बुधवार, 31 अगस्त 2011

ईश्वर को संदेह का लाभ

१ - ईश्वर यूँ ही नहीं है । आदमी का विश्वास आदमी पर से उठ गया है । यदि आदमी आदमी में ईश्वरत्व होता , वह ईश्वर जैसा विश्वसनीय हो पाता तो ईश्वर कब का विदा हो चुका होता । लेकिन ऐसा होता कैसे ? हो ही नहीं सकता था , क्योंकि आदमी तो अनेक था पर ईश्वर था एक । इसलिए ईस्वर तो भरोसे मंद हो सका । लेकिन आदमी तो असंख्य थे ! उनमे से कुछ ही सच्चे इंसान निकल सकते थे । वे निकले भी ,पर उनकी तादाद इतनी नहीं हो सकी की वे ईश्वर पर से आदमी का विश्वास तोड़ सकते , आदमी का ध्यान ईश्वर से हटा सकते । तमाम तो झूठे फरेबी और धोखेबाज ही हुए । तो ईश्वर कैसे चैन से जीने या मरने पाता । आदमी उसकी अपने मनोनुकूल व्याख्या करने लगा , अपने पसंद की मूर्तियाँ गढ़ने, बनाने, पूजने लगा , जिसे वह जारी किये हुए है । #

- नीत्शे के ईश्वर को जनता की अदालत ने संदेह का लाभ टेकर बरी कर दिया है , वरना उसे मृत्यु दंड तो मिल ही चुका है । ##
३ - ईश्वर क सम्बन्ध विश्व से है । इसलिए आपका सम्बन्ध विश्व से क्या है , इसी से तय होगा की आप कितने आस्तिक हैं ! वरना तो सत्यतः आप नास्तिक ही हैं , आस्तिकता का कितना ही दिखावा , नाटक व पाखण्ड कर लें । ###

४ - चाहे आप कितने ही दीनी मुसलमान हों , खुदा आपके जिए कोई अलग से इंतजाम नहीं करेगा####

५ - जब आदमी को खराब का खराब ही रहना है , या घोषित होना है , तो फिर वह किसी की गुलामी क्यों करे ? किसी धर्म या धर्म गुरु की ? वह स्वतंत्र क्यों न रहे , और अपनी अच्छाई या बुराई का जिम्मा स्वयं अपने ऊपर ले ? इसमें वह ईश्वर को क्यों बदनाम या सदनाम करे ? ####3

रविवार, 28 अगस्त 2011

कविता प्रयास

नैतिक बल , L-V-L/185 , Aliganj lucknow -226024(U.P.) , mob- 9415160913 , Email-priyasampadak@gmail.com, बड़े भाई साहब(उग्रनाथ नागरिक १९४६) इंजीनियर ,लेखक -------------------------------------------------------------------------------------------------
0 मुझे मेरे प्रश्नों का
उत्तर नहीं चाहिए
मैं हर प्रश्न का हर उत्तर
जानता हूँ
तुम्हें तुम्हारा उत्तर
तलाशने के लिए
अपना प्रश्न
तुमसे सुनाता हूँ । (कविता)
0--- पहाड़ सी नदी
कहाँ पहाड़ सा जीवन
कहाँ नदी सी ज़िन्दगी
मज़ा तो यह कि
नदी हर
पहाड़ से निकली
और समुद्र में समा गयी ।
तो समन्दर क्या है ?
एक पहाड़ सी नदी । 0 (कविता)
0 निश्चय ही थे
वे लोग बुद्घिमान
हम नहीं हैं । (हाइकु)

0 उछलकूद
ज़्यादा न करो जो भी
नाटक करो । (हाइकु)

0 कुछ काम हो
काम पर ध्यान हो
व्यक्ति मज़े में । (हाइकु)

0 बड़ा नहीं तो
बड़ा सा तो है वह
यह काफी है । (हाइकु)

0 न कोई माप
न कोई मापदंड
जीवन यात्रा ।(हाइकु)

0 चाहे जितना
पर्दा कर ले नारी
बचेगी नहीं । (हाइकु)

0 जानता नहीं
तकलीफें सहना
अब आदमी । (हाइकु)

0 शायर होंगे
शायर मायने क्या
शेर तो नहीं । (हाइकु)

0 फ़िज़ूल पैसा
खूब तो कराता है
तीर्थयात्राएँ । (हाइकु)

0 पता चलेगा
शादी हो तो जाने दो
फिर देखेंगे । (हाइकु)

0 हर आदमी
संत हो हर व्यक्ति
भक्त हो जाए । (हाइकु)

0 कष्ट के लिए
खेद है क्षमा करो
रास्ता खराब । (हाइकु)

0 पाखंड है कि
कम होने का नाम
ही नहीं लेता । (हाइकु)

0 मूर्ख हैं आप
मूर्ख ही हैं हम भी
एक समान । (हाइकु)

0 झगड़ा करें
तो किससे किससे
कितना करें । (हाइकु)

०(गीत शुरू )
*प्रेम करता हूँ मैं तुमसे , जब कहा था तब कहा था ,
अब न फिर ऐसा कहूंगा , कान मैं अपने पकड़ता । #

*ज़िन्दगी की सज़ा एक मुझको मिली ,
ज़िन्दगी भर सजाते रहे ज़िन्दगी । #

*वह भी नेता जैसा ही है , बस थोड़ा रंगीन ,
कवि का ड्रेस पाजामा कुर्ता ,बस थोड़ा रंगीन । #

*तू तो कहता ,कुछ न होता , तेरी मर्जी के बगैर ,
कैसे खडका एक पत्ता , तेरी मर्जी के बगैर ? #

*तुम्हारा पत्र आया , पैर ने धरती छोड़े ,
तुम आ जाओ तो बन्दा ये दुनिया छोड़ दे । #

*भगवान् अपनी जगह सच ,
आदमी अपनी जगह सच । #

* दकियानूसी देश , उनको कहाँ पता ?
अमरीकी परिवेश ,उनको कहाँ पता ? #

*कहीं कुछ भी अगर छिपा न रहे ,
ज़िन्दगी में कोई मज़ा न रहे । #
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शनिवार, 27 अगस्त 2011

सशक्त नागरिकता

- जैसे अडवानी , वैसे अन्ना -
एक का अनशन , एक की रथयात्रा ,
जाहे जिसका भी समर्थन करो
अन्ना खुश !
##

- गलत फहमियाँ दूर की जाएँएम पी बनना भी बड़ी तरद्दुद और परेशानी काम होता हैअनशन पर बैठने से कम तकलीफ देह नहींनेतागिरी में सारा मलाई नहीं हैकबाब में हड्डियाँ बहुत हैंइसलिए केवल अपने महान होने भ्रम गलत है । ##

- सरकार के प्रति घृणा , सत्ता के साथ अराजकता दीर्घकाल में अच्छे नतीजे नहीं देगासत्ता ,शासन और राज्य एक न्यूनतम आदर हकदार होता हैइसी में जनता की भी भलाई हैआपाधापी में उसका ही हित मारा जायगाअगर उसना यह शर्त किसी के समक्ष नहीं रखी तो तमाम एल के तीन लोग , अरविन्द भूषन बेदी पुरी जन उसे नाचने लगेंगे ,और ऐसा नचाएंगे की उसका अपना आँगन टेढ़ा हो जायगा । ##

- जो सड़क पर नहीं उतर सकते चिल्ला चिल्ला कर नारे नहीं लगा सकते ,उनकी कौन सुन ने वाला है ? क्या इसकी कोई व्यवस्था है ,सरकार के अन्दर , सरकार के बाहर की संस्थाओं में ? ##

- अन्ना टीम जैसा कहाँ है कुछ ? अकेले अन्ना अनशन पर हैं , और बातचीत वे कर रहे हैं जो अनशन पर नहीं हैंक्या उन्हें अन्ना के समान ही अड़ने या समझौता करने अधिकार है । मेरे ख्याल से ऐसा नहीं होना चाहिए ,और बातचीत ,कम से कम सरकार से , तो केवल अन्ना की होनी चाहिए । ##

- सरकार भ्रष्ट है तो क्या आप सरकार हो जायेंगे ? सरकार बन ने के लिए कई और सीढ़ियाँ पार करना दरकार हैअपने सरोकार प्रकट करने ज़रूर आपको अधिकार है , पर अधिकार का व्यापार बनाना हमे अस्वीकार है । ##

- अन्ना का आदर किया जाना चाहिए पर सारे समर्थक अन्ना नहीं हैं , इसे भी माना जायभले इसका प्रचार अन्ना को टोपियाँ बहुत कर रही हैं । ##

- स्टार न्यूज़ कहता है कि यदि आप अन्ना का समर्थन करते हैं तो इस नंबर पर एस एम एस करेंउसमे यह कहीं नहीं है कि यदि आप समर्थन में नहीं हैं तो क्या करें ? यह मीडिया का भ्रष्टाचार है ,जो भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना के साथ है । ##

- लोकपाल क्या करेगा , उसकी एक झाँकी तो अन्ना जी अभी ही दिखा रहे हैं , जिससे सारा देश सहमा हुआ है । ##

१० - अन्ना तुम संघर्ष करो ,हम तुम्हारे साथ हैंलेकिन वे हैं कौन जो यह कह रहे हैं ? उनकी टोपियाँ तो बता रही हैं कि वे ही अन्ना हैंफिर वे किस अन्ना से संघर्ष करने को रहे हैं ? या तो हर अन्ने एक दूसरे पर संघर्ष ताल रहे हैं , या फिर उनमे से कोई अन्ना नहीं है ! ##

११ - अंत में एक फ़ालतू बात ख्याल आता हैआदमी व्यक्तिगत और पार्टी गत रूप से ईमानदार हो तो सदन के बाहर की शक्तियों को इतना आंदोलित होने कि ज़रुरत पड़ेयाद आते हैं कम्युनिस्ट पार्टी और उनके ज्यादातर लोगयदि वे अपने सिद्धांत दर्शन , अबूझ पहेलियों सी बहसें अपने भीतर सीमित रखकर अपने आचरण के बल बूते लोक राजनीति में उतरते ,तो वे एक अच्छा भ्रष्टाचारमुक्त शासन देश को प्रदान कर सकते थेइस भावना को सारी पार्टियाँ ग्रहण कर सकती है , और यदि वे अपने दरवाज़े भ्रष्ट सदस्यों और उम्मीदवारों के लिए बंद कर दें, तो यह फ़िज़ूल की अनुत्पादक बहस तूल पकड़ने पाए । ##

प्रेषक :- भ्रष्टाचार मुक्त सशक्त नागरिकता ( Corruptin free -Strong Citizenry)

बुधवार, 24 अगस्त 2011

बहुत हो गया

अतः ,यदि आपका ही जनलोकपाल पास हो जाय और न्यायालय से भी क्लीन चिट मिल जाय , जो कि यूँ मुश्किल है । और तब भी सरकार एवं क्रमिक सरकारें उसे कुंद करती रहें , तो आप क्या कर लेंगे , कहाँ तक उसके पीछे पढेंगे ? आप सरकार तो हो नहीं जायेंगे ! इसीलिये हम कहतें हैं कि आप लोग चुनाव लड़कर राजनीति में आईये , तब ताक़त आएगी नहीं आते तो एक सीमा में ही रहना पड़ेगा संवैधानिक व्यवस्था में इसलिए ,अभी राजनीति की मंशा तो देखिये ! आप लोग बड़े समझदार लोग हैं सरकार का रुख आप देख ही रहे हैं | विरोधी दलों का रवैया भी सामने है | आपको कानूनविदों ,और अन्य सिविल समाजों का भी समर्थन नहीं प्राप्त हो रहा है | दलित -मुस्लिम अलग हैं सो अलग | बल्कि वे आपके आन्दोलन को संदेह की दृष्टि से देख रहे हैं , और वे आपकी महत्वपूर्ण constituency हैं | ऐसी दशा में कुछ भीड़ के सहारे आप कब तक आन्दोलन खींचेंगे ? आपकी मांगों में नैतिकता की पुकार तो परिलक्षित ज़रूर है ,पर उनका आधार -व्यवहार लोकतंत्र के नीव पर नहीं खड़ा हो पा रहा है , बल्कि कुछ लोग , जाने माने लोग जैसे सोमनाथ चटर्जी आदि उसे लोकतंत्र विरोधी तक मानते हैं | अर्थात, कुल मिलाकर आपको देश का लोकतान्त्रिक -नैतिक समर्थन प्राप्त नहीं है | तो फिर किस आधार पर आप हवा में तलवार चलाएंगे ? यह तो अब अनैतिक ,गैरकानूनी हो गया , एक तानाशाही पूर्ण रवैया | क्या ये लोग अब अन्ना की जान लेके रहेंगे जो स्वयं उसे हथेली पर लिए अनशन पर बैठे हैं ? अन्ना की जान की ज़िम्मेदारी अब सचमुच अन्ना के समर्थकों पर आन पड़ी है | हम भी अपील ही कर सकते हैं वह कर रहे है ,पहले भी किया है | क्या वे इसे समय से समझें और निभाएंगे ? ? अलबत्ता हमारे समझाने में थोड़ी कडाई होती है पर वह सटीक ,सुचिंतित और तार्किक होता है ,समझने - मनन करने योग्य अन्ना का अनशन समाप्त करवाइए , कृपया ##

* - मैंने अरविन्द जी को लोगों से एक हफ्ते की छुट्टी लेकर सड़क पर आह्वान करते सुना था । अब तो एक हफ्ता पूरा हो गया । उन्हें वापस काम पर जाना होगा | अब तो आन्दोलन वापस ले लें । वरना आगे जो लोग शामिल होंगे वे आपके समर्थक नहीं होंगे , बल्कि वे ठेलुए होंगे जिनके पास और कोई काम नहीं है | या फिर वे जिनके पास खूब अतिरिक्त पैसा है ,और उन्हें काम करने की कोई ज़रुरत नहीं है । ##

* - मैं यह भी सोच रहा था
कि अन्ना भूख हड़ताल पर हैं ? यहाँ तो हर आदमी कह रहा है कि वह अन्ना है ,और वह तो खूब मजे से ,भरपेट खा -पी रहा है । ##

* -
मैं यह भी सोच रहा था कि अन्ना के आन्दोलन का उद्देश्य सचमुच जन लोकपाल बिल पास करना है ,या केवल सरकार को रगड़ना और अपनी हेंकड़ी कायम करना है ? भ्रष्टाचार समाप्त तो उनके कार्यक्रमों से नहीं होना है ,यह तो सबको साफ़ है | यदि बिल ही पास कराना था तो क्या वह पूरे देश में से एक भी सांसद समझा -बुझा कर नहीं तैयार नहीं कर सकते थे जो उनका बिल प्रायवेट बिल के तौर पर संसद में रखता ? किसी पार्टी को भी वे इसके लिए सहमत कर सकते थे । ऐसा उन्होंने कुछ नहीं किया , इस से उनके इरादों पर संदेह होता है । क्योंकि राजनेति में होना कोई आश्चर्य जनक नहीं होता कि '' कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना "| और अन्न टीम कोई दूध की धुली या पवित्र गाय हो , यह भी मन ना थोड़ा अंधविश्वास होगा | देखिये तो , कि वे किस तरह सबको धता बताते हुए फ़ौरन केंद्र सरकार पर कूद पड़े | और एम पी जन उन्हें तब याद आये जब सरकार ने उन्हें निराश कर दिया ,और वह भी ये उनका घर घेर कर जबरदस्ती समर्थन लेने के लिएकुछ दाल में काला ढूँढने की बात है । ##

अंतरात्मा ?

१ - भले सिविल सोसायटी अन्ना क आन्दोलन प्रत्यक्ष चला रहे हैं , पर दरअसल का सभ्य समाज परोक्ष रूप से उनसे असहमत है ,विरोध भी कर रहा है| जैसा कि समाचार पत्रों के विशेष लेखों , पाठकों के पत्रों तथा फेसबुक के पन्नों से स्पष्ट है | इससे स्थितियों में ज़रूर फर्क पड़ा है , आन्दोलन पर अवश्य असर पड़ रहा है , जो कि स्वाभाविक है | आवाज़ में ताक़त तो होती ही है भले ही वह तूती की आवाज़ हो | आवाज़ सिर्फ भीड़ के नारों में ही नहीं होती | ##

२ - अन्ना जी पहले कभी फौज में ड्राइवर थे | अब वह एक ट्रक के मालिक हैं , जिसके ड्राइवर - त्रयी आठ -आठ घंटों की शिफ्ट में गाड़ी को चला रहे हैं | ज़ाहिर है , स्टियरिंग, गियर ,एक्सीलरेटर, कुछ भी उनके हाथ में नहीं है | इंजिन के लिए ईंधन , मोबिल देना भर उनके जिम्मे है | ऐसे में इस आन्दोलन को किसका आन्दोलन कहा ,समझा जाय ? ##

३ - छः माह के बच्चे भी अन्ना के आन्दोलनकारियों में शामिल हैं , और अन्ना उन्हें बाकायदा संबोधित भी करते हैं | समझना मुश्किल है कि यह आन्दोलन स्थल है या कोई पार्क ,पिकनिक -स्थल जैसा कि समर्थकों के उत्साही ,प्रफुल्ल चेहरों से भी प्रकट होता है | बच्चे तो इसलिए भी शामिल हो सकते हैं क्योंकि जन -लोकपाल उनका तो कुछ बिगाड़ नहीं पायेगा , उलटे वहाँ वे सशक्त शिकायत दर्ज करा सकते हैं कि मम्मी उन्हें दूध नहीं पिलातीं ,पापा उनका होम वर्क पूरा नहीं करते | जी हाँ ऐसी शिकायतें भी दर्ज और उन पर सख्त कार्य वाही कर सकता है जन लोकपाल बिल , अपने थोड़े विस्तार में , कुछ अभी न्यायपालिका की तरह ।आखिर ये मामले क्या गंभीर नहीं हैं , या कम हस्तक्षेप्नीय हैं ? और जन लोकपाल भी बहुत मजबूत होगा न ! ##

४ - गैर ज़िम्मेदारी | मैं खुद से और अपने साथियों से हमेशा यह अपेक्षा कर्ता हूँ कि सरकार ,और उसकी नीतियों का विरोध उस तरह और उस स्तर से करो मानो आप स्वयं सरकार हों | क्यों नहीं ? लोकतंत्र में केवल सरकार ही सरकार नहीं होती ,बल्कि हर नागरिक की हैसियत सरकार कि होती है | ऐसी ही ज़िम्मेदारी हम नागरिकों से चाहते हैं | और इसमें श्री कुलदीप नैयर का भी एक सूत्र जोड़ता हूँ | बकौल उनके ,वे सर्वदा देश हित का ख्याल रखते हैं | कहीं से भी देश का नुकसान न हो | इन राष्ट्रीय नागरिक सूत्रों का पालन नहीं हो रहा है ,या कम हो रहा है | इसका हमें बड़ा दुःख है | निश्चय ही हमारी गैर जिम्मेदाराना हरकतों में इजाफा हुआ है | हमारा यह शोक केवल अन्ना आन्दोलन को लेकर ही नहीं है | इसका सन्दर्भ बहुत व्यापक है , जिसे समझने और आत्मसात करने की ज़रुरत है | यह स्वयं से हर नागरिक के प्रश्न करने के बात है कि वह इसके छीजन या कि संवर्धन में कहाँ तक भागीदार है ? ##

५ - पहले बाबरी मस्जिद टूटी , अब लगता है प्रतीकात्मक रूप से सांसद की दीवारें तोड़ने क इरादा है | क्यों नहीं , वरुण गाँधी शामिल तो हो गए हैं ! अच्छे भले लोग कहते मिले हैं कि यह भीड़ यूँ ही नहीं है | लेकिन क्या ख्याल नहीं आता कि ऐसी ही भीड़ें अयोध्या में , सिख विरोधी दंगों में , गुजरात में भी तो नज़र आई थीं ? इसलिए भीड़ पर भरोसा करना और उनसे हमेशा राष्ट्र हित में काम करने की उम्मीद रखना उचित नहीं है | भीड़ों पर उनका नतृत्व मंडल अनुचित गर्व और घमंड न करे न बहुत उत्तेजना जताए तो ही अच्छा | और हाँ , यह पूछना रह गया , कि उन दुर्दिनों में ये संत -महात्मा - गाँधी लोग कहाँ थे ? अरुंधती राय ने भी तो बोला है कि तमाम राष्ट्रीय मुद्दों पर इन्हें तो बोलते नहीं सुना गया | अब ये छलनियाँ किस मुंह से सूप के बोल बोल रहे हैं ? ##

६ - दुनिया भर में आन्दोलन सत्ता के विकेंद्रीकरण के लिए हो रहा है | हमारे देश में एक केंद्रीकृत सत्ता के लिए | तो , है न यह Incredible India , India Against Corruption ? ##

7 - अंतरात्मा ? इस शब्द के राजनीतिक इस्तेमाल से हम बहुत परेशान हैं | इसकी आवाज़ सुनने का आह्वान श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस के लोगों से किया था , जिसका हश्र देश ने आगे देखा | अब अन्ना की अंतरात्मा भी उन्हें कुछ खाने पीने से ,अनशन तोड़ने से मना कर रही है , तो थोड़ा दर लगता है | अब सवाल है कि क्या किरन बेदी , अरविन्द केजरीवाल के पास अंतरात्मा नहीं है , जो वे एक बूढ़े की आत्मा को शान्ति प्रदान करने पर तुले हैं ? वे भी तो कुछ अपनी आत्मशुद्धि करें ! ##

८ - तमाम खतरों के साथ , एक कटु -प्रश्न है तमाम ईमानदार , या ईमानदारी पसंद लोगों से | क्या एक सम्पूर्ण भ्रष्टाचारमुक्त विदेशी शासन उन्हें स्वीकार होगा ? यह प्रश्न यूँ ही नहीं है | सुराज और स्वराज की बहस बहुत पुरानी है | लोग उसे अपने स्वार्थ के चलते जनता के बीच नहीं उठाते ? अब उठा है तो थोड़ा सोचिये ,आप किसके पक्ष में हैं ? ##

९ - जांच होनी चाहिए | कि यह आन्दोलन किनके द्वारा संचालित हो रहा है | शक ही है कि इन्हें देखकर यह स्वाभाविक या संप्रेरित जन उभार नहीं लगता | यह पूरी तरह कहीं से प्रायोजित इवेंट मैनेजरों द्वारा व्यवस्थित ढंग से चलाया जा रहा सुसंगठित आयोजन प्रतीत होता है | इसकी पूरी ,सघन जांच होनी चाहिए | लेकिन यदि सरकार कराएगी तो उसे पूर्वाग्रह का शिकार घोषित करके अविश्वसनीय कह दिया जायगा | तो क्या जन -लोकपाल बन ने तक इंतज़ार किया जाय ? नहीं इसकी जांच किसी जन -विश्वस्त एन जी ओ से ही क्यों न कराया जाय या किसी मौजूदा आयोग मंडल से | यथा मानवाधिकार आयोग , अनुसूचित आयोग , महिला आयोग , या सूचना आयोग से | आखिर सरकार को भी ,और उसके माध्यम से हम जनता को भी उनसे कुछ जानने का अधिकार है , या वही सब हमसे जानते रहेंगे | Accontability , transparency कुछ उनकी भी सुनिश्चित हो ,तो इसमें हर्ज़ क्या है , जिसका वास्ता वे ही लोग एक पवित्र गाय की तरह देते हैं ? ##

बड़ी देर कर दी

! - There are so many Annas to carry forward Anna's mission । No, I am not Anna .India is no Anna . Anna is not India [Indira is India had spoiled the democracyin huge volume] . I am in my name and a citizen of India . No one should imitate others' name .This is a major point of dessent for us rationalists, a own minds' group. Please don't change the nation into a single person. ## We dont follow anyone in toto
We don't make followers either |

2 - हुज़ूर आते आते बड़ी देर कर दी | यही कहना होगा सांसदों के घरों पर अन्ना के प्रदर्शनकारियों सेअब याद आये एम पी लोग ? जबकि इन्ही के पास तो सबसे पहले जाना चाहिए था , बल्कि इन्ही के पास जाना ही आप की सीमा थी - जन प्रतिनिधियों को समझाते , प्रभावित करते ,उन पर दबाव डालतेलेकिन आप तो सरकार के साथ मंत्रियों की कमेटी में हो आये , अपना ड्राफ्ट सरकार को दे आये , स्टेंडिंग कमेटी से मिल आये , बात नहीं बनी तो इतने दीं अन्ना लीला कर लिएतो अब जाकर एम पी याद आये ? नहीं , हम आपको कोई आश्वासन नहीं दे सकतेजो कुछ करेंगे ,कहेंगे सदन में कहेंगेकब आपने हम तुच्छों को विश्वास में लेने की कोशिश की ? अलबत्ता गालियाँ ज़रूर देते रहे । यदि हम भ्रष्ट हैं तो हमें नोट दो, हम तुम्हे समर्थन देंगे | अब तो हम नहीं आते तुम्हारे धौंस में |अग्निवेश यदि हमें शून्य अंक दिलाते हैं तो दिलाएं , अन्ना टीम हमारी constituency नहीं है |और यदि प्रदर्शन इस तरीके से कही हिंसक हो गया तो समझो सरकार काम बन गया ,अन्ना की हेंकड़ी गिर गयी । ##

- आप की मांग सही है तो क्या किसी की जान लेना भी जायज़ है ? इसलिए यदि अन्ना को कुछ हो जाता है तो अन्ना को आत्महत्या [हत्या] के लिए उकसाने के जुर्म में तीन तिलंगों पर कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिएइसमें केवल अन्ना दोषी नहीं हैं ,उनका इरादा तो नेक ही हैहाँ , यह भी गौरतलब है, प्रदर्शनकारियों के लिए ,कि संतोष हेगड़े जी क्यों टीम से बाहर नजर रहे हैं ? क्या वह देशद्रोही , भ्रष्टाचार समर्थक हैं ? ##

- दिक्कत यह है कि यदि अन्ना अनशन तोड़ना भी चाह रहे होंगे तो उनकी पृष्ठ ताकतें उन्हें ऐसा नहीं करने देंगीं , भले उनकी जान चली जाययाद किया जाय गाइड फिल्म के अंतिम दृश्यों को , जब देवानंद अन्ना हजारे हो जाता है ,तो मामला साफ़ हो जाता है । ##

- देश पैसा देश से बाहर जाय , यह तो ठीक हैपर भारत में भी कोई पैसा [भारत को मजबूत या खोखला करने के लिए ] भारत में आये ,इस साधारण सी बात को मानने में किसी को क्या एतराज़ होना चाहिएएन जी को बाहर से पैसा क्यों मिले ,वह भी बगैर किसी जवाब देही के ? कोई मदद -इमदाद मिले तो भारत सरकार को मिलेऐसी आर्थिक आज़ादी भी क्या जिस से आर्थिक व्यभिचार पैदा हो ? इसे भला अन्ना जी क्या समझें और कितना समझें ? और उनकी टीम तो खुद उससे पोषित है , पर ngo's के लिए यह छूट क्या अनैतिक नहीं है ? भाई , स्वराज और स्वदेशी क मामला है ,अपने निजी जज्बे ,अर्थ ,साधन और संसाधन पर भरोसा रखो और उसी से काम लो , विदेशों की ओर क्यों झांकते हो ? हमारे कथन में क्या गलत है ? ##

- राज तो करेगा अमरीका , जिसने दिया है पैसा ##

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

अन्ना अनशन तोड़ें

देश भर में एक विशाल , अराजनीतिक लोगों के , हस्ताक्षर अभियान की ज़रुरत है कि अन्ना अब अनशन तोड़ें | जो उनके समर्थक हैं उनके द्वारा भी , और जो उनसे असहमत हैं उनके द्वारा भी । फेसबुक ,ट्विटर ,अखबार , टी वी चैनेलों के दफ्तर इस आशय के अनुरोध पत्रों -पत्रकों से पट जाने चाहिए |
हम नहीं जानते क्या है उनकी माँग और सरकार से उनकी बातचीत । वे चलती रहेंगी । अभी तो हम उनकी जिंदगी चाहते हैं। उनकी मृत्यु हम नहीं चाहते चाहते, बस ।
जिनका काम सियासत है ,उनकी वे जानें
हमारा काम मोहब्बत है , जहाँ तक पहुँचे ।।
- उग्र नाथ नागरिक "बड़े भाई साहब "
कार्यकर्त्ता -निनाद [निर्विवाद नागरिक दल ] , दार्शनिक संस्था
'ईदगाह ' , L-V-L/185, Aliganj ,Lucknow . Mob-9415160913.Email-priyasampadak@gmail.com

सोमवार, 22 अगस्त 2011

मिसलेड जनता

कविता -
जनता हमेशा
मिसलेड होती रही है ,
जनता , इस बार भी
मिसलेड होने से
इन्कार नहीं कर रही है |
----
जन भीड़ का क्या
वही तो दिसंबर को
अयोध्या में भी जुटी थी !
--
क्या यह वही है ?
वह नहीं है तो क्या है ?
है तो भी मिसलेड,
नहीं है , तो भी मिसलेड.
Mis-leaders are
mis-leading the county.
चाहें प्रजातंत्र के रास्ते
चाहें भूख हड़ताल के रास्ते | ##

* - मकोका विरोधी भी जन लोकपाल के समर्थन में होंगे | क्या उन्हें अहसास नहीं है की यह बिल जन -मकोका के सदृश्य है ? ##

* - अब एक नई दादागिरी सामने रही है | भू -माफिया , कोयला -माफिया ,धन माफिया , बल माफिया .आदि से अभी निपटना बाक़ी ही है , की एक जन माफिया / जनांदोलन माफिया उभर कार सामने गया | यह नया एन गी मफिआगिरी बड़ा कष्ट देने वाली है | पूर्व में मैं इस आन्दोलन को सिविलियन कूप की संज्ञा दे चुका हूँ | ##

* - सत्ताधारी दल एवं इसके गठबंधन से अधिक , अब ज़िम्मेदारी विरोधी दलों के ऊपर पड़ी है | क्योंकि अब हमला केवल सरकार पर नहीं , स्टैंडिंग कमिटी पर गया है , पार्लियामेंट पर हो रहा है | देश भक्त अफज़ल गुरु सक्रिय हो गए हैं | हमला विरोधी दलों के बहस -विरोध के अधिकार पर आन पड़ा है | कुछ स्वयंभू संस्थाएं कानून निर्माता का अवतार अख्तियार कार चुके हैं , और साथ ही साथ विरोधी दलों की भी भूमिका का अधिग्रहण कार रहे हैं | ऐसी दशा में सरकार का किंकर्त्तव्यविमूढ़ होना स्वाभाविक है , पर इस स्थिति से देश को निकलना, बचाना विरोधी दलों की भी खासी ज़िम्मेदारी है | क्योंकि यदि सदन ही नहीं रहा , संसद की कार्यवाही ही नहीं रही तो फिर उनकी अपनी जिंदगी का क्या होगा ? वे कहाँ साँस लेंगे ? क्या वे अब भी केवल सरकार का विरोध करके अपना कर्तव्य पूरा कर रहे होंगे ? या इस मुद्दे पर लोकतंत्र के मूल्यों का साथ देंगे ? ##

*- ऐसे में सहसा ध्यान जाता है .बंगाल के कम्युनिस्ट काडर का ,और केंद्र सरकार की बेबसी का [जो कि लोकतंत्र के दबाव के कारण है , और यह शुभ ही है ] । वह यह कि रामदेव अपनी प्राइवेट सेना, अन्ना हजारे छद्म पूर्वक जनता की भीड़ का विशाल प्रबंधन कर सकते हैं , पर सत्ता धारी दल अपना रक्षक काडर नहीं बना सकता वह तो अलग , उसकी सरकारी पुलिस ने कहीं दो -चार डंडे ज्यादा भाँज दिए , तो उस पर आततायी होने का आरोप लगते देर नहीं लगेगी | और अगर कहीं इमरजेंसी लागू करना पड़ा ,तब तो गज़ब ही हो जायगाकांग्रेस के दूसरे गाल पर भी कालिख लग जायगी ,एक पर पहले से ही लगी हुयी हैसास बहू का किस्सा पूरा हो जायगाऐसे में क्या विरोधी दलों की और सभ्य समाजों की यह ज़िम्मेदारी नहीं बनती कि वैसी स्थितियाँ देश में पैदा होने दें ?##

* - हाइकु कविता -

काम ज़रूर
हम कर रहे हैं
भले निष्फल । ##

* - मेरी मानसिक संस्था -
- निर्विवाद [No Quarrels Please]
- नई ज़िन्दगी [रोज़ एक , फिर फिर] ##

-- आपका , उग्र नाथ [बड़े भाई साहब] , ईदगाह ,L-V-L/185, Aliganj, Lucknow-24 [Mob- 09415160913]

शनिवार, 20 अगस्त 2011

बैंड बाजा बारात

* अन्ना की सफलता कारण यह है की उन्होंने जन भ्रष्टाचार के मुद्दों को जीवन दान दे दिया है , छुआ ही नहीं | फिर तो सरकार और मंत्रियों के भ्रष्टाचार के विरुद्ध इतने लोगों को सुरक्षापूर्वक खड़े होने में कोई परेशानी हुयी | बल्कि इसमें दैनिक जीवन में तमाम भ्रष्टाचारियों ने शामिल होने में ही अपनी भलाई समझी है | एक शार्टकट के रूप में अन्ना ने आन्दोलन को केवल जन लोकपाल बिल पारित करने में समेट , सीमित कर दिया ,जिसमे भी मुद्दा मुख्यतः यह बना की पी एम और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में रखा जाय , जिसे भी उनकी भीड़ स्टार न्यूज़ को बताने में असमर्थ रही | मैं इस बिंदु पर भी अन्ना से असहमत हूँ | मुझे पसंद नहीं की मेरा प्रधान मंत्री यू एन के अधीन काम करे | यह गुलामी होगी | जी हाँ , लोकपाल एक आयातित अदिकारी के ही मानिंद होगा | वर्ना यदि हम ईमानदार देसी लोकपाल ढूंढ सकते हैं तो उसके बजाय हम एक विश्वसनीय प्रधान मंत्री ढूंढना पसंद करेंगे |
अन्ना यह भ्रम फ़ैलाने में सफल रहे कि उनका आन्दोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ है , जबकि उसकी कवल चाशनी या तड़का भर है उनके पास , जसका नाम वे दे रहे हैं दूसरी आज़ादी ,और जनक्रांति और क्या क्या , हाथ में केवल एक जन लोकपाल बिल मसौदा लेकर | अब उनके भुलावे में जो आये वो आये | या भी आये तो इतने बड़े शीर्ष भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों को सड़क पर निकलकर चुहलबाजी करने में क्या परेशानी थी ? वैसे भी लोगों के पास अब पैसा है ,समय है ,कुछ सामाजिक कार्य करते दिखने जज्बा है | कुछ होते भी हैं ऐसे जिन्हें ऐसे अवसरों पर अपना नाम चमकाने कीगरज होती है | तो लग गए जगह जगह मेले , बैंड बाजा बारात |
हम कह सकते हैं कि हम अम्बेडकरवादी गाँधी के इस भूख हड़ताल के टूल या अस्त्र समर्थन नहीं कर सकते , भले अन्ना इरादा कितना ही शुभ हो | आंबेडकर को बहुत नीचा देखना पड़ा था गाँधी जी के साथ पूना पैक्ट करने में | यह अप्रत्याशित नहीं था कि अन्ना टीम में कोई दलित नहीं है , हो ही नहीं सकता था |

* अपने संतोष के लिए फिर भी हमने कुछ बिंदु निकले हैं आन्दोलन की अच्छाइयों के | यह अहिंसक है | इसके संग साथ कोई यग्य हवं ,पूजा पाठ ,प्रार्थना सभा नहीं हो रही है | इसने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक फिजां , एक माहौल बनाई, एक जनचेतना तो जगाई है ,भले अन्ना उसका इस्तेमाल अभी निजी अहम् की सम्पूर्ति में कर रहे हैं | पर जनता इस जज्बे का कभी सार्थक इस्तेमाल तो कर ही सकती है | फिर यह वामपंथी प्रगतिशील नहीं है | इसलिए यदि यह -प्रगतिशील या कुछ प्रगति विरोधी भी हो तो भी स्वीकार्य है हमें |

* तिस पर भी सावधान तो रहना होगा | जब कोई मसअला भीड़ तय करने लगती है ,तो अक्सर मूल्य परिदृश्य से गायब , तिरोहित होते नज़र आते हैं | हमें सोचना पड़ेगा एक ऐसा विधेयक [Right to Die of Hunger Strike] लाने के विषय में जिसमे व्यक्ति को भूख हड़ताल द्वारा अपनी जान देने की पूरी छूट अधिकार हो | ऐसे त्यागी सदाशयी लोगों की जान बचाने की ज़िम्मेदारी सरकार की हो | वर्ना आने वाले दिनों में ट्रेड यूनियनों से लेकर सभ्य समाजों तक के लोग अपने मुटापा मिटाने के हठयोग द्वारा देश को धूल चटाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे | ##

गुरुवार, 18 अगस्त 2011

अन्ना का भ्रष्टाचार

१ - क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है की कोई विद्यार्थी बिना परीक्षा दिए कोई कक्षा पास किये जाने की जिद करे ? वसे ही बक डोर से अपनी 'सद्कामना'पूरी करना चाहते हैं अन्ना | सरकार में हैं नहीं , या मनमोहन सिंह की तरह अन्य किसी संवैधानिक हैसियत में भी नहीं हैं | फिर भी अपना [अपना क्या किसी और का | उनमे बिल बनाने की योग्यता कहाँ ! अलबत्ता उनमे सच्चे भारतीय की तरह बिना अन्न के कुछ दिन जी लेने की योग्यता ,साहस और आडम्बर अवश्य है] बिल बलात पास करने के लिए बच्चों के सारेगामापा की तरह अड़े हैं | और तमाम नादान बच्चे तिरंगे की खिल्ली उड़ाते उनके लिए उछाल-कूद कर रहे हैं | ##
२ - दोस्तों ! यह आज़ादी बड़ी मुश्किल से हमें प्राप्त हुयी है | निस्संदेह उसमे अन्यों के साथ महात्मा गाँधी का भी बहुत बड़ा योगदान था ,जिसके अनुयायी अन्ना अपने आप को बताते हैं | गाँधी के बन्दर भी कुछ आध्यात्मिक मूल्यों के प्रतीक थे | न कि उस्तरा लेकर देश के कंधे पर कूदने के लिए | इनसे सावधान रहने कि अतिरिक्त होशियारी इसलिए भी ज़रूरी है , और इसके लिए ये हँसी के पात्र बनते है कि ये बड़े -बड़े आदर्श लेकर आते हैं , अपनी बातों पर झूठ का इतना मुलम्मा लगाते हैं कि क्या कोई धूर्त नेता लगा पायेगा | ##
३ - कहते हैं ,सरकार भ्रष्टाचार मिटाना नहीं चाहती वरना क्या ६४ सालों में यह न मिट पाया होता ? सही है कि भ्रष्टाचार क्रोनिक और पुरातन है | पर इसके खिलाफ नेहरु काल से ही प्रयास जारी है ,जब उन्होंने निकटतम पेंड से भ्रष्टाचारी को टांगने कि बात कही थी | अपने अनन्य सहयोगी केशव देव मालवीय को शिकार भी बनाया था | भ्रष्टाचा नहीं मिटा तो इसमें केवल सरकार का ही नहीं , साधू संतो का नाकारापन और सामान्य नागरिकों की कमजोरी भी बराबर से दोषी है | फिर कहा जाता है की भ्रष्टाचारियों को सजा मिलने में इतनी देर लग जाती है | यह भी सही है | पर लोकतान्त्रिक व्यवस्था में यह न्यायपालिका के अंतर्गत है , उसके अपने कुछ तौर तरीके हैं | कुछ खामियां भी हैं , वकीलों की बहसें है ,जिससे अपराधी बच निकलते हैं | कितने मामले अदालतों में लंबित रह जाते हैं | तो क्या करें ? क्या न्याय की प्रक्रिया पूरी किये बिना निर्णय कर दिया जाय ? या अरविन्द केजरीवाल जो सूची आपको दें उसके अनुसार सबको सूली पर चढ़ा दिया जाय ? क्या चाहते है आप ? ##
४ - [समाचार १९/८/११ ] अन्ना समर्थकों ने बस और पुलिस चौकी जलाई |अब इस आधार पर उनसे अपना अहिंसात्मक आन्दोलन वापस लेने के लिए नैतिक रूप से तो प्रेरित नहीं किया जा सकता ,क्योंकि उनकी प्रेरणा वस्तुतः गाँधी या वो वाले महर्षि अरविन्द तो हैं नहीं ! वैसे भी गाँधी जी ने जो आन्दोलन वापसी चौरी चौरा काण्ड के बाद किया था , उसके लिए उन्होंने स्वयं उसे अपनी हिमालयी भूल स्वीकार की थी | तो अब गाँधीवादी अन्ना ऐसा ब्लंडर करने की भूल कैसे कर सकते हैं ? ##
शेष कुशल है | उग्राः , the cantankerous, Lucknow

Evil Society

* - क्या किसी को भी, किसी भी कोण से ,किसी भी मोड़ पर लगा कि अन्ना एक गाँधीवादी भ्रष्टाचार विरोधी नेता होने के साथ देश के कोई सामान्य कानून पालक[law abiding] नागरिक भी हैं ? नहीं , उनकी अपनी जिद है और वह उसी पर कायम हैं - 'मेरा तो खूँटा यहीं गड़ेगा ' | जब चाहेंगे , जहाँ चाहेंगे ,जब तक चाहेंगे अनशन करेंगे , जब चाहेंगे तोड़ेंगे | अपनी इच्छानुसार तिहाड़ जेल में रहेंगे ,अपनी मर्ज़ी -मुताबिक रामलीला मैदान जायेंगे |सब अपनी शर्तों पर | उनके लिए देश का शासन -प्रशासन कोई मायने नहीं रखता , वे महान और विशिष्ट हैं ,सारे जहाँ से ऊपर ,कानून से परे | ऊपर से तुर्रा यह कि वह देश पर एक सख्त लोकपाल कानून लाना चाहते हैं | उस से उनका कुछ न बिगड़ेगा ,क्योंकि वे उसके दायरे में नहीं आयेंगे | लेकिन उनको हमारा साधारण नागरिक समाज तो अपने दायरे में रखता है ? उनका कृत्य लोकतंत्र के लिए घातक है | उनकी सोसायटी सिविल नहीं ,इविल सोसायटी है | ###

सोमवार, 15 अगस्त 2011

स्वराज और लोकतंत्र के हक़दार

* यदि अन्ना का आशय समझकर यह मान लिया जाय कि भारत की सवा सौ करोड़ जनता अपने लिए एक विश्वसनीय ,ईमानदार प्रधानमंत्री नहीं चुन सकती , तो यह भी तय समझा जाय कि हम स्वराज और लोकतंत्र के कतई योग्य और इसलिए इसके हक़दार नहीं है | फिर तो हमें लोकपाल की भी ज़रुरत नहीं है | हमें सीधे सीधे अपने देश की आज़ादी किन्ही अंग्रेजों के हाथ में वापस सौंपकर स्वयं निकटस्थ हिंद महासागर में डूब जाना चाहिए | ऐसी ही दुर्दशा के छवि बना रखी है सिविल सोसायटी ने |
सोचिये ,कि बजाय चुनाव प्रणाली पर ध्यान देने के , जिस से कि सही लोग सत्ता में जाँय ,ऐसे विधेयक के लिए जान दिया जा रहा है जिस से गलत ढंग से चुने गए लोगों पर एक कथित तलवार लटकती रहे , कोई बुद्धिमानी नहीं कही जायगी | काम लोकतंत्र की जड़ों में किया जाना चाहिए | वर्ना अंकुश रखने वाली कानूनी धाराओं कि कहाँ कमी है ? उन्हें भी लागू करने के लिए एक सक्षम ,सुदृढ़ , संकल्पवान , प्रज्ञाशील राजनीतिक सदिक्षा जो लोकपाल प्रदान नहीं कर सकता | वह विपरीत तः सही प्रधान मंत्री को भी कमजोर बनाकर रखेगा | और उसके ज़रिये पूरा भारत देश एक कमज़ोर हैसियत को प्राप्त होगा | यही हमारी आपत्ति है अन्ना के ड्राफ्ट बिल से | अन्ना कपिल सिब्बल के घर पानी भरने का प्रस्ताव करते है | मैं उनसे आठ साल छोटा हूँ , मैं दो छार बाल्टी पानी उनसे ज्यादा भर सकता हूँ | मैं पानी भरूँगा अन्ना के दरवाजे पर ,यदि उनके लोकपाल से देश नतभाल न हो या या उन्नत -मस्तिष्क हो |
हाँ एक सख्त ,मजबूत चुनाव आयोग और उसका देशभक्त ,ईमानदार इन्फ्रा स्ट्रक्चर ऐसा अवश्य कर सकता है |चुनाव आयोग लोकतंत्र को , यहाँ तक कि जनप्रतिनिनिधियों की सांसद में हाजिरी तक भी सुनिश्चित कर सकता है | वही सक्षम है चुने प्रतिनिधियों कि सूची पर हस्ताक्षर करने के लिए | उस हस्ताक्षर को बोल्ड बनाया जाना चाहिए | सम्प्रति समाप्त
बड़े भाई साहब , L-V-L /185, Aliganj , Lucknow. Mob 09415160913 Email-priyasampadak@gmail

बुधवार, 3 अगस्त 2011

अन्ना से ज्यादा तो मुन्ना कारगर

१ - लगे हाथ अन्ना हजारे टीम उसी चांदनी चौक में यह जनमत संग्रह भी करा लें कि कितनी प्रतिशत जनता उन्हें अपना सिविल प्रतिनिधि मानती है | और हाँ , अब तो अन्ना को कपिल सिब्बल के खिलाफ चुनाव जीतने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए | ##

२ - अन्ना जी , दस करोड़ क्यों लगेंगें आपके चुनाव में भला ? फिर अन्य में और आप में क्या अंतर रह जायगा ? और यदि आप जानते हैं हैं कि इतना पैसा लगता है , तो यह क्यों लगता है , इस प्रश्न पर आपने क्यों नहीं सोचा ? यदि इसी मुद्दे पर आप काम करते तो देश का कुछ पक्का काम हो जाता बनिस्बत उसके जो आप कार रहे हैं , या जो आपसे कराया जा रहा है | ##

३ - आप दस दिन बिना खाए रह सकते हैं तो क्या इस आधार पर कोई जिद करेंगें ? आप पांच लोग प्रधान मंत्री और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में लाना चाहते हैं , तो दस लोग मानते हैं कि ऐसा करना गलत होगा | फिर आप अनशन करके अपनी ही बात देश को मनवाने पर क्यों तुले हैं ? क्या यह जिद अनुचित नहीं है ? मामला संसद में है ,और आप संसद की तौहीन कर रहे हैं | दुःख है की आप जानते ही नहीं की आप क्या कर रहे हैं | आप लगातार अपनी समझ में नहीं ,दूसरों के उकसावे में हैं | तिस पर भी यदि आप जिद करते हैं तो आप ख़ुशी से जान दे दीजिये | यह देश के हित में ज्यादा होगा | आप ही नहीं , आपके साथ भीड़ भी नहीं समझती कि आप देश के लिए कितना घातक आन्दोलन कर रहे हैं जो लोकतंत्र के खिलाफ है , आज़ादी का नाशक है , और गुलामी का दिशा निर्देशक | उलटी बात यह है कि अभी आप और देश एश यह समझ रहा है कि आप आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं | जब संसद और संसद की गरिमा समाप्त हो जायगी ,और आप की पूँछ पर पाँव धरकर कोई बदमाश भारत का लोक - अध्यक्ष बन जायगा तब समझ में आएगा ,आपने कितना नुकसान किया देश का ! आप की टीम अलोकतांत्रिक अक्ल की है | और जो आप यह समझते हैं कि देश में केवल आप पांच ईमानदार हैं ,शेष सब बे ईमान , तो यह सोच गलत है | फिर भी यदि ऐसा है तो लोकतंत्र में तो बे ईमानों की ही चलेगी | यहाँ आपकी सात्विक तानाशाही नहीं चलेगी | गुस्ताखी मुआफ | ##

४ - इसे विडम्बना ही तो कहेंगे , या कोई छद्म किगाँधी के अनुयायी अब भगत सिंह , चन्द्र शेखर आज़ाद , सुभाष चन्द्र बोस बन ने की होड़ में हैं | ##

५ - एक शातिर दिमाग अरविन्द केजरीवाल को तो लगता है पक्का भ्रम हो गया है कि भारत के प्रथम जन लोक पाल वही बनेंगे , और वह देश से भ्रष्टाचार भगा देंगें | बड़ी मशक्कत कर रहा है बेचारा | अब इस महत्वाकांछा के आगे भला कलक्टरी की नौकरी कैसे पसंद आती ? ##

६ - पूछने पर श्रीमान जी कहते हैं की कितना समय लगा सरकार को अपने आरोपित मंत्रियों के खिलाफ कार्यवाही करने में | इसका श्रेय उन्होंने सरकार के बजाय सुप्रीम कोर्ट को दिया | वे सुप्रीम कोर्ट से ज़रा पूछें की उसके पास कितने मामले कितने दिनों से लंबित हैं ? ##

७ - लोकपाल भी कोई कार्यवाही तभी तो कर पायेगा जब उसके पास कोई सूचना , शिकायत पहुंचेगी ? यदि भ्रष्टाचारी ऐसा आपस में प्रबंधन कर लें कि सब काम अन्दर अन्दर हो जाय , जैसा अभी हो रहा है , और उन तक पौंचे ही नहीं | तो क्या कर लेगा लोकपाल भी , जैसा कि अभी ही लोकायुक्त एवं अन्य एजेंसियां नहीं कर पा रही हैं | ##

८ - देखने वालों ने देखा होगा कि 'लगे रहो मुन्ना भाई ' देश के मानस पर अन्ना के आन्दोलन से ज्यादा कारगर हुआ था | ##

- सभ्य समाज लोकतान्त्रिक सरकारों के खिलाफ साज़िश नहीं किया करते | ##

१० - निष्कर्ष = यदि यह मान लिया आय कि यह राजनीतिक भ्रष्टाचार का युग है | दूसरी ओर यह ध्यान दिया जाय कि दलितों की आर्थिक स्थिति सबसे ख़राब है | तो हमें समग्रतः यह जिद बनानी , अपनानी चाहिए अन्ना की तरह कि फिर अब तो हम केवल दलितों को ही राजनीतिक सत्ता में जाने देंगें | नेत्र बंद करके केवल दलित उम्मीदवार को ही वोट देकर विधायक -सांसद बनायेंगे जिस से यदि वे भ्रष्टाचार भी करे तो उनकी आर्थिक दशा सुधरे , और वे मोद पायें | है न उम्दा बात और बेहतरीन प्रस्ताव ? ##

सोमवार, 1 अगस्त 2011

राजा ने बोला तो

* राजा ने बोला तो की उनके प्रयासों का नतीजा है की आज रिक्शे वाले तक के हाथ में मोबाईल है |
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वाह ! और यह कितना तो ज़रूरी हो गया था रिक्शे वालों के लिए , देश की तरक्की के लिए ? ! ##
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Ugra Nath Nagrik, ‘LAGHUTA’, L-5-L/185,Aliganj,Lucknow-226024

Mob-09415160913, Email-priyasampadak@gmail.com Dt- ३१ /७ /११

गोदान के ७५ वर्ष

Ugra Nath Nagrik, ‘LAGHUTA’, L-5-L/185,Aliganj,Lucknow-226024

Mob-09415160913, Email-priyasampadak@gmail.com Dt- 30/7/११

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* क्या फर्क पड़ता है फिर स्थितियों पर ? यदुरप्पा मुख्या मंत्री नहीं तो उनके पसंद का मुख्य मंत्री ! भाज पार्टी का चरित्र क्या बदला ?फिर यदुरप्पा स्वयं को भाजपा का अनुशासित सिपाही / कार्यकर्त्ता बता रहे हैं | "तो भाजपा एक अनुशासित भ्रश्तचरिओन की पार्टी है ", यही तो अर्थ निकलता है ? ##

* एक अनावश्यक , अतिरिक्त प्रश्न उठता है कि ऐसी दशा में कहाँ हैं माओ वादी ? क्या कर रहे है वे ? उनकी ज़रुरत यहाँ धरातल पर तमाम निर्विवाद भ्रष्टाचारियों से निपटने की है , तो वे जंगलों में भागे हुए हैं | हमें वे गंदगी से मुक्ति दिलाने का उनका कर्तव्य उनकी समझ में क्यों नहीं आता ? ##

* अन्ना हजारे को , लगता है , जेल जाने का शौक पूरे उत्कर्ष पर चर्रा गया है | उनके मुँह से जेल ही जेल निकलता है | सोते - जागते बडबडाते हैं | " जंतर मंतर नहीं तो जेल सही " , " तब तक जेल में बैठते हैं " इत्यादि | शहीद होने की उनकी तमन्ना पूरी है , और इंशा अल्ला उनके साथियों की साजिश इसे जल्दी ही पूरा कार देगी | ##

* [कवितानुमा [

चलिए मान गए

आप दोषी नहीं हैं

और आपके साथी

बाल कृष्ण निरपराध हैं ,

उनकी डिग्रियां झूठी नहीं हैं

पासपोर्ट बिल्कुल सही है

बंदूकों के लाइसेंस जायज़ हैं

सब कुछ ठीक है ,

पर यह कहना तो ठीक नहीं है

कि आप लोग संत है

या योगी , रामदेव | ##

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* गोदान के ७५ वर्ष | प्रश्न है , १९३६ से ही सही , तब से अब तक कुछ बदला क्यों नहीं ? कारण यह है कि किसान उपन्यास का विषय है , भाषण और आंसू बहाने का विषय है | वह जीवन का अंग नहीं है किसी के | और न ही कोई उन स्थितियों को अब जीने के लिए तैयार है , क्योंकि वह बड़ा कष्टकर है | इसलिए सब सभ्य -जन खेत बेचकर शहर आ रहे हैं | असली फार्म छोड़ कर नकली फार्महाउस बना रहे हैं | इसलिए कुछ नहीं बदला ,क्योंकि किसान पर राजनीति तो हो सकती है , लेकिन वस्तुतः किसनई नहीं हो सकती | क्षमा करना मुंशी प्रेमचंद जी | ##

* एक बात मैं और कह रहा था कि जिन उच्च पदों के भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली में लडाई चल रही है , यह सूक्ष्म ध्यान देने की बात है ,वे लोग यदि बिल्कुल कोई अनैतिक धन न प्राप्त करें, तो भी ऊपर खर्च की जा धन राशि अथाह है | उनकी जीवन शैली राजसी है | कभी -कभी मुझे , गलत ही सही , लगता है कि ऊपरी भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर जनता का ध्यान इस फिजूलखर्ची से हटाया जा रहा है , क्योंकि उसकी कोई बात ही नहीं करता | इसका कारण यह है कि उपरोक्त सिविल सोसायटी भी तो उसी पॉश जीवन शैली की शिकार हैं | इसलिए वह उन्हें दिख ही नहीं सकता |चाहें किरण बेदी हों या प्रशांत भूषण , ये मामूली लोग नहीं हैं | पर हमारी दृष्टि में तो नेताओं का सामान्य ,नैतिक जीवन भी एक महा भ्रष्टाचार से कम नहीं प्रतीत होता | केवल इनका वेतन भत्ते वगैरह ही आप जान लीजिये तो आप की आँखें खुल जायं | मुझे तो शंकर दयाल शर्मा जैसे व्यक्ति की अपने आवास पर अकूत खर्चवाही ही तत्समय बहुत बुरी और नागवार गुज़री थी | अभी प्रतिभा पाटिल जी के बंगले के लिए भवन -अधिग्रहण का समाचार आया है | तो बिल्कुल कानूनी और जायज़ तरीकों से भी देश को लूटा जा रहा है ,यह मैं कहना चाहता हूँ | अब विडम्बना यह कि इनके खिलाफ कोई एजेंसी ,कोई कोर्ट अप का साथ न देगा , क्योंकि ये कृत्य संपूर्णतः संविधान सम्मत हैं | ##

* ३०/७ /११/ आज मेरे लघु आवास पर " प्रेमचंद , आज का समय और सन्दर्भ " विषय पर अनिमेष फौंडेशन और सरोकार के तत्त्वावधान में एक लघु संगोष्ठी का आयोजन हुआ | कम ही सही , वक्ताओं ने अनौपचारिक रूप से बड़ी सारगर्भित बातें कहीं | बन्धु कुशावर्ती ने मुख्य वक्ता के रूप में बड़े सुविग्य तथ्य रखे जिन पर दीपक श्रीवास्तव , भगवत प्रसाद 'सविता ', दिव्य रंजन पाठक , ज्ञान प्रकाश , रणजीत कुमार ने गंभीर परिचर्चा की | अशोक चंद की अध्यक्षता में हुयी इस गोष्ठी में उग्रनाथ नागरिक ने हार्दिक धन्यवाद प्रस्तुत किया |

इस अवसर पर श्री दिव्य रंजन द्वारा संपादित उग्रनाथ का कविता - संग्रह {पाण्डुलिपि } का विमोचन भी संपन्न हुआ |


* प्रेमचंद जयन्ती के अवसर पर मैं आज "देहाती दल " की स्थापना कर रहा हूँ | ## [३१/७/११ ]