शनिवार, 24 दिसंबर 2011

लोकपाल के प्रश्न

* अन्ना के समर्थक कृपया यह बतायें कि सरकार अब क्या करे ? उसने तो एक बिल संसद में पेश कर दिया । उस पर मतैक्य नहीं हो रहा है , और सदन में वह पारित नहीं हो पा रहा है तो सरकार क्या करे ? क्या मार्शल लगा कर सारे सदस्यों से वह ज़बरदस्ती करा ले ? क्या वह ऐसा कर सकती है ? या वह फौज लगाकर राष्ट्रपति से , वह जहाँ कहीं भी हों उनसे , दस्तखत करा ले ? अन्ना टीम तब भी खुश होगी क्या ?
* अब आरक्षण के प्रश्न पर सोचा जाये । यह तो तय है कि धार्मिक आधार पर आरक्षण असंवैधानिक है । भाजपा तमाम गलत बयानी करती है , पर उसका यह कहना सत्य प्रतीत होता है कि यदि इसकी तामील की गयी तो देश में गृह युद्ध की आशंका है । आखिर सहनशीलता की भी एक सीमा होती है । पाकिस्तान -बंगलादेश के बंटवारे को सहने के बाद अब देश के पास इतनी सहन शक्ति शायद नहीं बची है कि वह एक और बंटवारे की भूमिका को स्वीकार करे । अतः ऐसे आरक्षण की मांग देश हित में मुसलमानों को छोड़ देना चाहिए । यह हमारा राजनीतिक प्रस्ताव है । अब दार्शनिक बहस यह है कि मुस्लिम कोई जाति है या धर्म । अधिकांश मान्यता है कि यह धर्म है । फिर तो जैसा ऊपर बताया गया इनके लिए आरक्षण संभव नहीं है । आरक्षण हिन्दू धर्म के भीतर की त्रासदी है , जिसके तहत सवर्ण हिन्दू अपनी जातिगत विसंगति का फल भुगतने के लिए तैयार है , ख़ुशी से या नाखुशी से । पर इसने किसी धर्म पर कोई अत्याचार नहीं ढाया है, जिसकी सजा वह भुगते । फिर भी यदि कोई इसमें आरक्षण की जिद में है तो उसे हिन्दू धर्म की जातिगत व्यवस्था में आना होगा । दर्जी , जुलाहा , धुनिया बनकर तो वह आरक्षण का बन सकता है , पर उसके साथ मुसलमान जोड़कर वह आरक्षण ना ही माँगे तो अच्छा है ।
* और एक अंतिम ,अप्रिय प्रश्न । इन मूलभूत प्रश्नों से आखिर अन्ना टीम क्यों नहीं जूझती , जिसका देश हित में स्थायी महत्व है ? और हम क्या बुरा करते हैं जो उसके इसी छद्म को पहचान कर उनके साथ नहीं जुड़ते ?

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