न किसी ईश्वर के समक्ष जीभ काटकर चढ़ाना, न स्वर्ग की इच्छा, न नर्क से घबराना, न मोक्ष के लिए दुनिया से भागना । लेकिन दुनिया को बदलने के लिये पागलपन की हद तक अपना जीवन लगाना ।
ये हैं कम्युनिस्ट और उनका सपना है कम्युनिज़्म यानी साम्यवाद । इसका दर्शन है मार्क्सवाद, जिसके प्रणेता हैं बाबा कार्ल मार्क्स । खाँटी भारतीय भाषा में बोलें तो यह बाबा अगर भारत में होते तो संत कहलाते (कहीं ग़लत तो नहीं बोल दिया, क्योंकि यहाँ के सन्त तो कुछ भिन्न प्रकार के होते दिखते हैं ?)! जिनका कामरेड सम्प्रदाय भी किसी संत संप्रदाय की तरह प्रशंसित और पूज्य होता ।
लेकिन इन्हें पूजा पसन्द नहीं । ये तो अपने मार्गदर्शकों मार्क्स, लेनिन आदि की मूर्तियों पर माला नहीं चाहते । उनकी किताबों का अवगाहन करते हैं, माथापच्ची बहस मुबाहिसा करते कुछ निष्कर्ष, कुछ कार्यभार तय करते और जंगलों पहाड़ों की खाक़ छानते हैं । न खाने पीने की चिंता, न चाह में अट्टालिका ! आख़िर ये कौन हैं झोले में केवल विद्याधन की गठरी डाले ? क्या भारतीय मनीषा अपने इन सुयोग्य समर्पित नौनिहालों को कभी अपने गले लगाएगी ?
उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
सोमवार, 5 मार्च 2018
कम्युनिस्ट
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें