१ - जैसे अडवानी , वैसे अन्ना -
एक का अनशन , एक की रथयात्रा ,
जाहे जिसका भी समर्थन करो
अन्ना खुश !
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२ - गलत फहमियाँ दूर की जाएँ । एम पी बनना भी बड़ी तरद्दुद और परेशानी क काम होता है । अनशन पर बैठने से कम तकलीफ देह नहीं । नेतागिरी में सारा मलाई नहीं है । कबाब में हड्डियाँ बहुत हैं । इसलिए केवल अपने महान होने क भ्रम गलत है । ##
३ - सरकार के प्रति घृणा , सत्ता के साथ अराजकता दीर्घकाल में अच्छे नतीजे नहीं देगा । सत्ता ,शासन और राज्य एक न्यूनतम आदर क हकदार होता है । इसी में जनता की भी भलाई है । आपाधापी में उसका ही हित मारा जायगा । अगर उसना यह शर्त किसी के समक्ष नहीं रखी तो तमाम एल के तीन लोग , अरविन्द भूषन बेदी पुरी जन उसे नाचने लगेंगे ,और ऐसा नचाएंगे की उसका अपना आँगन टेढ़ा हो जायगा । ##
४ - जो सड़क पर नहीं उतर सकते चिल्ला चिल्ला कर नारे नहीं लगा सकते ,उनकी कौन सुन ने वाला है ? क्या इसकी कोई व्यवस्था है ,सरकार के अन्दर , सरकार के बाहर की संस्थाओं में ? ##
५ - अन्ना टीम जैसा कहाँ है कुछ ? अकेले अन्ना अनशन पर हैं , और बातचीत वे कर रहे हैं जो अनशन पर नहीं हैं । क्या उन्हें अन्ना के समान ही अड़ने या समझौता करने क अधिकार है । मेरे ख्याल से ऐसा नहीं होना चाहिए ,और बातचीत ,कम से कम सरकार से , तो केवल अन्ना की होनी चाहिए । ##
६ - सरकार भ्रष्ट है तो क्या आप सरकार हो जायेंगे ? सरकार बन ने के लिए कई और सीढ़ियाँ पार करना दरकार है । अपने सरोकार प्रकट करने क ज़रूर आपको अधिकार है , पर अधिकार का व्यापार बनाना हमे अस्वीकार है । ##
७ - अन्ना का आदर किया जाना चाहिए पर सारे समर्थक अन्ना नहीं हैं , इसे भी माना जाय । भले इसका प्रचार अन्ना को टोपियाँ बहुत कर रही हैं । ##
८ - स्टार न्यूज़ कहता है कि यदि आप अन्ना का समर्थन करते हैं तो इस नंबर पर एस एम एस करें । उसमे यह कहीं नहीं है कि यदि आप समर्थन में नहीं हैं तो क्या करें ? यह मीडिया का भ्रष्टाचार है ,जो भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना के साथ है । ##
९ - लोकपाल क्या करेगा , उसकी एक झाँकी तो अन्ना जी अभी ही दिखा रहे हैं , जिससे सारा देश सहमा हुआ है । ##
१० - अन्ना तुम संघर्ष करो ,हम तुम्हारे साथ हैं । लेकिन वे हैं कौन जो यह कह रहे हैं ? उनकी टोपियाँ तो बता रही हैं कि वे ही अन्ना हैं । फिर वे किस अन्ना से संघर्ष करने को रहे हैं ? या तो हर अन्ने एक दूसरे पर संघर्ष ताल रहे हैं , या फिर उनमे से कोई अन्ना नहीं है ! ##
११ - अंत में एक फ़ालतू बात ख्याल आता है । आदमी व्यक्तिगत और पार्टी गत रूप से ईमानदार हो तो सदन के बाहर की शक्तियों को इतना आंदोलित होने कि ज़रुरत न पड़े । याद आते हैं कम्युनिस्ट पार्टी और उनके ज्यादातर लोग । यदि वे अपने सिद्धांत दर्शन , अबूझ पहेलियों सी बहसें अपने भीतर सीमित रखकर अपने आचरण के बल बूते लोक राजनीति में उतरते ,तो वे एक अच्छा भ्रष्टाचारमुक्त शासन देश को प्रदान कर सकते थे । इस भावना को सारी पार्टियाँ ग्रहण कर सकती है , और यदि वे अपने दरवाज़े भ्रष्ट सदस्यों और उम्मीदवारों के लिए बंद कर दें, तो यह फ़िज़ूल की अनुत्पादक बहस तूल न पकड़ने पाए । ##
प्रेषक :- भ्रष्टाचार मुक्त सशक्त नागरिकता ( Corruptin free -Strong Citizenry)
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