बाबरी मस्जिद के लिए ज़मीन अयोध्या शहर से बहुत दूर दी गयी ।
कहते हैं बेग़म हज़रत महल ने पुराना हनुमान मंदिर अलीगंज के लिए भी ज़मीन दी थी । तब तो यह भी लखनऊ शहर से बहुत बाहर रहा होगा ?
सोचता हूँ , क्या यह सही हुआ ? क्या यह ज़रूरी था ? इससे सद्भावना बढ़ी, या धार्मिक अंधता और उन्माद ?
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