शुक्रवार, 7 जून 2013

नागरिक वांग्मय 6 and 7 June 2013

 * तआज्जुब है | ईश्वर के रहते कोई ईश्वर के विरोध में सोच भी कैसे सकता है ?

[ कविता ]     =   पार्क में बेंच
* कितने आँसू रोये इसने
कितने फूल खिलाये
कितने गुल भी खिलाये ,
कितने वादे सुने सुनाये
कितने वादे मुकरे इसने
कितने और निभाए ?
कोई क्या जाने ?
अब तो यह बेंच भी भूल गया
कितने जोड़े आये
कितने अकेले गए ?
कितने अकेले आये
जोड़े बनकर गए ?
इसे कुछ नहीं याद |
जड़ काठ हो गया है
पहले हरा भरा पेंड जो था |
सूख गया ,
कितनों को सुख देकर |
#  #   #

[ कविता ]   कलकत्ता में बारिश
* अरे , बारिश हो रही है,
देखो छज्जे पर
मैंने तुम्हारे लिए
अपनी आँखें
बिछा रखी थीं,
कहीं भीग तो नहीं गईं ?
#   #   #  

* तुम तो यार
ऐसा शोर किये हो [ ऐसन चिल्लात हो  ]
जैसे बुढ़वे |
अब चुप भी करो
उग्गर नागरिक !

* देश की चिंता
एक बोतल दो न ,
हम भी करें |

* धूप न बत्तास
काम पर निकलो
सब खल्लास |

* मार्कंडेय जी काटजू का माथा चौड़ा और भाल उन्नत है | वह अवश्य ही बुद्धिमान होंगे |

भाई , मैं ठहरा अन्धविश्वासी और दकियानूस भारतीय | काटजू जी के 90 % [?] वाला | मैं तो ऐसे ही अनुमान लगाऊँगा न ? लेकिन मुझे कम से इतना तो ज्ञान है ? उन्हें तो यह भी नहीं पता होगा कि जिनके गालों पर गड्ढे पड़ते हैं , या काला तिल होता है, उसका क्या अर्थ होता है ? मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि वह स्वयं और उनकी 90 % भारतीय जनता ठीक से अज्ञानी, ढंग से अन्धविश्वासी भी नहीं है | बता कर दिखाएँ फेस बुक वाले कि किन दिनों दाढ़ी - बाल नहीं बनवाना चाहिए ? सोमवार को किस दिशा में जाना वर्जित है ? तब हम जानें !    
* प्रीति जिंटा के भी गालों पर गड्ढे पड़ते हैं |

* बड़े ही बुरे विचार आते हैं मेरे पास | जैसे मैं सोच रहा था कि दमादम मस्त कलंदर, छाप तिलक सब [खुसरो], या " घंट मंट दुई कौड़ी पायेन ", या नहीं तो वही "आरा हीले छपरा हीले बलिया हीलेला" वाले गीत क्या हम पूर्ण ' विचार धारा युक्त ' प्रगतिशील कविलिख सकते हैं ?    

* [ ग़ज़ल सही करो और पूरी करो ]
चोट तुमको लग रही हो जिस किसी भी चीज़ से ,
फूल भी हो उससे मैं तुमको न मारूँ
[फूल से भी ऐसे मैं तुमको न मारूँ /
फूल भी हो तो भी मैं तुमको न मारूँ ]

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Vs Yadav
आपने हमे जो किताबें दी थीं हमने पूरी पढी ,, सुनो भारत किताब दो तीन बार पढी
आप बहुत अच्छा लिखते हैं ..
Vs Yadav
आपकी किताबो से कुछ पोस्ट लिखना चाहते हैं ,,
क्या हम लिख सकते हैं ....??
Ugra Nath
अरे क्यों नहीं ? पूरी छूट है | आपने देखा नहीं, उन पर तो मेरा कापी राइट भी नहीं है |
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* मैं समझ नहीं पा रहा, जब यह बिंदु लिखने के लिए रखा था तब क्या सोचा था | बिंदु यह है की " कहानी तो कहानीकार ही लिखेगा " | ऐसा साहित्य जगत में होता है | जो प्रतिष्ठित कथाकार है वह कुछ भी लिख दे छप जायगा, वह कहानी हो जायगी | नया लेखक कितना भी नया और उत्कृष्ट लिख ले, उसकी चप्पल घिस जायगी उसे छपाने में, नाकों चने चबाने पड़ेंगे कथाकार के रूप में पहचान बनाने में | लेकिन यही तो उसे भी झेलना पड़ा होगा जो आज प्रतिष्ठित है साहित्य के क्षेत्र में ?
[मैं शायद ब्राह्मण के बारे में सोच रहा था ]    

* [ कविता ?]
कितना समय लगा
बचपन से बुढ़ापे तक
यह सीखने में,
कि दाल भात का कौर
थाली के बीच से
कैसे उठाकर
मुँह में डाला जाए
और कोई
जूठन न गिरे ?

* बहुत पहले कभी एक कविता लिखी थी -
" मेरे होंठों पर उगे तो हैं
कैक्टस के फूल !
कौन कहता है मुझे
फूलों से प्यार नहीं ? "
कँटीली ज़िन्दगी ने नागफनी को प्रिय फूल बनाया | फिर जैसा google पर मिल गया , लगा दिया |
आपका आभार की आपने इतना ध्यान दिया |  [ Sunita Rai]

* चलिए माना , दलित अपने हित की लडाई लड़ रहे हैं | वे जीत भी जायेंगे | लेकिन फिर - - - -  ? क्या वे फिर दूसरों की भी लड़ाई भी लड़ेंगे ?

* [ कहानी ]
पत्नी लम्बी और विविध यात्रा से आई तो पति ने पूछा - ? ? ? ? - - ?
पत्नी ने कहा - बता तो दें , लेकिन तुम फिर पूछोगे कितने पानी बताशे खाए , कितने छोले भठूरे , कितनी आलू की टिकिया खाई , कितने आइसक्रीम चाट गयी , कितने बोतल लिम्का गटक गयी ? मैं कहाँ कहाँ तक बताती फिरूँगी ?  

* लगता है अब चश्मा लगाकर स्नान करने जाना पड़ेगा | आधुनिक बाथ रूम में इतने किस्म की शीशियाँ, इतने प्रकार के ट्यूब्स होते हैं कि भेद नहीं कर मिलता शैम्पू, शेव क्रीम, आफ्टर शेव, शावर जेल, टूथ पेस्ट आदि में | कहीं का चीज़ कहीं लग गया तो - - ?

* कोलकाता से तीन ख़बरें -
1 - यहाँ सड़े गले नोट नहीं चलते | कंडक्टर को सौ का नोट पकडाओ | पहले तो वह ना नुकर नहीं करेगा, [लखनऊ में उञ्चास रु का सामान लेकर पचास का नोट दो तो दुकानदार कहेगा - टूटे दीजिये] | दूसरे वह बाकी के कडकडे नोट वापस करेगा, बिना किसी लालच के | मुझे तो एक भी अच्छा नोट किसी को देते या खर्च करते खलता है |
2 - यहाँ रेजगारी कि कोई कमी नहीं है | ग्यारह रु का टिकट लेने के लिए बीस का नोट दीजिये | कोई हर्ज़ नहीं | आप को नौ रु टनाटन वापस होंगे |    
3 - यहाँ अठन्नी भी चलती है | यू पी से यह कब की गायब हो चुकी है | समृद्ध प्रदेश है न हमारा - एक रु भी अपना मूल्य खो चुका है | एकदा मुझे एक रु वापस नहीं मिले नौ रु के दो अंडे लेने और दस का नोट देने पर | ऐसा नहीं कि माँगा नहीं था | दुकानदार ने कहा - यह VIP दूकान है , एक रु कोई नहीं वापस लेता | लेकिन कोलकाता में Telegraph अखबार साढ़े तीन की था | वेंडर ने बाकायदा अठन्नी वापस की |  6/6/2013    
[ Sandeep] हाँ कुछ फर्क तो है | लखनऊ में नहीं पर यहाँ तो Public Transport से ही चलता हूँ | वह आपा धापी नहीं है | कंडक्टर नहीं पहुँच पाया तो लोग उतरते समय किराया चुकता कर देते हैं | इसके लिए कोई मारपीट तो नहीं ही, जो लखनऊ में आम है | लोग अपंगों, बुजुर्गों, महिलाओं की सीट छोड़ देते हैं | यहाँ थ्री व्हीलर के लिए भी सुसंस्कृत लाइन लगती है | Co - operative nature के लोग लगे |    

* मैं किसी को फ्रेंड रिक्वेस्ट नहीं भेजता, लेकिन यदि कोई मेरे पास भेजता है, यहाँ तक की झूठे परिचय वाली बूढ़ी लडकियां भी, तो मैं किंचित भी देर नहीं लगाता | ऐसे में उनकी यह जिद गलत ही तो है कि वह मुझे एक क्लिक नहीं भजेंगे ?

* अपनी गिरी से गिरी [ आर्थिक ] दशा की कल्पना करनी चाहिए | और उसे भूलना नहीं चाहिए |

*  किसी सम्बन्धी के घर जाएँ तो और कुछ ले जाएँ, न ले जाएँ अपना टूथ ब्रश अवश्य ले जाएँ | वरना आप सुबह सुबह दातून मांगेंगे और मेज़बान परेशानी में पड़ जायगा |

* इस ज़माने में अपनी बात का सच्चा होना ,
क्या ज़रूरी है इसमें आप का अच्छा होना ?

* उमस और गर्मी बहुत है | फिर भी मन को एक ठंडाई मिली कि मैंने एक बात अपने विरुद्ध सोची | मैं धर्म और ईश्वर का निपट विरोधी हूँ | लेकिन अभी ख्याल आया कि जब शारीरिक व्याधि के लिए = [ यूनानी, आयुर्वेदिक, अंग्रेजी, प्राकृतिक, होम्योपैथी, एक्यूप्रेशर, एक्युपंक्चर इत्यादि न जाने कितनी ] इतने प्रकार की विधियाँ हैं , तो मनुष्य के मानसिक [ आध्यात्मिक ?] इलाज के लिए तमाम ईश्वर, अनेक धर्म क्यों नहीं हो सकते ?        

* RTI पर ठीक से सोचा नहीं जा रहा है | चूँकि यह दलों के खिलाफ है इसलिए सब इसके समर्थन में हैं | लेकिन कौन क्या नहीं जानता ? कोई क्या जानना चाहेगा ? कौन, क्यों जानना चाहेगा ? & सो ऑन
Sandeep Verma
शायद सिर्फ ऐसा नहीं है ,मगर दलों की नीतिया एवं उनका कार्यान्वयन में किस तरह से पैसे लगाने वालों का हाथ है ,पता चलेगा . मोदी को कौन लोग सामने लाना चाहते है ,क्यों मोदी का नाम उछाला जा रहा है ,पता चल सकेगा . कैसे अचानक एक पूंजीपति टिकट लेकर चुनाव लड़ने आ जाता है यह सब कम होगा .
Political rivals will take recourse to it with undue effect on the polity . With no positive results . I think so . And it has been visible in experiences yet .

* सवेरे से ही
आने लग जाते हैं
वे पंक्तिबद्ध |

* शरीर ही है
कब धोखा दे जाय
किसे क्या पता ?

* नहीं करता
जापान की नक़ल
मैं हाइकु में |

* हिन्दू हैं तो क्या
किसी के गुलाम हैं ?
किसी के नहीं |

* हिन्दू तो साला
छलनी हो गया है
सूपों के आगे |

* लीडर होगा
आज नहीं तो कल
हमारा गाँव |

* गलत बात
सारे जहाँ से अच्छा
देश हमारा |

* झूठ की ताक़त ?
महानतम झूठ
ईश्वर देखो |

* कुछ नहीं तो
डिसक्लोज़  तो किया
मैंने खुद को ?

* नरक क्यों हो
किसी की भी ज़िन्दगी
औरत - मर्द ?

* कुछ नहीं है
चाहत भरी दृष्टि
के अतिरिक्त |

* तुम्हे जो देखा
क्या क्या तो कौंध आया
आँखों के आगे !

* कुछ भी करूँ
मुझसे नहीं होता
मैं फेलम्फेल |

* मेरे मन में
निश्चय ही रहता
एक राक्षस
कुछ करे न करे
चाहे सोया ही रहे |

* दिन हो रात
खगालता रहता
दिल दिमाग |

* क्या सन्दर्भ है
जो बोले जा रहे हो
उटपटांग ?
[ धाराप्रवाह ? ]

* इस स्थिति को
स्थितिप्रज्ञ कहते
जिसमें मैं हूँ |

* आवास हेतु
कितनी ज़हमत
घर बनाना ?

* होता ही होगा
ऐसा भी होता होगा
तभी तो हुआ ?

* इतना हुआ -
संबंध बना रहा
यह समझो !

* मैं तो ठहरा
अदना सा लेखक
बड़ा क्या लिखूँ ?

* करते गए
जैसा देखते गए
टी वी शो पर |

* कुछ बात है
लेकिन फिर भी तो
जो मैं जिंदा हूँ !

* रूचि नहीं है
हाइकु लेखन में
लिख भले दूँ !

* कूड़ा कबाड़
भरा है दिमाग में
वही लिखता |

* हर्ज़ ही क्या है
सपने देखने में
सबने देखे |

* कहाँ कहाँ से
ये तिनके जुटाए
घर बनाया
तब बनी कविता
तभी कोई हाइकु !

* देवता होंगे
दुनिया की सोचते
मैं तो अपनी |
गाँव की गिराँव की
खेत खलिहान की
परिवार की
नौकरी व्यापार की
यू पी सरकार की
कुछ ऊपर
भारत सरकार की  
दिल्ली दरबार की
कभी कभी तो  
हिन्दू हिन्दुस्तान की
ईश्वर महान की |

* सोचता ही हूँ
मर्द हूँ तो मर्द की
वृद्धपन की |

* "नागरिक" कहो, "नागरिक" कहाओ |  
रोटेरियन की तरह, कामरेड की तरह,
आप जो भी हो
" नागरिक " तो अवश्य ही हो |
सबको हमारा संबोधन " नागरिक " है |
यह हमारा अत्यल्प मिशन है |


* आखिर मैं
करता ही क्या ?
उन्होंने मुझे
बताया थोड़े था ,
बस एकाएक
सामने आ गए |

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