प्रगतिशील लेखक संघ के अधिवेशन में इसके अध्यक्ष नामवर सिंह के बयान को लेकर कुछ लेखक उनकी थुक्का फजीहत कर रहे हैं लेकिन जैसा उनके चरित्र में है वे अपने गिरेबान में झाँकने का कष्ट नहीं करते।
वे यह आकलन करने में असमर्थ हैं कि नामवर सिंह फिर भी वामपंथी ही हैं अपने मौलिक स्वरुप में। और उन के चरित्र में शामिल हैं झूठ छद्म और पाखण्ड, जिसे वे अब तक ओढ़े हुए थे। ज़रा सा बोल क्या दिया कि उनका छद्म खुल गया। और इतने दिनों जो उन्होंने पहना- ओढ़ा-बिछाया, खाया-पिया वह पाप किस सिद्धांत के ऊपर डाला जायेगा?
आश्चर्य नहीं, जो आज नामवर की आलोचना कर रहे हैं कल वो भी अपने केचुल उतारें या उनका भी पर्दाफाश हो।
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