* अभी तो खैर लोकपाल का मामला लटक गया है । लेकिन जब कभी यह आये तो सख्त लोकपाल के बारे में मैं कुछ कहना चाहता हूँ । सख्त लोकपाल वही हो सकता है जिसका कार्य क्षेत्र सीमित हो उसका काम यदि साठ लाख लोगों पर छितरा दिया गया तो वह प्रभावी काम नहीं कर पायेगा । इसलिए यदि उसे सचमुच मज़बूत बनाना है तो केवल उसे सांसदों के भ्रष्टाचार पर नज़र रखने , उनकी जांच करने और उन्हें सजा देने तक सीमित रखें । पी एम को भी एम पी के रूप में उसके अधीन रखें पर पी एम के काम पर उसका कोई दबाव न हो । एक अभूत पूर्व विचार यह है कि लोकपाल को चुनाव आयोग [संवैधानिक स्तर प्राप्त ] के अन्दर एक सेल के रूप में बना दें जो सांसदों के सम्पूर्ण आचरण , उनकी उपस्थिति ,वेतन -भत्ते पर नज़र और अंकुश रखे । [आखिर मुख्य समस्या तो उन्ही के भ्रष्टाचार को लेकर है , जिस से जनता ज्यादा नाराज़ है , और उस से छुटकारा पाना चाहती है ? अन्ना ने तो अनावश्यक इतना फैला दिया कि वह असफल होने के लिए अभिशप्त हो गयी ] । शेष संस्थाओं सी बी आई , न्याय पालिका , ए बी सी डी ग्रुप और प्रदेशों के लोकायुक्त जैसे अपना काम कर रहे हैं वैसे करें । इस प्रकार बिल के तमाम जद्दो ज़हद समाप्त हो सकते हैं और इसके बहाने फैलाये जा रहे राजनीतिक ज़हर से देश को बचाया जा सकता है
और अंत में एक ख़ास बात । हम नहीं चाहते कि लोकपाल इतना सख्त हो जाय कि वह किरण बेदी के बिल चेक करने लगे , अरविन्द केजरीवाल की सेवा पुस्तिका उलटने लगे, भूषणों की संपत्ति का ब्यौरा लेने लगे या कुमार विश्वास के पढ़ाए बच्चों के इम्तिहान की कापी जांचने लगे । यदि वह इतना अधिकार संपन्न हो जायगा ,तब हम लोगों को थोड़ी दिक्कत हो जायगी । #
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