उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
गुरुवार, 23 जनवरी 2020
क्रांति की पाठशाला
मैं क्रांतिकारी बनूँ, इससे बेहतर होगा मैं क्रांतिकारी बनाऊँ । अनगिनत, अगणित ! हम अकेले कितनी क्रांतियाँ सँभालेंगे ? कारगर होगा "जितने लोग उतनी क्रांतियाँ" की रणनीति । जिससे क्रांति चलती रहे । किसी व्यक्ति- विचारधारा के बाद रुक न जाये ।
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