* अन्ना की सफलता क कारण यह है की उन्होंने जन भ्रष्टाचार के मुद्दों को जीवन दान दे दिया है , छुआ ही नहीं | फिर तो सरकार और मंत्रियों के भ्रष्टाचार के विरुद्ध इतने लोगों को सुरक्षापूर्वक खड़े होने में कोई परेशानी हुयी | बल्कि इसमें दैनिक जीवन में तमाम भ्रष्टाचारियों ने शामिल होने में ही अपनी भलाई समझी है | एक शार्टकट के रूप में अन्ना ने आन्दोलन को केवल जन लोकपाल बिल पारित करने में समेट , सीमित कर दिया ,जिसमे भी मुद्दा मुख्यतः यह बना की पी एम और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में रखा जाय , जिसे भी उनकी भीड़ स्टार न्यूज़ को बताने में असमर्थ रही | मैं इस बिंदु पर भी अन्ना से असहमत हूँ | मुझे पसंद नहीं की मेरा प्रधान मंत्री यू एन ओ के अधीन काम करे | यह गुलामी होगी | जी हाँ , लोकपाल एक आयातित अदिकारी के ही मानिंद होगा | वर्ना यदि हम ईमानदार देसी लोकपाल ढूंढ सकते हैं तो उसके बजाय हम एक विश्वसनीय प्रधान मंत्री ढूंढना पसंद करेंगे |
अन्ना यह भ्रम फ़ैलाने में सफल रहे कि उनका आन्दोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ है , जबकि उसकी कवल चाशनी या तड़का भर है उनके पास , जसका नाम वे दे रहे हैं दूसरी आज़ादी ,और जनक्रांति और क्या क्या , हाथ में केवल एक जन लोकपाल बिल क मसौदा लेकर | अब उनके भुलावे में जो आये वो आये | या न भी आये तो इतने बड़े शीर्ष भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों को सड़क पर निकलकर चुहलबाजी करने में क्या परेशानी थी ? वैसे भी लोगों के पास अब पैसा है ,समय है ,कुछ सामाजिक कार्य करते दिखने क जज्बा है | कुछ होते भी हैं ऐसे जिन्हें ऐसे अवसरों पर अपना नाम चमकाने कीगरज होती है | तो लग गए जगह जगह मेले , बैंड बाजा बारात |
हम कह सकते हैं कि हम अम्बेडकरवादी गाँधी के इस भूख हड़ताल के टूल या अस्त्र क समर्थन नहीं कर सकते , भले अन्ना क इरादा कितना ही शुभ हो | आंबेडकर को बहुत नीचा देखना पड़ा था गाँधी जी के साथ पूना पैक्ट करने में | यह अप्रत्याशित नहीं था कि अन्ना टीम में कोई दलित नहीं है , हो ही नहीं सकता था |
* अपने संतोष के लिए फिर भी हमने कुछ बिंदु निकले हैं आन्दोलन की अच्छाइयों के | यह अहिंसक है | इसके संग साथ कोई यग्य हवं ,पूजा पाठ ,प्रार्थना सभा नहीं हो रही है | इसने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक फिजां , एक माहौल बनाई, एक जनचेतना तो जगाई है ,भले अन्ना उसका इस्तेमाल अभी निजी अहम् की सम्पूर्ति में कर रहे हैं | पर जनता इस जज्बे का कभी सार्थक इस्तेमाल तो कर ही सकती है | फिर यह वामपंथी प्रगतिशील नहीं है | इसलिए यदि यह अ -प्रगतिशील या कुछ प्रगति विरोधी भी हो तो भी स्वीकार्य है हमें |
* तिस पर भी सावधान तो रहना होगा | जब कोई मसअला भीड़ तय करने लगती है ,तो अक्सर मूल्य परिदृश्य से गायब , तिरोहित होते नज़र आते हैं | हमें सोचना पड़ेगा एक ऐसा विधेयक [Right to Die of Hunger Strike] लाने के विषय में जिसमे व्यक्ति को भूख हड़ताल द्वारा अपनी जान देने की पूरी छूट व अधिकार हो | ऐसे त्यागी सदाशयी लोगों की जान बचाने की ज़िम्मेदारी सरकार की न हो | वर्ना आने वाले दिनों में ट्रेड यूनियनों से लेकर सभ्य समाजों तक के लोग अपने मुटापा मिटाने के हठयोग द्वारा देश को धूल चटाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे | ##
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