मंगलवार, 28 जनवरी 2020

गुनगुनी धूप

एक पखवारे से मैं अंदर अंदर बड़े अवसाद में हूँ । पता नहीं कब तक रहूँगा । एक 7 साल की बच्ची ने अब बड़ी होकर, तब 81 वर्ष के बुजुर्ग लगभग विक्षिप्त हुए अति सम्मानित महा जनकवि बाबा नागार्जुन पर जो दुर्व्यवहार का आरोप लगाया उससे मैं आहत हुआ । यह दुर्घटना मेरे दिमाग़ से उतर ही नहीं रही है । कौन सही कौन गलत तय ही नहीं कर पा रहा हूँ । समझ में नहीं आता मैं बाबा की तरफ से शर्मिंदगी महसूस करूँ, उस पाप का पश्चाताप करूँ, या साहित्य-संस्कृति विभाग की ओर से आरोपकर्ता के ऊपर मानहानि का मुकदमा ठोंकूँ ? बाबा के उत्तराधिकारी सारे नर नारी कवि लेखक साहित्यकारों की चुप्पी अप्रत्याशित है ।
अनिर्णय और क्षोभ की दशा में मैंने दो काम किये । एक तो बाबा की नज़ीर देकर मैंने इधर मृत्युदण्ड प्राप्त अपराधियों के लिए क्षमादान की माँग की । (जब बाबा जैसी हस्ती ऐसा करने पर विवश हुई तो उन लफंगों की क्या सांस्कृतिक हैसियत?)
दूसरे - फेसबुक पर किसी महिला मित्र के पोस्ट को Like/Comment, प्रतिक्रिया बिल्कुल बन्द। इनसे दूर रहने में ही अपनी इज्ज़त की सुरक्षा है । इनके प्रति मेरी दृष्टि तीखी हो गयी है । Sorry, Very sorry!😢

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