हिंसा में भी दया, करुणा की आवश्यकता होती है :-
घर चूहों से परेशान था । दुकानदार की सलाह से चिपकने वाली चटाई ले आया । सुबह दो चूहे चिपके मरे पड़े मिले । फेंकने गया तो उनकी छटपटाहट की कल्पना से सिहर गया । यह तकलीफदेह हिंसा थी । एक हिंसा वह भी होती यदि उन्हें चूहेदानी में फंसाकर बाहर छोड़ता । यह हिंसा दयापूर्ण, करुणामय होती । ऐसा ख़्याल आया । यह नहीं कि हिंसा तो दोनो ही है, क्या फ़र्क़ पड़ता है ।
ऐसा ही कुछ फ़र्क़ जानवरों को जिबह करने में भी है । बयान और समीक्षा करना कठिन है मेरे लिए ।
उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020
हिंसा में करुणा ?
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