पुरानी कविता, नया दम:
(इतना करीब आ जाओ)
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तुम मेरे
इतना करीब
इतना करीब
इतना करीब आ जाओ
कि मेरी साँस उखड़ने लगे
मेरा दम घुट जाए
और मैं मर जाऊँ ।
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पहले मैं
बड़े मेलों में जाता हूँ
फिर बड़ी सभाओं में
छोटे छोटे सम्मेलनों में
फिर छोटी गोष्ठियों
और छोटी मीटिंग में
छोटी से छोटी होती
कमरों की गुफ़्तगू में
शामिल होता हूँ ।
फिर बहुत ही छोटा
कोई गुरिल्ला ग्रुप बनकर
दुश्मन से चिपक जाता हूँ
उसके इतना करीब
इतना करीब
इतना करीब आ जाता हूँ
कि उसकी साँस घुट जाए !
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(उग्रनाथ नागरिक) - 13 मार्च, 2018
उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
मंगलवार, 13 मार्च 2018
करीब आ जाओ
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