सोमवार, 1 जुलाई 2013

नागरिक लेखन 29 - 30 जून , 2013

हमने कल राजकीय अभिलेखागार में अमीर खुसरो लिखित कुछ कव्वालियाँ सुनी | पम्फलेट की पहली कव्वाली किंचित उद्धृत करता हूँ :--
" मोरा जोबना नवेलरा भयो है गुलाल .
चूड़ियाँ फोडूं पलंग पर डारूं
इस चोली को दूँ आग लगाय
सूनी सेज डरावन लागे
विरह अग्नि मोहे डस डस जाय ,
मोरा जोबना नवेलरा भयो है गुलाल . "
  - अब बताइए यह बाँदा 12 वीं सदी का है , और अभी तक जस का तस है | न इसे धर्म छु पाए, न राजनीति | न साम्प्रदायिकता कुछ बिगड़ पाई | बाल बांका नहीं हुआ इस सूफी / प्रेमी का | कह सकते है सच्चा प्रेम कभी नष्ट नहीं होता | और कामोत्तेजना से अविच्छिन्न भी नहीं होता | सोचता हूँ तब वे अपनी sexuality को किस तरह खुल कर बयां करते  थे और उसे Spirituality में भी तब्दील , रूपांतरित कर लेते  थे ? अपनी मीरा का भी यही हाल था, रसखान का भी | धन्य थे वे |
और एक हम हैं जो ओशो के "संभो से समाधि  की ऑर " पर मुंह बिदका देते हैं | जबकि दरअसल दोनों एक हैं | लेकिन वह तो उनके लिए है जो उसकी अनुभूति कर सकते हैं | विवाद से तो इसका ज्ञान होने से रहा ?
  आयोजन में मेरा प्रिय भजन -भी हुआ - खुसरो का ही " छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाय के  "      मैं कभी मजाक में प्रगतिशील कवियों से [ क्योंकि वे कुछ ज्यादा ही कवि बनते है, और आन्दोलन चलते हैं ] पूछता हूँ - क्या तुम ऐसी एक पंक्ति लिख सकते हो जैसा खुसरो ने आठ -नौ सौ वर्ष पहले लिख दिया | यह समय कुछ कम नहीं होता | विज्ञानं कहाँ e कहाँ पहुँच गया , लेकिन साहित्य? लेकिन संस्कृति ? लेकिन ? ? ?

* अहंकार और आत्मविश्वास में कितना तो झीना सा अंतर है !

* फेसबुक के दिशानिर्देशों के अनुसरण में, एततद्वारा मैं यह घोषणा करता  हूँ कि मेरे सभी उद्धरणों, साहित्यिक सामग्री, जहां किसी और का नाम वर्णित/इंगित न हो, कॉमिक्स, पैंटिंग्स, तस्वीरें व वीडियो आदि पर किसी तरह का प्रतिलिप्याधिकार लागू नहीं है. कथ्य सामग्री के किसी भी अंश या पूरे भाग के किसी भी तरह से उपयोग करने के किसी भी अवसर पर मेरी पूर्व लिखित अनुमति लेना बिलकुल आवश्यक नहीं है. फेसबुक के सभी मित्र सौजन्य के तहत इन सबका, वैयक्तिक विवरणों, तस्वीरों और कविताओं को छोडकर, निस्संकोच प्रयोग कर सकते हैं.
नहीं नहीं , मैं अपनी कविताओं पर भी अपना कापीराइट त्याग रहा हूँ | उन्हें भी कोई अपने नाम से भी प्रकाशित / प्रचारित कर सकता है | वे मेरी नहीं , सम्पूर्ण अस्तित्व की संपत्ति/निधि हैं |

* विनम्रता कहाँ से आती है ?
अहंकार कहाँ को जाता है ?
वही है अध्यात्म मेरा |

* मैं " Paid Views " नाम से एक विचार गोष्ठी चलाना चाहता हूँ | आप लोगों की क्या राय है ? क्या यह चलेगी ?
विचार वक्ता सदस्यों की ज़मानत धनराशि जमा रहे | जितने मिनट जो बोले, हिसाब से पैसा कटे | पेमेंट का भय नहीं रहता तो भाई लोग हांके जाते है | इस विधि से लोग चुप रहना या  संक्षेप में अपनी बात कहना सीखेंगे | गोष्ठी अनुशासित रहेगी | एक स्टॉप वाच की ज़रुरत पड़ेगी, और एक तेज़ तर्रार एन्कर की |

* HE WAS SUPPOSED TO BE GOD . HE CEASED TO BE .

* " Political is Spiritual "
[in rhyme with Personal is Political ]

* सारी सहिष्णुतायें, दान, अनुदान चालबाजी भी होती हैं | लो, मंदिर के लिए ज़मीनें | तुम अपने अन्धविश्वास में मस्त रहो, हम अपने विश्वास का शासन चलाते हैं |

* मैं सोचता हूँ कि समाज सेवा के बड़े से बड़े और छोटे से छोटे कार्यों को एक समान प्रशासित करने का आप से आग्रह करूँ | अन्यथा होता क्या है कि छोटे स्वयंसेवी प्रोत्साहन पाने से रह जाते हैं | टाटा बिरला , अन्ना-टेरेसा का काम तो सबकी नज़र में आ जाता है , और उस बच्चे का जिसने एक भूखे प्यासे को अपने टिफिन का खाना खिलाया,अपने बोतल का पानी पिलाया ? उस लड़की का जिसने एक बूढ़े की लाठी पकड़कर सड़क पार कराया ? या उस ट्रेफिक सिपाही का जिसने पूरी मुस्तैदी से दिन भर ड्यूटी की और कई दुर्घटनाएँ बचाईं ? क्या इनका मूल्य किसी मायने में किसी भी महान समाजसेवी के कामों से कम महत्वपूर्ण है ?
दादी के लिए चिमटा लाने वाला प्रेमचंद के "ईदगाह" का बालक हामिद और देश पर कुर्बान होने वाला वीर जवान अब्दुल हमीद , दोनों बराबर | क्या अद्भुत समानता है ?


* मृतकों की संख्या कम करके बताने में सरकार को क्या मज़ा आता है ?

* हाथी की सवारी -
मैंने पिछले दिनों सुभाषिनी अली सहगल की एक पुस्तिका "पहचान की राजनीति " खरीद कर क्या पढ़ ली कि मार्क्सवाद के प्रति रही सही थोड़ी सी मोहब्बत भी चली गई | अत्यंत जिद्दी है यह वाद | बस सवारी तो हाथी की करेंगे , और उसका सूंड, खम्भे जैसे पाँव, सूप जैसे कान नहीं देखेंगे | उसे वे अधूरा चिंतन मानते हैं | जो हो रहा है दलित आन्दोलन, महिला सशक्तिकरण और वह सफल भी हो रहा है, उसे ये नहीं मानेंगे | बस वर्ग - वर्ग चिल्लाये ज रहे हैं | नीलाक्षी सिंह सही कहती हैं इनके बारे में | जब तक मैं गंभीर शास्त्रीय किताबें पढ़ता था तब तक इसे सुलझाने के चक्कर में इसके प्रेम में उलझा रहता था | अब ज्यादा समय नहीं है |

* तुम कहते हो ज़माना बदले तो आऊँ ,
और तुम हो कि खुद बदलते नहीं !

[कविता ?]     - -" बारिश "  
* अरे,
बारिश हो रही है
मैंने छज्जे पर ,
तुम्हारे लिए
अपनी आँखें
बिछा ररखी थीं
देखो ,
कहीं भीग तो नहीं गयी ?
#  #

[कविता ?]    - - " वह कुर्सी "
* वह फोल्डिंग कुर्सी
जिस पर तुम बैठा करते थे
आज भी सुबह सुबह
सज धज कर, तैयार होकर
ठीक उसी जगह लग जाती है
जहाँ तुम बैठते थे |
कोई और, उस पर पड़ा धूल देखकर
बैठता नहीं , और तुम हो कि आते नहीं |
फिर शाम, देर शाम, थक हारकर
तुम्हारा इंतज़ार समाप्त कर
सिकुडकर कमरे में आ जाती  है    
रात बिताने, सुबह होने तक |
#  #

Some notes :--
* मुझे हिन्दू मुसलमान से क्या मतलब ? मेरा काम तो नास्तिकता फैलाना है, जहाँ तक पहुंचे |

*  यदि आपको भजन कीर्तन के शोर पर कोई ऐतराज़ नहीं है , तो आप अजान के शोर पर भी आपत्ति नहीं कर सकते |

* क्या सांप्रदायिक होना बुरी बात है ? फिर विश्वसनीय धार्मिक कैसे होंगे ? अपना धर्म कैसे फैलायेंगे ?

* 'ही' नहीं, 'भी' सिद्धांत -
बुद्धिवादी  [Rationalist] यह नहीं कहता कि मेरे 'ही'पास बुद्धि है | अलबत्ता वह कहता है - मेरे 'भी' पास बुद्धि है |

* मानव ( मनुष्य ) वाद में ईश्वर का क्या काम ?

* यदि ईश्वर है तो गॉड, अल्लाह भी होगा ! क्या यह सच है ? ज़रा टेढ़ा करके सोचियेगा |

Some notes :--
* मुझे हिन्दू मुसलमान से क्या मतलब ? मेरा काम तो नास्तिकता फैलाना है, जहाँ तक पहुंचे |
*  यदि आपको भजन कीर्तन के शोर पर कोई ऐतराज़ नहीं है , तो आप अजान के शोर पर भी आपत्ति नहीं कर सकते |
* क्या सांप्रदायिक होना बुरी बात है ? फिर विश्वसनीय धार्मिक कैसे होंगे ? अपना धर्म कैसे फैलायेंगे ?

* इतना तो आदमी
नहीं गिरा है
जितनी सस्ती हुई है
आदमी की जिंदगी !
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* अरे ठीक है
जहाँ तक हो पाया
तुमने किया |

* जाने न दूँगा
कोई भी अवसर
मुलाक़ात का |

* फिसल पड़े
नदी, नाला, कुएँ में
तो हर गंगे |

* सूझता नहीं
मज़ाक़  के आलावा
उन्हें कुछ भी |

* कौन करता
इंतज़ार , प्रतीक्षा
वह भी मेरा ?

* बादल नहीं
बरसें तो बरसें
हमारी आँखें |

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