सोमवार, 20 जनवरी 2020

शूद्र हिन्दू

By - Hirday Nath
जातिवाद का सच क्या है ???
अंग्रेज़ी दैनिक (Hindustan Times, 22 September,2014) की रिपोर्ट के अनुसार ,राष्ट्रीय स्वयम सेवक सघं की नवीनतम थ्यूरी के अनुसार हिन्दू धर्म में लेश मात्र भी ४ वर्ण पर आधारित घृणित छुआछूत जन्य जातिवाद नहीं है.वह तो केवल मुस्लिम राज्य के समय मल्लेच्छों की देन है.
यूं तो जातिवाद हिन्दू धर्म के प्रत्येक ग्रन्थ का अभिन्न अंग है,परन्तु मैं यहां केवल ब्रह्म सूत्र से सम्बन्धित विषय पर संदर्भ प्रस्तुत कर रहा हूं जिन की रचना भारत में मुस्लिम राज्य से कई शताब्दीयों पहले हुई थी और न ही भाष्यकर्ता रामानुज मल्लेच्छों का पक्षपाती था.
# शूद्र का वेद सुनना वेद पढना अर्थ समझना एवं अनुष्ठान निषिद्ध हैं.
# शूद्र चलता फिरता शमशान है,उस के समीप वेद नहीं पढना चाहिए.
# शूद्र पशु सदृश है.
# यदि शूद्र वेद को सुन ले तो राजा उस के कानों में सीसा व लाख पिघला कर ड़ाल दे.
# यदि शूद्र वेदमंत्र का उच्चारण करे तो उस की जीब काट देनी चाहिए.
# यदि शूद्र वेद मंत्र को याद कर ले तो उस का शरीर चीर देना चाहिए.
# शूद्र को धर्म अथवा व्रत न सिखाओ.
टिप्पणी ;यदि हिन्दुत्व वादी सचमुच समाज में मानवतावाद पर आधारित बन्धुत्व और एकता स्थापित करना चाहते हैं तो उन्हें ऐसे सभी गन्थों का बहिष्कार करना चाहिए,क्योंकि इस प्रकार की मानसिकता भारतीय संविधान के अन्तरगत नागरिकों के मूलभूत अधिकारों की घोर उल्लंघना है.देरी काहे की ?सरकार भी तो उन्ही की है.

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