"चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों"
यह कोई फिल्मी गाना ही नहीं है
बल्कि इसमें मानव व्यवहार का एक कुशल गुण-मंत्र निहित है।
यदि हम किसी से परिचित हैं तो जब दूसरी बार मिले तो लगभग आप अपरिचित ही रहें
ऐसा न दिखाएं, प्रकट करें, गाएं, सुनाते फिरें कि आप उनकी नाक के बाल हो जाएं। अरे, हम तो इनके बहुत घनिष्ठ, खासुलखास हैं
इससे उनको परेशानी होगी
और यदि आप भी दुनिया को यह बताते फिरें कि हम उनके बहुत अजीज हैं, तो आप भी परेशानी में पड़ सकते हैं । थोड़ी दूरी हमेशा ही अच्छी होती है ज़्यादा लंबे, स्थायी सम्बन्ध और सही जिंदगी जीने के लिए ।
उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
बुधवार, 29 जनवरी 2020
अख़लाक़ की बात
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