शशि भूषण जोहरी , शाहजहांपुर
मुझसे एकदम अपरिचित अपने मित्र डी के के घर अलीगंज आये थे | वहां उन्हें मेरी हस्तलिखित किताब - बुद्धि विहीना [ Nonstop Nonsense ] मिल गयी | कुछ अच्छा लगा होगा, यह ज़रूरी नहीं है , बल्कि इनके मिलनसार स्वभाव ने इनसे मेरे पास फोन कराया | मिलने की इच्छा जताई | ये बैंक से निवृत्त अधिकारी हैं | मेरा आवास इतना छोटा और अव्यवस्थित है की मुझे किसी सर्वहारा Prolitariat को भी घर बुलाने में संकोच होता है | मैं इनसे मिलने DK के घर चला गया | श्री मान जी इतने सहज सरल मनमौजी निकले कि अपने घर शाहजहांपुर चलने का प्रस्ताव कर बैठे | वहां ये और इनकी पत्नी भर रहते है | एक बेटे ने मारीशस में घर बसा लिया है |
फिर तो हम दोनों 15 जून को शाहजहांपुर चले गए | मैं 20 को वापस आया | इस बीच इन्होने कई कवियों से मिलाया , हमारी कवि गोष्ठी करायी और खूब खिलाया पिलाया | ये अति लोकप्रिय समाजसेवी भी हैं | ' आम आदमी ' पार्टी में भी हैं | अपने घर में ही पहले स्कूल चलाते थे | फिलहाल गेस्ट हॉउस के रूप में इस्तेमाल हो रहा है और आगे वृद्धाश्रम कि योजना है | इनसे और श्रीमती डॉ रीता जोहरी से मिलकर प्रसन्नता हुई | चार पांच दिन मेरे सुख से बीते | इन्हें धन्यवाद |
* चलिए, अगर बकौल अल्लामा इकबाल, प्रजातंत्र में सर ही गिने जाते हैं , तो फिर अल्पसंख्यकों का 20 - 25 परसेंट शेष आबादी पर भारी कैसे पड जाती है कि इस वोट को कोई भी पार्टी नज़रअंदाज़ नहीं कर पाती ? बल्कि इनकी चाटुकारिता में लग जाती है ?
[हाँ मगर यह संख्या भी भारी होती है | मैं अपनी बात वापस ले सकता हूँ |]
* ब्राह्मणवाद is not a normal or good life, no doubt . But undoubtedly, it is a life saving device . Way to - " Live with differences between every one and all " . Like snakes and men and women on one tree at the time of flood . And lo ! here is a bad news . This worldly life is always under the days of flood , one or the other calamity . That is why this '' ism '' is not going to 'go' .
" गतिविधि " = गति + विधि = " How to Move "
कुछ लोग मिले हैं | बात बन रही है | शायद कुछ " गतिविधि " शुरू हो | संभवतः इसी नाम से | इस नाम के अन्दर एक और अर्थ छिपा है | गति + विधि = " How to Move " | कोई रणनीति , strategies बनानी हैं - मानुषिक असभ्यता के खिलाफ |
* दियासलाई के एक ब्राण्ड की तीली को दूसरे ब्राण्ड की माचिस पर रगड़ने से क्या वह जलेगी नहीं ? फिर आंतर विवाहों में क्या परेशानी है ?
* हम उनकी मजबूरी समझें ,
वह भी तो कुछ कोशिश करें !
मजबूरी की ही कुछ बातें
आपस में तो साझा करें !
* मिलना तो दूर, मिलने वह आये ही नहीं ,
फिर भी कहूँगा - आप से मिलकर ख़ुशी हुई |
* मुझे उस व्यक्ति पर अत्यंत क्रोध आता है जो कहता है - यह काम मैं नहीं कर सकता |
[करूँगा नहीं, आप कह सकते हैं | लेकिन कर नहीं सकते / लिख नहीं सकते ऐसा नहीं है | या यह हो सकता है जो आप कर या लिख रहे हों वह भिन्न विशिष्ट हो |वह भी तो करना /लिखना हुआ ?]
* इन्सान = आदमी | मैं इसे अपनी संस्था का नाम रखना चाहता हूँ | Individual Human Being
* मान लीजिये ईश्वर असमर्थ या कुछ खफा था, तो अल्लाह को तो कुछ करना चाहिए था तबाही से मनुष्यों को बचाने के लिए ! आखिर देश की पर्याप्त जनसँख्या उनकी पूजा इबादत करती है ?
* पाखण्डी , The Hypocrite
समाज में अतिशय पाखण्ड व्याप्त है और हम उनका तिरस्कार - बहिष्कार नहीं कर पा रहे हैं | इसलिए हम स्वीकार करते हैं कि हम वस्तुतः पाखण्डी ही हैं | =
पाखंडी समाज { Society for Hypocrisy } ? Hypocrite India / Indian Hypocrisy / ? ?
* शादी करो तो यह तो मुमकिन, या कहें अवश्य है कि अपनी संतानों से उपेक्षा और प्रताड़ना मिले | लेकिन शादी न करो तो वृद्धावस्था में आपकी थोड़ी सी भी संपत्ति के लिए सेवा के नाम पर ऐसे दुष्ट लोग मिलेंगे कि आपको मार ही डालेंगें | इस मामले में मैं इस्लाम का पक्षधर हूँ [वैसे भी बहुत मुतास्सिर रहा हूँ मैं इससे] | व्यक्ति को विवाह अवश्य करना चाहिए | देखिये वहाँ कोई भी मौलाना मौलवी अविवाहित नहीं रहते | जब सारे हिन्दू साधु संत ब्रह्मचारी (?) होते हैं | इस पर आप हंस क्यों रहे हैं ?
* मुझे कतई विश्वास नहीं कि "राम शलाका प्रश्नावली " भी गोस्वामी तुलसी दास ने बनाई होगी |
* हो न हो तीर्थयात्रियों ने मार्ग में कहीं समोसे ज़रूर लाल चटनी के साथ खाए होंगे | सब के सब ने | तो इसमें भला निर्मल बाबा का क्या दोष ? उन्होंने तो पहले ही बता दिया था |
* आयुर्वेद भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है | कोई तीर्थयात्री एवं अन्य जन इसे नहीं अपनाते | सब अंग्रेजी दावा खाते हैं | वही काम सरकार भी कर रही है - दुर्घटना के बाद बचाव | आपद स्थिति में रहत कार्य तो ठीक ही है | लेकिन ऐसी स्थिति आने ही क्यों पाए इस पर कोई काम नहीं हो रहा है | जिस शांत वातावरण को प्रकृति के अनुसार लगभग निर्जन रहना चाहिए वहां इतने आदमियों की भीड़ क्यों गयी, क्यों जाती है ? किसी कुम्भ मेले से कोई सबक क्यों नहीं लिया जाता | तो Imbalance तो होगा ही और उसका भयावह परिणाम भुगतना पड़ेगा | यह सेक्युलरवाद की कमजोरी है जिसके नाम पर तमाम पार्टियाँ राजनीति कर रही हैं, और स्वयं इसका ABCD नहीं जानतीं | हम बताते हैं तो हमें अधार्मिक - अनैतिक कहकर हटा दिया जाता है | तो चलो आस्था चैनेल ! यह चैनेल किसका है, शायद वह भी राजनीति में है | शेष अशुभ |
* [ हाइकु- टांका ]
हे अखबारों !
धार्मिक लेख छापो
अध्यात्म और
भक्तिभाव जगाओ
राशिफल बताओ |
* इस दुःख की घडी में, तिस पर भी, मैं एक निवेदन मित्रों से करना चाहूँगा | किंवा मैं उन्हें स्वतंत्र करना चाहता हूँ | जिनके भी ह्रदय में अब भी ईश्वर के प्रति भक्ति भावना हिलोरें मारता हो और उस पर जिनके मन में किंचित भी प्रश्नचिन्ह या संदेह न उभरता हो वे मेरी मित्र सूची से कृपा करके अलग हो जाएँ | क्योंकि मैं किसी को यूँ तो जानता नहीं हूँ कि उन्हें हटाऊँ | स्वीकार करता हूँ कि मैं उतना उदार और शालीन नहीं हूँ कि उनके पाखण्ड और लन्तरानियाँ बर्दाश्त कर सकूँ | मैं देवता नहीं, साधारण आदमी हूँ | मेरे प्रस्ताव पर कृपया ब्रह्माण्ड और सृजन पर प्रवचन न प्रारंभ करें | इस चेतावनी के बाद भी यदि वे हमारे साथ रहते हैं तो स्वागत है उनका | बस अपनी धार्मिक भावना को चोट खाने से बचाने की ज़िम्मेदारी उनकी होगी | हमारा तो काम ही होगा ईश्वर [ अल्लाह समेत ] और धर्म [ मज़हब सहित ] पर लगातार चोट करना | हम जैसे भी करें | फिर न कहियेगा कि पहले बताया नहीं था |
दर असल हुआ यह कि मैं अपने स्वभाव की विनम्रतावश लोगो का मुंह ताकते थक गया हूँ | कि कहीं कोई बुरा न मान जाय, किसी के दिल को चोट न पहुंचे | पर मुझे यह भावना त्रस्त करती है कि मैं अपने साथ छल कर रहा हूँ , एक छद्म - पाखंडी जीवन जी रहा हूँ | अब जीवन की मात्रा कम है तो कम ही मित्रो से गुज़ारा करूँ | थोड़ी अपनी जिंदगी जी लूँ [ जिसकी सम्भावना अब भी कम है, क्योंकि मुझे अपना जीवन कभी नसीब नहीं हुआ | बस सबको खुश ही करता रहा ] | फिर मुझे अपने सोच की कोई दुकान तो चलानी नहीं है, न सामाजिक कार्य करनी है न राजनीतिक दल ही बनाना है | फिर भीड़ क्यों इकठ्ठा करूँ | आप महसूस नहीं कर सकते की किस तरह के कमेंट्स होते हैं , कैसी धमकियां मिलती हैं | अब मैं उनका क्या करूँगा | मेरा जीवन युद्ध तो अब समाप्त है | या समेट रहा हूँ जीवन के हर - हथियार | यह तो बुझते दिए की लौ है जो भभक रही है |
* नास्तिकता की बातें हिन्दुओं के लिए हैं | मुस्लिम मित्र इन पर ध्यान न दें | वैसे भी उन्हें इससे क्या मतलब, सिवा इसकी मुखालिफत के ? इसीलिये हम सब और वे केवल हिन्दू आस्तिकों की आलोचना करते हैं | गौर से देखिये, वर्तमान त्रासदी के हाहाकार में भी किसी हिन्दू आस्तिक ने भी यह तथ्य अपने पक्ष में नहीं उठाया कि ऐसी दुर्घटनाएँ तो हज यात्रा के दौरान भी भगदड़ में हो जाया करती हैं |
* बिल्कुल अन्यथा न लिया जाय | ईश्वर पर आस्था और मज़हबी समर्पण में इस्लाम का कोई सानी नहीं है | लेकिन मैं मित्रतावश सोचता हूँ इसका क्या फल मिला मुसलमानों को ? वैश्विक दुश्मनी, सार्वजानिक द्वेष, घृणा, दूरी और अलगाव ? और ऊपर से मज़हब की बदनामी ? आखिर कुछ तो हासिल होना चाहिए था उन्हें उनकी भक्ति के परिणाम/ पुरस्कार स्वरुप ? कहाँ है ईश्वर ?
* खरीदार हैं बाज़ार में, यह सच तो है ,
बेचने वाले भी बाज़ार में कुछ कम नहीं |
* यह उठा सभ्य नागरिकता का मुद्दा | धन्यवाद नीलाक्षी जी, आन्दोलन में शामिल होने के लिए |
[ बहुत प्रारंभिक कविता है यह ]
* हमने अपने घर का कूड़ा
छत से बहार फेंक कर,
यह नहीं देखा कि वह
उड़कर कहाँ गिरा |
* मन में पापी ख्याल आता है | कहीं प्रकृति [आस्तिकों के ईश्वर ] को, देश के 'संतरी' हिमालय को नरेन्द्र मोदी अस्वीकार तो नहीं हैं ? जो इसने उनके आते ही इतना क्रोध दर्शाया ?
" पैदल पार्टी "
क्या यह नाम ठीक नहीं रहेगा | सब अकेले अकेले भी अपने दो पांओं से चल सकते हैं | और -
अकेले ही चले थे जानिब - ए - मंजिल मगर ,
आदमी मिलते गए और कारवाँ बनता गया |
भी हो सकता है |
अंग्रेजी में " ON FOOT " और राजनीति को गरियाने के लिए " My Foot" भी हो सकता है |
--------------------------------------------------------
दस हज़ार से ज्यादा मौतें
कैसे सब्र करें ?
कितने कब्र भरें ?
* वह तो अलग बात है की ईश्वर पर विश्वास [अंधविश्वास] न करें, लेकिन मसअला यह है कि किस पर विश्वास करें ? और विश्वास करें न करें, हम करें तो क्या करें ? कर्तव्य विमूढ़ता की स्थिति है जैसे |
वैसे इसका कुछ न कुछ दोष तो भगवान् केदार नाथ पर जाता ही है , निर्विवाद | मेरा प्रस्ताव है, जैसे मंदिरों ऑस उसके देवी देवताओं के गुणगान, प्रशंसा में सच्ची झूठी कथाएँ अंकित की जाती हैं, तो उसके नकारात्मक तथ्यात्मक सूचनाएँ भी उसके प्राचीरों पर पत्थरों पर अंकित किये जाएँ जिससे पीढ़ियाँ उनसे अवगत हो सके | जैसे यहाँ दर्ज होना चाहिए कि वर्ष २०१३ में इसी स्थान पर इतने श्रद्धालु तीर्थयात्रियों ने अपना जीवन गँवाया |
----------------------------------------
* प्यार बस प्यार और कुछ भी नहीं ,
इसका आकार और कुछ भी नहीं |
तुम जो अच्छे हो अच्छे लगते हो ,
इसका आधार और कुछ भी नहीं |
तुमसे मिलने की तमन्ना भर है ,
वरना इस पार और कुछ भी नहीं
[ लक्ष्मी चंद 'दद्दा ' , गोंडा ]
* सब मानता
कुछ नहीं मानता
वक़्त की बात |
* थोडा सह लो
गुम जायगा दर्द
थोड़ी देर में |
* कुछ न कुछ
हुआ, ज़रूर हुआ
मुस्कराने से |
* भला बताओ
पैर के दर्द पर
क्या प्रवचन ?
* मंजिलें होतीं
एक के आगे एक
राहें छूटतीं |
* हमारे बीच
इतनी दूरी ठीक
या कुछ और ?
* और नहीं तो
आपके जीवन का
कथन और
कर्म का अंतर ही
खोलेगा सारा छद्म !
* हंसाती तो हैं
बचपन की यादें
रुलाती भी हैं |
* कैसे मुक्ति हो
ब्राह्मणी पाखंडों से
चिंता की बात |
* ईश्वर नहीं
अस्तित्व को मानता
क्या परेशानी ?
* भक्ति भावना
जोर मारे तो चलो
अमरनाथ !
* बच निकलो
बहाने बहुत हैं
कोई बना लो !
* हम ठीक हैं
कोई जो हाल पूछे
यही बताएँ |
* मैं तुम्हारा था
मेरा कुछ था नहीं
सब तुम्हारा |
* जल जंगल
ज़मीन की लडाई
मार करायी |
* विषमता का
भण्डार है संसार
इसी में जीना |
* यह दुनिया
वह दुनिया भी है
सब यही है |
* मुसलमान
हमारे मेहमान
तवज्जो योग्य |
* सब सत्य हैं
शास्त्र सम्मत बातें
सिद्ध क्या करें ?
* करते तो हैं
पूजा पाठ, ईश्वर
सुने तब न ?
* किसी प्रकार
ज़िन्दगी काटनी है
कट जायगी |
* सिद्धांततः तो
ठीक कहते आप
हम कर्म से |
* सरस्वती की
सवारी हम लोग
उलूक बुद्धि |
* ऐसे ही नहीं
धन फर्नीचर से
भरा है घर !
* हैं तो ज़रूर
आप लोग समृद्ध
जैसे भी हुए !
* कोई आदमी
कितने दिन रहे
पत्नी के घर ?
* बूढ़ा ज़माना
निगोड़ा है पुराना
इसे बदलो !
* सारे ही लोग
बड़े होशियार है
मैं ही दुर्बुद्धि !
* कटु वचन
निकाला नहीं जाता
निज मुख से |
* राम रहीम,
ईश्वर अल्ला नहीं
शब्द है ब्रह्म |
* मैं नास्तिक हूँ
नास्तिकता प्रचार
मेरा धर्म है |
* बिलावजह के आदमी तमाम
मेरे मित्र हैं |
* कैसे बनता
नेताओं का संकल्प
जन संघर्ष ?
* मेरा स्वार्थ
कुछ और, तुम्हारा
उद्देश्य और |
* नइखे तोडलीं
कौनो लक्ष्मण रेखा
तबहूँ जेल !
* जिस वस्तु की
प्रासंगिकता न हो
हटाओ उसे,
दूर भगाओ जाति
धर्म जनित भेद |
* विश्वास करो
ईश्वर पर, करो
टूटते जाओ
हमें क्या ऐतराज़
जैसी आपकी इच्छा |
* इतना बुरा
तो नहीं लिखा मैंने
आप यूँ चिढ़े ?
* शारीरिक है
बड़ी ही शरीर है
मेरी जो वह |
* सत्ताईस को
मिलने जा रहे हो
मिल ? पाओगे ?
* चलो , मेरे ही शब्द चुराओ
मेरी ही पंक्ति नक़ल करो |
जैसे मैं कहता हूँ -
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
तुम इसे ही सौ बार कहो
इसे दुनिया में फैलाओ !
* हाँ ऐसा ही | मन नहीं मानता | ऐसा ही कहता है जब कोई अपना संकट में होता है | माँ कहती है - हाय मैंने उसे भेजा ही क्यों बाग़ में लकडियाँ, सूखी पत्तियाँ बटोरने ? न मैं भेजती न साँप उसे डसता | जब की सत्य तो बरनवाल की ही बात है | लड़के की मौत तो कहीं भी हो सकती थी | कहीं भी उसे वही साँप डस सकता था |
मुझसे एकदम अपरिचित अपने मित्र डी के के घर अलीगंज आये थे | वहां उन्हें मेरी हस्तलिखित किताब - बुद्धि विहीना [ Nonstop Nonsense ] मिल गयी | कुछ अच्छा लगा होगा, यह ज़रूरी नहीं है , बल्कि इनके मिलनसार स्वभाव ने इनसे मेरे पास फोन कराया | मिलने की इच्छा जताई | ये बैंक से निवृत्त अधिकारी हैं | मेरा आवास इतना छोटा और अव्यवस्थित है की मुझे किसी सर्वहारा Prolitariat को भी घर बुलाने में संकोच होता है | मैं इनसे मिलने DK के घर चला गया | श्री मान जी इतने सहज सरल मनमौजी निकले कि अपने घर शाहजहांपुर चलने का प्रस्ताव कर बैठे | वहां ये और इनकी पत्नी भर रहते है | एक बेटे ने मारीशस में घर बसा लिया है |
फिर तो हम दोनों 15 जून को शाहजहांपुर चले गए | मैं 20 को वापस आया | इस बीच इन्होने कई कवियों से मिलाया , हमारी कवि गोष्ठी करायी और खूब खिलाया पिलाया | ये अति लोकप्रिय समाजसेवी भी हैं | ' आम आदमी ' पार्टी में भी हैं | अपने घर में ही पहले स्कूल चलाते थे | फिलहाल गेस्ट हॉउस के रूप में इस्तेमाल हो रहा है और आगे वृद्धाश्रम कि योजना है | इनसे और श्रीमती डॉ रीता जोहरी से मिलकर प्रसन्नता हुई | चार पांच दिन मेरे सुख से बीते | इन्हें धन्यवाद |
* चलिए, अगर बकौल अल्लामा इकबाल, प्रजातंत्र में सर ही गिने जाते हैं , तो फिर अल्पसंख्यकों का 20 - 25 परसेंट शेष आबादी पर भारी कैसे पड जाती है कि इस वोट को कोई भी पार्टी नज़रअंदाज़ नहीं कर पाती ? बल्कि इनकी चाटुकारिता में लग जाती है ?
[हाँ मगर यह संख्या भी भारी होती है | मैं अपनी बात वापस ले सकता हूँ |]
* ब्राह्मणवाद is not a normal or good life, no doubt . But undoubtedly, it is a life saving device . Way to - " Live with differences between every one and all " . Like snakes and men and women on one tree at the time of flood . And lo ! here is a bad news . This worldly life is always under the days of flood , one or the other calamity . That is why this '' ism '' is not going to 'go' .
" गतिविधि " = गति + विधि = " How to Move "
कुछ लोग मिले हैं | बात बन रही है | शायद कुछ " गतिविधि " शुरू हो | संभवतः इसी नाम से | इस नाम के अन्दर एक और अर्थ छिपा है | गति + विधि = " How to Move " | कोई रणनीति , strategies बनानी हैं - मानुषिक असभ्यता के खिलाफ |
* दियासलाई के एक ब्राण्ड की तीली को दूसरे ब्राण्ड की माचिस पर रगड़ने से क्या वह जलेगी नहीं ? फिर आंतर विवाहों में क्या परेशानी है ?
* हम उनकी मजबूरी समझें ,
वह भी तो कुछ कोशिश करें !
मजबूरी की ही कुछ बातें
आपस में तो साझा करें !
* मिलना तो दूर, मिलने वह आये ही नहीं ,
फिर भी कहूँगा - आप से मिलकर ख़ुशी हुई |
* मुझे उस व्यक्ति पर अत्यंत क्रोध आता है जो कहता है - यह काम मैं नहीं कर सकता |
[करूँगा नहीं, आप कह सकते हैं | लेकिन कर नहीं सकते / लिख नहीं सकते ऐसा नहीं है | या यह हो सकता है जो आप कर या लिख रहे हों वह भिन्न विशिष्ट हो |वह भी तो करना /लिखना हुआ ?]
* इन्सान = आदमी | मैं इसे अपनी संस्था का नाम रखना चाहता हूँ | Individual Human Being
* मान लीजिये ईश्वर असमर्थ या कुछ खफा था, तो अल्लाह को तो कुछ करना चाहिए था तबाही से मनुष्यों को बचाने के लिए ! आखिर देश की पर्याप्त जनसँख्या उनकी पूजा इबादत करती है ?
* पाखण्डी , The Hypocrite
समाज में अतिशय पाखण्ड व्याप्त है और हम उनका तिरस्कार - बहिष्कार नहीं कर पा रहे हैं | इसलिए हम स्वीकार करते हैं कि हम वस्तुतः पाखण्डी ही हैं | =
पाखंडी समाज { Society for Hypocrisy } ? Hypocrite India / Indian Hypocrisy / ? ?
* शादी करो तो यह तो मुमकिन, या कहें अवश्य है कि अपनी संतानों से उपेक्षा और प्रताड़ना मिले | लेकिन शादी न करो तो वृद्धावस्था में आपकी थोड़ी सी भी संपत्ति के लिए सेवा के नाम पर ऐसे दुष्ट लोग मिलेंगे कि आपको मार ही डालेंगें | इस मामले में मैं इस्लाम का पक्षधर हूँ [वैसे भी बहुत मुतास्सिर रहा हूँ मैं इससे] | व्यक्ति को विवाह अवश्य करना चाहिए | देखिये वहाँ कोई भी मौलाना मौलवी अविवाहित नहीं रहते | जब सारे हिन्दू साधु संत ब्रह्मचारी (?) होते हैं | इस पर आप हंस क्यों रहे हैं ?
* मुझे कतई विश्वास नहीं कि "राम शलाका प्रश्नावली " भी गोस्वामी तुलसी दास ने बनाई होगी |
* हो न हो तीर्थयात्रियों ने मार्ग में कहीं समोसे ज़रूर लाल चटनी के साथ खाए होंगे | सब के सब ने | तो इसमें भला निर्मल बाबा का क्या दोष ? उन्होंने तो पहले ही बता दिया था |
* आयुर्वेद भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है | कोई तीर्थयात्री एवं अन्य जन इसे नहीं अपनाते | सब अंग्रेजी दावा खाते हैं | वही काम सरकार भी कर रही है - दुर्घटना के बाद बचाव | आपद स्थिति में रहत कार्य तो ठीक ही है | लेकिन ऐसी स्थिति आने ही क्यों पाए इस पर कोई काम नहीं हो रहा है | जिस शांत वातावरण को प्रकृति के अनुसार लगभग निर्जन रहना चाहिए वहां इतने आदमियों की भीड़ क्यों गयी, क्यों जाती है ? किसी कुम्भ मेले से कोई सबक क्यों नहीं लिया जाता | तो Imbalance तो होगा ही और उसका भयावह परिणाम भुगतना पड़ेगा | यह सेक्युलरवाद की कमजोरी है जिसके नाम पर तमाम पार्टियाँ राजनीति कर रही हैं, और स्वयं इसका ABCD नहीं जानतीं | हम बताते हैं तो हमें अधार्मिक - अनैतिक कहकर हटा दिया जाता है | तो चलो आस्था चैनेल ! यह चैनेल किसका है, शायद वह भी राजनीति में है | शेष अशुभ |
* [ हाइकु- टांका ]
हे अखबारों !
धार्मिक लेख छापो
अध्यात्म और
भक्तिभाव जगाओ
राशिफल बताओ |
* इस दुःख की घडी में, तिस पर भी, मैं एक निवेदन मित्रों से करना चाहूँगा | किंवा मैं उन्हें स्वतंत्र करना चाहता हूँ | जिनके भी ह्रदय में अब भी ईश्वर के प्रति भक्ति भावना हिलोरें मारता हो और उस पर जिनके मन में किंचित भी प्रश्नचिन्ह या संदेह न उभरता हो वे मेरी मित्र सूची से कृपा करके अलग हो जाएँ | क्योंकि मैं किसी को यूँ तो जानता नहीं हूँ कि उन्हें हटाऊँ | स्वीकार करता हूँ कि मैं उतना उदार और शालीन नहीं हूँ कि उनके पाखण्ड और लन्तरानियाँ बर्दाश्त कर सकूँ | मैं देवता नहीं, साधारण आदमी हूँ | मेरे प्रस्ताव पर कृपया ब्रह्माण्ड और सृजन पर प्रवचन न प्रारंभ करें | इस चेतावनी के बाद भी यदि वे हमारे साथ रहते हैं तो स्वागत है उनका | बस अपनी धार्मिक भावना को चोट खाने से बचाने की ज़िम्मेदारी उनकी होगी | हमारा तो काम ही होगा ईश्वर [ अल्लाह समेत ] और धर्म [ मज़हब सहित ] पर लगातार चोट करना | हम जैसे भी करें | फिर न कहियेगा कि पहले बताया नहीं था |
दर असल हुआ यह कि मैं अपने स्वभाव की विनम्रतावश लोगो का मुंह ताकते थक गया हूँ | कि कहीं कोई बुरा न मान जाय, किसी के दिल को चोट न पहुंचे | पर मुझे यह भावना त्रस्त करती है कि मैं अपने साथ छल कर रहा हूँ , एक छद्म - पाखंडी जीवन जी रहा हूँ | अब जीवन की मात्रा कम है तो कम ही मित्रो से गुज़ारा करूँ | थोड़ी अपनी जिंदगी जी लूँ [ जिसकी सम्भावना अब भी कम है, क्योंकि मुझे अपना जीवन कभी नसीब नहीं हुआ | बस सबको खुश ही करता रहा ] | फिर मुझे अपने सोच की कोई दुकान तो चलानी नहीं है, न सामाजिक कार्य करनी है न राजनीतिक दल ही बनाना है | फिर भीड़ क्यों इकठ्ठा करूँ | आप महसूस नहीं कर सकते की किस तरह के कमेंट्स होते हैं , कैसी धमकियां मिलती हैं | अब मैं उनका क्या करूँगा | मेरा जीवन युद्ध तो अब समाप्त है | या समेट रहा हूँ जीवन के हर - हथियार | यह तो बुझते दिए की लौ है जो भभक रही है |
* नास्तिकता की बातें हिन्दुओं के लिए हैं | मुस्लिम मित्र इन पर ध्यान न दें | वैसे भी उन्हें इससे क्या मतलब, सिवा इसकी मुखालिफत के ? इसीलिये हम सब और वे केवल हिन्दू आस्तिकों की आलोचना करते हैं | गौर से देखिये, वर्तमान त्रासदी के हाहाकार में भी किसी हिन्दू आस्तिक ने भी यह तथ्य अपने पक्ष में नहीं उठाया कि ऐसी दुर्घटनाएँ तो हज यात्रा के दौरान भी भगदड़ में हो जाया करती हैं |
* बिल्कुल अन्यथा न लिया जाय | ईश्वर पर आस्था और मज़हबी समर्पण में इस्लाम का कोई सानी नहीं है | लेकिन मैं मित्रतावश सोचता हूँ इसका क्या फल मिला मुसलमानों को ? वैश्विक दुश्मनी, सार्वजानिक द्वेष, घृणा, दूरी और अलगाव ? और ऊपर से मज़हब की बदनामी ? आखिर कुछ तो हासिल होना चाहिए था उन्हें उनकी भक्ति के परिणाम/ पुरस्कार स्वरुप ? कहाँ है ईश्वर ?
* खरीदार हैं बाज़ार में, यह सच तो है ,
बेचने वाले भी बाज़ार में कुछ कम नहीं |
* यह उठा सभ्य नागरिकता का मुद्दा | धन्यवाद नीलाक्षी जी, आन्दोलन में शामिल होने के लिए |
[ बहुत प्रारंभिक कविता है यह ]
* हमने अपने घर का कूड़ा
छत से बहार फेंक कर,
यह नहीं देखा कि वह
उड़कर कहाँ गिरा |
* मन में पापी ख्याल आता है | कहीं प्रकृति [आस्तिकों के ईश्वर ] को, देश के 'संतरी' हिमालय को नरेन्द्र मोदी अस्वीकार तो नहीं हैं ? जो इसने उनके आते ही इतना क्रोध दर्शाया ?
" पैदल पार्टी "
क्या यह नाम ठीक नहीं रहेगा | सब अकेले अकेले भी अपने दो पांओं से चल सकते हैं | और -
अकेले ही चले थे जानिब - ए - मंजिल मगर ,
आदमी मिलते गए और कारवाँ बनता गया |
भी हो सकता है |
अंग्रेजी में " ON FOOT " और राजनीति को गरियाने के लिए " My Foot" भी हो सकता है |
--------------------------------------------------------
दस हज़ार से ज्यादा मौतें
कैसे सब्र करें ?
कितने कब्र भरें ?
* वह तो अलग बात है की ईश्वर पर विश्वास [अंधविश्वास] न करें, लेकिन मसअला यह है कि किस पर विश्वास करें ? और विश्वास करें न करें, हम करें तो क्या करें ? कर्तव्य विमूढ़ता की स्थिति है जैसे |
वैसे इसका कुछ न कुछ दोष तो भगवान् केदार नाथ पर जाता ही है , निर्विवाद | मेरा प्रस्ताव है, जैसे मंदिरों ऑस उसके देवी देवताओं के गुणगान, प्रशंसा में सच्ची झूठी कथाएँ अंकित की जाती हैं, तो उसके नकारात्मक तथ्यात्मक सूचनाएँ भी उसके प्राचीरों पर पत्थरों पर अंकित किये जाएँ जिससे पीढ़ियाँ उनसे अवगत हो सके | जैसे यहाँ दर्ज होना चाहिए कि वर्ष २०१३ में इसी स्थान पर इतने श्रद्धालु तीर्थयात्रियों ने अपना जीवन गँवाया |
----------------------------------------
* प्यार बस प्यार और कुछ भी नहीं ,
इसका आकार और कुछ भी नहीं |
तुम जो अच्छे हो अच्छे लगते हो ,
इसका आधार और कुछ भी नहीं |
तुमसे मिलने की तमन्ना भर है ,
वरना इस पार और कुछ भी नहीं
[ लक्ष्मी चंद 'दद्दा ' , गोंडा ]
* सब मानता
कुछ नहीं मानता
वक़्त की बात |
* थोडा सह लो
गुम जायगा दर्द
थोड़ी देर में |
* कुछ न कुछ
हुआ, ज़रूर हुआ
मुस्कराने से |
* भला बताओ
पैर के दर्द पर
क्या प्रवचन ?
* मंजिलें होतीं
एक के आगे एक
राहें छूटतीं |
* हमारे बीच
इतनी दूरी ठीक
या कुछ और ?
* और नहीं तो
आपके जीवन का
कथन और
कर्म का अंतर ही
खोलेगा सारा छद्म !
* हंसाती तो हैं
बचपन की यादें
रुलाती भी हैं |
* कैसे मुक्ति हो
ब्राह्मणी पाखंडों से
चिंता की बात |
* ईश्वर नहीं
अस्तित्व को मानता
क्या परेशानी ?
* भक्ति भावना
जोर मारे तो चलो
अमरनाथ !
* बच निकलो
बहाने बहुत हैं
कोई बना लो !
* हम ठीक हैं
कोई जो हाल पूछे
यही बताएँ |
* मैं तुम्हारा था
मेरा कुछ था नहीं
सब तुम्हारा |
* जल जंगल
ज़मीन की लडाई
मार करायी |
* विषमता का
भण्डार है संसार
इसी में जीना |
* यह दुनिया
वह दुनिया भी है
सब यही है |
* मुसलमान
हमारे मेहमान
तवज्जो योग्य |
* सब सत्य हैं
शास्त्र सम्मत बातें
सिद्ध क्या करें ?
* करते तो हैं
पूजा पाठ, ईश्वर
सुने तब न ?
* किसी प्रकार
ज़िन्दगी काटनी है
कट जायगी |
* सिद्धांततः तो
ठीक कहते आप
हम कर्म से |
* सरस्वती की
सवारी हम लोग
उलूक बुद्धि |
* ऐसे ही नहीं
धन फर्नीचर से
भरा है घर !
* हैं तो ज़रूर
आप लोग समृद्ध
जैसे भी हुए !
* कोई आदमी
कितने दिन रहे
पत्नी के घर ?
* बूढ़ा ज़माना
निगोड़ा है पुराना
इसे बदलो !
* सारे ही लोग
बड़े होशियार है
मैं ही दुर्बुद्धि !
* कटु वचन
निकाला नहीं जाता
निज मुख से |
* राम रहीम,
ईश्वर अल्ला नहीं
शब्द है ब्रह्म |
* मैं नास्तिक हूँ
नास्तिकता प्रचार
मेरा धर्म है |
* बिलावजह के आदमी तमाम
मेरे मित्र हैं |
* कैसे बनता
नेताओं का संकल्प
जन संघर्ष ?
* मेरा स्वार्थ
कुछ और, तुम्हारा
उद्देश्य और |
* नइखे तोडलीं
कौनो लक्ष्मण रेखा
तबहूँ जेल !
* जिस वस्तु की
प्रासंगिकता न हो
हटाओ उसे,
दूर भगाओ जाति
धर्म जनित भेद |
* विश्वास करो
ईश्वर पर, करो
टूटते जाओ
हमें क्या ऐतराज़
जैसी आपकी इच्छा |
* इतना बुरा
तो नहीं लिखा मैंने
आप यूँ चिढ़े ?
* शारीरिक है
बड़ी ही शरीर है
मेरी जो वह |
* सत्ताईस को
मिलने जा रहे हो
मिल ? पाओगे ?
* चलो , मेरे ही शब्द चुराओ
मेरी ही पंक्ति नक़ल करो |
जैसे मैं कहता हूँ -
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
तुम इसे ही सौ बार कहो
इसे दुनिया में फैलाओ !
* हाँ ऐसा ही | मन नहीं मानता | ऐसा ही कहता है जब कोई अपना संकट में होता है | माँ कहती है - हाय मैंने उसे भेजा ही क्यों बाग़ में लकडियाँ, सूखी पत्तियाँ बटोरने ? न मैं भेजती न साँप उसे डसता | जब की सत्य तो बरनवाल की ही बात है | लड़के की मौत तो कहीं भी हो सकती थी | कहीं भी उसे वही साँप डस सकता था |
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