शनिवार, 24 दिसंबर 2011

अन्ना का उभार

अन्ना हजारे ने कहा है कि यदि उनसे पूछा जाता तो वे मैदान के आवंटन के लिए कोर्ट न जाने देते | मतलब साफ़ है कि अन्ना अलग हैं और उनकी टीम अलग है | टीम कई काम उनके अनुकूल नहीं करती , जिस प्रकार उनके स्वयं के काम लोकतंत्र के अनुकूल नहीं होते |अब ज़ाहिर है किराये के लिए सात लाख रूपये चंदा लेना उनके बाएं हाथ का खेल है | वह भी नम्बर एक का | काफी मेहनतकश ईमानदार जनता उनके साथ है |
दूसरी बात यह गौर करने की है कि उनके आन्दोलन का दबाव सिर्फ कांग्रेस पर ही क्यों होता है ? अन्य दल भी तो संसद के सदस्य हैं जिनकी ज़िम्मेदारी है बिल को पास करना , और वे उसमे अड़ंगे लगा रहे हैं | तो उन पर क्या अन्ना का दबाव नहीं होना चाहिए ? फिर कांग्रेस ही क्यों दबे जो कि अपना कर्तव्य संविधान के दायरे में निभा भी रही है ?
तीसरी बात , अन्ना उन आपत्तियों का जवाब क्यों नहीं देते जो संसद में उठाये जा रहे है ? दलित ,महिला , पिछड़ों के आरक्षण पर उनका कोई पक्ष नहीं है | अल्पसंख्यकों के आरक्षण पर अन्ना चुप हैं | क्यों ? क्या यह अर्थ न लगाया जाये कि वे अपनी ज़िम्मेदारी निभा नहीं रहे हैं और बस किसी अज्ञात जिद वश रट लगाये जा रहे हैं - लोकपाल बिल पास करो , लोकपाल बिल पास करो |
* [हाइकु ]
आया उभार
अन्ना - अरविन्द का
उतर गया |
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