मंगलवार, 28 मई 2013

Nagrik Posts 28 May, 2013

* कहाँ कहाँ तक सिजदे करें ?
कब हम शीश उठाकर चलें ?

* अच्छा , एक और बात बताया जाय जो कभी कभी खुराकता है क्योंकि ताज़ा है | वर्ना हम तो कितना भूल गए | म्यामार विरोधी प्रदर्शन जो लखनऊ में हुआ बुद्धा पार्क को भी क्षति पहुँचाई गयी | उस हिसक उपद्रवी जुलूस के किसी एक भी अपराधी पर पुलिस हाथ दाल पायी ? उसकी हिम्मत ही नहीं है इस सरकारके अंतर्गत | क्या मुसलमानों की कोई माँग सरकार के पास गयी कि दोषी मुसलमानों को सजा दी जाय ? तो कैसे मान लिया जाय कि ये न्याय चाहते हैं | हाँ अपनी बात ज़रूर ऊपर रखना चाहते हैं | ठीक है कि जो पकडे जाते हैं कोर्ट से सजा पाने से पहले अपराधी न मने जायं | लेकिन भारतीय न्याय व्यवस्था में आप यह भी भरोसा नहीं दिल सकते कि जो छूट गए वे अपराधी नहीं थे | जनता सब समझती है | वह यह कि शक के आधार पर इन्हें पकड़ा जाय तो मानवाधिकार का हनन और यदि ये स्पष्ट रूप से दोषी हों तो वह उनका मज़हबी आस्था का मामला | क्या तसलीमा नसरीन और रुश्दी के साथ अपराध व्यवहार क्या कोई छिपी हुई चीज़ है ? ऐसे ही आतकी कार्यवाहियों पर जब इनके संगठन स्वयं उसका ज़िम्मा लेते हैं तो आप लीपा पोती क्यों करते हैं ? या अल्लाह पाक ने भेज ही इसी लिए है कि आप मुसलमानों कि रक्षा करो और मुसलमान अपने पैगम्बर और किताब कि हिफाज़त में जाने लेते देते रहें ?

* an old poem :--
* वह देखो कौआ
कंकडें कुछ चुन रहा है
कहीं पानी का स्तर
कम हुआ होगा !
[ugranath]

* धार्मिक होने का मैं कोई सहज, सार्थक, बोधगम्य मतलब या परिभाषा निकालना चाहता हूँ :--
कुछ उसूल का आदमी , किन्ही उसूलों वाली औरतें !
अर्थात, धर्म का अर्थ हुआ उसूल / सिद्धांत |

* दुनिया के नास्तिको , एक हो !

* आभासी संस्था -
असहमत
L - V - L /185 / L , Aliganj , Lucknow .
कुतर्क [ कुर्वन्तु तर्कः ]
अलग राय,
अलग दिशा ,
अपवाद ,
अनवाद , अनवादी [ Cantankerous ] = अनवाधी [ देहाती भाषा में झगडालू ANVADHI ]
कृपाण [ भी संस्था का अच्छा नाम हो सकता है ]
उल्टी दुनिया  
परलोक [ Other World ] , I feel , I do not belong to this world  .
उत्पादकता ,

* पाखंडी जीवन ( पाजी = Low, mean, wicked person ), लोकभाषा में - बदमाश |
" पाजी संस्थान "  / संचालक - उग्रनाथ नागरिक

* हनुमान जी हमारे कष्ट क्या निवारेंगे, उल्टे आज बड़े मंगल के दिन उनके वजह से लखनऊ का जनजीवन संकट में हो गया है |

* व्यापारिक अख़बारों का स्टाफ उस पात्र के प्रति वफादार- ईमानदार हो ही नहीं सकता | होना भी चाहे तो किसके प्रति सत्यनिष्ठ हो ? किस उसूल या किन सिद्धांतों के प्रति ? क्या विज्ञापन बटोरू नीति के प्रति ? वह तो वह हो नहीं सकता , यदि पत्रकार है वह ?

* मियां की  जूती, मियाँ का सर |
और थोडा अक्ल लगाओ तो कह सकते हो - तुम्हारा ही तो दोहा है -
उत्तम खेती माध्यम बान ,
निषिध चाकरी भीख निदान | ?
तो खेती जो उत्तम है, वह तो सदा से ही हमारे हिस्से में रही | मज़ाल है कोई सवर्ण हल के मूंठ पकड़ लेता ! तो नौकर तो सदा ही रहे हम | आप लोगों की सेवा करना तो हमारा धर्म है | आजकल उसी को service कहा जाता है | असली खेती तो वहीँ पर है | और उस पर हमारा हक है | वह हमारे लिए सनातन से आरक्षित रहा है | तो आज तो हमें 35 - 50 नहीं पूरा का पूरा कोटा हमें मिलना चाहिए | तुम लोग निषिध चाकरी [ हमारी ], मध्यम बान, और भीख निदान का पेशा करो  |  

जैसे इन्होने लिखा झूठ - यत्र नार्यस्तु - - - , तो तुम भी झूठ लिख दो - यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते भगन्ते तत्र देवताः |
 

* प्यार तो हुआ लेकिन परवान नहीं चढ़ा |   [] kathan ]

* शादियाँ यदि बारातियों के लिए Tourism का हिस्सा न बने, तो शायद इस पर खर्च में कुछ कमी आये |

* फिक्सिंग पर कुछ लोग बवाल किये हुए हैं, मानो यह कुछ अनैतिक कर्म हो | मेरी समझ में तो जैसे यदि कोई Fixed Rate की दुकान हो, तो मैं तो इसे अच्छी बात ही समझता हूँ | या कोई औरत किसी पुरुष से, कोई पुरुष किसी औरत से फिक्स हो तो शादी इसी को तो कहते हैं ? और इसे तमाम लोग अच्छा रिवाज़ ही बताते हैं | फिर गड़बड़ कहाँ है ? Quickfix या इसी प्रयोजन से फेविकोल कितनी सारी तो खरीदी जाती है स्टेशनरी और हार्डवेयर की दुकानों से |
लगता है देश पर अन्ना- अरविन्द का इतना अन्धमोह छा गया है मुल्क पर कि यह अपने लालों -ललनाओं कि अच्छी कारगुजारियों को पहचान नहीं पा रहा है |  

* कुछ हँसना भी सीखो संजू | मुसलमानों की नक़ल मत करो | हिन्दू धर्म की तुलना कमज़ोर इस्लाम से मत करो जो अपनी रक्षा के लिए मनुष्यों का मोहताज हो | इसे कट्टरपंथी मत बनाओ | इस्लाम  बहुत पसंद हो तो उसे ग्रहण कर लो जो कि धर्म नहीं मज़हब है | इसे ऐसे ही रहने दो सारे मनुष्यों के लिए - पुरुषोत्तम राम के लिए तो औघड़ शंकर के लिए | हिन्दू मज़हब नहीं है, न इसे ऐसा बनाने की कोशिश करो |
कुछ हँसना भी सीखो संजू | मुसलमानों की नक़ल मत करो | हिन्दू धर्म की तुलना कमज़ोर इस्लाम से मत करो जो अपनी रक्षा के लिए मनुष्यों का मोहताज हो | इसे कट्टरपंथी मत बनाओ | इस्लाम  बहुत पसंद हो तो उसे ग्रहण कर लो जो कि धर्म नहीं मज़हब है | इसे ऐसे ही रहने दो सारे मनुष्यों के लिए - पुरुषोत्तम राम के लिए तो औघड़ शंकर के लिए | पवित्र पंडित के लिए तो गंदे भंगी के लिए समान रूप से स्वीकार्य | इसे शुद्ध और आर्य मत बनाओ | हाँ आपका ' मज़हब' हो सकता है आर्य लेकिन उसमें देवी देवता अवतार मूर्तियाँ कहाँ हैं ? किसकी रक्षा करने चले हो ? हमारा ईश्वर सबका रक्षक है तो अपनी भी रक्षा कर लेगा | 'हिन्दू कोई मज़हब नहीं है, न इसे ऐसा बनाने की कोशिश करो |
" सर्वे भवन्तु सुखिनः " का अर्थ मालूम है संजू ?
एक टीवी कार्यक्रम ' बहुत खूब ' पर एक कवी ने बताया :--
सर्वे हुआ , सभी लोग सुखी हैं |

* मैं किसी से झगडा करूँ यह तो मुझे अच्छा लगता है | लेकिन कोई मुझसे झगडा करे, यह मुझे अच्छा नहीं लगता |

* वैसे धर्म अफीम है नहीं | लेकिन धर्म अफीम भी है | ऐसा, कोई कहे या नहीं, किसी ने कहा हो या नहीं, यह तो धार्मिक जनों के उटपटांग बात व्यवहार से ही पता चल जाता है |    

* और देहाती महिला लोक गायन में भगवान् श्री राम के लिए पर्याप्त गालियाँ दिए जाने की व्यवस्था है | सीता को वनवास देने के कारण |

* बूढ़े न होते तो दादा दादी की मिजाजपुर्सी के बहाने कोई बात कैसे करता ? बात आगे कैसे बढ़ाता ?

* नास्तिकता का शोर तो क्या मुझे तो इसकी तूती के आवाज़ भी सुनाई नहीं देती | अतः हमारा कान फोडू स्वर जिसे सुनाई दे या दिया , उसके मुंह में घी - शक्कर ?

* वह मित्र ही क्या जिससे जब तब आये दिन झगडा न संपन्न हुआ करे ?
मेरे तो अनेक मित्र हैं |

* पति कभी कंजूस नहीं होते | उनकी पत्नियां उन्हें ऐसा बना देती हैं |

* बड़ा सुख है | अच्छा है जो हम दोनों में मोबाईल सम्बन्ध नहीं है |

* अख़बारों में लेखों के नीचे कोष्ठक में लिखा रहता है - [ ये लेखक के अपने विचार हैं ]
-- इससे ज्ञात होता है कि लेखकों के ' अपने विचार ' भी होते हैं | [ aur sampadakon ke nahi hote ]

* भारत की वाम पार्टियों को कुछ दिनों के लिए राजनीतिक क्षेत्र से हट जाना चाहिए, क्योंकि हम जैसे आम लोग दार्शनिक, विचारधारा स्तर पर इनमे और नक्सालियों में ज्यादा भेद नहीं करते और नक्सली काफी बदनाम हो चुके हैं | कोई किताब लेकर, बैठकर मार्क्सवाद और माओवाद में फर्क ढूंढ कर निकलने नहीं जाता | और यह देखा जा चुका है की वामपंथी सोच के लोग, संगठन, साहित्यिक मंच आदि ही अभी तक सभी नक्सलवादियों के लिए बोलते, उनके लिए आंदोलनरत होते रहे हैं | विनायक सेन आदि की सूची लम्बी है | इसलिए ये भी अब लोकतंत्र में अविश्वसनीय हो चुके हैं | दोनो भाई भाई हैं और कोई अंतर नहीं, जो है दिखावे का है दोनों में |    

* देशप्रेम देशभक्ति चलो खराब है , लेकिन देशविरोध , देश से दुश्मनी तो अच्छी चीज़ नहीं है ? या यह भी सही है ?

* पंडित का काम पंडित करता तो भी ठीक था | अब तो वह काम ठाकुर बनिया , लाला , अहीर कुर्मी सभी करने लगे हैं | देखिये उनके माथे का टीका और भजन कीर्तन मंदिरों में घंटे हिलाना ! यहाँ तक कि दलित भी इस शामिल हैं | अब यह न कह दीजियेगा कि यह भी ब्राह्मणों कि साज़िश है और आप लोग दोष मुक्त हैं ? कुछ ज़िम्मेदारी खुद भी उठाइए, अपनी कमजोरी स्वीकार कीजिये |  

* यह सत्ता और व्यवस्था का दलितपन, देहाती भाषा में चमरपन ही है जो भारत के शौचालय ठीक से नहीं चल रहे हैं, इनकी अव्यवस्था को ढीला और कमियों को नज़र अंदाज़ किया जा रहा है | सुलभ शौचालयों के सन्दर्भ में बिन्देश्वरी पाठक जी की भूमिका अस्पष्ट है | बस इतना स्पष्ट है की उन्हें अंतर राष्ट्रीय पुरस्कार मिले | हाल यह है कि दबंगई से पांच रु प्रति शौच लिया जाता है और सफाई कुछ नहीं | कहीं तो साबुन,पाउडर भी नहीं दिया जाता | अटेंडेंट यात्री के सामान कि सुरक्षा तो नहीं लेते , पर दरवाज़ों पर एक लोहे की कील भी नहीं लगाते कि झोला टांगा जा सके | ज्यादातर तो दरवाजे ही नहीं होते | यह तो कहिये भारत की पब्लिक है, शेषन और मारकंडे काटजू कि नहीं सुनती और कहीं भी बैठ जाती है | कोई और देश होता तो शौचालय क्रांति हो जाती | भाई लोग बड़ी बड़ी व्यवस्था परिवर्तन की कारगुजारियों और आंदोलनों में लगे हैं | उन्हें फुर्सत और यहाँ तक सोच ही कहाँ ? और कहते हैं औरत का सम्मान हो | औरतों को सफ़र या बहार निकलने में कितनी परेशानी होती है |  कामोद स्वयं साफ़ कीजिये, पानी खुद भरकर ले जाइये, मुंशी बस कुर्सी पर बैठा रहता है | उसका काम केवल पैसा वसूलना है | वह पैसा जाता कहाँ है, जब इनकी साफ़ व्यवस्था के लिए कोई कर्मचारी ही नहीं होता ? इसके लिए जगह ज़मीन तो सरकार ही देती होगी ?

* मुस्लिम समाजवादी पार्टी [ मुलायम सिंह ]
का उ.प्र, में काम काज ठीक ही चल रहा है | ?

* मंदिर मस्जिद अध्यात्म मार्ग बतलाएँ या नहीं, लेकिन शहर के सड़क मार्ग के पहचान - पथ प्रदर्शक की भूमिका ज़रूर निभाते हैं | सीधे चले जाओ | एक मंदिर आएगा | वहाँ से बाएँ मुड़ जाना | सौ कदम चलने पर आपको एक मस्जिद मिलेगा | उसके सामने दायीं और की सड़क पर बस बीस कदम चलोगे तो एक गुरुद्वारा सामने दिखेगा | बस उसी के पीछे " उनका " घर है |

* आखिर इतना हंगामा क्यों है मुसलमानों और मौलवियों और "पीस" पार्टियों की और से ? आखिर वह आतंकवाद में आरोपित थाऔर वह निराधार तो न था ? उससे इतनी सहानुभूति क्यों ? ये तो कहते हैं ये वन्दे मातरम् भले न गायें पर इन्हें मुल्क प्यारा है | तो प्रथम दृष्टया तो वह नफरत का पात्र था, और प्रेम पात्र तो नहीं ही बनता है | वह कैसे मरा जांच चल रही है, लेकिन उसका इनकाउन्टर तो नहीं हुआ ? गौर करने की बात है अपने नाम के लोगों के मुआमलों में कितना त्वरित सक्रिय हो जाता है मुस्लिम समाज, वह मामला कोई भी हो ? और राजनीति उनका पूरा साथ देती है |    

* श्री मान फेसबुक महोदय
नमस्कार
आपसे निवेदन है कि अपने पढ़े लिखे बेरोजगार युवा सदस्यों को यह गोपनीय परामर्श [ सलाह ] दे दें कि जब वे नौकरी के लिए इंटरव्यू में जाएँ तो यदि कोई या कुछ तांत्रिक अंगूठियाँ पहनते हों तो उन्हें निकाल कर पेंट की बाएँ जेब में रख लें, या उन्हें घर पर ही छोड़ आएँ | टीका कुंकुम लगाकर, कलावा पहनकर न जाएँ | वरना यदि मेरे जैसा कोई परीक्षक हुआ तो वह आपकी पढ़ाई लिखाई डिग्री डिप्लोमा कुछ नहीं देखेगा और धीरे से आपको आउटकर देगा | आपकी सारी योग्यता धरी रह जायगी, और आप अपने घर बैठे रह जायेंगे | मेरा इसमें कोई स्वार्थ नहीं है, बस उनकी भलाई के लिए बता दिया |      

 उन्हें न हो पर हमें तो अपनी चिंता है | वे स्टेट के खिलाफ , तो स्टेट क्यों न हो उनके खिलाफ ? और ऐसे ही दार्शनिक लाग लपेट के चलते तो ये मनबढ़ हुए हैं | क्योंकि इन्हें तमाम किताबी लोगों का समर्थन प्राप्त है | लाल किताबी उन्हें अपनी और बड़ी आसानी से पल्झा ले जाते हैं, जो नहीं चाहते कि उन्हें ज़रा भी कम विद्वान् मन जाय | हम देहातियों को उनकी बात समझना मुश्किल है | इसे आप क्या कहेंगे कि हम चुप हैं क्योंकि हमें अपनी जान बचानी है ? अब भी आप ऐसे दर्शन को बचने में लगे हैं जो समस्या को दूर करने के लिए समस्याग्रस्त लोगों कि ही जान लेती है | सारी समस्या केवल माओ प्रभावित क्षेत्रो में ही है, अन्य भारत क्या चैन से है | और इसके लिए क्या विशद हिंसा को उचित कहा जाय ? किन्हें मूर्ख बनाया जा रहा है ? तर्क और औचित्य तो संघ के पास भी है, पर कभी नहीं सुना उनके पक्ष में बोलते ? मानो वे इस देश से सम्बद्ध ही न हों, उनका कोई सरोकार ही न हो | इसलिए कुछ न कहिये | निंदा करके चुप हो जाइये | हमने तो नहीं की निंदा प्रशंसा !  

* कंटक [Cantankerous ]
जो तोको काँटा बुवे ताहि बुए तू फूल |
इस संत सुझाव के पालन में मैं कांटे बोने वालों पर फूल ही बरसाता हूँ | वह भी झौवा भर भर पूरे पूरे गुलाब के, उनके डंठल समेत | गुलाब के पौधे |
     

[ कविता ]
* इतने तो बच्चे हैं
कितनों को प्यार करें ?
इतनी तो औरतें !
#  #

[ कविता ]
कभी दायाँ हाथ
खुजलाता है
कभी बायाँ हाथ ,
न बायाँ हाथ कुछ देता है
न दायाँ हाथ कुछ पाता है
फिर दायाँ - बायाँ हाथ
खुजलाने का
मतलब क्या है ?
#  #

[ कविता ]
* लुटेरे ?
कुछ लोग
चंगेज़ को कहते हैं ,
तो कुछ
अंग्रेजों को ,
मैं पूरे हिन्दुस्तान को
कहता हूँ |
#  #

[ कविता ]
* अरे, वह बात तो  
कहनी छूट ही गयी
चलो, छूट जाने दो |
#  #

[ उम्दा कविता ]

* पता नहीं
कोई कीड़ा है या
तुम्हारी उँगलियाँ ?

#   #
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( मेरा आज का दिन सार्थक हुआ )
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* अहं ब्रह्मास्मि
असत्य संभाषण
वयं ब्रह्मास्मि
आवाम ब्रह्मास्मि च
सत्य कथनं अस्ति |    

* राजद्रोह ही
प्रगतिशीलता है
एकसूत्रीय,
एकमात्र सिद्धांत  
उनका कार्यक्रम |  

* नमस्ते करो
ये तुम्हारे बाबा हैं
पहचान लो,
प्रणाम करो बेटा
तुम्हे आशीष देंगे |

* बिना कहे ही
मैं तो आपका हुआ
कहने से क्या ?

* मेरी मुस्कानें
तुम पर निर्भर
छीन न लेना |

* शहीद हो जाऊँ ?
इन्ही चोरों के लिए
आज़ादी लाऊँ ?

* जिसने दिया
मैं तो शुक्रगुजार
उसका हुआ |

* आदमी मूली,
आदमी है गाजर
काटते जाओ |

* नहीं बिगड़े
हम नहीं बिगाड़ें
यदि मामले |

* दिन ब दिन
बिगड़ेगी हालत
सुधर कर |

* कविजन तो
सत्य से साक्षात्कार
करवाते हैं |

* कँटीली आँखें
काली कलकत्ता की
नाक नुकीली |

* धर्म रक्षक ?
बन्धु, रहम खाओ
धर्म को बख्शो |

* मोबाईल क्या
इतना ज़रूरी था
जीने के लिए ?

* एक दिन तो
बहुत तेज़ धार
पानी बरसा |

* चला जाता था
बहुत दूर तक
अब दूभर |

* क्या दोगे मुझे
उर के बदले में
ह्रदय देना |

* कोई मुझसे
करता तो है प्यार
बताता नहीं ,
हिचकियाँ मुझको
मौनव्रत उनका |

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