रविवार, 25 दिसंबर 2011

लोकतंत्र कि ऐसीतैसी

अदम गोंडवी का १८ दिसम्बर को निधन हो गया। मुझे दुःख इसलिए है कि वह मुझसे एक साल छोटे थे और उन्हें मुझसे पहले नहीं जाना था। कविता में तो वे निश्चय ही बहुत आगे थे जिसका सबूत है अख़बारों में उनका अधिकाधिक कवरेज। और प्रगतिशील साहित्यिक सिद्धांत के अनुसार जो रचनाकार आज़ादी और लोकतंत्र की जितनी फजीहत करे, खिल्ली उड़ाए, नेताओं को गालियाँ दे सरकार को सर के बल खड़ा करे, व्यवस्था का मजाक उड़ाए वह उतना ही बड़ा शायर होता है
फ़िर भी ये लोग शायर के इलाज की ज़िम्मेदारी सरकार पर ही डालते हैं जो इनके अनुसार नाकारा है। क्या यह अनैतिक नहीं कि जिसको गालियाँ दो उसी से पैसा लो फिर उन्हीं के मुंह में डंडा भी करो । कितने बीमारों के इलाज के लिए उनके खेत बिक जाते हैं क्या इन जनवादियों को पता है?
ऊपर से इनकी
स्थापना ये है कि कवि भी उन्ही को मानो जिन्हें ये कवि की मान्यता दें . इनकी नजर में नागार्जुन, मुक्तिबोध तो कवि हैं मगर निर्मल वर्मा और अज्ञेय साहित्य के क्षेत्र में अस्वीकृत होने चाहिए।
ओर कहना न होगा, समाज को लताड़ने वाला, उसके अंधकार पक्ष को उधेड़ना, नारेबाजी करना, बिना मानसिक परिवर्तन के बगावत, विप्लव के लिए उकसाना बहुत आसान भी तो होता है, कठिन साहित्य होता है मानव के मन में प्रवेश करना ।

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