बुधवार, 24 अगस्त 2011

बहुत हो गया

अतः ,यदि आपका ही जनलोकपाल पास हो जाय और न्यायालय से भी क्लीन चिट मिल जाय , जो कि यूँ मुश्किल है । और तब भी सरकार एवं क्रमिक सरकारें उसे कुंद करती रहें , तो आप क्या कर लेंगे , कहाँ तक उसके पीछे पढेंगे ? आप सरकार तो हो नहीं जायेंगे ! इसीलिये हम कहतें हैं कि आप लोग चुनाव लड़कर राजनीति में आईये , तब ताक़त आएगी नहीं आते तो एक सीमा में ही रहना पड़ेगा संवैधानिक व्यवस्था में इसलिए ,अभी राजनीति की मंशा तो देखिये ! आप लोग बड़े समझदार लोग हैं सरकार का रुख आप देख ही रहे हैं | विरोधी दलों का रवैया भी सामने है | आपको कानूनविदों ,और अन्य सिविल समाजों का भी समर्थन नहीं प्राप्त हो रहा है | दलित -मुस्लिम अलग हैं सो अलग | बल्कि वे आपके आन्दोलन को संदेह की दृष्टि से देख रहे हैं , और वे आपकी महत्वपूर्ण constituency हैं | ऐसी दशा में कुछ भीड़ के सहारे आप कब तक आन्दोलन खींचेंगे ? आपकी मांगों में नैतिकता की पुकार तो परिलक्षित ज़रूर है ,पर उनका आधार -व्यवहार लोकतंत्र के नीव पर नहीं खड़ा हो पा रहा है , बल्कि कुछ लोग , जाने माने लोग जैसे सोमनाथ चटर्जी आदि उसे लोकतंत्र विरोधी तक मानते हैं | अर्थात, कुल मिलाकर आपको देश का लोकतान्त्रिक -नैतिक समर्थन प्राप्त नहीं है | तो फिर किस आधार पर आप हवा में तलवार चलाएंगे ? यह तो अब अनैतिक ,गैरकानूनी हो गया , एक तानाशाही पूर्ण रवैया | क्या ये लोग अब अन्ना की जान लेके रहेंगे जो स्वयं उसे हथेली पर लिए अनशन पर बैठे हैं ? अन्ना की जान की ज़िम्मेदारी अब सचमुच अन्ना के समर्थकों पर आन पड़ी है | हम भी अपील ही कर सकते हैं वह कर रहे है ,पहले भी किया है | क्या वे इसे समय से समझें और निभाएंगे ? ? अलबत्ता हमारे समझाने में थोड़ी कडाई होती है पर वह सटीक ,सुचिंतित और तार्किक होता है ,समझने - मनन करने योग्य अन्ना का अनशन समाप्त करवाइए , कृपया ##

* - मैंने अरविन्द जी को लोगों से एक हफ्ते की छुट्टी लेकर सड़क पर आह्वान करते सुना था । अब तो एक हफ्ता पूरा हो गया । उन्हें वापस काम पर जाना होगा | अब तो आन्दोलन वापस ले लें । वरना आगे जो लोग शामिल होंगे वे आपके समर्थक नहीं होंगे , बल्कि वे ठेलुए होंगे जिनके पास और कोई काम नहीं है | या फिर वे जिनके पास खूब अतिरिक्त पैसा है ,और उन्हें काम करने की कोई ज़रुरत नहीं है । ##

* - मैं यह भी सोच रहा था
कि अन्ना भूख हड़ताल पर हैं ? यहाँ तो हर आदमी कह रहा है कि वह अन्ना है ,और वह तो खूब मजे से ,भरपेट खा -पी रहा है । ##

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मैं यह भी सोच रहा था कि अन्ना के आन्दोलन का उद्देश्य सचमुच जन लोकपाल बिल पास करना है ,या केवल सरकार को रगड़ना और अपनी हेंकड़ी कायम करना है ? भ्रष्टाचार समाप्त तो उनके कार्यक्रमों से नहीं होना है ,यह तो सबको साफ़ है | यदि बिल ही पास कराना था तो क्या वह पूरे देश में से एक भी सांसद समझा -बुझा कर नहीं तैयार नहीं कर सकते थे जो उनका बिल प्रायवेट बिल के तौर पर संसद में रखता ? किसी पार्टी को भी वे इसके लिए सहमत कर सकते थे । ऐसा उन्होंने कुछ नहीं किया , इस से उनके इरादों पर संदेह होता है । क्योंकि राजनेति में होना कोई आश्चर्य जनक नहीं होता कि '' कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना "| और अन्न टीम कोई दूध की धुली या पवित्र गाय हो , यह भी मन ना थोड़ा अंधविश्वास होगा | देखिये तो , कि वे किस तरह सबको धता बताते हुए फ़ौरन केंद्र सरकार पर कूद पड़े | और एम पी जन उन्हें तब याद आये जब सरकार ने उन्हें निराश कर दिया ,और वह भी ये उनका घर घेर कर जबरदस्ती समर्थन लेने के लिएकुछ दाल में काला ढूँढने की बात है । ##

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