१ - क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है की कोई विद्यार्थी बिना परीक्षा दिए कोई कक्षा पास किये जाने की जिद करे ? वसे ही बक डोर से अपनी 'सद्कामना'पूरी करना चाहते हैं अन्ना | सरकार में हैं नहीं , या मनमोहन सिंह की तरह अन्य किसी संवैधानिक हैसियत में भी नहीं हैं | फिर भी अपना [अपना क्या किसी और का | उनमे बिल बनाने की योग्यता कहाँ ! अलबत्ता उनमे सच्चे भारतीय की तरह बिना अन्न के कुछ दिन जी लेने की योग्यता ,साहस और आडम्बर अवश्य है] बिल बलात पास करने के लिए बच्चों के सारेगामापा की तरह अड़े हैं | और तमाम नादान बच्चे तिरंगे की खिल्ली उड़ाते उनके लिए उछाल-कूद कर रहे हैं | ##
२ - दोस्तों ! यह आज़ादी बड़ी मुश्किल से हमें प्राप्त हुयी है | निस्संदेह उसमे अन्यों के साथ महात्मा गाँधी का भी बहुत बड़ा योगदान था ,जिसके अनुयायी अन्ना अपने आप को बताते हैं | गाँधी के बन्दर भी कुछ आध्यात्मिक मूल्यों के प्रतीक थे | न कि उस्तरा लेकर देश के कंधे पर कूदने के लिए | इनसे सावधान रहने कि अतिरिक्त होशियारी इसलिए भी ज़रूरी है , और इसके लिए ये हँसी के पात्र बनते है कि ये बड़े -बड़े आदर्श लेकर आते हैं , अपनी बातों पर झूठ का इतना मुलम्मा लगाते हैं कि क्या कोई धूर्त नेता लगा पायेगा | ##
३ - कहते हैं ,सरकार भ्रष्टाचार मिटाना नहीं चाहती वरना क्या ६४ सालों में यह न मिट पाया होता ? सही है कि भ्रष्टाचार क्रोनिक और पुरातन है | पर इसके खिलाफ नेहरु काल से ही प्रयास जारी है ,जब उन्होंने निकटतम पेंड से भ्रष्टाचारी को टांगने कि बात कही थी | अपने अनन्य सहयोगी केशव देव मालवीय को शिकार भी बनाया था | भ्रष्टाचा नहीं मिटा तो इसमें केवल सरकार का ही नहीं , साधू संतो का नाकारापन और सामान्य नागरिकों की कमजोरी भी बराबर से दोषी है | फिर कहा जाता है की भ्रष्टाचारियों को सजा मिलने में इतनी देर लग जाती है | यह भी सही है | पर लोकतान्त्रिक व्यवस्था में यह न्यायपालिका के अंतर्गत है , उसके अपने कुछ तौर तरीके हैं | कुछ खामियां भी हैं , वकीलों की बहसें है ,जिससे अपराधी बच निकलते हैं | कितने मामले अदालतों में लंबित रह जाते हैं | तो क्या करें ? क्या न्याय की प्रक्रिया पूरी किये बिना निर्णय कर दिया जाय ? या अरविन्द केजरीवाल जो सूची आपको दें उसके अनुसार सबको सूली पर चढ़ा दिया जाय ? क्या चाहते है आप ? ##
४ - [समाचार १९/८/११ ] अन्ना समर्थकों ने बस और पुलिस चौकी जलाई |अब इस आधार पर उनसे अपना अहिंसात्मक आन्दोलन वापस लेने के लिए नैतिक रूप से तो प्रेरित नहीं किया जा सकता ,क्योंकि उनकी प्रेरणा वस्तुतः गाँधी या वो वाले महर्षि अरविन्द तो हैं नहीं ! वैसे भी गाँधी जी ने जो आन्दोलन वापसी चौरी चौरा काण्ड के बाद किया था , उसके लिए उन्होंने स्वयं उसे अपनी हिमालयी भूल स्वीकार की थी | तो अब गाँधीवादी अन्ना ऐसा ब्लंडर करने की भूल कैसे कर सकते हैं ? ##
शेष कुशल है | उग्राः , the cantankerous, Lucknow
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