* प्रमोद जोशी जी एक अनुभवी पत्रकार हैं | यदि हम यह बात कहतें तो भले टाल दिया जाता | लेकिन उन्होंने बड़ी गहरी और महत्वपूर्ण बात कही है - " देश में राजनीति से सबसे ज्यादा विमुख वे लोग हैं जो किसी राजनीतिक दल का झंडा उठाकर चलते हैं। " दलीय राजनीति वाले हम पर आरोप लगाते हैं कि हम राजनीति में नहीं आते इसलिए राजनीति गंदी और भ्रष्ट हुयी है | जब कि स्थिति पलट है | एक तो हम बाकायदा राजनीति में हैं, ऐसा समझा जाना चाहिए | और हमारी वजह से ही राजनीति में कुछ श्रेय अवशेष है | जब कि दलीय लोग तो राजनीति का व्यापार करते हैं, राज्य की नीति को बेचते - बर्बाद करते हैं | यह अध्याय हमारे Political Training Program के लिए भी उपयुक्त है |
* सोचना होगा मुस्लिम कौम हिन्दू कुप्रथाओं से क्यों बचा रही ? या इन अर्थों में कोई भी अन्य हिन्दुएतर धर्म ? क्योंकि उन्होंने उन रिवाजों से खाली होने वाली जगह { VOID } को खाली नहीं छोड़ा, या कहें void रहने ही नहीं दिया | बल्कि अपनी नकारात्मक या सकारात्मक नीतियों से भर कर उसका मुँह बंद कर दिया | जैसे उन्हें छुआछूत से मुक्त होना था जो उसे दृढ़ता पूर्वक इन्कार किया | मूर्तियों को हटाया , तो एक अल्लाह से उसकी पूर्ति कर दी | इस प्रकार वे समान्तर से उसके सामने खड़े हो गए |यहाँ हिन्दू कि जगह पर किसी अन्य मज़हब का नाम replace कर सकते हैं | मैं तो इसके पाखंडों, छुआछूत, जात पांत, जैसे बुराइयों को उदहारण बना कर सोच रहा था | और यह भी चिंता थी कि नास्तिक विचारधारा के लोग धर्म कि बुराइयाँ, या धर्म को ही त्याग तो दें पर उस Cavity को भरेगे किससे ? या क्या बिना भरे, नई संस्कृति, रीति रिवाज़ लाये बिना इस जगन्मिथ्या में सच्चाई से जी पायेंगे ?
* On FB, अंग्रेजी में एक पेज है - Militant Atheism . यह मेरी LIKE में तो है पर अंग्रेजी मैं कहाँ लिखता हूँ | लिखता होता तो लिखने का मन था :-- Secular Demand List
जो अल्लाह पर विश्वास करे सरकार उनकी कोई बात न सुने , हज यात्रा की परेशानियों के अलावा | कहे की नौकरी, सब्सिडी और आरक्षण ? उन्हें वस्तुतः इनकी ज़रुरत भी नहीं है | ईश्वर है न इनके पास ? [Unna - cantankerous atheist ]
{ कविता } = " धारयति इति ईश्वरः "
धारण तो करता है ईश्वर
मनुष्य की धारणा को ,
मनुष्य जैसा सोच ले
वह वैसे कपडे पहन लेता है,
मनुष्य जैसा भी चाहे
वैसा ही वस्त्र धारण कर लेता है ईश्वर |
कभी राम के कपडे
तीर धनुष के साथ
तो कभी कृष्ण का पीताम्बर
बाँसुरी ले हाथ,
कभी काली, कभी दुर्गा
कभी शिव, कभी कुछ,
कभी तो हनुमान भी गदाधारी
यहाँ तक कि अदृश्य शून्य
पहन लेता है वह, और हो जाता है
निराकार, अमूर्त कोई ब्रह्म ,
और भी कभी गॉड पार्टिकल
कभी एटम बम भी हो सकता है |
लेकिन पहनता है, पहने रहता है
आदमी के ही पहनाये कपडे |
कैसे भी, उसका अपना कोई वस्त्र नहीं |
अब वह कोई सचेतन, जीवंत
संवेदन- स्पंदन युक्त
जीवधारी तो है नहीं
मनुष्य की भाँति, जो
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
की तरह अपने पुराने कपडे
उतार कर नए धारण करे ?
इसलिए वह जड़, जडवत
अपना कोई वस्त्र नहीं उतारता
और मनुष्य अपनी धारणा
उस पर लादे चला जाता है
सड़े गले - जीर्ण शीर्ण वस्त्र भी चढ़ाए रहता है
नए धर्म के आगमन से पुराने धर्म जाते नहीं
सब एक दूसरे पर लदे रहते हैं - गंधाते |
मनुष्य कहाँ धारण करते हैं धर्म
ईश्वर ही मनुष्य की धारणा को ढोता फिरता है
विवशतः, क्योंकि उसका
अपना कोई जीवन नहीं है
नहीं है कोई जीवित जीव वह,
न उसके पास है कोई ताक़त
कपडे पहनने - उतारने की चाहत |
# # #
* कम्युनिस्ट जन निस्संदेह नास्तिक हैं, लेकिन नास्तिकता के भक्त | हम भी नास्तिक हैं | पर नास्तिकता के मंदिर के पुजारी |
* सारे धर्म क्या तर्क के आधार पर बने हैं जो आज हमसे नास्तिकता, बुद्धिवाद का तर्क माँगा जा रहा है ? क्या इसलिए कि हमने तर्कबुद्धि को आधार बनाया है ? तो उससे क्या ? वह आधार हमारे लिए है, हम पालन करें या नहीं पालन कर पायें, जैस आप भी करते हो | हमारा आधार हमारे निकष पर होगा आपके नहीं | आपकी आस्था आपके पास, हमारी बुद्धि हमारे पास ! आपकी आस्था मेरा कल्याण नहीं कर सकती | मेरी बुद्धि आप से बहस करने के लिए नहीं है |
* मुस्लमानों से धर्म चर्चा न करें :-- एक कार्यक्रम मेरी समझ में बड़ी शिद्दत से आता है | इस निष्कर्ष के बाद कि इस्लाम नास्तिकता के मार्ग में सबसे बड़ा बाधक है | वह यह कि मुसलमान [व्यक्ति - मनुष्य ] से तो घृणा न करें ; कर ही नहीं सकते | लेकिन उनके इस्लाम का वैचारिक बहिष्कार करें | उनसे इस्लाम की या किसी भी धर्म की चर्चा में भागीदारी न करें, न उन्हें भागीदार बनायें | जब हम उन्हें नास्तिकता के तर्क नहीं दे सकते, उनके लिए उसे सुनना भी पाप है, तो हमें भी उनके मज़हब के शुभ सन्देश सुनकर जन्नत की दरकार और तमन्ना नहीं है | इसमें सांप्रदायिक जैसा कुछ नहीं है - यह तो युद्ध है - हकीकत से दो दो हाथ !
* जीतेगी यार , ज़रूर जीतेगी तुम्हारी पार्टी चुनाव में | बस अपने अध्यक्ष से कहो वह रोज़ एक समोसा लाल चटनी के साथ खाना शुरू कर दे | अलबत्ता, प्रधान मंत्री तो वही बनेगा जो एक समोसा हरी चटनी के साथ खायेगा |
* सेक्युलरवाद का सही अनुवाद हिंदी में नहीं है तो क्या करें ? क्या सांप्रदायिक हो जाएँ ? हिंदी में सही अनुवाद तो सेक्स का भी नहीं है |
[ जी राव साहेब , काम तो चल ही रहा है / चल ही सकता है यदि उद्देश्य उलझाना नहीं सुलझाना हो |मैं तो "बिलकुल सही " अनुवाद की बात कह तरह था जिसके अभाव का बड़ा रोना रोया जाता है | सेक्स शब्द में जितना जो कुछ अन्तर्निहित है उतना तो लिंग में नहीं है तो क्या हम सेक्स नहीं करते ? यह कहना था मेरा |]
* थोड़ी सी दूरी तो - - " Least distance of Distinct vision "
यही कारण है कि गरीबों के बारे में उच्चशिक्षित मार्क्सवादी - नक्सलवादी अधिक पीड़ित और उत्तेजित होते हैं बनिस्बत गरीबों- आदिवासियों के जो उन्हें झेल रहे होते हैं |
[ झूठी कहानी ]
* हम रेलवे वेटिंग रूम में थे | वह पता नहीं कौन थी | थोड़ी दूरी पर पास बैठी थी | उसे पता नहीं क्या सूझा, उसने अपना झोला मेरी गोद में पटका और भागी टॉयलेट्स की और | मुझे कुछ पूछने जांचने का मौका ही नहीं मिला | झोला बगल में रखकर मैं रखवाली करता रहा और मालकिन का इंतज़ार | काफी देर बाद आई | बोली - "मैंने स्नान भी कर लिया | बड़ी गर्मी थी | धन्यवाद "| और अपना झोला उठा ऑटो स्टैंड कि और बढ़ गयी |
# # #
[ झूठी कहानी ]
-- क्या तुम मुझसे शादी करोगी ? एक धनिक युवक ने मजदूर युवती से पूछा |
= शादी ? मोह गए न रूप देखकर ?
आदमी को अपनी सीमा में रहना चाहिए | क्या तुम मेरे योग्य हो ? क्या तुम दो दो जून भूखे रह सकते हो ? क्या तुम चार मील चलकर काम पर जा सकते हो ? और दिहाड़ी में अपना खर्च निपटा सकते हो ?
नहीं न ? फिर कैसे मेरा साथ निभाओगे ? तुम्हारी मेरी क्या बराबरी | शादी बराबरी में होती है |
चलो जाति धर्म न पूछें तो यह जो अंतर है, कहाँ जायगा ?
# # #
* हम यह नहीं कहते कि हम बहुत अच्छे हैं और आप या वे बहुत ख़राब | बस हम नास्तिक हैं जैसे आप हिन्दू मुसलमान सिख ईसाई हैं | न नैतिकता, प्रबुद्धता, उत्कृष्टता का दावा हमारा है न आप ही इस पर क्लेम करें तो ही अच्छा |
* मैं इस समय आपत्तिजनक स्थिति एन हूँ | टॉयलेट में हूँ | कोई आपत्ति ?
* लडकियाँ शादी के लिए पढ़ती हैं | लड़के नौकरी के लिए | कोई शिक्षित कहाँ हैं ?
* कोलकाता में मूर्तियाँ, पूजा पाठ, पूजा की सामग्रियाँ, शोर गुल बहुत है | परिणाम - फूलों का इस्तेमाल भी बहुत है !
* मेरे घर में तिरिया राज है | अतः स्पष्टतः , मेरा त्रिया [ राज्य और चरित्र ] के खिलाफ होना स्वाभाविक है |
* संतान इसलिए प्यारे होते हैं क्योंकि वे आगंतुक [ Incoming ] होते हैं | बूढ़े इसलिए उपेक्षित क्योंकि वे जाने वाले [ Outgoing ] होते हैं |
* हिंदी भाषा इतनी तो कृतघ्न नहीं है कि अपने एक महान लेखक उग्रनाथ नागरिक को समय रहते न पहचाने | मैंने भी पढ़ी हैं नागरिक जी कि कुछ रचनाएँ | बल्कि उनकी कुछ कविता वगैरह तो मैं गोष्ठियों में भी सुनाता हूँ | हैं तो अच्छी, लेकिन ये मर्देसामी इस तरह लिखते हैं कि दूर से कूड़े का ढेर दिखता है | इनके पास थोडा नज़दीक जाना पड़ेगा | पहचानने के लिए सही दृष्टि और श्रमसाध्य छंटाई माँगता है इनका वांग्मय |
* अब क्या चाहती है ज़िन्दगी ?
सब लिखकर तो दे दिया !
* प्रचंड धूप
काम पर निकले
कांस्य स्वरुप |
* बिना पोथी की
पढ़ाई है हमारी
शिक्षित हूँ मै |
* कुछ सच है
कुछ गलत भी है
मेरी कहानी |
* चहरों पर
छायी हुई सबके
है बेचारगी |
* क्या पता कोई
क्या सोच ले कोई क्या
सोचने लगे ?
* मैंने सीखा है
ह्रदय से हँसना
मन में रोना |
* अब क्या होगा ?
जिसने पूछा, उसे
बाहर करो |
[गेट आउट ]
* प्रश्न तो उठा
जवाब नहीं मिला
तो इससे क्या ?
* मैं वहाँ रहूँ
जहाँ रहें विद्वान्,
रहे विद्वता |
* विचारधारा
पढ़ाते समझाते
विचारहीन !
* यह नहीं है
अभी इसके आगे
होगी मंजिल !
* सिर्फ नाम से
फर्क हैं सब लोग
हिन्दू मुस्लमाँ |
* हर कोई है
इतना तो सुंदर
जितना तुम !
* ज्ञान बढ़ाओ
अशांति पानी है तो
जानते जाओ |
* मैं नालायक
मैं नहीं किसी का भी
भाग्य विधाता |
* भाव ज्ञात हो
बाज़ार में आओ तो
बाहर से क्या ?
* जीने के लिए
कहानी लिखी, फिर
कहानी जिया |
* दिखाई पड़े
तो भी नहीं देखो
पर्देदार को !
* छंद जापानी
विषय हिंदुस्तानी
लिखूँ हाइकु |
* रहता तो हूँ
दुनिया में, वस्तुतः
नहीं रहता |
* नीति निर्वाह
निर्धनता में भी हो
तब तो बात !
* इस ढोल को
दूर से सुनियेगा
सुहावन है !
* मेरा कहना
गलत है हजूर
माफ़ कीजिये |
* मार्क्सवाद को
पढ़ना तो पड़ेगा
अति चर्चित !
* बहुत खाया
हाजमोला भी खाया
पचा तो नहीं !
* पुरस्कार हैं
लेकिन मैं तो उन्हें
लूँगा ही नहीं |
* तलाक़ न लो
पति / पत्नी न छोडो
विच्छेद नहीं
भले कहीं भी रहो
आओ जाओ, निभाओ |
* अभिमानियो !
[ अहंकारियो ! ]
तुम्हारा हो जायगा
शीघ्र पतन |
[ अधोपतन ]
* * अगर , मान लीजिये, चीन के तर्ज़ पर भारत का कोई माओ यहाँ सांस्कृतिक क्रान्ति कर दे और ज़बरदस्ती ज़रूरी कर दे कि यहाँ का हर नागरिक अपना नाम भारतीय भाषा में रखेगा, तो क्या हो ?
यह मैं उस सन्दर्भ में कह रहा हूँ जब अभी कुछ दिन पूर्व मुस्लिम लेखकों ने बड़ी हनक के साथ कहा था और फेसबुक पर भी पोस्ट किया था कि " मुस्लिम नाम वाला " कोई व्यक्ति वन्दे मातरम् गाना स्वीकार नहीं कर सकता | सही है कि गाना और गीत गाने से राष्ट्र भक्ति में कोई इजाफा नहीं हो जाता, फिर भी हर देश का कोई प्रतीक तो होता है, जो उसकी एकता का परिचायक होता है | यह तो अच्छा है कि कल को कोई कह दे तिरंगा हमें अच्छा नहीं लगता | हम इसे सलूट नहीं करेंगे | तो कल कोई कुछ ! फिर भी यह समुदाय कहता है कि उसे हिन्दुस्तान में टेढ़ी नज़र से देखा जाता है | [ by khilwaad ]
* सोचना होगा मुस्लिम कौम हिन्दू कुप्रथाओं से क्यों बचा रही ? या इन अर्थों में कोई भी अन्य हिन्दुएतर धर्म ? क्योंकि उन्होंने उन रिवाजों से खाली होने वाली जगह { VOID } को खाली नहीं छोड़ा, या कहें void रहने ही नहीं दिया | बल्कि अपनी नकारात्मक या सकारात्मक नीतियों से भर कर उसका मुँह बंद कर दिया | जैसे उन्हें छुआछूत से मुक्त होना था जो उसे दृढ़ता पूर्वक इन्कार किया | मूर्तियों को हटाया , तो एक अल्लाह से उसकी पूर्ति कर दी | इस प्रकार वे समान्तर से उसके सामने खड़े हो गए |यहाँ हिन्दू कि जगह पर किसी अन्य मज़हब का नाम replace कर सकते हैं | मैं तो इसके पाखंडों, छुआछूत, जात पांत, जैसे बुराइयों को उदहारण बना कर सोच रहा था | और यह भी चिंता थी कि नास्तिक विचारधारा के लोग धर्म कि बुराइयाँ, या धर्म को ही त्याग तो दें पर उस Cavity को भरेगे किससे ? या क्या बिना भरे, नई संस्कृति, रीति रिवाज़ लाये बिना इस जगन्मिथ्या में सच्चाई से जी पायेंगे ?
* On FB, अंग्रेजी में एक पेज है - Militant Atheism . यह मेरी LIKE में तो है पर अंग्रेजी मैं कहाँ लिखता हूँ | लिखता होता तो लिखने का मन था :-- Secular Demand List
जो अल्लाह पर विश्वास करे सरकार उनकी कोई बात न सुने , हज यात्रा की परेशानियों के अलावा | कहे की नौकरी, सब्सिडी और आरक्षण ? उन्हें वस्तुतः इनकी ज़रुरत भी नहीं है | ईश्वर है न इनके पास ? [Unna - cantankerous atheist ]
{ कविता } = " धारयति इति ईश्वरः "
धारण तो करता है ईश्वर
मनुष्य की धारणा को ,
मनुष्य जैसा सोच ले
वह वैसे कपडे पहन लेता है,
मनुष्य जैसा भी चाहे
वैसा ही वस्त्र धारण कर लेता है ईश्वर |
कभी राम के कपडे
तीर धनुष के साथ
तो कभी कृष्ण का पीताम्बर
बाँसुरी ले हाथ,
कभी काली, कभी दुर्गा
कभी शिव, कभी कुछ,
कभी तो हनुमान भी गदाधारी
यहाँ तक कि अदृश्य शून्य
पहन लेता है वह, और हो जाता है
निराकार, अमूर्त कोई ब्रह्म ,
और भी कभी गॉड पार्टिकल
कभी एटम बम भी हो सकता है |
लेकिन पहनता है, पहने रहता है
आदमी के ही पहनाये कपडे |
कैसे भी, उसका अपना कोई वस्त्र नहीं |
अब वह कोई सचेतन, जीवंत
संवेदन- स्पंदन युक्त
जीवधारी तो है नहीं
मनुष्य की भाँति, जो
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
की तरह अपने पुराने कपडे
उतार कर नए धारण करे ?
इसलिए वह जड़, जडवत
अपना कोई वस्त्र नहीं उतारता
और मनुष्य अपनी धारणा
उस पर लादे चला जाता है
सड़े गले - जीर्ण शीर्ण वस्त्र भी चढ़ाए रहता है
नए धर्म के आगमन से पुराने धर्म जाते नहीं
सब एक दूसरे पर लदे रहते हैं - गंधाते |
मनुष्य कहाँ धारण करते हैं धर्म
ईश्वर ही मनुष्य की धारणा को ढोता फिरता है
विवशतः, क्योंकि उसका
अपना कोई जीवन नहीं है
नहीं है कोई जीवित जीव वह,
न उसके पास है कोई ताक़त
कपडे पहनने - उतारने की चाहत |
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* कम्युनिस्ट जन निस्संदेह नास्तिक हैं, लेकिन नास्तिकता के भक्त | हम भी नास्तिक हैं | पर नास्तिकता के मंदिर के पुजारी |
* सारे धर्म क्या तर्क के आधार पर बने हैं जो आज हमसे नास्तिकता, बुद्धिवाद का तर्क माँगा जा रहा है ? क्या इसलिए कि हमने तर्कबुद्धि को आधार बनाया है ? तो उससे क्या ? वह आधार हमारे लिए है, हम पालन करें या नहीं पालन कर पायें, जैस आप भी करते हो | हमारा आधार हमारे निकष पर होगा आपके नहीं | आपकी आस्था आपके पास, हमारी बुद्धि हमारे पास ! आपकी आस्था मेरा कल्याण नहीं कर सकती | मेरी बुद्धि आप से बहस करने के लिए नहीं है |
* मुस्लमानों से धर्म चर्चा न करें :-- एक कार्यक्रम मेरी समझ में बड़ी शिद्दत से आता है | इस निष्कर्ष के बाद कि इस्लाम नास्तिकता के मार्ग में सबसे बड़ा बाधक है | वह यह कि मुसलमान [व्यक्ति - मनुष्य ] से तो घृणा न करें ; कर ही नहीं सकते | लेकिन उनके इस्लाम का वैचारिक बहिष्कार करें | उनसे इस्लाम की या किसी भी धर्म की चर्चा में भागीदारी न करें, न उन्हें भागीदार बनायें | जब हम उन्हें नास्तिकता के तर्क नहीं दे सकते, उनके लिए उसे सुनना भी पाप है, तो हमें भी उनके मज़हब के शुभ सन्देश सुनकर जन्नत की दरकार और तमन्ना नहीं है | इसमें सांप्रदायिक जैसा कुछ नहीं है - यह तो युद्ध है - हकीकत से दो दो हाथ !
* जीतेगी यार , ज़रूर जीतेगी तुम्हारी पार्टी चुनाव में | बस अपने अध्यक्ष से कहो वह रोज़ एक समोसा लाल चटनी के साथ खाना शुरू कर दे | अलबत्ता, प्रधान मंत्री तो वही बनेगा जो एक समोसा हरी चटनी के साथ खायेगा |
* सेक्युलरवाद का सही अनुवाद हिंदी में नहीं है तो क्या करें ? क्या सांप्रदायिक हो जाएँ ? हिंदी में सही अनुवाद तो सेक्स का भी नहीं है |
[ जी राव साहेब , काम तो चल ही रहा है / चल ही सकता है यदि उद्देश्य उलझाना नहीं सुलझाना हो |मैं तो "बिलकुल सही " अनुवाद की बात कह तरह था जिसके अभाव का बड़ा रोना रोया जाता है | सेक्स शब्द में जितना जो कुछ अन्तर्निहित है उतना तो लिंग में नहीं है तो क्या हम सेक्स नहीं करते ? यह कहना था मेरा |]
* थोड़ी सी दूरी तो - - " Least distance of Distinct vision "
यही कारण है कि गरीबों के बारे में उच्चशिक्षित मार्क्सवादी - नक्सलवादी अधिक पीड़ित और उत्तेजित होते हैं बनिस्बत गरीबों- आदिवासियों के जो उन्हें झेल रहे होते हैं |
[ झूठी कहानी ]
* हम रेलवे वेटिंग रूम में थे | वह पता नहीं कौन थी | थोड़ी दूरी पर पास बैठी थी | उसे पता नहीं क्या सूझा, उसने अपना झोला मेरी गोद में पटका और भागी टॉयलेट्स की और | मुझे कुछ पूछने जांचने का मौका ही नहीं मिला | झोला बगल में रखकर मैं रखवाली करता रहा और मालकिन का इंतज़ार | काफी देर बाद आई | बोली - "मैंने स्नान भी कर लिया | बड़ी गर्मी थी | धन्यवाद "| और अपना झोला उठा ऑटो स्टैंड कि और बढ़ गयी |
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[ झूठी कहानी ]
-- क्या तुम मुझसे शादी करोगी ? एक धनिक युवक ने मजदूर युवती से पूछा |
= शादी ? मोह गए न रूप देखकर ?
आदमी को अपनी सीमा में रहना चाहिए | क्या तुम मेरे योग्य हो ? क्या तुम दो दो जून भूखे रह सकते हो ? क्या तुम चार मील चलकर काम पर जा सकते हो ? और दिहाड़ी में अपना खर्च निपटा सकते हो ?
नहीं न ? फिर कैसे मेरा साथ निभाओगे ? तुम्हारी मेरी क्या बराबरी | शादी बराबरी में होती है |
चलो जाति धर्म न पूछें तो यह जो अंतर है, कहाँ जायगा ?
# # #
* हम यह नहीं कहते कि हम बहुत अच्छे हैं और आप या वे बहुत ख़राब | बस हम नास्तिक हैं जैसे आप हिन्दू मुसलमान सिख ईसाई हैं | न नैतिकता, प्रबुद्धता, उत्कृष्टता का दावा हमारा है न आप ही इस पर क्लेम करें तो ही अच्छा |
* मैं इस समय आपत्तिजनक स्थिति एन हूँ | टॉयलेट में हूँ | कोई आपत्ति ?
* लडकियाँ शादी के लिए पढ़ती हैं | लड़के नौकरी के लिए | कोई शिक्षित कहाँ हैं ?
* कोलकाता में मूर्तियाँ, पूजा पाठ, पूजा की सामग्रियाँ, शोर गुल बहुत है | परिणाम - फूलों का इस्तेमाल भी बहुत है !
* मेरे घर में तिरिया राज है | अतः स्पष्टतः , मेरा त्रिया [ राज्य और चरित्र ] के खिलाफ होना स्वाभाविक है |
* संतान इसलिए प्यारे होते हैं क्योंकि वे आगंतुक [ Incoming ] होते हैं | बूढ़े इसलिए उपेक्षित क्योंकि वे जाने वाले [ Outgoing ] होते हैं |
* हिंदी भाषा इतनी तो कृतघ्न नहीं है कि अपने एक महान लेखक उग्रनाथ नागरिक को समय रहते न पहचाने | मैंने भी पढ़ी हैं नागरिक जी कि कुछ रचनाएँ | बल्कि उनकी कुछ कविता वगैरह तो मैं गोष्ठियों में भी सुनाता हूँ | हैं तो अच्छी, लेकिन ये मर्देसामी इस तरह लिखते हैं कि दूर से कूड़े का ढेर दिखता है | इनके पास थोडा नज़दीक जाना पड़ेगा | पहचानने के लिए सही दृष्टि और श्रमसाध्य छंटाई माँगता है इनका वांग्मय |
* अब क्या चाहती है ज़िन्दगी ?
सब लिखकर तो दे दिया !
* प्रचंड धूप
काम पर निकले
कांस्य स्वरुप |
* बिना पोथी की
पढ़ाई है हमारी
शिक्षित हूँ मै |
* कुछ सच है
कुछ गलत भी है
मेरी कहानी |
* चहरों पर
छायी हुई सबके
है बेचारगी |
* क्या पता कोई
क्या सोच ले कोई क्या
सोचने लगे ?
* मैंने सीखा है
ह्रदय से हँसना
मन में रोना |
* अब क्या होगा ?
जिसने पूछा, उसे
बाहर करो |
[गेट आउट ]
* प्रश्न तो उठा
जवाब नहीं मिला
तो इससे क्या ?
* मैं वहाँ रहूँ
जहाँ रहें विद्वान्,
रहे विद्वता |
* विचारधारा
पढ़ाते समझाते
विचारहीन !
* यह नहीं है
अभी इसके आगे
होगी मंजिल !
* सिर्फ नाम से
फर्क हैं सब लोग
हिन्दू मुस्लमाँ |
* हर कोई है
इतना तो सुंदर
जितना तुम !
* ज्ञान बढ़ाओ
अशांति पानी है तो
जानते जाओ |
* मैं नालायक
मैं नहीं किसी का भी
भाग्य विधाता |
* भाव ज्ञात हो
बाज़ार में आओ तो
बाहर से क्या ?
* जीने के लिए
कहानी लिखी, फिर
कहानी जिया |
* दिखाई पड़े
तो भी नहीं देखो
पर्देदार को !
* छंद जापानी
विषय हिंदुस्तानी
लिखूँ हाइकु |
* रहता तो हूँ
दुनिया में, वस्तुतः
नहीं रहता |
* नीति निर्वाह
निर्धनता में भी हो
तब तो बात !
* इस ढोल को
दूर से सुनियेगा
सुहावन है !
* मेरा कहना
गलत है हजूर
माफ़ कीजिये |
* मार्क्सवाद को
पढ़ना तो पड़ेगा
अति चर्चित !
* बहुत खाया
हाजमोला भी खाया
पचा तो नहीं !
* पुरस्कार हैं
लेकिन मैं तो उन्हें
लूँगा ही नहीं |
* तलाक़ न लो
पति / पत्नी न छोडो
विच्छेद नहीं
भले कहीं भी रहो
आओ जाओ, निभाओ |
* अभिमानियो !
[ अहंकारियो ! ]
तुम्हारा हो जायगा
शीघ्र पतन |
[ अधोपतन ]
* * अगर , मान लीजिये, चीन के तर्ज़ पर भारत का कोई माओ यहाँ सांस्कृतिक क्रान्ति कर दे और ज़बरदस्ती ज़रूरी कर दे कि यहाँ का हर नागरिक अपना नाम भारतीय भाषा में रखेगा, तो क्या हो ?
यह मैं उस सन्दर्भ में कह रहा हूँ जब अभी कुछ दिन पूर्व मुस्लिम लेखकों ने बड़ी हनक के साथ कहा था और फेसबुक पर भी पोस्ट किया था कि " मुस्लिम नाम वाला " कोई व्यक्ति वन्दे मातरम् गाना स्वीकार नहीं कर सकता | सही है कि गाना और गीत गाने से राष्ट्र भक्ति में कोई इजाफा नहीं हो जाता, फिर भी हर देश का कोई प्रतीक तो होता है, जो उसकी एकता का परिचायक होता है | यह तो अच्छा है कि कल को कोई कह दे तिरंगा हमें अच्छा नहीं लगता | हम इसे सलूट नहीं करेंगे | तो कल कोई कुछ ! फिर भी यह समुदाय कहता है कि उसे हिन्दुस्तान में टेढ़ी नज़र से देखा जाता है | [ by khilwaad ]
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