब तुम देवता तो क्या, जैसा यह दावा  करता है , ठीक से अपने मन के दानव भी नहीं बन पाओगे | अभी ये जो हिन्दू मुसलमान, ठाकुर ब्राह्मण हैं , ये क्या हैं ? फिर भी हमें क्या ? जब तुम्हे नहीं दिखाई पद रहा है तो मानो ईश्वर को , गिरो धर्मों के चरणों में ! जैसा तुम्हारा मन हो | हमें क्या है ?

* झूठ की ताक़त के बारे में मैं जब तब  लिखता रहता हूँ | कि उसकी ताकत को पहचाना नहीं जा रहा है | कुछ उदाहरण हैं :--
- सारे जहां से अच्छा -- -
- हम होंगे कामयाब - - -
-  खुदा हमारा मरा नहीं है जिंदा है आसमानों में.
- etc   etc
- और एक नया जोड़ लीजिये - सत्ता बन्दूक की नाली से निकलती हैं |
और देखिये कितने लोग मरे जारहे हैं , अपनी जान दिए पड़े हैं इन झूठों के सहारे ?

* योग [योगा न सही ] , से सारे मर्ज़ [रोग ] ठीक हो जाने का वायदा था | फिर उन्ही के बनाये दवाओं के डिब्बे , टिकिया और केप्सूल क्यों ?

* गरज पड़ने पर तो मैं गधे के भी पैर पड  जाता हूँ | ये तो ब्राह्मण , अफसर , मंत्री - मुख्य मंत्री , मायावती हैं !

* कोई कितनी भी गलती पर हो , उसे अपनी गलती स्वीकार करने में दिक्कत होती है | देर तो लगती ही है |

* समाजवाद समाजवाद चिल्लाते रह गए डा राम मनोहर लोहिया , लेकिन लोहिया [के निजी नाम] को तो रौशन किया मुलायम सिह ने , उनके नाम की तख्तियां पार्कों - अस्पतालों वगैरह पर टांग कर !                          भले लोहिया जी होते तो उन्हें ऐसे व्यक्तिवादी कर्म काण्ड पसंद आते या नहीं ?

आगे मैं कुछ सोच रहा था - क्या लोहिया को उनके जाति नाम से पहचाना जा सकता है , जैसा कुछ मित्र जिद करते हैं ? कल्पना चावला , सुनीता विलियम्स , हरगोविंद खुराना , मेघनाद साहा, होमी जहाँगीर भाभा के जाति नाम को क्या उनकी जाति से जोड़ा जा सकता है ?
मुझे विश्वास है कि एक दिन ये जाति नाम सिर्फ नाम रह जायेंगे ,  जाति नहीं बताएँगे | इसलिए अपनाम उपनाम से न लड़ें, जातिगत  आचरण , कु व्यवहार से बचें , उसे मिटायें | नाम गैर महत्वपूर्ण है, काम का महत्त्व है |

* इस बात का तो रंज मुझे है , और यह वाजिब शोक है कि मुझे बहुत निम्न सोच के लोगों के साथ रहना  पड़ रहा है | मजबूरी है , कुछ किया भी नहीं जा सकता |

* No employer, no institution, no government can pay you your equivalence for your work or service, if you really put in your heart and mind [ i.e. your real self] in your job .

* धर्म की बातें
बहुत मुश्किल है
आम करना |

* क्यों देश बचे ?
लूट खाने के लिए
तुम लोगों के ?

* राज्य मिला है
तो शासन चलाओ
खेल न करो
मजाक नहीं होता
पूरा देश देखना !

* अब अकेला,
बिल्कुल ही अकेला
हो गया हूँ मैं |

* पहाड़ टूटा
जीवन नष्ट हुए
कहाँ ईश्वर ?

* खरीदना था
सस्ता हो या मंहगा
खरीद लिया |

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