शुक्रवार, 14 जून 2013

Nagrik Blog 10 to 14 June 2013

रुला तो दिया तुमने इन हवालों से हम जैसे लोगों को | लेकिन क्या समझते हो कोई फायदा है ऐसे पोस्ट्स से ? किस्से हैं किस्सों का क्या ? अब उत्पादन, उत्पादक शक्तियों, उत्पादन के मूल्य के बंटवारे वगैरह के बारे में सोचो दिवाकर जी | खूनो क्रांति का स्वागत करो | स्वर्ग उसी रास्ते आएगा |

नक्सलवादी हमलों के तर्ज़ और तर्क पर तो मोदी यात्रा का औचित्य भी निकाला जा सकता है, यदि तार्किक ईमानदार हो तो | वही रति - प्रति वाला ! वही मोदी ने किया था, उसी लाइन पर ये भी अपनी कार्यवाही उचित सिद्ध कर रहे हैं | उन्होंने हिन्दुओं पर हुए अत्याचार का बदला लिया, तो ये आदिवासियों पर अन्याय का प्रतिशोध | अब या तो दोनों उचित हैं या दोनों अनुचित |

नक्सलवाद समर्थकों के दिल दिमाग से वह स्वानुभूत - सहानुभूति वाला दलित तर्क कहाँ गायब हो गया ? क्या ये विश्वसनीय हैं ?

आतंकवाद है तो आतंकवाद का कारण है
कारण है तो निवारण है
नक्सलवाद है तो नक्सलवाद  का कारण है
कारण है तो निवारण है
लेकिन निवारण भी तो आतंक है, नक्सलवाद है
राज्य का, राज्य के लिए, राज्य के द्वारा
इसलिए आतंकवाद और नक्सलवाद का
कोई निवारण नहीं, क्योंकि
आतंकवाद और नक्सलवाद का
कोई कारण ही नहीं |
#  # # #

हम बच गए रे साम्भा
हम फिर बच गए
चला फिर से गोलियाँ
कितनी हैं रे तेरे बन्दूक में
हम तो तीन ही हैं, तीन के तीन
तब भी थे अब भी हैं,
तीन तेरह करोड़ या अरब ;
चिंता मत कर रे  
हैं न तेरे पास इतनी गोलियाँ
नहीं हैं तो आ जायेंगी
तू चला, चलाता जा गोलियाँ
और मारता जा
बड़ा मज़ा आता है रे
जब तू मारता है
और हम मरते हैं
हमें भी मज़ा आता है  
खूब मज़ा आता है रे !
#    $

हे अर्जुन ! न कोई मारता है
न कोई मरता है
केवल असत्य और अन्याय ही मरता है हर बार
और जीत होती है सत्य की
तेरी जीत होती है इसलिए तू सत्य है
शेष सभी झूठे हैं
देख इस बार भी तू ही जीता
इसलिए तू सत्य है
सत्य की जय हो |
#   #

होने दो समर
आप तो नहीं मरेंगें
क्योंकि आप हैं अमर ,
क्योंकि आप आदिवासी
नहीं अनंतवासी हैं,
और आपका का कोई रिश्तेदार
नहीं है यहाँ मरने के लिए |
#  #  

There are so many deaths occurring or made to occur everyday . So , very logically , I request my friends to please not mourn for a single second on my natural or unnatural  death .

मैं नास्तिक हूँ | कहता तो हूँ ऐसा |  ईश्वर भगवान को नहीं मानता | इनके बगैर मेरा काम चल जाता है | चाहे नैतिकता का अथवा अनैतिकता का | लेकिन अल्लाह नहीं है और मै अल्लाह को नहीं मानता ऐसा कहने की हिम्मत नहीं है मुझमे | वह तो ज़रूर है , मुझे उससे डरना पड़ता है जब कि हिन्दू देवी देवताओं का मज़ाक - खिल्ली उड़ाकर भी मैं निर्भय रह सकता हूँ | इतने लोग तो अल्लाह के पक्ष में हैं जब कि उससे अधिक भगवान के विरोध में हैं | तो मेरी नास्तिकता मेरी गलतबयानी ही तो हुई ? मैं अवतारवाद भी नहीं मानता | पर पैगम्बर आते हैं, यह मानना पड़ता है | तमाम बुद्धिजीवियों को सशरीर देखता हूँ जो मुसलमान ही नहीं, उनके बहाने इस्लाम की रक्षा के लिए सीधे परलोक से पधारे हैं, जब कि उनका कहना है कि वे इहलौकिक [यानी सेक्युलर हैं ] | इस्लामी किताब और देवदूत की रक्षा में संघर्षशील मुस्लिम ऋषि - मुनियों का ताप - यज्ञ निर्बाध संपन्न कराने इन्होने भगवान् राम की तरह ही मनुज अवतार लिया है ! तो क्यों न मानूँ अल्लाह को ? क्यों न मानूँ अवतारवाद को ? और तब क्यों न मानूँ श्री राम के भी देवत्व को ?                

"नागरिक" कहो, "नागरिक" कहाओ |
रोटेरियन की तरह, कामरेड की तरह,
आप जो भी हो
" नागरिक " तो अवश्य ही हो |
सबको हमारा संबोधन " नागरिक " है |
यह खुराफात हमारा मिशन है |

Neel ji , Go on writing without thinking merits and demerits of the posts | खलबली मचाये रहिये बेमकसद, कुछ न कुछ मतलब निकल ही आएगा | जैसे इसी पोस्ट से हमने यह निष्कर्ष निकाला कि सब कुछ ठीक हो जाय, सारी समस्या समाप्त हो जाय, बस इस्लामी शासन आने भर की देर है | यही तो कहना चाहती हैं आप ? भाड़ में जाय बुद्धिवाद, चूल्हे में नास्तिकता जिनकी भी पैरोकार हैं आप ! और नहीं तो क्या मतलब आपका ? क्या इतिहास पढ़ाना ? कुछ भूगोल पर भी ध्यान दीजिये | क्या बनाना चाहती हैं और फिर उसी पर नज़र रखिये उसी पर निशाना | कह दूँ तो औरत विरोधी कहलाऊँ लेकिन जो आप कर रही हैं वह औरतों की पंचायत के लिए ही उपयुक्त होता है | कुछ नवीन गढ़िये |

अजेंडा २०१४
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कोई पार्टी या गठबंधन मोर्चा २०१४ चुनाव के लिए मात्र एक अजेंडा घोषित कर दे कि देश से नक्सलवादियों का सफाया करेगी और उनके समर्थक सफेदपोशों को मीसा वगैरह में बंद कर उनका सत्यानाश कर देगी ? क्योंकि न इन्हें इंसानी जिंदगियों से कुछ लेना देना है न देश से कोई प्रेम | दलित भी आखिर सदियों से दलित अवस्था में हैं पर उन्होंने तो कोई नर संहार नहीं किया | ये नर नारी विनश्यते द्वारा मनुष्यों का हित कर रहे हैं तो ऐसा हित नहीं चाहिए |
ऐसा भी तो हो सकता है कि जनता ही यह तय कर ले कि केवल इसी अजेंडे वाली पार्टी को वोट देंगे | न  धर्म न निरपेक्षता , न धार्मिकता न साम्प्रदायिकता | देश के सामने केवल एक समस्या है - अपनी रियाया की रक्षा | ऐसी की तैसी विकास की | पहले आदमी तो बचें | पोस्ट तो कर रहा हूँ पर दर रहा हूँ  | अभी दो दिन पहले ही तो उसी रस्ते कोल्कता से सपरिवार लौटा हूँ और मधुपुर में भात का पैकट खाया था |      

Vsy जी , आज पोस्ट देखा और आप का आदेश भी | मैं बहसों में बहुत कम पड़ता हूँ विशेषकर प्रस्तुत विषय पर | अधिकतर यह बहस नहीं विश्वास का विषय है, मेरे लिए आध्यात्मिक मंथन का | कोई ज़रूरी Nही सब कुछ कोई बता कर हलुआ पूड़ी की तरह दे दे, तभी हम उसे माने या समझें ? यही से फर्क शुरू हो जाता है आस्था और बुद्धिवाद में | तब भी नजीर भाई, उमा जी ने सारा कुछ तो बता दिया - समझने वाले  के लिए | लेकिन आशु की [कथित] जिज्ञासा का उद्देश्य जानना है ही नहीं | वह सब जानते हैं | उनका एक मकसद तो मज़ा लेना है[जो इस स्थल पर वर्जित है ] और दूसरा यह सिद्ध करना कि मुस्लिम नामधारी तो अनीश्वरवादी हो ही नहीं सकता | तो भाई नाम तो कुछ न कुछ किसी न किसी भाषा में होंगे ही व्यक्तियों के विभिन्न संस्कृतियों से उपजे, भले उनके विश्वास / अविश्वास एक से हों | और भाषा किसी ईश्वर की नहीं, आदमी की बनायीं हुई है, और संस्कृतियाँ भी | अलबत्ता वे धार्मिक तीज त्यौहार जैसे लगते हैं |[इसीलिये मैं अपने आन्दोलन में इस बात को शामिल करता हूँ कि संस्कृतियों से माथा मत टकराओं वर्ना टूट जाओगे]| संस्कृति और धर्म को अलग करके देखना होगा, नजीर साहेब ने बताया तो | ठीक है वह बदलाव भी आना चाहिए, और आएगा भी जिस पर आशु जी घिसे जा रहे हैं | लेकिन पहले दिमाग तो बदले प्रिय बन्धु ? उसकी तैयारी और आपके आदेश - पालन में अपनी जो थोड़ी जानकारी है बता दूँ [वैसे तो मैं तो "पोथी पढ़ि- पढ़ि जग मुआ" वाला ज्ञानी ? हूँ ] - इस क्षेत्र में कई शब्द झीने अन्तरो से ख्यात है | Humanism, Secularism, Rationalism के अलावा आस्थावादी Theist के विपरीत को Non - theist, Non - believer, Atheist, Godless , Mystics , Agnostics etc तमाम | लेकिन इनमे इतने थोड़े अंतर हैं [उसमे मैं जाऊंगा ही नहीं ] जो दर्शन के अध्येताओं के लिए है, फेसबुक के लिए नहीं | यहीं फेसबुक पर हैं वह लेकिन कम वाचाल, कभी अपने मित्र Dr Ramendra Prof & Head , Philosophy -Patna से मिलाऊँ | उन्हें जानकारी भी है और शल्यक्रिया में पटुता भी  | उनकी संस्था " बुद्धिवादी समाज " है और एक किताब भी " आस्तिक - नास्तिक संवाद " नाम से | दर असल होता यह है की हम सरसरे तौर पर ज्ञानी बनना चाहते हैं और आनन् फानन में कमेंटेटर  | न तत्संबंधी पुस्तकें पढ़ते हैं, न ऐसे लोगों और संस्थाओं से संपर्क | [ उलटे इन्हें हंसी मज़ाक का पात्र, चिढ़ाने के लिए इस्तेमाल ज़रूर किया जाता है ] | जिसका जो मन हो करे किन्तु ये चीज़ें थोड़ी गंभीरता और गहराई से डूबने की तो होती ही हैं, लो उम्र गुज़ार देते हैं | यह हार जीत का कुरुक्षेत्र नहीं आध्यात्मिक कर्मस्थली है | आशु जी से निवेदन कीजिये कि खुद कुछ झाँकें हमारे क्षेत्र में कोई गुरु / ग्रन्थ वगैरह नहीं होता | सब खुद जानना होता है, खुद पकाना खुद खाना होता है | एक ही दर्शन के मानने वाले भी भिन्न मत के होते हैं | इसीलिये हमारा कोई संगठन - मठ नहीं बनता | फिर भी एक आसान रास्ता सूझता है - ईश्वरवाद/ आस्थावाद को पहले जान लो फिर उसी को उलट दो या औना पौन्ना कुछ टेढ़ा मेढ़ा करके देखो | शायद कुछ मिल जाए | मिल जाये तो हमें भी बताएँ | न मिले तो एक घंटा मौन रहकर देखें |    
"अनीश्वरवाद जानना चाहता हूँ "
आप अनीश्वरवाद क्यों जानना चाहते है ? पहले यह स्पष्ट कीजिये | फिर बताइए आप किस्से जानना चाहते है - ईश्वरवादियों से या अनीश्वरवादियों से ? इस जानकारी का आपके लिए क्या उपयोग ? क्या इस्तेमाल करेंगे उसका ? राजनीतिक या आध्यात्मिक या ठिठोलिक ? आप कहाँ खड़े हैं, क्या हैं ? आस्तिक नास्तिक या केवल बाहसिक ? ? ? Question mark is the base of Reasoning .  
बहुत जन हैं संवाद के लिए | मं असमर्थ हूँ, या मेरी एक सीमा है | मैंने तो महज़ VSY के आदेश पर फ़र्ज़ अदायगी की | अन्य कोई भी संवादी कृपया एक आँख से पढ़कर दूसरे से निकाल दें |          
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* तब नयी संस्कृति का विकास होगा | बिना धार्मिक आदेश के हम ज़िम्मेदार और कर्तव्यनिष्ठ होंगे | बिना विज्ञानं के बताये हम प्रणाम - नमस्कार करेंगे ; एक दूसरे को गले लगायेंगे - चूमेंगे |
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Shraddhanshu Shekhar
Out beyond ideas of wrongdoing
and rightdoing there is a field.
I'll meet you there.
Pata hai ? Yaha se bohot door... ghalat or sahi ke paar, ..ek maidaan hai, main waha milunga tujhe.
- Rumi

* जनाब हिनुस्तान [ भारत ] में रहते भी तो नहीं | तब भी आश्चर्य कि विश्व इस्लामी जगत को भी नहीं देख पाते ! बस इनका इतना समर्थन तो उन्ही का उतना विरोध | उनका उतना विरोध तो उन्ही का इतना समर्थन | मकसद विहीन | हमारे मित्र ऐसी Pottery को मज़ाकन BPL , " बे पेंदी के लोटे " कहते हैं |   ujjwal bhattacharya

* मैं उस घर में सुकून से रह कैसे सकता हूँ जिसमें पूजा पाठ होते हों | रोज़े नमाज़ रखे जाते हों ?
[ to Niranjan Sharma - मैं महान नहीं, साधारण आदमी हूँ | अपना भी सुख - सुकून तलाश करता हूँ | हर आदमी हर माहौल में नहीं रह सकता | हिन्दू मुस्लिम माहौल में / जैन सिख माहौल में / मुस्लिम भी हिन्दू घर में बेटी नहीं ब्याहेगा [ बिना उसे मुस्लिम बनाये ] | सो , नास्तिक/ ईश्वरद्रोही भी - - - मतलब चैन से तो नहीं | वैसे तो सबमे दबा कुचला रहता ही है | एक कान में अजान दुसरे में घंटा घड़ियाल !  ]

* मुसलमान का मतलब मुसलमान | हिन्दू का मतलब कुछ नहीं | [ अब कुछ होने लगे है ]

* उनसे मेरी रुष्टि एक बात को लेकर है | उनका चिर - परम - अति अमरीका विरोध और इस्लाम - मुसलमान प्रेम | तुलना करें [ अमरीका की ] आर्थिक दादागिरी या साम्राज्यवाद [ जो कि कभी भी धूल में मिल सकता है ] , ज्यादा खतरनाक है या या इस्लाम की शाश्वत - स्थायी धार्मिक - सांप्रदायिक मुक्केबाजी वाला साम्राज्यवाद | जो एक बार जीत गयी, स्थापित हो गयी तो सदियों न जायगी ? बाक़ी सब कम से कम कहने सुनने में तो ठीक ही लगता है | अच्छा विचार है |

* आसमान में कुछ बदली है ,
क्या दुनिया भी कुछ बदली है ?

* तुम जो अच्छे हो अच्छे लगते हो ,
वरना कुछ बात और कुछ भी नहीं |
[ गोंडा के शायर हैरत साहेब या लक्ष्मी दद्दा ]

* तुम नहीं आओगे तो
मर नहीं जाऊँगा,
पर आ जाते तो
जिंदा हो जाता |

* सास खाती है
पतोहू बनाती है ,
काल (टेन्स ) बताओ ?

* सामने आओ
 बिना  रंग रोगन
विश्व सुन्दरी |

* काम ही प्यार
उपजाता है यार
समझा करो |
OR =
* सेक्स से प्यार
उपजता है यार
समझा करो |

* तिल का ताड़
बनाने में माहिर
साहित्यकार |

* बनना होगा
सबको मजदूर
जग सवाँर |

* स्वार्थी मनुष्य
अपना ही सोचता
निस्स्वार्थी नहीं |

* रमई काका !
बड़ा ध्वाखा ह्वै गा
लखनऊ में |  

* मानना होगा
घृणा बटोरी तो है
मुस्लमानों ने  |

* अकेले रहो
कुछ भी खाओ
कोई न जाने |

* हम न होंगे
कोई पूछेगा नहीं
तब की सोचो |

* धर्मग्रंथ को
किताब कहता है
नास्तिक होगा !

* मरहूम तो
जिंदगी से हो गया
महरूम है |

* आदर्श स्थिति
नारी नारी न रहे
नर न नर |

* तुम अपने
नसीब पर रोये
हम अपने |

* प्रेम का रोग
लगा जो रे जोगी को  
भोगी न हुआ |

* रजनीगंधा
एक फूल का नाम
मेरी बेटी का |

* नवनीत है
मेरे बेटे का नाम
बेटी से छोटा |

* अनुपमा है
बहू मेरी, हँसती
खिलखिलाती |

* दिनमान है
मेरे पोते का नाम
एक वर्षीय |

* पारिजात है
अब बड़ा हो गया
नाती का नाम |

* पारिवारिक
नहीं होनी थीं बातें
बस हो गयीं |    

* चित तुम्हारी
पट भी तुम्हारी हो
ज़रूरी नहीं |

* सुख साधन
अच्छे लगते हैं
सह - आपत्ति |

* भूखी दुनिया
मैंने, तुमने देखी
प्यासी दुनिया |

* गंगा जमना
संगम जो हो गया
तो सरस्वती ?

* दुर्भाग्य ही है
चिकन पैदा होना
कटते जाना |

* मैं बिल्कुल ही  
विचलित नहीं हूँ
दुर्दशा पर |

* एक दुनिया
छोड़कर मै आया
तेरी दुनिया |

* किसी के पीछे
चाहता या चाहेगा
कौन रहना ?

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* मैं सिर्फ आदमी हूँ
बल्कि आदमी से भी गया बीता,
आदमी तो फिर भी
धर्मों के प्रभाव में
प्रेम जैसा कुछ करते हैं ,
पर मैं घृणा भी करता हूँ
बल्कि घृणा ही घृणा
करता हूँ मैं ;
मैं घृणित मनुष्य हूँ |
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* मैं शाकाहारी  नहीं हूँ | कभी कभी मांसाहारी भी हो जाता हूँ | सिगरेट भी पीता हूँ | लेकिन अन्य लोगों की भाँति मैं मांसाहार और धूम्रपान के पक्ष में कुतर्क पेश करने की धृष्टता नहीं करता

* सरस्वती गुप्त नदी हैं संगम की | साहित्यकार को गुप्त ही रहना चाहिए | अपना काम चुपचाप करना चाहिए |

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