१ - भले सिविल सोसायटी अन्ना क आन्दोलन प्रत्यक्ष चला रहे हैं , पर दरअसल का सभ्य समाज परोक्ष रूप से उनसे असहमत है ,विरोध भी कर रहा है| जैसा कि समाचार पत्रों के विशेष लेखों , पाठकों के पत्रों तथा फेसबुक के पन्नों से स्पष्ट है | इससे स्थितियों में ज़रूर फर्क पड़ा है , आन्दोलन पर अवश्य असर पड़ रहा है , जो कि स्वाभाविक है | आवाज़ में ताक़त तो होती ही है भले ही वह तूती की आवाज़ हो | आवाज़ सिर्फ भीड़ के नारों में ही नहीं होती | ##
२ - अन्ना जी पहले कभी फौज में ड्राइवर थे | अब वह एक ट्रक के मालिक हैं , जिसके ड्राइवर - त्रयी आठ -आठ घंटों की शिफ्ट में गाड़ी को चला रहे हैं | ज़ाहिर है , स्टियरिंग, गियर ,एक्सीलरेटर, कुछ भी उनके हाथ में नहीं है | इंजिन के लिए ईंधन , मोबिल देना भर उनके जिम्मे है | ऐसे में इस आन्दोलन को किसका आन्दोलन कहा ,समझा जाय ? ##
३ - छः माह के बच्चे भी अन्ना के आन्दोलनकारियों में शामिल हैं , और अन्ना उन्हें बाकायदा संबोधित भी करते हैं | समझना मुश्किल है कि यह आन्दोलन स्थल है या कोई पार्क ,पिकनिक -स्थल जैसा कि समर्थकों के उत्साही ,प्रफुल्ल चेहरों से भी प्रकट होता है | बच्चे तो इसलिए भी शामिल हो सकते हैं क्योंकि जन -लोकपाल उनका तो कुछ बिगाड़ नहीं पायेगा , उलटे वहाँ वे सशक्त शिकायत दर्ज करा सकते हैं कि मम्मी उन्हें दूध नहीं पिलातीं ,पापा उनका होम वर्क पूरा नहीं करते | जी हाँ ऐसी शिकायतें भी दर्ज और उन पर सख्त कार्य वाही कर सकता है जन लोकपाल बिल , अपने थोड़े विस्तार में , कुछ अभी न्यायपालिका की तरह ।आखिर ये मामले क्या गंभीर नहीं हैं , या कम हस्तक्षेप्नीय हैं ? और जन लोकपाल भी बहुत मजबूत होगा न ! ##
४ - गैर ज़िम्मेदारी | मैं खुद से और अपने साथियों से हमेशा यह अपेक्षा कर्ता हूँ कि सरकार ,और उसकी नीतियों का विरोध उस तरह और उस स्तर से करो मानो आप स्वयं सरकार हों | क्यों नहीं ? लोकतंत्र में केवल सरकार ही सरकार नहीं होती ,बल्कि हर नागरिक की हैसियत सरकार कि होती है | ऐसी ही ज़िम्मेदारी हम नागरिकों से चाहते हैं | और इसमें श्री कुलदीप नैयर का भी एक सूत्र जोड़ता हूँ | बकौल उनके ,वे सर्वदा देश हित का ख्याल रखते हैं | कहीं से भी देश का नुकसान न हो | इन राष्ट्रीय नागरिक सूत्रों का पालन नहीं हो रहा है ,या कम हो रहा है | इसका हमें बड़ा दुःख है | निश्चय ही हमारी गैर जिम्मेदाराना हरकतों में इजाफा हुआ है | हमारा यह शोक केवल अन्ना आन्दोलन को लेकर ही नहीं है | इसका सन्दर्भ बहुत व्यापक है , जिसे समझने और आत्मसात करने की ज़रुरत है | यह स्वयं से हर नागरिक के प्रश्न करने के बात है कि वह इसके छीजन या कि संवर्धन में कहाँ तक भागीदार है ? ##
५ - पहले बाबरी मस्जिद टूटी , अब लगता है प्रतीकात्मक रूप से सांसद की दीवारें तोड़ने क इरादा है | क्यों नहीं , वरुण गाँधी शामिल तो हो गए हैं ! अच्छे भले लोग कहते मिले हैं कि यह भीड़ यूँ ही नहीं है | लेकिन क्या ख्याल नहीं आता कि ऐसी ही भीड़ें अयोध्या में , सिख विरोधी दंगों में , गुजरात में भी तो नज़र आई थीं ? इसलिए भीड़ पर भरोसा करना और उनसे हमेशा राष्ट्र हित में काम करने की उम्मीद रखना उचित नहीं है | भीड़ों पर उनका नतृत्व मंडल अनुचित गर्व और घमंड न करे न बहुत उत्तेजना जताए तो ही अच्छा | और हाँ , यह पूछना रह गया , कि उन दुर्दिनों में ये संत -महात्मा - गाँधी लोग कहाँ थे ? अरुंधती राय ने भी तो बोला है कि तमाम राष्ट्रीय मुद्दों पर इन्हें तो बोलते नहीं सुना गया | अब ये छलनियाँ किस मुंह से सूप के बोल बोल रहे हैं ? ##
६ - दुनिया भर में आन्दोलन सत्ता के विकेंद्रीकरण के लिए हो रहा है | हमारे देश में एक केंद्रीकृत सत्ता के लिए | तो , है न यह Incredible India , India Against Corruption ? ##
7 - अंतरात्मा ? इस शब्द के राजनीतिक इस्तेमाल से हम बहुत परेशान हैं | इसकी आवाज़ सुनने का आह्वान श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस के लोगों से किया था , जिसका हश्र देश ने आगे देखा | अब अन्ना की अंतरात्मा भी उन्हें कुछ खाने पीने से ,अनशन तोड़ने से मना कर रही है , तो थोड़ा दर लगता है | अब सवाल है कि क्या किरन बेदी , अरविन्द केजरीवाल के पास अंतरात्मा नहीं है , जो वे एक बूढ़े की आत्मा को शान्ति प्रदान करने पर तुले हैं ? वे भी तो कुछ अपनी आत्मशुद्धि करें ! ##
८ - तमाम खतरों के साथ , एक कटु -प्रश्न है तमाम ईमानदार , या ईमानदारी पसंद लोगों से | क्या एक सम्पूर्ण भ्रष्टाचारमुक्त विदेशी शासन उन्हें स्वीकार होगा ? यह प्रश्न यूँ ही नहीं है | सुराज और स्वराज की बहस बहुत पुरानी है | लोग उसे अपने स्वार्थ के चलते जनता के बीच नहीं उठाते ? अब उठा है तो थोड़ा सोचिये ,आप किसके पक्ष में हैं ? ##
९ - जांच होनी चाहिए | कि यह आन्दोलन किनके द्वारा संचालित हो रहा है | शक ही है कि इन्हें देखकर यह स्वाभाविक या संप्रेरित जन उभार नहीं लगता | यह पूरी तरह कहीं से प्रायोजित इवेंट मैनेजरों द्वारा व्यवस्थित ढंग से चलाया जा रहा सुसंगठित आयोजन प्रतीत होता है | इसकी पूरी ,सघन जांच होनी चाहिए | लेकिन यदि सरकार कराएगी तो उसे पूर्वाग्रह का शिकार घोषित करके अविश्वसनीय कह दिया जायगा | तो क्या जन -लोकपाल बन ने तक इंतज़ार किया जाय ? नहीं इसकी जांच किसी जन -विश्वस्त एन जी ओ से ही क्यों न कराया जाय या किसी मौजूदा आयोग मंडल से | यथा मानवाधिकार आयोग , अनुसूचित आयोग , महिला आयोग , या सूचना आयोग से | आखिर सरकार को भी ,और उसके माध्यम से हम जनता को भी उनसे कुछ जानने का अधिकार है , या वही सब हमसे जानते रहेंगे | Accontability , transparency कुछ उनकी भी सुनिश्चित हो ,तो इसमें हर्ज़ क्या है , जिसका वास्ता वे ही लोग एक पवित्र गाय की तरह देते हैं ? ##
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